शायर राहत इंदौरी के साथ शायर देवमणि पांडेय |
रास्ते के पत्थरों से ख़ैरियत मालूम कर
उजाला बांटने वालों पे क्या गुज़रती है
किसी चराग़ की मानिंद जलके देखूंगा
डॉ राहत इंदौरी पिछले पचास सालों से अपनी शायरी के
ज़रिए ज़िंदगी की तारीकियों में रोशनी की लकीर खींचने का काम कर रहे थे। उन्होंने
ग़ज़ल प्रेमियों को एहसास में भिगोया, हंसाया और उस मुक़ाम तक पहुंचाया जहां से लुत्फ़
और सुकून का दरवाज़ा खुलता है। डॉ राहत ने ग़ज़ल के हुस्न को बरकरार रखते हुए
अदायगी के पुरअसर अंदाज़ से ऐसा करिश्मा किया कि देश विदेश में उनके चाहने
वालों की तादाद बढ़ती चली गई । जो लोग बाज़ौक हैं, शायरी में दिलचस्पी रखते हैं
उनको राहत के दो चार शेर ज़रूर याद होंगे। राहत इंदौरी की शायरी के गुलशन में एक
तरफ़ मुहब्बत के फूल खिलते हैं तो दूसरी तरफ़ वो सच्चाइयां मौजूद हैं जिनसे ज़िंदगी
रोज़ रूबरू होती है।
मुंतज़िर हूं कि सितारों की ज़रा आंख लगे
चांद को छत पे बुला लूंगा इशारा करके
ज़िंदगी को ज़ख़्म की लज़्ज़त से मत महरूम कर
रास्ते के पत्थरों से ख़ैरियत मालूम कर
डॉ राहत इंदौरी और मुशायरे
मुशायरे की अपनी ज़रूरतें होती हैं। मुशायरे में
कामयाबी की शर्त है सामयीन यानी श्रोताओं से दाद वसूल करना और तालियां बजवाना। यह
दोनों कारनामे डॉ राहत इंदौरी ने बख़ूबी अंजाम दिए। वे अक्सर कहते थे- मुझे पता है
ग़ज़ल क्या होती है और मैं यह भी जानता हूं कि मुशायरा क्या है। डॉ राहत के पास
मुशायरों में ग़ज़ल पेश करने का परफार्मिंग आर्ट था। इसके लिए वे बेहद मशहूर हुए।
मगर उनकी कामयाबी में कंटेंट की अहमियत और इज़हार ए बयां का सलीक़ा भी शामिल है।
ज़िंदगी, समाज और सियासत के मसाइल पर उनकी अच्छी पकड़ थी। कई बार उनके शेर बहस और
विवाद का मुद्दा भी बने। दिलों को बांटने वाली सियासत पर उनके कुछ शेर ऐसे हैं
जिनका मतलब लोग अपने अपने तरीक़े से निकालते हैं। किसी को ये शेर अच्छे लगते
हैं और कोई इनसे ख़फ़ा है-
मुहब्बतों का सबक़ दे रहे हैं दुनिया को
जो ईद अपने सगे भाई से नहीं मिलते
सभी का ख़ून शामिल है यहां की मिट्टी में
किसी के बाप का हिंदोस्तान थोड़ी है
डॉ राहत ने अपने इज़हार के लिए जिस ज़बान को अपनाया
वो गली, मुहल्लों और चौराहों पर बोली जाने वाली ज़बान है। इस हिंदुस्तानी ज़बान को
आम आदमी भी समझता है और पढ़े लिखे लोग भी पसंद करते हैं। आम आदमी की तरह उन्होंने
भी सपने देखे। डॉ राहत की शायरी में सपनों की ताबीर कम है और ख़्वाबों के टूटने की
गूंज ज़्यादा हैं। फिर भी वे इतने सीधे-साधे लहजे में बात करते हैं कि उनके कई शेर
एक बार सुनते ही श्रोताओं को याद हो जाते हैं।
अफ़वाह थी कि मेरी तबीयत ख़राब है
लोगों ने पूछ पूछ कर बीमार कर दिया
लोग हर मोड़ पर रुक रुक के संभलते क्यों हैं
इतना डरते हैं तो फिर घर से निकलते क्यों हैं
शाखों से टूट जाएं वो पत्ते नहीं हैं हम
आंधी से कोई कह दे कि औक़ात में रहे
ज़िंदगी क्या है ख़ुद ही समझ जाओगे
बारिशों में पतंगें उड़ाया करो
पढ़े लिखे शायर डॉ राहत इंदौरी
डॉ राहत इंदौरी पढ़े लिखे शायर थे। उर्दू में एम ए
और पीएचडी थे। इंदौर विश्वविद्यालय में उन्होंने 16 साल उर्दू साहित्य पढ़ाया। दस
साल तक अदबी पत्रिका 'शाख़ें' का संपादन किया। हिंदुस्तान में मुशायरों के इतिहास
पर पीएचडी हासिल की। डॉ राहत को यह पता था कि मुशायरों की शायरी का फ़न अलग है।
इसलिए उन्होंने मुशायरों में मशहूरियत और कामयाबी का जमकर लुत्फ़ उठाया। मगर अदब का
दामन भी नहीं छोड़ा। यही कारण है कि उर्दू में उनकी 6 किताबें प्रकाशित हुईं।
हिंदी में भी उनकी एक किताब मंज़रे आम पर आई- 'चांद पागल है'।
रोज़ तारों को नुमाइश में ख़लल पड़ता है
चांद पागल है अंधेरे में निकल पड़ता है
उसकी याद आई है सांसों ज़रा आहिस्ता चलो
धड़कनों से भी इबादत में ख़लल पड़ता है
राहत साहब के साथ कई बार मुझे भी कविता पाठ का अवसर
मिला। कुछ साल पहले दक्षिण मुंबई के एक बैंक में वे कविता पाठ के लिए आए। बोले-
यार मेरी हालत ख़राब है। डॉक्टर ने नॉनवेज खाने और शराब पीने के लिए मना कर दिया
है। मैं एक साथ चालीस मिनट नहीं पढ़ पाऊंगा। आप मुझे थोड़ा थोड़ा दो बार पढ़वाइए। उस
कार्यक्रम में कवि प्रदीप चौबे भी थे। हम तीनों के कविता पाठ के तीन दौर हो गए। डॉ
राहत ने वहां कुछ ऐसे भी अशआर पेश किए जो आमतौर पर वे मुशायरों में नहीं पढ़ते।
नौजवां बेटों को शहरों के तमाशे ले उड़े
गांव की झोली में कुछ मजबूर माँएँ रह गईं
एक-इक करके हुए रुख़सत मेरे कुनबे के लोग
घर के सन्नाटे से टकराती हवाएं रह गईं
अपना तो मिले कोई
मैंने कुरियर से राहत इंदौरी को अपना ग़ज़ल संग्रह
'अपना तो मिले कोई' भेजा। तीसरे दिन मैंने फ़ोन किया। उन्होंने कहा नहीं मिला। चौथे
पांचवें दिन भी जवाब था- नहीं मिला। मेरे कुरियर वाले ने इंदौर के कुरियर वाले को
फ़ोन किया। उसने बताया कि किताब को एक मैडम ने रिसीव किया है। थोड़ी देर बाद डॉ
राहत का फ़ोन आया। उन्होंने ठहाका लगाया। बोले- यार आपकी किताब को मेरी बेगम ने
रिसीव किया था। उनको किताब की डिजाइन ख़ूबसूरत लगी तो पन्ने पलटने शुरू किए। शायरी
अच्छी लगी तो उन्होंने आपकी किताब को अपने तकिए के नीचे रख लिया। एक हफ़्ते से वही
पढ़ रही हैं।
डॉ राहत इंदौरी इस दौर के मुशायरों के सबसे
लोकप्रिय शायर थे। उनके नाम से मुशायरों में भीड़ जुटती थी। वे पूरी तैयारी के साथ
मुशायरों में जाते थे। उन्होंने कभी आयोजकों को निराश नहीं किया। उनके पास लिखने
का फ़न और हुनर था। मंच पर कलाम पेश करने की जो अदा थी वह किसी और शायर के पास नहीं
है। इसलिए उनकी कमी लोगों को हमेशा महसूस होती रहेगी।
न जाने कौन सी मजबूरियों का क़ैदी हो
वो साथ छोड़ गया है तो बेवफ़ा न कहो
हमारे ऐब हमें उंगलियों पे गिनवाओ
हमारी पीठ के पीछे हमें बुरा न कहो
डॉ राहत इंदौरी की ग़ज़लें संगीत के कई अल्बम में
शामिल हुईं। मुम्बई के गायक जसविंदर सिंह की आवाज़ में उनकी एक ग़ज़ल काफ़ी मशहूर
हुई।
सख़्त राहों में भी आसान सफ़र लगता है
ये मेरी माँ की दुआओं का असर लगता है
एक वीराना जहाँ उम्र गुज़ारी मैंने
तेरी तस्वीर लगा दी है तो घर लगता है
डॉ राहत इंदौरी के गीत कई फ़िल्मों में रिकॉर्ड हुए।
पेश हैं उनके चंद सिने गीत जो काफ़ी पसंद किए गए-
1.कोई जाए तो ले जाए (घातक)
2.नींद चुराई मेरी (इश्क़)
3.देखो देखो जानम हम (इश्क़)
4.देख ले आंखों में आंखें डाल (मुन्ना भाई
एमबीबीएस)
5.तुमसा कोई प्यारा कोई मासूम नहीं है (ख़ुद्दार)
6.ज़िंदगी नाम को हमारी है (आशियां)
7.धुंआ धुआं ... (मिशन कश्मीर)
डॉ राहत इंदौरी का जन्म इंदौर में 1 जनवरी 1950 को
हुआ। उनका इंतक़ाल 70 साल की उम्र में 11 अगस्त 2020 को हुआ। इंग्लैंड और अमेरिका
से लेकर उन्होंने कई देशों की यात्राएं कीं और अपनी शायरी से श्रोताओं का भरपूर
मनोरंजन किया। राहत इंदौरी के गुज़रने के बाद कवियों और शायरों की निष्ठा पर
भी बात शुरू हो गई है। हमारे कुछ दोस्तों का कहना है कि कवियों और शायरों को यह
ध्यान रखना चाहिए कि वे सबके हैं और उनका रचनाकर्म सबके लिए होना चाहिए।
सबसे ज़्यादा ऐतराज़ राहत इंदौरी के एक शेर के इस
मिसरे पर हो रहा है कि "किसी के बाप का हिंदोस्तान थोड़ी है।" यह शेर
काफ़ी पुराना है। मुंबई में जब शिवसेना का ख़ौफ़ था तो हिंदी समाज के लोग यह शेर
सुनकर ख़ूब तालियां बजाते थे। जब मनसे का ख़ौफ़ हुआ तो उन लोगों ने भी ख़ूब
तालियां बजाईं थीं जो आज इस शेर पर ऐतराज़ कर रहे हैं। इससे लगता है कि देश और काल
के अनुसार शेर के मानी बदलते रहते हैं। 'बाप का हिंदुस्तान' या "बाप की
जागीर" एक मुहावरा है। हमें इस मुहावरे का भी ध्यान रखना चाहिए।
पंडित नेहरू के दोस्त शायर जोश मलीहाबादी पाकिस्तान
जाकर पछताए थे। फिर भी नेहरू जी की कृपा से वो हर साल मुंबई के सालाना मुशायरे में
भाग लेने के लिए आते थे और कई कई दिन रुकते थे।
राहत इंदौरी ने पाकिस्तान के एक मुशायरे में एक शेर
पढ़ा था। इससे देश के प्रति उनकी भावना ज़ाहिर होती है।
वो अब पानी को तरसेंगे जो गंगा छोड़ आए हैं
हरे झंडे के चक्कर में तिरंगा छोड़ आए हैं
हक़ीक़त यह है कि मुशायरा और कवि सम्मेलन साहित्य
नहीं होता। वहां तालियां बजवाने के लिए मंचीय कवि और शायर जनता की भावनाओं का
नाज़ायज़ फ़ायदा उठाते हैं। राजनीतिक हस्तियों का मज़ाक उड़ाते हैं। इसके लिए इतिहास
में झांकें तो कई कवियों की पिटाई भी हो चुकी है। हमारे हिंदी कवियों ने भी आदरणीय
अटल जी के घुटने और कुंवारेपन का कम मज़ाक नहीं उड़ाया है।
मेरे ख़याल से एक रचनाकार का नज़रिया स्वस्थ होना
चाहिए। उसे अभिव्यक्ति में संतुलन रखना चाहिए। निदा फ़ाज़ली ने आडवाणी जी की रथ
यात्रा पर नज़्म लिखी थी। अयोध्या विवाद पर कैफ़ी आज़मी ने 'दूसरा बनवास' कविता
लिखी थी। दोनों ने इन रचनाओं का कई बार सार्वजनिक पाठ किया। दोनों को हिंदी जगत ने
भी पसंद किया। यही रचनात्मकता है। हम सब रचनाकारों को मंच पर भी अभिव्यक्ति की
आज़ादी और लेखन की मर्यादा का ध्यान रखना चाहिए। हिंदी काव्य मंचों पर फूहड़
नोकझोंक करने वाली कवित्रियों को और संचालकों को जो लोग लाखों रुपए का भुगतान कर
रहे हैं वे भी समाज के दुश्मन हैं। ऐसे लोग हमारे संस्कारों में ज़हर घोल रहे हैं।
उनसे सावधान रहने की ज़रूरत है।
शायर राहत इंदौरी के बेटे सतलज इंदौरी ने राहत साहब
की आख़िरी ग़ज़ल हमसे साझा की। पेश है वही ग़ज़ल।
नए सफ़र का जो ऐलान भी नहीं होता
तो ज़िंदा रहने का अरमान भी नहीं होता
तमाम फूल वही लोग तोड़ लेते हैं
जिनके कमरों में गुलदान भी नहीं होता
ख़ामोशी ओढ़ के सोई हैं मस्ज़िदें सारी
किसी की मौत का ऐलान भी नहीं होता
वबा ने काश हमें भी बुला लिया होता
तो हम पर मौत का अहसान भी नहीं होता (वबा =
महामारी)
***
आपका-
देवमणि पांडेय
सम्पर्क : बी-103, दिव्य स्तुति,
कन्या पाडा, गोकुलधाम, फ़िल्मसिटी रोड,
गोरेगांव पूर्व, मुम्बई-400063, 98210 82126
devmanipandey.blogspot.Com
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