शनिवार, 22 जनवरी 2022

शायर सिने गीतकार इब्राहीम अश्क का जाना


शायर सिने गीतकार इब्राहीम अश्क का जाना 


तेरी ज़मी  से  उठेंगे   तो  आसमां होंगे

हम ऐसे लोग ज़माने में फिर कहाँ होंगे

चले  गए  तो  पुकारेगी हर सदा हम को,

न जाने कितनी ज़बानों से हम बयाँ होंगे।

इब्राहीम अश्क 


शायर सिने गीतकार इब्राहिम अश्क मुंबई की हलचल थे। वे किसी पत्रिका में कुछ ऐसा लिख देते या कुछ ऐसा बोल देते कि महीनों तक उसकी गूंज सुनाई पड़ती। कोई ऐतराज़ करता तो बहस में उसे धराशाई कर देते। रचनाकार मित्र ऐसे सरस प्रकरण को दोहराते, मज़ा लेते। अश्क से मेरी आख़िरी मुलाकात 21 दिसंबर 2021 को हुई। 


हम सब संत मुरारी बापू के सानिध्य में कविता पाठ करने मुंबई के वॉलकेश्वर इलाके़ में आए थे। अभी तक मोबाइल से अश्क की दोस्ती नहीं हो पाई थी। शायरा दीप्ति मिश्र ग्रुप में बार-बार मैसेज डालती थीं- अश्क जी, कुछ तो जवाब दीजिए। अश्क के बदले शायर शमीम अब्बास का संदेश आता- अश्क जी के बेटे से मेरी बात हो गई है। वे आ रहे हैं। अंततः अश्क जी अच्छे मूड में पधारे। सबसे दिल खोलकर मिले। काव्य संध्या में बड़ी आत्मीयता से कविता पाठ किया। श्रोताओं का भरपूर प्रतिसाद मिला। अपनी एक नज़्म में उन्होंने भाव विभोर होकर उज्जैन के पास बड़नगर क़स्बे में अपने पैतृक घर को याद किया जिसे कई साल पहले वे पीछे छोड़ आए थे। 


इब्राहिम अश्क की ग़ज़लों और नज़्मों में उनका दिल शामिल था। मगर जब वे तनक़ीदी गद्य लिखने के लिए कमर कसते तो बौद्धिकता के बीहड़ में बंदूक लेकर उतर पड़ते थे। वे फायर पर फायर करते चले जाते और किसी के धराशायी होने की परवाह नहीं करते थे। उन्होंने अपने एक लेख में शायर फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की प्रगतिशीलता को कटघरे में खड़ा कर दिया। दूसरे लेख में शायर निदा फ़ाज़ली की जदीदियत पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया। तीसरे लेख में रेखांकित किया कि शायरा परवीन शाकिर की शायरी में सामाजिक सरोकार ही नहीं है और उसने कभी कोई बड़ा शेर नहीं कहा। 


इस तरह उन्होंने और भी कई लेख लिखे और कई लोगों को नाराज़ होने का मौक़ा दिया। एक बार उन्होंने 'शबख़ून' पत्रिका में पत्र लिखकर उसके संपादक जाने-माने समालोचक शमसुर्रहमान फ़ारूक़ी पर ज़बरदस्त प्रहार किया। गुलज़ार और जावेद अख़्तर से भी वे ख़ुश नहीं थे। शायर बशीर बद्र से ख़फ़ा होकर उन्होंने उन पर एक ऐसी ग़ज़ल कही जिसमें कई रोचक गालियों का इस्तेमाल किया गया था। 


सिने जगत में गीतकार बनने के लिए क्या संघर्ष करना पड़ता है, कैसे-कैसे पापड़ बेलने पड़ते हैं... इब्राहिम अश्क का जीवन ख़ुद में इसकी एक मिसाल है। अस्सी के दशक की शुरुआत में वे एक दिन दिल्ली प्रेस में अपनी पत्रकारिता की नौकरी छोड़कर सिने गीतकार बनने का ख़्वाब पूरा करने के लिए मुंबई पहुंच गए। 


वे दूरदराज मुंब्रा उपनगर से ट्रेन पकड़ कर दादर होते हुए बांद्रा पहुंचते थे। फिर खार, सांताक्रुज, जहू, अंधेरी आदि उनकी संघर्ष यात्रा में शामिल हो जाते। कवि चित्रकार कमल शुक्ल के बांद्रा कार्यालय में अश्क से मेरी पहली मुलाक़ात सन् 1990 में हुई थी। मुंब्रा से बांद्रा के इस सफ़र का सिलसिला तब तक चला जब तक वे मिल्लत नगर, अंधेरी में अपने मकान में नहीं आ गए। जब फ़िल्म "कहो ना प्यार है" में उनके गीतों ने कामयाबी का परचम लहराया तो अंधेरी में बसने का उनका सपना साकार हुआ। 


एक दिन उन्होंने अपने नए मकान में मुझे चाय पीने के लिए बुलाया। मैंने उनसे पूछा- ऋतिक रोशन की इस फ़िल्म में काम पाने के लिए उन्हें कितना संघर्ष करना पड़ा है। वे मुस्कुराए, बोले- मैं एक साल तक लगातार सांताक्रुज में संगीतकार राजेश रोशन के म्यूजिक रूम का चक्कर लगाता रहा। हाज़िरी देता रहा। आख़िर एक साल बाद उन्होंने "कहो ना प्यार है" फ़िल्म में गीत लिखने का मौक़ा दिया। इससे आप समझ सकते हैं कि सिने गीतकार बनने के लिए इंसान में कितना धीरज चाहिए। 


सिने जगत में एक दौर ऐसा आया जब गीतकारों, संगीतकारों की एक नई पीढ़ी सक्रिय हो गई। पुराने संगीतकार और गीतकारों में निर्माताओं की दिलचस्पी कम हो गई। वे सिने परिदृश्य से ग़ायब होने लगे।  इस चुनौती का सामना इब्राहिम अश्क ने यूं किया कि अंधेरी का अपना मकान बेचकर वे सपरिवार मीरा रोड में बस गए। रविवार 16 जनवरी 2022 की शाम को चार बजे उनका इंतक़ाल हुआ। कोविड 19 वायरस से संक्रमित होने के कारण वे स्वास्थ्य की चुनौतियों का सामना कर रहे थे। 


20 जुलाई 1951 को मध्य प्रदेश के उज्जैन ज़िले में जन्मे शायर इब्राहीम अश्क ने ‘इन्दौर समाचार’, ‘शमा’, ‘सुषमा’ और ‘सरिता’ आदि पत्र-पत्रिकाओं के लिए पत्रकारिता की। मुंबई आने पर उन्होंने ‘कहो न प्यार है’, ‘कोई मिल गया’, ‘ऐतबार’, ‘कोई मेरे दिल से पूछे’, ‘आप मुझे अच्छे लगने लगे’, ‘ये तेरा घर ये मेरा घर’ आदि कई फ़िल्मों को अपने गीतों से सजाया। कई मशहूर ग़ज़ल गायकों के अलबम में उनके गीत ग़ज़ल शामिल हैं। उनकी  ‘इलहाम, आगही’, ‘कर्बला’, ‘अलाव’, ‘अंदाज़े बयां’, ‘तनक़ीदी शऊर’ आदि 18 किताबें प्रकाशित हुईं। उनकी शायरी पर पांच लोगों ने पीएचडी हासिल की है। 


आपका :

देवमणि पांडेय : बी-103, दिव्य स्तुति, कन्या पाडा, गोकुलधाम, फिल्मसिटी रोड, गोरेगांव पूर्व, मुम्बई-400063 , 98210 82126


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