मुम्बई
के वरिष्ठ रचनाकार सूर्यभानु गुप्त एक प्रयोगधर्मी ग़ज़लकार हैं। मगर उनका हर
प्रयोग काव्य की गरिमा से समृद्ध होता है। वे हमेशा कथ्य, ज़बान और लहजे की
ख़ूबसूरती की एक मिसाल पेश करते हैं। उनकी इस ग़ज़ल में ‘पानी’ सिर्फ़ रदीफ़ ही नहीं
है बल्कि वही हर शेर का केंद्रीय भाव भी है। इस भाव में सार्थकता, विस्तार, विविधता,
गहराई और ऊँचाई है। बरसात के इस सुहाने मौसम में आप डूबकर पानीदार ग़ज़ल पढ़िए और
अपनी राय हमें भेजिए। पिछली बार इसमें 23 शे'र थे। बारिश की तबाही ने इसे अब 42
शे'र की ग़ज़ल बना दिया है। -
देवमणि पांडेय
सूर्यभानु गुप्त की ग़ज़ल
आँखों में पड़े छाले, छालों से बहा पानी
इस दौर के सहरा में, ढूँढ़े न मिला पानी।1।
दुनिया ने कसौटी पर, ता उम्र कसा पानी,
बनवास से लौटा तो शोलों पे
चला पानी।2।
शोलों से गुज़र कर भी सूली
पे टँगा पानी
बनवास से आकर फिर बनवास
गया पानी।3।
गुज़रे हुए पुरखों को
जिसने भी दिया पानी
उस शख़्स के हथों का मश्कूर1
हुआ पानी।4।
पर्वत के ज़ुबां फूटी, इक शोर उठा, पानी !
मन्ज़र पे बना मन्ज़र, पानी पे गिरा पानी।5।
आकाश फटा ऐसा धरती ने भरा
पानी
बरखा ने हदें तोड़ीं, पानी
पे चढ़ा पानी।6।
सागर से बग़ावत पर जब ज़िद
पे अड़ा पानी
उस वक़्त सुनामी के पैकर2
में ढला पानी।7।
लोगों ने कभी ऐसा, देखा न सुना पानी,
पानी में बही बस्ती, बस्ती में बहा पानी।8।
सागर की जगह घेरी पत्थर के
मकानों ने
बारिश में नहीं अपने आपे
में रहा पानी।9।
सैलाब ने हर घर की सूरत ही
बदल डाली,
रुकने को किसी घर में, पल भर न रुका पानी।10।
दरिया से जुदा होकर बाज़ार
में आ पहुँचा
बादल न जो बन पाया बोतल
में बिका पानी ।11।
मन्दिर हो कि मस्जिद हो, गिरिजा हो कि गुरुद्वारा
आजाद़ रहे जब तक, लगता है भला पानी।12।
बन्दे से ख़ुदा बनते, देखा है उन्हें हमने
जो लोग कराते हैं, पानी से जुदा पानी।13।
लेने लगी फूलों से अब काम
बमों का भी
इस दर्जा सियासत की आँखों
का मरा पानी।14।
तहज़ीब की आँखों से
दिन-रात लहू छलका
पत्थर की हवेली में यूँ
लुटता रहा पानी।15।
देखा है जिन आँखों ने जलते
हुए जंगल को,
रहता है उन आँखों में, हर वक्त़ हरा पानी।16।
ऐ दश्ते-जुनूं3 तेरे सूखे
हुए काँटों पर
हमने तो लहू छिड़का,
दुनिया ने कहा पानी।17।
बेआब4 न थे इतने हम
दौरे-ग़ुलामी में,
बतलाए कोई जोषी किस देश
गया पानी।18।
संसार में पानी से महरूम5
रहे प्यासे
कमज़र्फ़ों6 के क़ब्ज़े में
हर युग में रहा पानी।19।
हर सिम्त7 मुक़ाबिल8 थीं बस
धूप की तलवारें,
पर आख़िरी क़तरे तक सहरा
में लड़ा पानी।20।
ख़ामोशी से हर युग में सूली
पे चढ़े हँसकर
अल्लाह के बंदों का देता
है पता पानी।21।
देखा न कोई प्यासा फिर
इब्ने अली9 जैसा
और प्यास भी कुछ कि ऐसी क़ुर्बान
गया पानी।22।
जब प्यास अँधेरों के घर
बैठ गई जाकर
जलते हैं दीये जैसे सहरा
में जला पानी।23।
आ जाए है पानी पे चलने का
हुनर जिसको
मूसा10 की तरह उसको देता
है जगा पानी।24।
दुनिया में नहीं मुमकिन
पानी के बिना जीना
दुनिया के लिए जैसे हो माँ
की दुआ पानी।25।
पानी न मिला जिस दिन रोएगी
लहू दुनिया
हर सिम्त से उट्ठेगी बस एक
सदा पानी।26।
अब जंग अगर होगी, पानी के
लिए होगी
हर शख़्स से माँगेगा अब
ख़ूनबहा11 पानी।27।
उस पार हर इक युग में महीवाल
का डेरा था,
कच्चा था घड़ा जिसका काटे
न कटा पानी।28।
हर लफ़्ज़ का मानी से रिश्ता
है बहुत गहरा,
हमने तो लिखा बादल और उसने
पढ़ा पानी।29।
दस्तक दी दरे-दिल12 पर
बरसात के मौसम ने
दो शख़्स मिले ऐसे जैसे कि
हवा-पानी।30।
अँगनाई से तन-मन तक कुछ भी
न बचा कोरा
इस बार के सावन में य़ूँ जम
के गिरा पानी।31।
हम जब भी मिले उससे, हर बार हुए ताज़ा
बहते हुए दरिया में हर पल
है नया पानी।32।
वीरान हम इतने थे, जंगल न कोई होगा
इक शाम पहनने को यादों ने
बुना पानी।33।
घर छोड़के निकलें तो संसार
के काम आएँ
कब धूप को पहने बिन बनता
है घटा पानी।34।
इस दुनिया में रहकर भी
दुनिया में नहीं रहना
जिस दिन ये हुनर आया,
तारीख़13 बना पानी।35।
लोगों को महाभारत देता है
यही इब्रत14
जो हक़15 पे चला उसका
दुनिया में रहा पानी।36।
क़द्रों16 के लिए जीना,
क़द्रों के लिए मरना
रखता है वक़ार17 अपना सहरा
में सदा पानी।37।
इक मोम के चोले में धागे
का सफ़र दुनिया,
अपने ही गले लग कर रोने की
सज़ा पानी।38।
जन्नत थी मगर हमको झुक कर
न उठानी थी,
काँधों पे रहा चेहरा, चेहरे पे रहा पानी ।39।
इक हूक-सी उट्ठे है धरती
के कलेजे से
बेटे-सा हुआ जब भी धरती से
जुदा पानी।40।
जिस दिन मैं गुज़र जाऊँ
दरिया में बहा देना
मिट्टी की पसंदीदा पोशाक
सदा पानी।41।
हर एक सिकन्दर का अन्जाम
यही देखा
मिट्टी में मिली मिट्टी, पानी में मिला पानी।42।
1-आभारी 2-रूप या आकार 3-उन्माद का वन 4-निस्तेज 5-वंचित 6-अधम या
कुपात्र 7-दिशा 8-सामने 9-इस्लाम धर्म के अंतिम पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद के नाती व
ख़लीफ़ा अली के सुपुत्र इमाम हुसैन साहब जो
ईराक के कर्बला नामक स्थान पर निर्दयी शासक यज़ीद की फ़ौजों के हाथों दस दिनों के
भीषण युद्ध के बाद प्यासे लड़ते हुए शहीद हुए। 10-मिस्रवासी पैग़म्बर हज़रत मोज़ेस
11-प्राणों का मूल्य 12-हृदय द्वार 13-इतिहास 14-सीख 15-सत्य 16-जीवन-मूल्य
17-मान-प्रतिष्ठा
परिचय : कवि सूर्यभानु गुप्त
जन्म
: 22 सितम्बर, 1940, नाथूखेड़ा (बिंदकी), जिला : फ़तेहपुर ( उ.प्र.)। बचपन से ही मुंबई में । 12
वर्ष की उम्र से कविता लेखन।
प्रकाशन : पिछले 50 वर्षो के बीच विभिन्न
काव्य-विधाओं में 600 से अधिक रचनाओं के अतिरिक्त 200 बालोपयोगी कविताएँ प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित। समवेत
काव्य-संग्रहों में संकलित एवं गुजराती, पंजाबी, अंग्रेजी में अनूदित ।
फ़िल्म गीत-लेखन : ‘गोधूलि’ (निर्देशक गिरीश कर्नाड ) एवं ‘आक्रोश’ तथा ‘संशोधन’ (निर्देशक गोविन्द निहलानी ) जैसी प्रयोगधर्मा फ़िल्मों के अतिरिक्त कुछ नाटकों तथा आधा
दर्जन दूरदर्शन- धारवाहिकों में गीत शामिल।
प्रथम काव्य-संकलन
: एक हाथ की ताली (1997), वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली – 110 002
पुरस्कार : 1.भारतीय बाल-कल्याण संस्थान, कानपुर, 2.परिवार पुरस्कार (1995), मुम्बई
पेशा : 1961 से 1993 तक विभिन्न नौकरियाँ । सम्प्रति स्वतंत्र लेखन ।
सम्पर्क : 2, मनकू
मेंशन, सदानन्द मोहन
जाधव मार्ग, दादर (
पूर्व ), मुम्बई- 40001,
दूरभाष : 090227-42711 / 022-2413-7570