देवमणि पांडेय ग़ज़ल
यूँ
बज़ाहिर देखिए तो फ़ासला कोई नहीं
पर
किसी के दिल के अंदर झाँकता कोई नहीं
मुस्कराके
तुम तो रुख़सत हो गए हमसे मगर
दिल
पे क्या गुज़री हमारे जानता कोई नहीं
सोचता
हूँ क्यूँ सभी को अजनबी लगता हूँ मैं
क्यूँ
मु्झे मेरे सिवा पहचानता कोई नहीं
चंद
वादों में सिमट कर रह गई है आशिक़ी
टूटकर
अब क्यूँ किसी को चाहता कोई नहीं
एक
ही कमरे में दोनों रह रहे हैं साथ-साथ
फिरभी
उनके दिल जुदा हैं राब्ता कोई नहीं
मुस्कराकर
उसने पूछा हम-सा देखा है
कोई
हमने
उससे कह दिया बेसाख़्ता कोई नहीं
मुम्बई की जहाँगीर आर्ट गैलरी में बिजूका सीरीज़ की पेंटिंग प्रदर्शिनी के उदघाटन समारोह में लेखक-अभिनेता अतुल तिवारी, कवि देवमणि पांडेय, चित्रकार अवधेश मिश्रा, फ़िल्मकार श्याम बेनेगल और एक महिला चित्रकार। 25.05.2011