मंगलवार, 16 मई 2017

देवमणि पांडेय की ग़ज़ल : हर फ़िक्र हर ख़याल को







  देवमणि पांडेय ग़ज़ल

हर फ़िक्र हर ख़याल को बेहतर बना दिया
मुझको मुहब्बतों ने सुख़नवर बना दिया

रुख़सत किया था मैंने उसे ख़ुशदिली के साथ
आँखों को उसने मेरी समंदर बना दिया

सादा पड़ा हुआ था मेरे दिल का कैनवास
इक चेहरा था निगाह में उसपर बना दिया

सूरज का हाथ थाम के जब शाम आ गई
बच्चे ने गीली रेत पर इक घर बना दिया

शीशे के जिस्म वालों से ये पूछिए कभी
दिल आईना था क्यूँ उसे पत्थर बना दिया

कोई किसी के इश्क़ में बेदाम बिक गया
तक़दीर ने किसी को सिकंदर बना दिया

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बुधवार, 25 जनवरी 2017

देवमणि पांडेय की ग़ज़ल : परवाज़ की तलब




देवमणि पांडेय की ग़ज़ल 

परवाज़ की तलब है अगर आसमान में
ख़्वाबों को साथ लीजिए अपनी उड़ान में

मोबाइलों से खेलते बच्चों को क्या पता
बैठे हैं क्यूँ उदास खिलौने दुकान में

ये धूप चाहती है कि कुछ गुफ़्तगू करे
आने तो दीजिए उसे अपने मकान में

लफ़्ज़ों से आप लीजिए मत पत्थरों का काम
थोड़ी मिठास घोलिए अपनी ज़ुबान में

जो कुछ मुझे मिला है वो मेहनत से ही मिला
मैं ख़ुश बड़ा हूँ दोस्तो छोटे मकान में

हम सबके सामने जिसे अपना तो कह सकें
क्या हमको वो मिलेगा कभी इस जहान में

उससे बिछड़के ऐसा लगा जान ही गई
वो आया जान आ गई है फिर से जान में




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