चित्र : (बाएं से दाएं)- प्रो.सत्यदेव त्रिपाठी, शायर नंदलाल पाठक, फिल्म लेखक कमलेश पाण्डेय, शायर देवमणि पांडेय, रंगकर्मी प्रीता माथुर और डॉ. अनंत श्रीमाली (मुम्बई 11मई 2014)
मुम्बई में संस्कृति संगम का लोकार्पण
शायर देवमणि पांडेय के संपादन में प्रकाशित मुम्बई महानगर की सांस्कृतिक निर्देशिका 'संस्कृति संगम' के 5वें अंक का लोकार्पण 11 मई 2014 को ‘रंग दे बसंती’ फेम फिल्म लेखक कमलेश पाण्डेय ने किया। 'बतरस' एवं केंद्रीय मात्स्यिकी शिक्षा संस्थान द्वारा फिशरीज़ यूनिवर्सिटी सभागार में आयोजित इस समारोह में रंगकर्मी प्रीता माथुर, प्रो.सत्यदेव त्रिपाठी और वरिष्ठ शायर प्रो. नंदलाल पाठक ने शिरकत की।
संस्कृति संगम में साहित्य, पत्रकारिता, संगीत, रंगमंच, आदि क्षेत्रों में सक्रिय प्रमुख हस्तियों के सम्पर्क सूत्र उपलब्ध हैं। लोकार्पण के पश्चात व्यंग्यकार डॉ. अनंत श्रीमाली के संचालन में कवि सम्मेलन हुआ जिसमें विनोद दुबे, प्रमोद कुश, अर्चना जौहरी, प्रज्ञा विकास, शायर ओबेद आजम आजमी, नवीन चतुर्वेदी, डॉ. राजेश्वर उनियाल, हास्य कवि आसकरण अटल एवं सुभाष काबरा आदि ने रचना पाठ किया।
विश्व मातृ दिवस के उपलक्ष्य में शुरूआत अधिवक्ता पुनीत चतुर्वेदी की 'मॉं' रचना से हुई। समारोह में मुंबई महानगर के वरिष्ठ साहित्यकार-कार्टूनिस्ट आबिद सुरती, लोक गायिका श्रीमती इंदु पांडेय, कवयित्री सुषमासेन गुप्ता, चित्रकार जैन कमल, शायर हस्तीमल हस्ती, 'दाल रोटी' के संपादक अक्षय जैन, गीतकार पुनीत विनायक एवं हरिश्चंद्र, हास्य कवि रोहित शर्मा, गिरीश सेटिया के अलावा नार्वे से पधारी चित्रकार कवयित्री अभिलाषा वाल विशेष रूप से उपस्थित थीं।
मुम्बई की सांस्कृतिक निर्देशिका संस्कृति संगम में हिन्दी रचनाकारों, पत्रकारों, रंगकर्मियों, फ़िल्म लेखकों, गायक कलाकारों, गीतकारों, शायरों, दैनिक समाचारपत्र और साहित्यिक पत्रिकाओं के साथ ही अखिल भारतीय प्रमुख साहित्यकारों, मंच पर सक्रिय अखिल भारतीय कवियों एवं विदेशों में बसे प्रमुख हिन्दी रचनाकारों के नाम, पते, दूरभाष नं. एवं ईमेल शामिल हैं। संस्कृति संगम ने अपने पाँच संस्करणों के ज़रिए साहित्य, संगीत, सिनेमा, पत्रकारिता, रंगमंच आदि क्षेत्रों में सक्रिय रचनाकर्मियों को एकजुट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
महक कलियों की फूलों की हँसी अच्छी नहीं लगती
मुहब्बत के बिना ये ज़िंदगी अच्छी नहीं लगती
कभी तो अब्र बनकर झूमकर निकलो कहीं बरसों
कि हर मौसम में ये संजीदगी अच्छी नहीं लगती
कुछ ख़्वाब सजाने से, कुछ ज़ख़्म छुपाने से
रिश्ता तो मुहब्बत का निभता है निभाने से
रस्मों को बदलने की ज़िद मँहगी पड़ी लेकिन
जीने का मज़ा आया टकराके ज़माने से
....देवमणि पांडेय : 98210-82126