मंगलवार, 30 नवंबर 2021

चित्रनगरी संवाद मंच में ढब्बूजी उर्फ़ आबिद सुरती

 

चित्रनगरी संवाद मंच की अड्डेबाजी में ढब्बूजी

चित्रनगरी संवाद मंच की रविवार 28 नवम्बर 2021 की अड्डेबाजी में ख़ास मेहमान थे प्रतिष्ठित कथाकार, चित्रकार और कार्टूनिस्ट आबिद सुरती। 'धर्मयुग' के ढब्बूजी फेम आबिद सुरती की उम्रउम्र 86 साल है। हिंदी, उर्दू, गुजराती, अंग्रेजी आदि विभिन्न भाषाओं में उनकी 80 किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं। वे इतने चुस्त-दुरुस्त हैं कि उनकी ऊर्जा से नौजवानों को रश्क होता है।

ड्रॉपडेड फाउंडेशन के ज़रिए आबिद सुरती ने जल संरक्षण में कीर्तिमान कायम किया है। महानायक अमिताभ बच्चन ने केबीसी कार्यक्रम में उनके इस फाउंडेशन को दस लाख का डोनेशन दिया। इंद्रजाल कामिक्स के उनके सुपर हीरो बहादुर की तस्वीर अभिनेता शाहरुख ख़ान ने अपने घर में लगा रखी है।

आबिद सुरती के साथ गपशप का लुत्फ़ उठाने के लिए हमारे 15 रचनाकार कलाकार दोस्त हाज़िर हुए। आबिद जी ने बड़े रोचक तरीके से इंद्रजाल कामिक्स के अपने सुपर हीरो बहादुर की संकल्पना के बारे में बताया। यह भी बताया कि अपने इस सुपर हीरो को साकार करने के लिए कैसे उन्होंने डाकुओं के इलाक़े में जाकर उनकी कार्यशैली की जानकारी हासिल की।

लेखनी और ब्रश के दम पर बेलौस ज़िन्दगी जीने वाले आबिद सुरती अद्भुत लेखक हैं। उनकी एक चित्रकथा 'दौड़' पर राज कपूर फ़िल्म बनाना चाहते थे। इसके लिए कई बैठकें हुईं और यह सिलसिला बीस साल चला। अंततः राज कपूर के निधन के साथ यह अध्याय बंद हो गया। राज कपूर की शख़्सियत और कार्यशैली के बारे में उनके संस्मरण बहुत दिलचस्प थे।

आबिद जी का बचपन दक्षिण मुंबई के डोंगरी मोहल्ले में बीता। बचपन में वे फुटपाथ पर सोते थे। उनके कुछ सहपाठी ऐसे भी थे जो आगे चलकर बहुत बड़े माफिया और डान बने। अपने आत्मकथात्मक उपन्यास 'सूफ़ी' में उन्होंने इन घटनाओं का दिलचस्प वर्णन किया है। उनकी यह किताब हिंदी में वाणी प्रकाशन और अंग्रेजी में पेंगुइन से प्रकाशित हुई।  एक ज़माने में उनकी 'काली किताब 'भी बेहद चर्चित रही है। इस किताब का सात भाषाओं में अनुवाद हुआ।

चित्रनगरी संवाद मंच की  अड्डेबाजी में आबिद सुरती के शिरकत करने वालों के नाम हैं-

देवयानी जोशी, नवीन जोशी 'नवा', मोइन अहमद देहलवी, अतुल कुमार वी, रवींद्र यादव, भारतेंदु विमल, के पी सक्सेना, संजीव निगम, प्रदीप गुप्ता, अनिल गौड़, राजेश भट्ट, दिनेश दुबे, देवमणि पांडेय और दीनदयाल मुरारका।

चित्रनगरी संवाद मंच के अड्डे पर रचनाकारों, कलाकारों और काव्य प्रेमियों का हमेशा स्वागत है।गपशप का लुत्फ़ उठाने के लिए आप भी पधारिए। पता है-

इडलिश कैफ़े, होटल रॉयल चैलेंज के सामने, निकट ओबेरॉय माल, फ़िल्मसिटी रोड, गोरेगांव पूर्व, मुम्बई-400063, शाम 6:00 से 8:00 बजे।

आपका-
देवमणि पांडेय : 98210-82126

खटराग : केपी सक्सेना 'दूसरे' का काव्य संग्रह



नहीं सिधाई की बहुत, इस युग में दरकार


कवि, लेखक, व्यंग्यकार के.पी. सक्सेना 'दूसरे' के नए काव्य संग्रह का नाम है खटराग। उनके इस खटराग में कई काव्य विधाएं शामिल हैं। अपनी बात में उन्होंने लिखा है- "काव्य लेखन मेरे लिए न तो शब्दों की जादूगरी है और न ही वैचारिक जुगाली। यह आंसुओं का अनुवाद है जो अमूमन व्यंग्यात्मक शैली में दोहा, मुक्तक, क्षणिका या अतुकांत कविता के रूप में काग़ज़ पर अवतरित होने के लिए आतुर हो उठता है। कविता वक़्त के साथ अपना रंग बदलती है। जब हम ख़ुश होते हैं तो कविता झूमने लगती है और जब हम उदास होते हैं तो सर टिकाने के लिए एक कांधे की तरह हाज़िर हो जाती है।"


अपनी अनुभूतियों के रूपांतरण के लिए कवि केपी सक्सेना ने बोलचाल की भाषा का इस्तेमाल किया है। इसलिए उनकी अभिव्यक्ति सहजता से पाठकों तक पहुंच जाती है। किसी भी विधा में बात कहते समय वे यथार्थ का दामन कभी नहीं छोड़ते। उनके दोहे 'गागर में सागर' युक्ति को चरितार्थ करते हैं। उनका कहना है-


लघुकथा से बात बन जाए अगर,

क्यों पुलिंदों में मगज़मारी करें l 

सार जीवन का छुपा दो लाइनों में 

हम तो दोहों की तरफ़दारी करें II


केपी सक्सेना की दोहावली में अतीत, वर्तमान और भविष्य तीनों शामिल हैं। उनकी अभिव्यक्ति के प्लेटफार्म पर त्रेता, द्वापर, नीति, अनीति, प्रेम, प्रकृति, चुनाव, राजनीति, धर्म, संस्कृति आदि विविध विषय दिखाई देते हैं। मिसाल के लिए उनके चंद दोहे देखिए- 


युग कोई भी हो रहा, दगा न पूजा जाय। 

नाम विभीषण आज भी, कुल में रखा न जाय II


वह भी मां स्तुत्य है, जो दे सुत को श्राप। 

कैकेई कारण बनी, रावण मरा ना आप II 


छल से जब एकलव्य का, लिया अंगूठा दान। तब ही से जग में घटा, गुरुओं का सम्मान II


नहीं सिधाई की बहुत, इस युग में दरकार।

सभी काटते छांट कर, पहले सीधी डार II


जो धमकी से ना सधे, वो साधे मुस्कान। 

झरना देखो प्रेम से, रेत रहा चट्टान II


सदा काम आवे नहीं, कोरा पुस्तक ज्ञान। 

जीवन से जो सीख ले, होय सफल इंसान II


'काना' कहकर क्यों करें, काने का अपमान।

'समदर्शी' कह देखिए, करे निछावर जान II


रचनात्मकता को धार देने के लिए व्यंग्य का लहजा असरदार साबित होता है। अपने युग के यथार्थ की अभिव्यक्ति के लिए केपी सक्सेना इस लहजे का भी बढ़िया इस्तेमाल करते हैं-


ना कालिख, ना गालियां, ना जूतम-पैज़ार। 

आख़िर दिनभर मीडिया, कैसे करे प्रचार II 


उनकी महिमा आज तक, सका न कोई भेद।

बालों को काला करें, धन को करें सफ़ेद II


केपी सक्सेना के खटराग में 63 मुक्तक भी शामिल हैं। इन मुक्तकों में भी उन्होंने अपने समय और समाज के सच को बयान करने में कोई कोताही नहीं की है। सीधी साधी भाषा में और सहज सरल लहजे में वे जो कुछ भी कहना चाहते हैं वह आसानी से पाठकों तक पहुंच जाता है-


बंदिशें कुछ तो ढील दे मौला, 

ख़्वाहिशों को ज़मीन दे मौला। 

देख दिन की नमाज़ भी पढ़ ली, 

अब तो शामें हसीन दे मौला II


10 मार्च 1947 में सतना, मध्य प्रदेश में जन्मे केपी सक्सेना कृषि विज्ञान तथा हिंदी में स्नातकोत्तर हैं। उन्होंने क़ानून की उपाधि भी प्राप्त की है। 35 सालों तक भारतीय खाद्य निगम में सेवा के पश्चात उन्होंने सन् 2004 में ऐच्छिक सेवानिवृत्त ले ली और स्वतंत्र लेखन करने लगे। केपी सक्सेना एक दृष्टि संपन्न रचनाकार हैं। अपने आसपास की घटनाओं, माहौल और जीवन पर उनकी हमेशा नज़र रहती है। इसलिए वे अपनी रचनाओं में समय के सच को बयान करते हैं। अभिव्यक्ति की यही ईमानदारी उन्हें एक उम्दा क़लमकार के रूप में स्थापित करती है। हमारी मंगल कामना है कि उनकी यह लेखनी इसी तरह हमेशा सक्रिय रहे। वे साहित्य के गुलशन में विविध रंगी फूल खिलाते रहें और जीवन की बग़िया को महकाते रहें। 


बीएफसी पब्लिकेशन, गोमती नगर, लखनऊ से प्रकाशित इस पुस्तक का मूल्य है 200 रुपए। आप मोबाइल नंबर 95840 25175 और 95944 80055 पर कवि के.पी. सक्सेना 'दूसरे' से संपर्क कर सकते हैं।



आपका-

देवमणि पांडेय 


सम्पर्क : बी-103, दिव्य स्तुति, कन्या पाडा, गोकुलधाम, फिल्मसिटी रोड, गोरेगांव पूर्व, मुम्बई-400063 मो : 98210 82126


मैं उर्दू बोलूं : अजय सहाब का शेरी मज्मूआ

 



अंधे परख रहे यहां मेयारे रोशनी 

शायर अजय सहाब का पहला शेरी मज्मूआ 'उम्मीद' सन् 2015 में शाया हुआ था और ख़ूब मक़बूल रहा। हाल ही में उनका दूसरा शेरी मज्मूआ 'मैं उर्दू बोलूं' मंज़रे आम पर आया है। इसके ज़रिए भी उन्होंने अपनी रचनात्मकता के फ़न और हुनर का जलवा दिखाया है। क्लासिकल ग़ज़ल की जो विरासत हमें मीर ओ ग़ालिब से हासिल हुई है उसे बड़ी ख़ूबसूरती से अजय सहाब ने आगे बढ़ाया है-


वो तअल्लुक़ तेरा मेरा, था कोई बुत मोम का

फ़ुरक़तों की आग में, अपना वो रिश्ता जल गया 


हम गए थे उनसे करने अपनी हालत का गिला 

उनके चश्मे पुरशरर से सारा शिकवा जल गया


साहिर उनके प्रिय शायर हैं। साहिर की तरह सहाब के पास भी अपने तजुर्बात के इज़हार के लिए धारदार तेवर है। एहसास की गहराई है। बोलती हुई मीठी ज़बान है। इसलिए सहाब की ग़ज़लें और नज़्में सीधे दिल के दरवाजे पर दस्तक देती हैं और हमारी भावनाओं के साथ एक अंतरंग रिश्ते में ढल जाती हैं।


मग़रिब से आ गई यहां तहज़ीबे बरहना 

मशरिक तेरी रिवायती पाकीज़गी की ख़ैर


अंधे परख रहे यहां मेयारे रोशनी 

दीदावरे हुनर तेरी, दीदावरी की ख़ैर


सहाब के पास शायरी का जो सरमाया है वह रिवायती भी है और जदीद भी है। उनकी सोच का कैनवास बहुत वसीह है। इसमें मुहब्बत की धड़कन है। सोच की लहरें हैं। फ़िक्र के उफ़क़ पर ज़िन्दगी की सतरंगी धनक है-


तेज तूफ़ान में उड़ते हुए पत्ते जैसा 

ज़िन्दगी तेरा मुक़द्दर भी है तिनके जैसा


तुमको फ़ुर्सत ही नहीं उसको पहनके देखो

अपना रिश्ता है जो उतरे हुए गहने जैसा


सहाब दौरे हाज़िर के मसाइल और सवालात को अल्फ़ाज़ में ढालने का हुनर जानते हैं। यही वजह है कि उनकी शायरी को हर तरह के पाठक और सामयीन पसंद करते हैं। सहाब के पास साफ़ नज़रिया है। लफ़्ज़ों को बरतने का सलीक़ा है। बिना किसी अवरोध के उनके सोच की कश्ती जज़्बात की झील में तैरती हुई नज़र आती है-


या तो सच कहने पर सुक़रात को मारे न कोई

या तू संसार से सच्चाई को वापस ले ले 


और कितनों के सफ़ीने यहां डूबेंगे ख़ुदा 

इस समंदर से तू गहराई को वापस ले ले


सहाब एक ऐसे मोतबर शायर हैं जिनकी शायरी अदबी रिसालों में शाया होती है। संगीत की स्वर लहरियों में गूंजती है। मुशायरों के मंच पर अवाम से गुफ़्तगू करती है। सहाब को उर्दू से बेइंतहा मुहब्बत है। उनकी उर्दू इतनी नफ़ीस है कि उससे बड़े-बड़े शायरों को रश्क हो सकता है। 


लिखा है आज कोई शेर मैंने उर्दू में 

ये मेरा लफ़्ज़ भी इतरा के चल रहा होगा


"अल्फ़ाज़ और आवाज़" स्टेज कार्यक्रम के ज़रिए भी अजय सहाब देश विदेश में उर्दू ज़बान और उर्दू अदब का परचम लहराते हैं। यूट्यूब पर उनके इस कार्यक्रम के करोड़ों दर्शक हैं। 


जैसे पुराना हार था रिश्ता तेरा मेरा 

अच्छा किया जो रख दिया तूने उतार के 


दिल में हज़ार दर्द हों, आंसू छुपा के रख 

कोई तो कारोबार हो, बिन इश्तेहार के


फ़िक्र की आंच, एहसास की शिद्दत और सोच की गहराई के ज़रिए सहाब ने अपने शायराना सफ़र को एक खूबसूरत मुक़ाम तक पहुंचाया है। हमारी दुआ है कि उनकी तख़लीक़ का यह सफ़र मुसलसल इसी तरह कामयाबी की नई मंज़िलें तय करता रहे। रायपुर छ.ग. में अजय साहब एक सरकारी महकमे में उच्च अधिकारी हैं। हमें उनकी इस ख़्वाहिश का एहतराम करना चाहिए-


मेरे ओहदे से, न क़द से, न बदन से जाने

मुझको दुनिया मेरे मेयार ए सुख़न से जाने


प्रकाशक : विजया बुक्स, 1/10753 सुभाष पार्क, नवीन शाहदरा, दिल्ली 110032

क़ीमत 295/- रूपये 


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आपका-

देवमणि पांडेय 


सम्पर्क : बी-103, दिव्य स्तुति, कन्या पाडा, गोकुलधाम, फिल्मसिटी रोड, गोरेगांव पूर्व, मुम्बई-400063 मो : 98210 82126


बुधवार, 3 नवंबर 2021

सफ़र इक ख्वाब का : अभिलाष का काव्य संग्रह

तेरा ख़याल ही काफी है उम्र भर के लिए

'इतनी शक्ति हमें देना दाता' इस लोकप्रिय प्रार्थना गीत के गीतकार अभिलाष का काव्य संग्रह 'सफ़र इक ख्वाब का' प्रकाशित हुआ है। इसमें अभिलाष की ग़ज़लें और नज़्में शामिल हैं। निर्माता-निर्देशक अभिनेता धीरज कुमार के अनुसार यह एक ऐसे कवि का सफ़रनामा है जो पिछले 42 सालों से मुंबई की माया नगरी में क़लम के सहारे अपने वजूद की हक़ीक़त तलाश कर रहा था। अभिलाष की रचनाओं में वही ताज़गी, सादगी और फ़िलासफ़ी है जो उनके निजी जीवन में भी झलकती रही।

गीतकार अभिलाष का जन्म 13 मार्च 1946 को दिल्ली में हुआ। दिल्ली में उनके पिता का व्यवसाय था। वे चाहते थे कि अभिलाष व्यवसाय में उनका हाथ बटाएं। लेकिन ऐसा संभव नहीं हुआ। छात्र जीवन में बारह साल की उम्र में अभिलाष ने कविताएं लिखनी शुरू कर दी थीं। मैट्रिक की पढ़ाई के बाद वे मंच पर भी सक्रिय हो गए। उनका वास्तविक नाम ओम प्रकाश कटारिया है। उन्होंने अपना तख़ल्लुस 'अज़ीज़' रख लिया। ओमप्रकाश' अज़ीज़' के नाम से उनकी ग़ज़लें, नज़्में और कहानियां कई पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुईं। 'अज़ीज़' देहलवी नाम से अभिलाष ने मुशायरों में शिरकत की। मन ही मन साहिर लुधियानवी को अपना उस्ताद मान लिया।

दिल्ली के एक मुशायरे में साहिर लुधियानवी पधारे। नौजवान शायर 'अज़ीज़' देहलवी ने उनसे मिलकर उनका आशीर्वाद लिया। साहिर साहब को कुछ नज़्में सुनाईं। साहिर ने कहा- मुझे ऐसा लग रहा है जैसे मैं तुम्हारे मुंह से अपनी नज़्में सुन रहा हूं। तुम अपना रास्ता अलग करो। ऐसी ग़ज़लें और नज़्में लिखो जिसमें तुम्हारा अपना रंग दिखाई पड़े। 

इस किताब की नज़्में पढ़ते हुए साहिर का अंदाज़ ए बयां याद आना स्वाभाविक है। अभिलाष जी की नज़्म 'क़ैद' की कुछ लाइनें देखिए- 


सिलसिले कितने बने और बन के टूट गए 

मैं तेरी याद की ज़िंदां से रिहा हो न सका 

उम्र भर ग़म में जला फिर भी तक़ाज़ा मुझसे 

तेरी इक पल की मुहब्बत का अदा हो न सका


साहिर का मशवरा मानकर ओमप्रकाश अज़ीज़ जब गीतकार अभिलाष बन गए तो उनकी नज़्मों में उनका अपना रंग नज़र आया। 'सफ़र इक ख़्वाब का' नज़्म की चंद लाइनें देखिए-


शानो-शौक़त जिसे महलों की न रास आई कभी 

ज़िन्दगी अपनी बसर जिसने की नादारों में 

पा लिया जिसने ख़ुद अपने को मैं वो गौतम हूं

क़ैद जो हो न सका, ऐश की दीवारों में 


मैं ही गांधी हूं, अहिंसा का निगहबान हूं मैं

मुझको पाओगे सदाक़त के तरफ़दारों में



अभिलाष की ग़ज़लों में दिल की जो दुनिया है उसमें मुहब्बत के सभी मौसम शामिल हैं। चंद अशआर देखिए-


सुकून ए दिल के लिए, राहत ए जिगर के लिए

तेरा ख़याल ही काफ़ी है उम्र भर के लिए 


न सही गाता हुआ, गुनगुनाता मिल जाता

कहीं तो शख़्स कोई मुस्कुराता मिल जाता 


किस क़दर दुश्वार है ये ज़िन्दगी का रास्ता

आंसुओं से हो रहा है, तय ख़ुशी का रास्ता


जिस गली में भूल आया हूं मैं अपनी ज़िन्दगी 

पूछता हूं हर किसी से उस गली का रास्ता 


पलकों पर आंसुओं का जनाज़ा लिए हुए 

दिल घुट रहा है बारे तमन्ना लिए हुए 


नज़दीक जाके देखा तो महसूस ये हुआ 

हर आदमी है चेहरे पर चेहरा लिए हुए 


ख़याल आता है मुझको कि मैं भी ज़िंदा हूं

तेरे ख़याल की गलियों से जब गुज़रता हूं 


इस काव्य संग्रह में अभिलाष जी के दस क़त्आत भी शामिल हैं। उनका एक क़त्आ देखिए- 


गंगा जमुना का नीर हो जाता 

सारी दुनिया की पीर हो जाता 

अर्थ समझा न अपने होने का 

वरना, मैं भी कबीर हो जाता


अपनी रचनाओं में गीतकार अभिलाष ने अपने अनुभव, सुख-दुख, सोच और सरोकार को इस तरह अभिव्यक्त किया है कि वह पढ़ने वालों को बड़ी जल्दी सम्वेदना की डोर में बांध लेता है। उन्होंने जिस ज़मीन पर अपना सफ़र तय किया है और जिस आसमान को अपना हमसफ़र बनाया है उसी का अक्स अपनी रचनाओं में दिखाया है। उन्होंने संघर्ष का एक लंबा रास्ता तय किया है। इस रास्ते में फूल कम है कांटे ज़्यादा हैं। अभिलाषा ने पलकों पर आंसुओं का जनाज़ा लिए हुए अपना सफ़र तय किया है। उनकी ग़ज़लों और नज़्मों में जो नमी है, जो तरलता है वह पाठकों के अंतर्मन को भिगो देती है। उम्मीद है कि अभिलाष का यह संकलन पाठकों को पसंद आएगा।

 


फ़िल्मसिटी रोड गोरेगांव पूर्व के इडलिश कैफ़े में 19 मार्च 2020 को चित्र नगरी संवाद मंच की अड्डेबाजी में सिने गीतकार अभिलाष की मौजूदगी ने हमेशा के लिए इस बैठक को यादगार बना दिया।


27 सितंबर 2020 को अभिलाष जी का स्वर्गवास हो गया। अपने गीतों के जरिए वे हमेशा हम सब की स्मृतियों में ज़िंदा रहेंगे। 


गीतकार अभिलाष का यह काव्य संग्रह  'सफ़र इक ख्वाब का' समाज विकास मंच, गोकुल धाम, गोरेगांव पूर्व के महामंत्री दिवेश यादव के सौजन्य से प्राप्त हुआ। इस सुंदर उपहार के लिए दिवेश जी का शुक्रिया।

 

आपका-

देवमणि पांडेय 


सम्पर्क : बी-103, दिव्य स्तुति, कन्या पाडा, गोकुलधाम, फिल्मसिटी रोड, गोरेगांव पूर्व, मुम्बई-400063 मो : 98210 82126


प्रकाशक : विजय जाधव, सृजन प्रकाशन गोमती, एफ-2, 2:4, सेक्टर 8ब, सीबीडी बेलापुर, नई मुंबई 400614

फ़ोन : 97 69 66 83 69


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