कलकत्ता में फ़िल्म डायरेक्टर किदार शर्मा
श्वेत श्याम फ़िल्मों के सुपरस्टार अभिनेता मोतीलाल
ने किदार शर्मा से कहा था- शर्मा जी, आप मुझे फ़ोन मत किया करो। मेरी मां डांटती
है। कहती है रोज़ किसी लड़की का फ़ोन आ जाता है। नाम पूछती हूँ तो बोलती है- किदार
शर्मा। राजकपूर के गुरु किदार शर्मा की आवाज़ सचमुच औरतों जैसी थी। माहिम के
हिंदुजा अस्पताल के पास उनका ऑफिस था। मार्च 1993 में 83 साल के किदार शर्मा से
मेरी मुलाक़ात हुई। दुबले पतले किदार शर्मा स्वभाव से मज़ाकिया और हाज़िर जवाब थे।
देवकी बोस की फ़िल्म पूरन भगत
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लाहौर विश्व विद्यालय में एम.ए. अंग्रेज़ी की
परीक्षा देने के बाद किदार शर्मा ने फ़िल्म 'पूरन भगत' (1933) देखी। तन मन पर
जादू छा गया। क्या कोई इतनी सुंदर फ़िल्म बना सकता है ! मन में विचार आया कि अगर
देवकी बोस जैसी प्रतिभा के साथ काम नहीं किया तो यह जीवन व्यर्थ है। न्यू थियेटर्स की इस फ़िल्म के निर्देशक थे देवकी बोस।
उस समय भले घर के लड़के लड़कियों का फ़िल्मों में
काम करना बहुत बुरा माना जाता था। पिताजी नहीं चाहते थे ब्राह्मण का बच्चा भांट का
काम करे। सुनते ही उबल पड़े- "अगर ज़ुबान से दोबारा ऐसी बात निकाली तो एक
झापड़ मारूंगा मुंह टेढ़ा हो जाएगा।" किदार शर्मा ने तुरंत उत्तर दिया- मुंह
टेढ़ा हो जाए या सीधा, कलकत्ता ज़रूर जाऊंगा।
बचपन से ही किदार शर्मा बहुत ज़िद्दी थे। पिताजी
चाहते थे कि वे कॉलेज में प्रोफेसर बनें। मकान गिरवी रख कर उन्हें एम.ए. करने के
लिए भेजा था। पिताजी भड़क गए- मैं तुम्हें पैतृक संपत्ति से बेदख़ल कर दूंगा। बेटे ने
जवाब दिया- लाइए बेदख़ली के काग़ज़, मैं अभी दस्तख़त कर देता हूं। पिताजी ने हथियार
डाल दिए। उन्हें समझाया- देखो किदार, न तो तुम सुंदर हो और न ही तुम्हारे पास
अच्छी क़द काठी है। आवाज़ भी लड़कियों जैसी है। क्या करोगे फ़िल्मों में जाकर। किदार
ने उत्तर दिया- मेरे पास दिल और दिमाग़ है।
पिताजी ने आख़िरी चाल चली। बेटे की शादी कर दी। फिर
भी किदार शर्मा अपने इरादे से हिले नहीं। एक दिन पिताजी ने व्यंग्य किया- कब जा
रहे हो कलकत्ते। किदार ने कहा- जिस दिन किराए की रकम पच्चीस रूपए जुटा लूंगा निकल
जाऊंगा। मगर आपसे एक भी पैसा नहीं लूंगा। रात में पत्नी ने हाथ में पच्चीस रूपए रख
दिए। बोली- यह पैसे मुझे मुंह दिखाई में मिले थे। क़रीब साल भर तक किदार शर्मा
कलकत्ते में भटकते रहे। कई बार देवकी बोस से मिलने का प्रयास किया। लेकिन दरबानों
ने स्टूडियो में घुसने नहीं दिया।
देवकी बोस की राजरानी दुर्गा खोटे
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किदार शर्मा को मालूम पड़ा कि पड़ोस में दो पंजाबी
(पृथ्वीराज कपूर और केएल सहगल) रहते हैं। दोनों न्यू थियेटर में काम करते हैं।
किदार शर्मा उनके यहां पहुंच गए। पृथ्वीराज सितार से कुश्ती लड़ रहे थे यानी गाने
का अभ्यास कर रहे थे। सहगल अपने दोनों हाथों में दो बड़ी-बड़ी ककड़ी लेकर उसे
घुमाकर कसरत कर रहे थे। पृथ्वीराज समझते थे कि अभिनेता बनने के लिए सहगल की तरह
गाना आना चाहिए। सहगल समझते थे कि अभिनेता की क़द काठी पृथ्वीराज जैसी होनी चाहिए।
सहगल ने किदार शर्मा से कहा- देवकी बोस तो मुझे
ऐक्टर ही नहीं मानते। सिर्फ़ गायक मानते हैं। मैं तुम्हें दुर्गा खोटे से मिला
दूंगा। सहगल उन दिनों दुर्गा खोटे को गाना सिखाते थे। देवकी बोस की फ़िल्म 'राजरानी मीरा' में दुर्गा खोटे मुख्य
भूमिका कर रहीं थीं। देवकी बोस उनकी अभिनय प्रतिभा पर फ़िदा थे। दुर्गा खोटे उन
दिनों कलकत्ता के मोहिनी पैलेस में रहती थीं। अगले दिन उन्होंने देवकी बोस से
किदार शर्मा का परिचय कराया। देवकी बोस ने पूछा- तुम क्या कर सकते हो? किदार शर्मा
तपाक से बोले- फ्रॉम कुली टू ए डायरेक्टर, आई कैन डू एवरीथिंग।
देवकी बोस बोले- तुम बहुत दुबले पतले हो। सामान
उठाओगे तो दो कुली तुम्हें संभालने के लिए रखने पड़ेंगे। तीनों के लिए तनख़्वाह
जुटानी पड़ेगी। फोटो खींच सकते हो ? किदार शर्मा ने हां कह दिया। दूसरे दिन कोट
पैंट और टाई लगाकर किदार शर्मा फ़िल्म 'सीता' के सेट पर पहुंच गए। उनका हुलिया देखकर यूनिट के लोग जल भुन गए। एक
बंगाली ने उनकी नेगेटिव ख़राब कर दी। ईस्ट इंडिया फ़िल्म कंपनी के मालिक खेमका जी
थे। दूसरे दिन उन्होंने सफेद नेगेटिव लहराते हुए कहा- तुमने यही फोटो खींचे हैं।
किदार शर्मा हाज़िर जवाब थे। बोले- दे आर ऐज क्लीयर ऐज माई कांशस। निगेटिव जानबूझकर
ख़राब की गई है। वर्ना इसमें कुछ न कुछ ज़रूर आता। अगले दिन फोटो खींचने के बाद
किदार शर्मा ने ख़ुद एक्सपोज किया। फोटो बहुत ख़ूबसूरत थे। खेमका जी ने जैसे ही
किदार शर्मा की तारीफ़ शुरू की उन्होंने एक काग़ज़ उन्हें पकड़ा दिया। यह किदार शर्मा
का त्यागपत्र था। उन्हें रोका गया लेकिन वे नहीं रुके क्योंकि उनकी ईमानदारी पर शक़
किया गया था।
कुछ दिन बाद देवकी बोस ने किदार शर्मा को न्यू
थियेटर में बुलाकर बैकग्राउंड पेंटर का काम दिलवा दिया। रोज़ी रोटी चलने लगी। सुबह
से शाम तक हाथ, पैर और मुंह में पेंट लगाए किदार शर्मा जुटे रहते थे। एक दिन ज़ोरदार
बारिश हुई। उनके पास न तो छाता था और न रेनकोट। बारिश में भीगते हुए मस्त चाल से
जा रहे थे। फिर एक करिश्मा हुआ।
फ़िल्म देवदास के लेखक किदार शर्मा
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किदार शर्मा बारिश में भीगते हुए पैदल जा रहे थे।
एक शानदार कार आकर रुकी। उसमें न्यू थिएटर के मालिक बीएन सरकार थे। किदार शर्मा को
अपने स्टूडियो में कई बार देख चुके थे। बोले- आओ अंदर बैठो। किदार शर्मा को मालूम
नहीं था कि कार का दरवाज़ा कैसे खुलेगा। अपनी हाज़िर जवाबी का परिचय देते हुए आवाज़
लगाई- खुल जा सिम सिम। बीएन सरकार ने हंसते हुए दरवाज़ा खोला।
लॉर्ड क्लाइव शुरू में कलर्क था। उसने कंपनी के
अधिकारियों को लिखा था- "प्लीज टेक अवे दिस पेन एंड गिव मी द सोर्ड।"
किदार शर्मा ने बीएन सरकार से कहा- प्लीज टेक माय ब्रश एंड गिव मी पेन, देन आई शो
व्हाट कैन आई डू। आप मेरा ब्रश ले लीजिए। मुझे क़लम दे दीजिए। फिर मैं दिखा दूंगा
कि मैं क्या कर सकता हूं। किदार शर्मा की बात से बीएन सरकार प्रभावित हुए।
आख़िर वह दिन जल्दी आ गया। फ़िल्म 'देवदास' (1936) के लिए एक लेखक की
ज़रूरत थी। किदार शर्मा को कलम थमा दी गई। उन्होंने 'देवदास' के गीत और संवाद लिखे।
इस फ़िल्म के हीरो कुंदन लाल सहगल थे। फ़िल्म सुपर हिट हो गई। साथ ही किदार शर्मा की
डिमांड शुरू हो गई। इस फ़िल्म में उनके लिखे गीत "बालम
आए बसो मेरे मन में" तथा "दुख के अब दिन बिसरत नाहीं" बहुत लोकप्रिय हुए। कुछ समय बाद किदार शर्मा को फ़िल्म 'विद्यापति' के गीत और संवाद लिखने की
ज़िम्मेदारी सौंपी गई।
फ़िल्म विद्यापति के लेखक किदार शर्मा
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फ़िल्म 'देवदास' (1936) के गीत और संवाद किदार शर्मा
ने लिखे। फ़िल्म सुपर हिट हो गई। इसके बाद किदार शर्मा को फ़िल्म 'विद्यापति' (1937) के गीत और संवाद
लिखने की ज़िम्मेदारी सौंपी गई। न्यू थियेटर्स की इस फ़िल्म के निर्देशक थे देवकी
बोस। पहाड़ी सान्याल, कानन देवी और पृथ्वीराज कपूर मुख्य भूमिका में थे। संगीतकार
थे रायचंद बोराल। 'विद्यापति' फ़िल्म को क़ाज़ी नज़रुल इस्लाम ने मूलत: बांग्ला में
लिखा था। किदार शर्मा ने उसी के आधार पर हिंदी में यह फ़िल्म लिखी। फ़िल्म
'विद्यापति' में काज़ी नज़रुल इस्लाम के एक गीत के बोल थे -
आंगन आवत जब रसिया
पलटि चलूं मैं हँसिया
कचुआ धरत जब पियरा ...
कचुआ का मतलब 'स्तन' होता है। इसे लेकर बड़ी बहस
हुई। निर्देशक चाहते थे कि यह हिंदी में भी ज्यों का त्यों लाया जाए। किदार शर्मा
ने कहा कि अगर ऐसा किया गया तो हिंदी दर्शक बर्दाश्त नहीं करेंगे। वे पर्दा फाड़ सकते
हैं। सिनेमा हॉल में आग लगा सकते हैं। किदार शर्मा को यह गीत अपने तरीक़े से लिखने
की छूट मिल गई। उन्होंने लिखा-
मोरे अंगना में आएं आली
मैं चालूं मतवाली
वो आंचल हमरा पकड़ें
हम हंस हंस उनसे झगड़ें
चोली पे नजरिया जाए
मोरी चुनरी लिपट मोसे जाए
विद्यापति मैथिली के बहुत प्रतिष्ठित कवि थे। किदार
शर्मा ने बीएन सरकार से कहा कि इस फ़िल्म में ऐसा भी कोई गीत होना चाहिए जिससे
दर्शकों को विद्यापति के काव्य चातुर्य का पता चल सके। बीएन सरकार ने कहा- अगर तुम
ऐसा कर सकते हो तो करो। अगले ही दिन किदार शर्मा ने ऐसा गीत लिखा जिसे सुनकर बीएन
सरकार बहुत ख़ुश हुए। दर्शकों को भी वो गीत बहुत पसंद आया। गीत की शुरुआती लाइनें
थीं-
इक बांस की थी पतली सी नली
जंगल में उगी जंगल में पली
तक़दीर मगर कुछ अच्छी थी
मधुसूदन के मैं हाथ लगी
सजनी जो कटा हर अंग मेरा
कुछ और ही निकला रंग मेरा
मैं प्रेम को समझी थी आसां
सुनकर तू भी होगी हैरां
छेदों से मेरा सीना है भरा
आ हाथ लगाके देख ज़रा
अब तन क्या है इक तान सखी
प्रीतम के स्वास हैं जान सखी
किदार शर्मा जिद्दी होने के साथ-साथ स्वाभिमानी भी
थे। एक दिन वे स्टूडियो में मेज़ पर पड़ी हुई शूटिंग स्क्रिप्ट को यूं ही उलट पलट
कर देख रहे थे। देवकी बोस के सहायकों ने आपत्ति की- शूटिंग स्क्रिप्ट को हाथ लगाने
का अधिकार केवल डायरेक्टर को होता है। आप इसे नहीं छू सकते। यह सुनकर किदार शर्मा
को अपमान का बोध हुआ। वे न्यू थियेटर को अलविदा कहकर बाहर निकल आए। उन्होंने क़सम
खाई- अगर इन सबको डायरेक्टर बनकर नहीं दिखाया तो मेरा नाम भी किदार शर्मा नहीं।
उन्होंने लकड़ी का एक बोर्ड बनवाया। उसे दरवाज़े पर टांग दिया- फ़िल्म डायरेक्टर किदार शर्मा। देवदास की कामयाबी के बाद
वे बीवी को भी कलकत्ता ले आए थे। बोर्ड देखकर लोग मज़ाक करते किदार शर्मा क्या
डायरेक्ट करते हो? वे जवाब देते आजकल तो बीवी को ही डायरेक्ट कर रहा हूं।
किदार शर्मा की औलाद का करिश्मा
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एक छोटी सी कंपनी थी फ़िल्म कारपोरेशन ऑफ़ इंडिया।
उसकी एक फ़िल्म को अधूरी छोड़कर उसका डायरेक्टर लंदन चला गया। कंपनी ने तीन हज़ार
रूपए में इसे पूरा करने का प्रस्ताव किदार शर्मा के सामने रखा। किदार शर्मा ने
फ़िल्म पूरी कर दी। कंपनी ने बीस हज़ार में दो फ़िल्में डायरेक्टर करने का प्रस्ताव
उनके सामने रखा। इस तरह संयोगवश किदार शर्मा डायरेक्टर बन गए। उन्होंने पहली फ़िल्म
'औलाद' बनाई। इसकी अप्रत्याशित
सफलता से चारों तरफ सनसनी फैल गई। यह एक छोटी कंपनी और बिल्कुल नए डायरेक्टर की
फ़िल्म थी। मगर लीक से हटकर थी। फ़िल्म का संदेश था- पिता को अपने बच्चों से कोई
उम्मीद नहीं रखनी चाहिए। 'औलाद' को लोगों ने न्यूवेब फ़िल्म के रूप में स्वीकार किया। इसकी सफलता से
फ़िल्म जगत में एक कहावत चल पड़ी-
"आदमी वी शांताराम का, औरत महबूब ख़ान की लेकिन
औलाद किदार शर्मा की।
किदार शर्मा और जद्दनबाई
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मुंबई के कृष्णा टॉकीज़ में फ़िल्म 'औलाद' लगी थी। उस समय जद्दनबाई
जानी-मानी फ़िल्म निर्माता थीं। उन्होंने यह फ़िल्म कई बार देखी और मैनेजर से कहा-
मुझे किदार शर्मा से मिलवाओ। एक दिन अचानक किदार शर्मा उसी शो में पहुंच गए जिसमें
जद्दनबाई यह फ़िल्म देख रही थी। मैनेजर उनको लेकर किदार शर्मा के सामने आया। किदार
शर्मा की दुबली पतली काया देखकर जद्दनबाई आश्चर्य से बोल पड़ीं- अरे ये लौंडा किदार
शर्मा है! किदार शर्मा ने जवाब दिया- मैडम प्रतिभा शरीर में नहीं दिमाग़ में होती
है। बाद में दोनों में अच्छी बातें हुईं। किदार शर्मा फ़िल्म 'सुहागरात' बनाने की योजना बना रहे
थे। जद्दनबाई ने उसमें नरगिस को लेने का प्रस्ताव रखा। किदार शर्मा ने मना कर
दिया। उन्हें अपनी नायिका के रूप में एक अल्हड़ और गंवार लड़की की ज़रूरत थी। नरगिस
हर तरह से अभिजात्य दिखती थीं। किदार शर्मा ने 'सुहागरात' में गीता बाली को लिया
और नरगिस को फ़िल्म 'जोगन' में मौक़ा दिया।
मुंबई के रंजीत स्टूडियो में किदार शर्मा
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'औलाद' के बाद किदार शर्मा ने
अगली फ़िल्म 'चित्रलेखा' बनाई। इस फ़िल्म की
कामयाबी के साथ केदार शर्मा की गिनती फ़िल्म उद्योग के बड़े निर्देशकों में होने
लगी। उन्होंने मुंबई में चंदूलाल शाह के साथ रंजीत स्टूडियो ज्वाइन कर लिया। इस
कंपनी में किदार शर्मा को पहली फ़िल्म सौंपी गई 'अरमान'। इस फ़िल्म की पटकथा, संवाद और गीत उन्होंने लिखे।
'अरमान' का नायक (मोतीलाल) अंधा था। नायिका (शमीम)
के लिए किदार शर्मा ने गीत लिखा। इसकी शुरुआती लाइनें थीं-
लाओ तो ज़रा दिल को इस दिल में बिठाऊं
बैठो मेरी आंखों में तुम्हें दुनिया दिखाऊं
टीले हैं कि सब्ज़े से लदे ऊंट खड़े हैं
और जुगनू हरी झाड़ियों में हीरे जड़े हैं
आकाश में कुछ तारे हैं वो झांक रहे हैं
कुछ जल में विचारे हैं वो सब कांप रहे हैं
गुल हैं कि हवाओं की महक सूंघ रहे हैं
उन झोपड़ों में देखो दिये ऊंघ रहे हैं
उस समय डीएन मधोक और पं इंद्रजीत शर्मा दो
प्रतिष्ठित गीतकार चंदूलाल शाह के साथ थे। चंदू लाल जी ने मधोक से इस गीत के बारे
में राय मांगी। उन्होंने उत्तर दिया- किदार शर्मा के इस गीत पर मेरे सारे गीत
क़ुर्बान। किदार शर्मा के एक दोस्त पाकिस्तान गए थे। उनकी क़तील शिफ़ाई से मुलाक़ात हो
गई। उन्होंने केदार शर्मा की तारीफ़ करते हुए कहा कि इस समय उनके टक्कर का कोई
गीतकार नहीं है। उन्होंने किदार शर्मा का एक शेर सुना दिया-
मेरे तलवों का लहू चूस के गुल बन बैठे
ख़ार जो राह में बिछाए थे बियाबानों ने
अरमान के नायक मोतीलाल
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चंदूलाल शाह ने किदार शर्मा से कहा- तुम जाकर
मोतीलाल को हीरो के रूप में साइन कर लो। मोतीलाल उस समय के सुपरस्टार थे। उन्हें
साइन करना हंसी खेल नहीं था। किदार शर्मा मोतीलाल के पास गए। वे बोले- आहा! आप ही
पं किदार शर्मा हैं जो कलाकारों को रिहर्सल करवाते हैं। मैं आपके साथ काम तो
करूंगा मगर तीन शर्तों पर। बिना सुने ही किदार शर्मा ने कह दिया मुझे मंज़ूर है।
उनकी शर्तें थी-
1- मैं ठीक नौ बजे सेट पर हाज़िर हो जाऊंगा और ठीक
छ: बजे सेट छोड़ दूंगा। चाहे शॉट अधूरा ही क्यों न हो।
2- मैं रविवार को काम नहीं करूंगा।
3- मैं रिहर्सल नहीं करूंगा।
मोतीलाल अगले दिन समय पर आए। ठीक नौ बजे सब कुछ
तैयार था। किदार शर्मा ने कहा- आज आपका सिर्फ़ एक शॉट है। काम जल्दी हो जाएगा तो
यूनिट वाले भी एक दिन आराम कर लेंगे। आपको दुआएं देंगे। मोतीलाल आश्चर्य से उन्हें
देखने लगे। किदार शर्मा बोले- शॉट कॉम्प्लिकेटेड है। मैं एक बार आपको करके दिखा
देता हूं। फिर उन्होंने करके दिखा दिया।
मोतीलाल ने शॉट दिया। किदार शर्मा ने कहा- वाह,
बहुत अच्छा रहा। वे बोले नहीं, आपने जो किया था उससे उन्नीस रहा। मैं उससे इक्कीस
करना चाहता हूं। उन्होंने दुबारा किया। फिर बोले- यह तो और भी बुरा हुआ। फिर से
करते हैं। इस तरह फिर फिर करते रात के नौ बज गए। मोतीलाल की आंखों में आंसू आ गए-
शर्मा जी कैसे होगा। शर्मा जी बोले रिहर्सल से। वे तैयार हो गए। शॉट ओके हो गया।
मोतीलाल बोले- आज पहली बार मुझे गुरु मिला। मुझे अपना सहायक बना लीजिए। यहां तो
चंदूलाल मानेंगे नहीं। आउटडोर में आपके साथ चलूंगा।
इस बात पर कौन यक़ीन करेगा कि दस हज़ार का सूट पहनने
वाले उस समय के टॉप स्टार मोतीलाल ने किदार शर्मा की फ़िल्म में क्लैप तक दिया था।
ज़रूरत पड़ने पर एक बार सूट पहने ही गंदे पानी में उतर गए थे। आज के हीरो बीस नखरे
करते हैं। अपने पैसे से सिगरेट तक नहीं पीते। उस समय मोतीलाल प्रतिदिन एक टोकरी
समोसा यूनिट के लिए लाते और सबके साथ बैठ कर खाते। किदार शर्मा की आवाज़ काफ़ी पतली
थी। एक दिन उन्होंने मज़ाक किया- शर्मा जी आप मेरे घर फ़ोन मत किया करो। मां डांटती
है कि कोई लड़की रोज़ फ़ोन करती है और नाम पूछने पर कहती है किदार शर्मा। किदार
शर्मा और मोतीलाल की दोस्ती अंत तक कायम रही।
सन 1946 में ब्रिटिश डेलीगेट के एक सदस्य के रूप
में किदार शर्मा ब्रिटेन और अमेरिका गए। फिल्मांकन के बारे में बहुत कुछ सीखा।
वापस आकर 'नीलकमल' पूरी की। इसमें राजकपूर
और मधुबाला को इंट्रोड्यूस किया। इसी फ़िल्म में स्नेहल भाटकर को संगीत निर्देशन का
अवसर दिया। सन् 1947 में 'नीलकमल' रिलीज़ हुई और कामयाब हुई।
आपका-
देवमणि पांडेय
Devmani Pandey : B-103, Divya Stuti,
Kanya Pada, Gokuldham, Film City Road,
Goregaon East, Mumbai-400063, M: 98210 82126
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