देवमणि पांडेय ग़ज़ल
हर फ़िक्र हर ख़याल को
बेहतर बना दिया
मुझको मुहब्बतों ने
सुख़नवर बना दिया
रुख़सत किया था मैंने उसे ख़ुशदिली
के साथ
आँखों को उसने मेरी समंदर
बना दिया
सादा पड़ा हुआ था मेरे
दिल का कैनवास
इक चेहरा था निगाह में
उसपर बना दिया
सूरज का हाथ थाम के जब
शाम आ गई
बच्चे ने गीली रेत पर इक
घर बना दिया
शीशे के जिस्म वालों से
ये पूछिए कभी
दिल आईना था क्यूँ उसे
पत्थर बना दिया
कोई किसी के इश्क़ में बेदाम बिक गया
तक़दीर ने किसी को सिकंदर
बना दिया
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