तुम्हारे नाम के पत्थर मेरी बुनियाद से निकले
सिने-गीतकार मनोज मुंतशिर के प्रथम काव्य संकलन का
नाम है-"मेरी फ़ितरत है मस्ताना।" वाणी प्रकाशन नई दिल्ली से प्रकाशित यह संकलन मुहब्बत करने वालों के
लिए एक ख़ूबसूरत तुहफ़ा है। मनोज मुंतशिर के पास एक दिलकश ज़बान है, मुहब्बत की
दास्तान है और अपनी बात को दिलचस्प अंदाज़ में पेश करने का हुनर है। इन ख़ूबियों
के कारण उनकी शायरी क़ारयीन और सामयीन दोनों को बेहद मुतअस्सिर करती है-
मैं खंडहर हो गया पर तुम न मेरी याद से निकले
तुम्हारे नाम के पत्थर मेरी बुनियाद से निकले
मुंतशिर की फ़िक्र के दायरे में मुहब्बत की दुनिया
आबाद है। इसमें वे अपने जज़्बात का रंग कुछ इस तरह घोल देते हैं कि उनकी शायरी में
नई तस्वीर नज़र आती है और वह जवां दिलों की धड़कन बन जाती है-
वो मेरा चांद सौ टुकड़ों में टूटा
जिसे मैं देखता था आंख भर के
जहां पर लाल हो जाते हैं आंसू
मैं लौटा हूं उसी हद से गुज़र के
कुछ ऐसे रंग होते हैं जो मुहब्बत की कायनात में
ख़ुशबू की तरह घुल जाते हैं। फ़िज़ाओं में सांस लेते हैं। ख़्वाबों के हमसफ़र बनकर
आपके दिल के दरवाजे़ पर कुछ इस अंदाज़ में दस्तक देते हैं कि आंखों के सामने
गुज़रे ज़माने का अक्स तैरने लगता है-
सवाल इक छोटा सा था, जिसके पीछे
ये सारी ज़िंदगी बर्बाद कर ली
भुलाऊं किस तरह वो दोनों आंखें
किताबों की तरह जो याद कर ली
मुहब्बत के ज़ाती तजरुबे को मुंतशिर ऐसी सहजता और
सलीक़े से पेश कर देते हैं कि उनका अंदाज़ ए बयां हमारे एहसास का हिस्सा बन जाता
है-
तुम हां कह दो, मैं हां कह दूं,
इनकार करो, इनकार करूं,
जिस प्यार में इतनी शर्ते हैं
उस प्यार से कैसे प्यार करूं
मुंतशिर ने कई प्यारी नज़्मों से भी अपना दीवान
सजाया है। अपनी ज़मीन और अपने आसमान को अपने इज़हार का साझीदार बनाया है। मसलन-
मैं तुमसे प्यार करता हूं, मेरा प्यार एक तरफ़ा, तुम मुझे छोड़ तो नहीं दोगी, मैं
इंतजार करूंगा आदि नज़्मों के उनवान जितने रोचक हैं, इन नज़्मों में उतनी दिलकशी
भी है।
इन नज़्मों में मिलने-बिछड़ने, चाहत, उल्फ़त और
जुनून की जो कसक है उसे देखते हुए कहा जा सकता है कि उन्होंने साहिर लुधियानवी की
रिवायत को आगे बढ़ाने का क़ाबिले-तारीफ़ काम किया है। 'मैं तेरे ख़त लौटा दूंगा'
नज़्म की शुरुआती लाइनें देखिए -
आंखों की चमक, जीने की लहक,
सांसों की रवानी वापस दे
मैं तेरे ख़त लौटा दूंगा,
तू मेरी जवानी वापस दे
मुंतशिर की इस रचनात्मक अभिव्यक्ति में देश, समाज
और वक़्त के अहम सवाल भी सांस लेते हैं। उनकी एक नज़्म है - 'मेरा नाम सिपाही है'।
इसकी आख़िरी लाइनें देखिए -
मेरी मौत का मातम ना करना
मैंने ख़ुद ये शहादत चाही है
मैं जीता हूं मरने के लिए
मेरा नाम सिपाही है
कई फ़िल्मों की कामयाबी में मनोज मुंतशिर के गीतों
ने भी रचनात्मक भूमिका अदा की है। वे जो भी गीत रचते हैं उनके अल्फ़ाज़ में शायरी
की ख़ुशबू भी शामिल रहती है। तेरी गलियां, तेरे बिन यारा, मैं फिर भी तुमको
चाहूंगा, कौन तुझे यूं प्यार करेगा, तेरी मिट्टी में मिल जावां जैसे गीत मिसाल के
तौर पर देखे जा सकते हैं। संवाद लेखन में भी वे अपने हुनर का परचम लहराते हैं।
फ़िल्म बाहुबली-2 में उनके संवाद कई बार तालियां बजवाते हैं। उनकी कामयाबी का राज़
उनके ही एक शेर में पोशीदा है-
जूते फटे पहन के आकाश पे चढ़े थे
सपने हमारे हरदम औक़ात से बड़े थे
मनोज मुंतशिर ने साहित्य आज तक और रेख़्ता से लेकर
देश के कई लिटरेचर फेस्टिवल में भी अपनी शानदार मौजूदगी दर्ज की है। उन्हें पुरानी
पीढ़ी का आशीर्वाद भी मिलता है नई पीढ़ी का प्रतिसाद भी। मेरी हार्दिक शुभकामना है
कि वे इसी तरह कामयाबी की नई इबारत लिखते रहें।
देवमणि पांडेय :
बी-103, दिव्य स्तुति, कन्या पाडा, गोकुलधाम,
गोरेगांव पूर्व, मुम्बई - 400 063,
9821082126
(मुम्बई 26 जनवरी 2020)
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