रविवार, 17 मई 2020

गीतकार इंदीवर : प्यार से भी ज़रूरी कई काम हैं


बॉलीवुड में सिने गीतकार इंदीवर

छोड़ दे सारी दुनिया किसी के लिए
ये मुनासिब नहीं आदमी के लिए
प्यार से भी ज़रूरी कई काम हैं
प्यार सब कुछ नहीं ज़िंदगी के लिए

फ़िल्म 'सरस्वती चंद्र' यह गीत प्यार करने वालों के लिए संजीवनी की तरह है। जहां प्यार है वहां दर्द है, तन्हाई है, आंसू हैं। मगर इसके लिए ज़िंदगी और समाज के प्रति अपनी ज़िम्मेदारियां भूल जाना ठीक नहीं। आप गहराई से सोचेंगे तभी इस गीत का मर्म समझ पाएंगे। इसका अंतरा भी मुझे बहुत पसंद है।


तन से तन का मिलन हो न पाया तो क्या
मन से मन का मिलन कोई कम तो नहीं
ख़ुशबू आती रहे दूर से ही सही
सामने हो चमन कोई कम तो नहीं
चाँद मिलता नहीं सबको संसार में
है दिया ही बहुत रोशनी के लिए



गीतकार इंदीवर पर चोरी का आरोप
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अख़बारों में ख़बर छप गई। "झूठ बोले कौवा काटे" फेम गीतकार विट्ठल भाई पटेल ने गीतकार इंदीवर पर चोरी का आरोप लगाया और उनको नोटिस भेज दिया। सन् 1988 में फ़िल्म 'दरिया दिल' का एक गीत इंदीवर के नाम से आकाशवाणी पर बजने लगा। इस गीत के मुखड़े पर विट्ठल भाई पटेल ने अपना हक़ जताया।

वो कहते हैं हमसे अभी उमर नहीं है प्यार की
नादां हैं वो क्या जानें कब कली खिली बहार की

नवभारत टाइम्स से फ़ोन आया। आप इंदीवर जी से मिलकर उनका पक्ष जान लीजिए। इंदीवर जी से कार्टर रोड, बांद्रा के उनके घर पर मुलाक़ात हुई। सचाई का पता चला। 'बॉबी' फ़िल्म के समय विट्ठल भाई पटेल ने संगीतकार राजेश रोशन को यह मुखड़ा दिया था। राजेश रोशन ने इंदीवर जी से अनुरोध किया- मैंने एक मुखड़ा बनाया है। आप इसके अंतरे लिख दीजिए। इंदीवर जी ने संगीतकार पर भरोसा किया और लिख दिया। फ़िल्म जगत में कई बार गीतकार को मुखड़ा संगीतकार देता है।

एक सक्षम गीतकार हैं इंदीवर
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इंदीवर जी के यहां जाने से पहले मैंने गीतकार पं प्रदीप को फोन किया था। उन्होंने कहा- मैं इंदीवर को अच्छी तरह जानता हूं। वे एक सक्षम गीतकार हैं। वे कभी चोरी नहीं कर सकते। इंदीवर जी से मैंने पं प्रदीप का ज़िक्र किया। इंदीवर जी बोले- पं प्रदीप मेरे द्रोणाचार्य हैं। मैं उनका एकलव्य हूं। मैंने उनसे बहुत कुछ सीखा है।

इंदीवर जी का इंटरव्यू लिखकर मैं नवभारत टाइम्स के संपादकीय विभाग में गया और उपसम्पादक सीमा अनंत को सौंप दिया। सीमा जी ने ख़ुश होकर एक सहकर्मी से कहा- इंदीवर जी का स्पष्टीकरण आ गया। वहां मौजूद सारे लोग हमारी तरफ़ देखने लगे। एक पत्रकार मित्र ने कहा- पांडेय जी, जब आप इंदीवर जी के यहां गए थे तब क्या वहां कोई लड़की मौजूद थी। मैंने झट से कह दिया- हां, उन्होंने उस लड़की का परिचय कराया और बताया कि यह शास्त्रीय नृत्यांगना है। यह सुनते ही नभाटा के संपादकीय विभाग में ज़ोरदार ठहाका लगा। इंदीवर जी स्वभाव से दिलचस्प, मिलनसार और रोमांटिक इंसान थे। देर रात तक फ़िल्मी पार्टियों में घूमते और झूमते रहते थे।



प्यार की दुनिया में ये पहला कदम
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इंदीवर ने स्कूली दिनों में ही कविताएं लिखकर और मंच पर सुनाकर काफ़ी नाम कमाया था। उस समय उनका नाम था श्यामलाल आज़ाद। फ़िल्म जगत में बरुआसागर, झांसी का यह नौजवान इंदीवर नाम से जाना गया। शुरू में इंदीवर को भी काफ़ी संघर्ष करना पड़ा। सन् 1951 में गायक मुकेश की फ़िल्म 'मल्हार' के गीतों से इंदीवर की पहचान बनी।

बड़े अरमानों से रक्खा है बलम तेरी कसम, 
प्यार की दुनिया में ये पहला कदम.

कहा जाता है कि उनकी मर्ज़ी के बग़ैर घर वालों ने उनकी शादी कर दी थी। बीस साल के इंदीवर ज़िंदगी से नाराज़ होकर मुंबई आ गए। यहां वे ज़िंदगी भर अकेले रहे। अपनी तन्हाइयों को जाम से और शाम को फ़िल्मी पार्टियों से आबाद किया। फिर भी गुज़रे वक़्त की परछाइयों ने उनका साथ नहीं छोड़ा। गुजिश्ता यादों की दस्तक उनके गीतों को सुनाई देती रही। इंदीवर के घर में काफ़ी किताबें थी। ये किताबें उनके अकेलेपन की साथी थीं।  इंदीवर ने मुझसे बातचीत में यह स्वीकार किया था कि कभी किसी का प्यार उनकी ज़िंदगी के क्षितिज पर इंद्रधनुष बनकर उगा था। अब उसकी लालिमा ही शेष रह गई है। ढलती उम्र में उसका नाम लेकर क्यों उसे बदनाम करें। उसका प्यार, उसका बिछोह ही तो लेखनी की ताक़त है। उन्होंने कहा- "होठों से छू लो तुम" वस्तुतः मेरे दिल की सच्ची आवाज़ है। व्याकुल हृदय की पुकार है।  मैंने तो बस यही चाहा था-

आकाश का सूनापन मेरे तनहा मन में
पायल छनकाती तुम आ जाओ जीवन में
सांसें देकर अपनी संगीत अमर कर दो

होंठों से छू लो तुम मेरा गीत अमर कर दो
बन जाओ मीत मेरे मेरी प्रीत अमर कर दो


अच्छे थॉट पर रचे जाते हैं अच्छे गीत
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इंदीवर जी ने मुझसे कहा- आप आते रहिए। मैं संस्कृत में एम ए था। उन्हें इस बात में काफ़ी दिलचस्पी थी कि कालिदास से लेकर भवभूति ने क्या लिखा है और आचार्य मम्मट कविता के बारे में क्या कहते हैं। वे कहते थे- अच्छे व्यक्ति से गपशप करने में अचानक अच्छे थॉट मिल जाते हैं। अच्छे गीत हमेशा अच्छे थॉट पर रचे जाते हैं। अच्छे थॉट का मतलब मुझे तब समझ में आया जब आनंदजी शाह (संगीतकार कल्याणजी आनंदजी) ने मुझे घर बुलाया।

आनंदजी शाह ने बताया- फ़िल्म निर्देशक चंद्रा साहब (चंद्र बरोट) एक महीने के लिए अमेरिका जा रहे थे। उनकी मंगनी हो गई थी। उन्होंने बताया कि अमेरिका से लौटकर शादी करेंगे। एक महीने बाद वे लौटकर आए। पता चला कि जिस लड़की की उंगली में उन्होंने अंगूठी पहनाई थी उसने किसी और के नाम की मेंहदी हथेलियों में रचाई थी। वे बोले- आनंदजी, क़समें-वादे, प्यार-वफ़ा ये सिर्फ़ बातें हैं। इन बातों का कोई मतलब नहीं होता। यह थॉट आनंदजी को अपील कर गया। इंदीवर को फ़ोन किया। इस थॉट पर इंदीवर ने वह गीत रच दिया जिसे मनोज कुमार की फ़िल्म 'उपकार' में बेहद पसंद किया गया।

क़समे वादे प्यार वफ़ा सब
बातें हैं बातों का क्या
कोई किसी का नहीं ये झूठे
नाते हैं नातों का क्या

संगीतकार कल्याणजी आनंदजी के साथ इंदीवर के अच्छे रिश्ते थे। वे लिखकर लाए- "चांदी सा बदन चंचल चितवन, धीरे से तेरा वो मुस्काना।" आनंदजी ने कहा- चांदी और सोना नहीं चलेगा। कुछ और चाहिए। इंदीवर ने चांदी हटाकर "चंदन सा बदन" कर दिया।



मेरा जीवन कोरा काग़ज़
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संगीतकार कल्याणजी आनंदजी की टीम में एक ऐसा म्यूजिशियंस था जो झगड़ा लड़ाने में माहिर था। उसने एक दिन इंदीवर से कहा- गुलशन बावरा बस के टिकट पर गीत लिखकर लाते हैं और उनको दस हज़ार दिया जाता है। आप इतना अच्छा गीत लिखते हैं मगर आपको कम पेमेंट दिया जाता है। इंदीवर ने फ़ोन किया- आनंद जी, मैं गीत तभी लिखूंगा जब आप मुझे एक गीत का दस हज़ार पेमेंट करेंगे। इससे कम पेमेंट हो तो आप मुझे मत बुलाइएगा।

इंदीवर ने संगीतकार कल्याणजी आनंदजी के यहां आना बंद कर दिया और कई सालों से संघर्षरत गीतकार एम जी हश्मत ने आना शुरू कर दिया। 
फ़िल्म "कोरा काग़ज़" की बैठक चल रही थी। निर्माता ने पूछा- आप गीत किससे लिखाएंगे। आनंदजी बोले- ये गीतकार एम जी हश्मत हैं। यही लिखेंगे। फ़िल्म "कोरा काग़ज़" की लोकप्रियता ने गीतकार एम जी हश्मत को कामयाबी और पहचान दे दी। 


अमानुष को फ़िल्म फेयर अवार्ड
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सन् 1976 में फ़िल्म 'अमानुष' ने इंदीवर को फ़िल्म फेयर अवार्ड दिलाया। वो गीत था- "दिल ऐसा किसी ने मेरा तोड़ा।" इंदीवर के गीतों में एक ऐसी कशिश होती है जो सीधे दिल पर असर करती है। उनके शब्द देखने में सीधे सादे लगते हैं। लेकिन उनके अंदर सोच की एक सरिता प्रवाहित होती है। उनके गीतों में ऐसी सम्वेदना निहित है कि एक बार सुनते ही मुखड़ा याद रह जाता है।

फूल तुम्हें भेजा है ख़त में 
फूल नहीं मेरा दिल है
प्रियतम मेरे तुम भी लिखना
क्या ये तुम्हारे क़ाबिल है


हम छोड़ चले हैं महफ़िल को
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इंदीवर ने कई ऐसे गीत रच दिये जो समय की सीमा से परे हैं। ऐसे गीत हमेशा संगीत प्रेमियों के दिलों के तार झंकृत करते रहेंगे। 

छोड़ दे सारी दुनिया किसी के लिए 
मैं तो भूल चली बाबुल का देश 
मेरी प्यारी बहिनिया बनेगी दुल्हनिया
है प्रीत जहां की रीत सदा 
ओ रे ताल मिले नदी के जल से 
जिंदगी का सफ़र है ये कैसा सफर 
आप जैसा कोई मेरी ज़िंदगी में आए
दुश्मन न करे दोस्त ने वो काम किया है

इतने प्यारे गीत लिखने वाले इंदीवर को जब बप्पी लहरी का साथ मिला तो वह नए रंग में ढल गए। यहां तक कि "बिजली का खंभा" से तुक मिलाने के लिए उन्होंने लिख दिया "नाक तेरा लंबा है।" …

गीतकार इंदीवर का जन्म 15 अगस्त 1924 को झांसी के बरुआसागर क़स्बे में हुआ था। उन्होंने ग़ैर फ़िल्मी कविताएं भी लिखी थीं। उनका कोई काव्य संकलन प्रकाशित नहीं हुआ। भीड़ वाले विराट कवि सम्मेलनों में जाना उन्हें पसंद नहीं था। मगर  कॉलेज के कार्यक्रमों में कविता पाठ करना उन्हें अच्छा लगता था। उनकी कविताओं के भाव बहुत अच्छे थे इसलिए कॉलेज में उन्हें काफी पसंद किया जाता था।

मन की गहराई के आगे 
ये गोरी सूरत कुछ भी नहीं 
यह रूप की मूरत कुछ भी नहीं 
मानव का मन यदि सुंदर हो 
तो इसकी जरूरत कुछ भी नहीं

नवम्बर 1996 के में सीजीएस कॉलोनी अंटॉप हिल के सेक्टर सात के स्कूल के सालाना जलसे में इंदीवर जी मुख्य अतिथि थे। सचिव रवि भूषण मिश्र ने मुझे भी आमंत्रित किया था। इंदीवर जी अच्छे मूड में थे। उन्होंने कई गीत सुनाए। यह हमारी आख़िरी मुलाक़ात साबित हुई। अगले साल 27 फरवरी 1997 को 73 साल की उम्र में उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया।

ना उम्र की सीमा हो ना जन्म का हो बंधन
जब प्यार करे कोई तो देखे केवल मन
नयी रीत चलाकर तुम ये रीत अमर कर दो

होंठों से छू लो तुम मेरा गीत अमर कर दो
बन जाओ मीत मेरे मेरी प्रीत अमर कर दो

इंदीवर जी कभी-कभी मुशायरों में भी जाते थे। संगीतकार कुलदीप सिंह ने बताया कि एक मुशायरे में उन्होंने एक कविता पढ़ी-

इतिहास नहीं मुझको पसंद, 
इतिहास पढ़ाना बंद करो 

इस कविता पर हंगामा हो गया। हंगामा करने वालों में सबसे आगे थे शायर अज़ीज़ क़ैसी। लेकिन यह कविता बहुत तार्किक थी। उनकी कविताओं के भाव बहुत अच्छे थे इसलिए में उन्हें काफी पसंद किया जाता था-

मन की गहराई के आगे 
ये गोरी सूरत कुछ भी नहीं 
यह रूप की मूरत कुछ भी नहीं 
मानव का मन यदि सुंदर हो 
तो इसकी जरूरत कुछ भी नहीं


इंदीवर का एक कालजयी गीत
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ज़िंदगी का सफ़र है ये कैसा सफ़र
कोई समझा नहीं कोई जाना नहीं
है ये कैसी डगर चलते हैं सब मगर
कोई समझा नहीं कोई जाना नहीं

ज़िंदगी को बहुत प्यार हमने किया
मौत से भी मुहब्बत निभायेंगे हम
रोते रोते ज़माने में आये मगर
हँसते हँसते ज़माने से जायेँगे हम
जायेँगे पर किधर है किसे ये खबर
कोई समझा नहीं कोई जाना नहीं

ऐसे जीवन भी हैं जो जिये ही नहीं
जिनको जीने से पहले ही मौत आ गयी
फूल ऐसे भी हैं जो खिले ही नहीं
जिनको खिलने से पहले फ़िज़ा खा गई
है परेशां नज़र थक गये चाराग़र
कोई समझा नहीं कोई जाना नहीं

है ये कैसी डगर चलते हैं सब मगर
कोई समझा नहीं कोई जाना नहीं
ज़िन्दगी का सफ़र है ये कैसा सफ़र
कोई समझा नहीं कोई जाना नहीं

🔺🔺🔺

आपका-
देवमणि पांडेय

Devmani Pandey : B-103, Divya Stuti 
Kanya Pada, Gokuldham, Film City Road,
Goregaon East, Mumbai-400063, M : 98210-82126

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