रविवार, 11 मार्च 2012

शाम के वक़्त कभी घर में अकेले न रहो : कवि सूर्यभानु गुप्त


कवि सूर्यभानु गुप्त 
शाम के वक़्त कभी : नज़्म

शाम टूटे हुए दिलवालों के घर ढूँढ़ती है,
शाम के वक़्त कभी घर में अकेले न रहो !

शाम आयेगी तो ज़ख़्मों का पता पूछेगी,
शाम आयेगी तो तस्वीर कोई ढूँढेगी.
इस क़दर तुमसे बडा़ होगा तुम्हारा साया,
शाम आयेगी तो पीने को लहू माँगेगी.

शाम बस्ती में कहीं खू़ने-जिगर ढूँढ़ती है,
शाम के वक़्त कभी घर में अकेले न रहो !

याद रह-रह कर कोई सिलसिला आयेगा तुम्हें,
बार-बार अपनी बहुत याद दिलायेगा तुम्हें.
न तो जीते हीन मरते ही बनेगा तुमसे,
दर्द बंसी की तरह लेके बजायेगा तुम्हें.

शाम सूली-चढ़े लोगों की ख़बर ढूँढ़ती है,
शाम के वक़्त कभी घर में अकेले न रहो!

घर में सहरा का गुमां इतना ज़ियादा होगा,
मोम के जिस्म में रौशन कोई धागा होगा.
रूह से लिपटेंगी इस तरह पुरानी यादें,
शाम के बाद बहुत ख़ूनखराबा होगा.

शाम झुलसे हुए परवानों के पर ढूँढ़ती है,
शाम के वक़्त कभी घर में अकेले न रहो!


क़हक़हे मारो, हँसो, यार पुराने ढूँढ़ो 
शाम मस्ती में कटे ऐसे ठिकाने ढूँढ़ो 
लग कर अपने ही गले रोने से बेहतर है यही 
शाम से बचने के हर रोज़ बहाने ढूँढ़ो

शाम नाकाम मुहब्बत के खंडर ढूँढ़ती है, 
शाम के वक़्त कभी घर में अकेले न रहो!

किसी महफ़िलकिसी जलसेकिसी मेले में रहो,
शाम जब आए किसी भीड़ के रेले में रहो.
शाम को भूले से आओ न कभी हाथ अपने,
खु़द को उलझाए किसी ऐसे झमेले में रहो.

शाम हर रोज़ कोई तनहा बशर ढूँढ़ती है,
शाम के वक़्त कभी घर में अकेले न रहो!

सम्पर्क :
सूर्यभानु गुप्त 2, मनकू मेंशनसदानन्द मोहन जाधव मार्गदादर ( पूर्व ),
मुम्बई- 40001दूरभाष : 090227-42711  /  022-2413-7570

Devamani Pandey : 98210-82126