II पुस्तक समीक्षा : दोहा-दोहा ज़िंदगी II
दोहा काव्य की ऐसी सशक्त विधा है जिसे गागर में
सागर भरने का श्रेय हासिल है। हमारे संत और भक्त कवियों ने अपने दोहों में ज़िंदगी
का जो दर्शन पेश किया है वह आज भी अद्भुत, अद्वितीय और बेजोड़ है। दोहा एक मात्रिक
छंद है। 13 और 11 मात्रा के चरण में लिखी जाने वाली यह काव्य विधा आज भी जीवन की
हर संवेदना का वाहक बनने की क्षमता रखती है।
दोहे वो तूफान हैं, देते हैं झकझोर
असर बहुत गहरा करें, इनमें है वह ज़ोर
कवि अंजनी श्रीवास्तव के दोहा संग्रह का नाम है- दोहा-दोहा ज़िंदगी। अंजनी जी ने इस संकलन
की ज़रिए दोहा काव्य विधा की अपार संभावनाओं का संकेत दिया है।
उन्होंने दोहे के बहु प्रचलित काव्य विधा को अपनी अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया है
और उसे अपनी ज़मीन और अपने आसमान से सजाया है। एक ख़ास बात यह है इन्होंने कई दोहो
का एक समूह बनाकर उसे अलग-अलग शीर्षक दिए हैं। मसलन-
मां
जीवन है इक कोठरी, मां है रोशनदान
उससे बढ़कर कौन है, जग में और महान
मां है शीतल चांदनी, प्रातः की है धूप
उसके अंदर हैं छुपे, नारी के सौ रूप
बेटी
चलती बेटी सड़क पर, सहम-सहम कर चाल
ना जाने कब फेंक दे, कौन कहां से जाल
बेटे गर उन्नीस हैं, तो बेटी है बीस
लब पर दे सबके हंसी, स्वयं सहेजे टीस
पिता
वही लरजती धूप है, शीतल प्यारी छांव
पिता हमारी मंजिलें, नापे अपने पांव
विद्यालय तक ले गया, पकड़ हमारा हाथ
हमने देखी ज़िंदगी, चल कर उसके साथ
रिश्ते, गांव, परिवार, स्कूल, शिक्षक, गंगा, नारी,
वर्षा आदि ऐसे ढेर सारे विषय हैं जिसे अंजनी जी ने अपने दोहों का कथ्य बनाया है।
एक शीर्षक के समूह में कई-कई दोहे शामिल हैं। ख़ास बात यह है कि सदियों से चली आ
रही दोहा छंद की रिवायत का उन्होंने बहुत ख़ूबसूरती के साथ अनुगमन किया है। मगर इस
काव्य विधा में उन्होंने जो कथ्य प्रस्तुत किया है वह उनका अपना है। वह उनके अपने
अनुभवों से उपजा है। इसमें उनकी गहन दृष्टि, अध्ययन और संस्कार शामिल हैं। यही
कारण है कि उनके दोहे सीधा हमारे दिल को छूते हैं और हम उनके साथ-साथ एक भावनात्मक
यात्रा करते हैं।
अंजनी जी के दोहों में चिंतन और दर्शन के साथ ही
अपने समय की तस्वीर भी नज़र आती है। उदाहरण के लिए दो दोहे देखिए-
धनवानों को लोन दें, दरियादिल कुछ बैंक
घोटालो की टोटियां, कर दें ख़ाली टैंक
दुश्मन अपना जान लो, चीन न पाकिस्तान
गुनहगार इस देश के, पावरफुल इंसान
पुस्तक की भूमिका कवि अशोक चक्रधर और कवि शैलेश
लोढ़ा ने लिखी है और दोनों ने अंजनी जी के फ़न और हुनर की तारीफ़ की है। एक बेहद
उल्लेखनीय बात यह है कि अंजनी श्रीवास्तव ने इस पुस्तक में अपना एक आलेख शामिल
किया है-"दोहों से गुफ़्तगू।" यह दोहे लिखने वाले नए कवियों के लिए बेहद
ज़रूरी सौग़ात है। इसमें पुराने और नए कवियों के चुनिंदा दोहों के ज़रिए उन्होंने
दोहे की विशेषताओं का बयान किया है। साथ ही यह भी बताया है कि गति, यति, तुक और
मात्रा क्या है, और मात्राओं की गणना किस तरह की जाए कि दोहा कसौटी पर खरा
उतरे।
दोहे की विधा में दिलचस्पी रखने वालों के लिए यह एक
महत्वपूर्ण आलेख है।
कुल मिलाकर इन दोहों में ऐसी ख़ूबी है कि ये दोहा
प्रेमियों को ज़रूर पसंद आएंगे। अंत में अंजनी जी का एक दोहा आप सबके लिए-
साध लें पहले मात्रा, फिर कर लें आगाज़
रचना है दोहे अगर, करते रहें रियाज़
देवमणि पांडेय :
बी-103, दिव्य स्तुति, कन्या पाडा, गोकुलधाम,
फ़िल्मसिटी रोड, गोरेगांव पूर्व, मुम्बई - 400 063,
9821082126
(मुम्बई 27 जनवरी
2020)
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