Poet Devmani Pandey and K.L.Nandan with Pt Pradeep |
बॉलीवुड में गीतकार पं प्रदीप
ऐ मेरे वतन के लोगो ज़रा आंख में भर लो पानी
जो शहीद हुए हैं उनकी ज़रा याद करो क़ुर्बानी
पं प्रदीप का यह गीत ख़रीदने के लिए फ़िल्म जगत के कई बड़े फ़िल्मकारों ने संपर्क किया। वे मुंह मांगी क़ीमत देने को तैयार थे। पं प्रदीप ने कहा- "मैं उस गीत को नहीं बेच सकता जिसके चारों तरफ़ प्रधानमंत्री के आंसुओं की झालर लगी हुई है।" पं प्रदीप ने यह गीत एचएमवी म्यूज़िक कंपनी को इस क़रार के साथ सौंप दिया कि इससे प्राप्त धनराशि युद्ध में शहीद सैनिकों के परिवारों को दी जाएगी। म्यूज़िक कंपनी की ओर से कब कितनी धनराशि शहीदों के परिवारों को मिली? इसका जवाब पाने के लिए पं प्रदीप की बेटी मितुल प्रदीप ने लंबी लड़ाई लड़ी। अंततः मुंबई हाई कोर्ट ने 25 अगस्त 2005 को संगीत कंपनी एचएमवी को "युद्ध विधवा कोष# में ₹10 लाख जमा करने का आदेश दिया।
यह गीत सुनकर पं नेहरू क्यों रोए
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भारत-चीन युद्ध के बाद शहीदों के परिवारों के सहायतार्थ दिल्ली के रामलीला मैदान में 26 जनवरी 1963 को एक संगीत संध्या का आयोजन हुआ। सी रामचंद्र के संगीत निर्देशन में लता मंगेशकर ने "ऐ मेरे वतन के लोगो" गीत गाया। सुनकर पं नेहरू रो पड़े। क्यों रोए थे पं नेहरू? यह सवाल मैंने पं प्रदीप से पूछा। वे बोले- "सन 1962 में चीन के साथ अचानक युद्ध हुआ। हमारी सेना को पूरी तैयारी करने का मौक़ा नहीं मिला। यहां तक कि सेना के पास बर्फ़ में पहनने वाले कपड़े और जूते तक नहीं थे। इसलिए बिना लड़े ही कई सैनिकों की हिम समाधि बन गई। नेहरू जी बहुत संवेदनशील इंसान थे। गीत सुनकर उन्होंने इस दर्द को महसूस किया। लता मंगेशकर की आवाज़ की करुणा उनको भिगो गई और वह रो पड़े।" उस समय सी रामचंद्र और लता जी में बातचीत बंद थी। प्रदीप जी के अनुरोध पर लता जी ने यह गीत गाना स्वीकार कर लिया। गीत, संगीत और सुर के बेहतरीन संगम ने एक इतिहास रच दिया।
Poet Devmani Pandey and his family with Pt Pradeep |
हम लाए हैं तूफ़ान से कश्ती निकाल कर
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दिल्ली के आयोजन में पं प्रदीप मौजूद नहीं थे। छ:
महीने बाद ग्रांट रोड के एक स्कूल में आयोजित कांग्रेस के अधिवेशन में पं नेहरू
पधारे। उन्होंने पं प्रदीप को बुलाया। प्यार से उनका हाथ थाम कर बोले- प्रदीप जी,
मैं वही गीत आपकी आवाज़ में सुनना चाहता हूं। प्रदीप जी ने वह गीत सुनाया। एक बार
षणमुखानंद हॉल में कांग्रेस के अधिवेशन में प्रधानमंत्री राजीव गांधी पधारे।
उन्होंने पं प्रदीप को आमंत्रित किया। पं प्रदीप ने राजीव गांधी को आशीर्वाद दिया।
उनकी फ़रमाइश पर एक गीत सुनाया-
हम लाए हैं तूफ़ान से कश्ती निकाल कर
इस देश को रखना मेरे बच्चों संभाल कर
फ़िल्म 'लीडर' का यह गीत दिल्ली के आयोजन में जनता को पसंद नहीं आया-
अपनी आज़ादी को हम हर्गिज़ मिटा सकते नहीं
सर कटा सकते हैं लेकिन सर झुका सकते नहीं
फ़िल्म 'लीडर' का यह गीत दिल्ली के आयोजन में जनता
को पसंद नहीं आया। एक दिन फ़िल्म के निर्माता शशधर मुखर्जी पं प्रदीप से मिलने गए।
उन्होंने पूछा- मेरी फ़िल्म का गीत दिल्ली की जनता ने पसंद क्यों नहीं किया। प्रदीप
जी ने जवाब दिया- "आपका गीत मार्चिंग सांग है। ध्यान से सुनिए। इसकी चाल
लंगड़ी है। सच ये है कि हम चीन से युद्ध हार चुके थे। इस बात को पूरा देश जानता था।
फिर सर कटाने की बात लोग कैसे पसंद करेंगे। जो फ़िल्म वाले इन शहीदों के परिवारों
के लिए अपनी जेब नहीं कटा सकते वे सर कैसे कटा सकते हैं? यह बात जनता जानती है।
इसलिए जनता ने आपका गीत पसंद नहीं किया।"
गीतकार निर्माता का मज़दूर होता है
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पहली मुलाक़ात में ही प्रदीप जी से ऐसी दोस्ती हो गई
कि अगर मैं दो सप्ताह फ़ोन न करूं तो तीसरे सप्ताह वे ख़ुद ही फ़ोन कर लेते थे। सन्
1988 में मासिक पत्रिका "महान एशिया" के प्र.सम्पादक निर्झर शुक्ल के
अनुरोध पर एक इंटरव्यू के लिए मैं प्रदीप जी से मिला। मैंने कहा- आप मुझे अपनी
कहानी बता दीजिए। पूरी तल्लीनता के साथ एक घंटे में उन्होंने अपनी पूरी कहानी बयान
कर दी। सारे सवालों के जवाब उस कहानी में मौजूद थे। उन्होंने कहा- गीतकार निर्माता
का मज़दूर होता है। उसे गीत नाम का एक ऐसा फर्नीचर गढ़ना पड़ता है जो निर्देशक के
ड्राइंग रूम में फिट हो जाए और सुंदर दिखे। वे बोले- जिस दिन मुझे फ़िल्म में गीत
लिखने का प्रस्ताव मिला उसी दिन से मैंने मान लिया कि अब मैं एक कवि या साहित्यकार
नहीं सिर्फ़ एक तुक्कड़ हूं। मुझे फ़िल्मों के लिए तुकबंदी करनी है। मैंने काव्य
मंचों पर कविता पाठ भी बंद कर दिया। उल्लेखनीय है कि काव्य मंच पर सक्रिय युवा कवि
पं प्रदीप के गीतों से प्रभावित होकर महाकवि निराला ने एक पत्रिका में उन पर एक
लेख लिखा था जिसमें उन्होंने मुक्त कंठ से पंडित प्रदीप की तारीख की थी।
देविका रानी के सामने गीतकार प्रदीप
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प्रदीप जी लखनऊ के एक कालेज से बी ए की परीक्षा
देने के बाद पड़ोसी के साथ मथुरा घूमने गए। वहां से संयोगवश अहमदाबाद होकर मुंबई
पहुंचे। मलाड के एक मुहल्ले में उन्होंने कविता पाठ किया। अगली सुबह बॉम्बे टॉकीज
के मैनेजर की कार उनके दरवाज़े पर खड़ी थी। उन्हें देविका रानी के सामने ले जाया
गया। देविका रानी उस समय बॉलीवुड की सबसे बड़ी हस्ती मानी जाती थीं। देविका
रानी ने उनके सामने क़लम काग़ज़ रख कर कहा- "तालाव के पानी में अपना पैर
डालकर बैठी हुई एक लड़की अपने प्रेमी का इंतज़ार कर रही है। प्रदीप जी ने तुरंत लिख
दिया-
हवा तुम धीरे बहो, मेरे आते होंगे चितचोर ...
बस यहीं से फ़िल्म जगत को एक सशक्त क़लम मिल गई। पं
प्रदीप का पूरा नाम था-रामचन्द्र द्विवेदी 'प्रदीप'। देविका रानी ने कहा- इतना
लंबा नाम नहीं चलेगा। सिर्फ़ 'प्रदीप' काफ़ी है। इसके बाद लोग उन्हें पं प्रदीप
कहकर बुलाने लगे। पं प्रदीप की गायकी भी असरदार थी। देविका रानी ने पहली फ़िल्म में
ही उनकी आवाज़ में एक गीत रिकॉर्ड किया। फ़िल्म "जय संतोषी मां" में भी
उन्होंने एक गीत गाया- "यहां वहां जहां तहां मत पूछो कहां कहां है संतोषी
मां।" एचएमवी ने पं प्रदीप की आवाज़ में उनका एक अल्बम भी जारी किया जिसमें
उनके ग़ैर फ़िल्मी गीत थे। पं प्रदीप कभी बड़े बैनर के लालच में नहीं पड़े। उन्होंने
गीत लिखने के लिए ऐसी फ़िल्मों का चयन जो साल भर में बनकर रिलीज़ हो जाएं। उन्होंने
ऐसे दिग्गज फ़िल्मकारों के प्रस्ताव को ठुकरा दिया जो पांच साल तक एक ही फ़िल्म
बनाते रहते हैं।
ऊपर गगन विशाल नीचे गहरा पाताल
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पं प्रदीप को गीत लिखने के लिए अच्छी धुनों की तलाश
रहती थी। इसके लिए वे रेडियो पर बंगला, मराठी, गुजराती आदि अन्य भाषाओं के गाने भी
सुनते। एक बार सचिनदेव बर्मन के लिए पं प्रदीप ने यह गीत लिखा-
ऊपर गगन विशाल, नीचे गहरा पाताल,
बीच में धरती वाह मेरे मालिक, तू ने किया
कमाल
एक फूँक से रच दिया तूने सूरज अगन का गोला
एक फूँक से रचा चन्द्रमा लाखों सितारों का
टोला
सोच सोच हम करें अचम्भा नज़र न आता एक भी
खम्बा
फिर भी ये आकाश खड़ा है हुए करोड़ो साल
बर्मन दा ने कहा- ज़रा इसे गुनगुना दीजिए। सुनकर
सचिनदेव बर्मन हैरत में पड़ गए। बोले- प्रदीप जी, यह धुन मैंने कहीं सुनी है।
प्रदीप जी हंसने लगे- एक दिन रेडियो पर मैंने आपका एक बंगाली गीत सुना। उसकी धुन
मुझे बहुत प्यारी लगी। मैंने उसी धुन पर यह गीत लिख दिया। बर्मन दा बोले- प्रदीप जी
आप बहुत समझदार हैं। कोई भी संगीतकार ख़ुद से ज़्यादा समझदार गीतकार के साथ काम नहीं
करना चाहता।
साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल
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एक दिन निर्देशक विमल राय से मुलाकात हुई। पं
प्रदीप ने उन्हें एक मुखड़ा सुनाया-
दे दी हमें आज़ादी बिना खड्ग बिना ढाल
साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल
विमल राय बोले- मैं अपनी फ़िल्म में राजनीतिक गाने
नहीं रखता। फ़िल्म 'जागृति' में इस गीत ने लोकप्रियता का कीर्तिमान रच दिया। इसी
फ़िल्म में "आओ बच्चों तुम्हें दिखाएं झांकी हिंदुस्तान की" और "हम लाए
हैं तूफ़ान से कश्ती निकाल कर" गीत भी शामिल थे। सन् 1954 में फ़िल्म 'जागृति' को
सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म का फ़िल्म फेयर अवार्ड मिला।
बैठे बलमा हमारे मुंह फेर के
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एक निर्देशक ने पं प्रदीप से मुजरा लिखने का अनुरोध
किया। सिचुएशन बताई- एक तवायफ़ एक भोले-भाले शरीफ़ लड़के को अपने जाल में फंसाना
चाहती है। रात में उन्हें देर तक नींद नहीं आई। उन्होंने सोचा पंडित आदमी होकर
मुजरा कैसे लिखूं? वह भी उस तवायफ़ के लिए जो एक शरीफ इंसान को फंसाना चाहती है।
अच्छा यही होगा कि मैं इनकार कर दूं। सुबह उन्होंने फ़ैसला किया। सिर्फ़ एक गीत के लिए
निर्माता को दूसरे गीतकार के पास दौड़ाना ठीक नहीं रहेगा। पं प्रदीप ने जो मुजरा लिखा
उसमें भी उनका संस्कार बोलता दिखाई पड़ता है-
कैसे आए हैं दिन अंधेर के
बैठे बलमा हमारे मुंह फेर केऐ
देशभक्ति के कई सुपरहिट गीत लिखने वाले गीतकार पं
प्रदीप ने बताया कि मैं सही समय पर बॉलीवुड में आ गया था। अगर मैं पांच साल पहले
आता या पांच साल बाद आता तो कामयाब नहीं होता। प्रदीप जी सन् 1939 में मुंबई आए।
उस समय आज़ादी हासिल करने के लिए लोगों में जोश और जज़्बा था। इसलिए पं प्रदीप के देशभक्ति
के गीत बेहद पसंद किए गए। जैसे ही समय बदला प्रदीप जी ने स्वयं अपना जाल समेट
लिया। "जय संतोषी मां" फ़िल्म की कामयाबी के बाद इस फ़िल्म के नायक आशीष
कुमार कई बार उनके पास आए। पं प्रदीप उनकी अगली फ़िल्म के लिए गीत लिखने को तैयार नहीं
हुए। उन्होंने आशीष कुमार को भरत व्यास के पास भेज दिया। उन्हें पता था कि 'जय संतोषी
मां' की कामयाबी दुबारा दोहराई नहीं जा सकती। अगर कोई निर्माता उनसे रोमांटिक गीत लिखने
की गुज़ारिश करता तो वे उसे इंदीवर के पास भेज देते।
छंद हर इंसान के दिल में होता है
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अगर पं प्रदीप मुझे छंद में लिखने के लिए प्रेरित न
करते तो मैं गीतकार और ग़ज़लकार नहीं बनता। एक दिन मैं प्रदीप जी के घर पहुंचा।
उनके हाथ में पाक्षिक अख़बार 'उत्तर दर्शन' था। उसमें मेरी एक अतुकांत कविता छपी
थी। वे बोले- ये तुम्हारी कविता है। मैंने कहा- जी हां। वे बोले- ऐसी कविता लिखोगे
तो तुम्हें सिर्फ़ बुद्धिजीवी होने का प्रमाण पत्र मिलेगा। अगर तुम छंद में लिखोगे
तो दौलत, शोहरत और प्रतिष्ठा तीनों मिलेगी। मैंने कहा- मुझे छंद नहीं आता। प्रदीप
जी बोले- "छंद हर इंसान के दिल में होता है। गोपालदास नीरज की तरह चार-चार लाइन
के मुक्तक लिखो। मंच पर जाओ। जनता को सुनाओ।" दूसरे दिन मैंने छंद में कोशिश की
और कामयाब हुआ। मैंने फ़ोन पर प्रदीप जी को एक मुक्तक सुनाया-
ग़मजदा आंखो का पानी एक है
और ज़ख़्मों की निशानी एक है
हम दिलों की दास्तां किससे कहें
आपकी मेरी कहानी एक है
गीतकार पं प्रदीप की अंतिम यात्रा
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पं प्रदीप का जन्म 6 फरवरी 1915 को उज्जैन के बड़नगर
क़स्बे में हुआ। 83 साल की उम्र में मुंबई में उनका स्वर्गवास हुआ। 11 दिसंबर 1998
को सुबह प्रदीप जी की बेटी मितुल प्रदीप ने मुझे फ़ोन किया। वे बोलीं- पांच मिनट
पहले बाबूजी गुज़र गए। विले पार्ले स्थित उनके आवास पंचामृत से उनकी अंतिम यात्रा
निकली। एक स्कूल के बच्चे यूनिफॉर्म में अपने बैंड पर "ऐ मेरे वतन के
लोगो" गीत की धुन बजा रहे थे। उनकी बेटियों सरगम और मितुल ने उन्हें कांधा
दिया। वह अविस्मरणीय और अद्भुत दृश्य था। सड़क पर दोनों ओर उनके चाहने वालों की
भारी भीड़ थी। बड़े-बड़े सितारों की अंतिम यात्रा में भी ऐसी भीड़ नहीं होती।
"कवि प्रदीप अमर रहें" के नारे लग रहे थे। प्रदीप जी ने साबित किया कि
एक रचनाकार अपने सृजन से हमेशा के लिए अमर हो जाता है।
पं प्रदीप का गीत "चल चल रे नौजवान"
श्रीमती इंदिरा गांधी आज़ादी के आंदोलन में गाती थीं। "पिंजरे के पंछी रे तेरा
दर्द न जाने कोय" प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री को बेहद पसंद था। किसी ने
जेल में पंडित नेहरू को उनको एक गीत पहुंचाया था- "दूर हटो ए दुनिया वालो
हिंदुस्तान हमारा है"। नेहरू जी को यह गीत बहुत अच्छा लगा। सांप्रदायिक सदभाव
के लिए उनका एक गीत हमेशा सुनाई देता रहा- "आज के इंसान को क्या हो गया है,
इसका पुराना प्यार कहीं पर खो गया है।" क्या आपने ऐसा कोई 15 अगस्त या 26
जनवरी देखी है जिसमें उनका गीत "ऐ मेरे वतन के लोगो" न सुनाई पड़े। अपने गीतों
के ज़रिए प्रदीप जी हम सबके दिल में बसे हैं और हमेशा बसे रहेंगे।
अंत में पं प्रदीप के एक गीत की दो पंक्तियां आप सबके
लिए-
कभी-कभी ख़ुद से बात करो कभी कभी ख़ुद से बोलो
अपनी नज़र में तुम क्या हो यह मन की तराजू में तोलो
आपका-
देवमणि पांडेय
Devmani Pandey : B-103, Divya Stuti,
Kanya Pada,
Gokuldham, Film City Road,
Goregaon East, Mumbai-400063, M : 98210-82126
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