सोमवार, 8 जून 2020

अंकित चहल का मुक्तक संग्रह इंसान बिकता है


अगर तुम साथ हो तो ज़िंदगी आसान होती है

हिंदी काव्य मंच के लोकप्रिय कवि अंकित चहल विशेष के मुक्तक संग्रह का नाम है- "इंसान बिकता है"। मुक्तक एक बेहद लोकप्रिय काव्य विधा है। चार लाइन की इस कविता को सुनकर श्रोता और पढ़कर कवि बहुत जल्दी मुक्त हो जाते हैं मगर इसका असर दिलो-दिमाग़ पर बहुत देर तक रहता है। यह काव्यात्मक अभिव्यक्ति का एक ऐसा तोहफ़ा है जिसकी एक-एक बूंद में समंदर समाया रहता है-

ज़रा सी ख्व़ाहिशों में डूबकर इंसान बिकता है 
तरक्की ख़ून रोती है यहां ईमान बिकता है 
ग़ुलामी भोगती हैं आने वाली पीढ़ियां उसकी, 
अगर गद्दी की ख़ातिर मुल्क का सुल्तान बिकता है

मुक्तक में प्रायः पहली, दूसरी और चौथी पंक्ति तुकांत होती है। आप जो भी कहना चाहते हैं, पहली और दूसरी पंक्ति में उसकी भूमिका पेश की जाती है। तीसरी पंक्ति में किसी बड़े सत्य या रहस्य की तरफ़ इशारा किया जाता है। चौथी पंक्ति में जैसे ही यह रहस्य खुलता है, सुनने वाला उछल पड़़ता है। काव्य मंचों पर भी मुक्तक को भरपूर दाद मिलती है कवि अंकित चहल ने अपने मुक्तकों के सृजन में इसी शैली का असरदार इस्तेमाल किया है -

मनोहर कल्पनाओं के नए प्रतिमान गढ़ बैठे 
ज़रा दर्पण निहारा और हम भगवान गढ़ बैठे 
ये घर दौलत धमक रुतबा ये सब मेरी बदौलत है, 
ये ऐसा झूठ है जिस पर सभी अभिमान गढ़ बैठे 

अंकित चहल के मुक्तकों का जो संसार है, उसमें घर परिवार है। रिश्ते-नातों की बदलती दुनिया है, भूख है, ग़रीबी है, तबाही है और सरहद पर तैनात सिपाही है -

किसी के पांव जलते हैं किसी के पांव गलते हैं 
वतन के वास्ते लेकिन बिना ठहरे वो चलते हैं 
उन्हीं के दम से ही ऊंचा रहा है भाल भारत का, 
असंभव कुछ नहीं रहता सिपाही जब निकलते हैं 

अंकित चहल के मुक्तकों में मुहब्बत की एक ऐसी दुनिया है  जिसमें दर्द, तड़प, बेचैनी है। बिछड़ने की कसक है, मिलने की उम्मीद है और भुलाए जाने का शिकवा भी है-

निशां अश्कों के, गालों से मिटाए क्यों नहीं जाते 
तड़प के, दर्द के क़िस्से सुनाए क्यों नहीं जाते 
जो मुझको भूलकर ख़ुश हैं उन्हें मालूम हो कैसे 
वो बरबस याद आते हैं भुलाए क्यों नहीं जाते

अंकित चहल के यहां घर-आंगन है, महावर, चूड़ियां, कंगन है, अपने त्याग, प्रेम और समर्पण के साथ नारी है, घर को सजाने वाली पत्नी है मगर एक ऐसी ख़ुद्दार औरत की मौजूदगी भी है जिसके साथ चलने से मर्द की ज़िन्दगी आसान हो जाती है-

ये सच है आदमी की औरत से ही पहचान होती है
ये औरत त्याग की मूरत, गुणों की ख़ान होती है
मैं तुमसे कह नहीं सकता मगर महसूस कर लेना,
अगर तुम साथ हो तो ज़िंदगी आसान होती है

आज हम एक ऐसे दौर में जी रहे हैं जहां राजनीतिक हलचल का असर हर जगह देखने को मिलता है। अंकित चहल के मुक्तक भी इससे अछूते नहीं हैं। उनके यहां राजनीति की शतरंज है, सियासत की चालाकियां है मगर इन सबसे ऊपर राधा कृष्ण की झांकियां हैं-

तन से राधा रही मन हुआ श्याम सा 
प्रेम वालों को गोकुल लगा धाम सा 
कुंज की हर गली जप रही है यही, 
नाम दूजा नहीं कृष्ण के नाम सा 

अंकित चहल ने काव्य परंपरा से प्राप्त शैली का इन मुक्तकों के लेखन में भरपूर ईमानदारी से इस्तेमाल किया है। उनके यहां कथ्य है, कहानी है और अभिव्यक्ति में रवानी है। इसलिए उनके मुक्तक बरबस पाठकों का ध्यान खींचते हैं और उनके साथ अपना एक आत्मीय रिश्ता कायम कर लेते हैं। इस सुंदर किताब के लिए मैं कवि अंकित चहल विशेष को हार्दिक बधाई देता हूं। मांडवी प्रकाशन, दिल्ली गेट, ग़ाज़ियाबाद से प्रकाशित इस किताब का मूल्य है ₹150 मात्र। यह किताब अमेजॉन और फ्लिपकार्ट पर भी उपलब्ध है।

देवमणि पांडेय :
बी-103, दिव्य स्तुति, कन्या पाड़ा, गोकुलधाम,
फ़िल्म सिटी रोड, गोरेगांव पूर्व, मुंबई- 400063, 98210-82126
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