वक़्त के साथ-साथ ग़ज़ल का चेहरा बदला है। सुभाष पाठक ज़िया की ग़ज़लों में भी ये बदलते हुए अक्स नज़र आते हैं। उनके पास कथ्य की विविधता है और उसे ख़ूबसूरती से पेश करने का हुनर भी है। 'दिल धड़कता है' ग़ज़ल संग्रह के बाद शिवपुरी (म. प्र.) के युवा ग़ज़लकार ज़िया का नया ग़ज़ल संग्रह प्रकाशित हुआ है- 'तुम्हीं से ज़िया है'। उनकी ये ग़ज़लें नई संभावनाओं का संकेत देती हैं। वे नई शब्द संपदा और नए भाव बोध के साथ ग़ज़ल का गुलदस्ता सजाते हैं। अभिव्यक्ति का नया तेवर उन्हें एक अलग पहचान देता है।
इस संग्रह में शामिल 106 ग़ज़लों में एहसास की शिद्दत है और अपने वक़्त की आहट है। सीधी सरल ज़बान में अपने कथ्य को बड़ी सादगी से वे अभिव्यक्ति का लिबास पहना देते हैं। हमारे आस पास के मंज़र को ज़िया बड़े सलीक़े से ग़ज़ल के पैकर में ढाल देते हैं। एक जानी पहचानी बात को जब वे अपने नज़रिए से पेश करते हैं तो उसमें नयापन और ताज़गी शामिल हो जाती है-
सूरज जब दिन की बातों से ऊब गया
परवत से उतरा दरिया में डूब गया
मख़मल की चादर कांटों सी लगती है
जाने वाला 'लॉन' से लेकर दूब गया
ग़ज़ल एक ऐसी चित्रकारी है जिसके कैनवास पर नए रदीफ़ और नए क़ाफ़िए के इस्तेमाल से नए रंग उभारे जा सकते हैं। सुभाष पाठक ज़िया में यह हुनर मौजूद है। उन्होंने अपने रचनात्मक कौशल से अपनी ग़ज़लों में यह कमाल दिखाया है। एक मंज़र देखिए-
शजर उदास न हो गर उतर गए पत्ते
हवा उदास थी ख़ुश उसको कर गए पत्ते
हरे रहे, हुए पीले, फिर एक दिन सूखे
सफ़र हयात का तय ऐसे कर गए पत्ते
ज़िया जब ग़ज़ल में रिवायती लफ़्ज़ों का इस्तेमाल करते हैं तो उनमें भी नई मिठास और नई ख़ुशबू घोल देते हैं। उनकी ग़ज़लों में इश्क़ का आगाज़ है, ख़ामुशी की आवाज़ है और दिल धड़कने का अंदाज़ भी है। ग़ज़ल की शाह राह पर मुसाफ़िरों की बहुत भीड़ है मगर जिया की ग़ज़लों का रोशन चेहरा दूर से नज़र आता है। इन ग़ज़लों में फ़िक और एहसास के वे सभी रंग शामिल हैं जो ज़िंदगी की तस्वीर को ख़ुशनुमा बनाते हैं। इस ख़ूबसूरत ग़ज़ल संग्रह के लिए मैं ज़िया को बधाई देता हूं। मुझे उम्मीद है कि उनकी ग़ज़लों की ख़ुशबू दूर दूर तक पहुंचेगी। अमिता प्रकाशन मुजफ्फरपुर से प्रकाशित इस ग़ज़ल संग्रह का मूल्य ₹300 है।
आपका-
देवमणि पांडेय : 98210 82126
devmanipandey@gmail.com
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