सुलतानपुर के लोक कवि पं.रामनरेश त्रिपाठी
अवध के गौरव पं.रामनरेश त्रिपाठी का जन्म मेरे ज़िले
सुलतानपुर उ.प्र. के कोइरीपुर गांव में 4 मार्च 1890 को हुआ था। स्वर्गवास 16
जनवरी 1962 को हुआ। पं.रामनरेश त्रिपाठी के निधन पर देश के प्रधानमंत्री पं.
जवाहरलाल नेहरु ने कहा- वे एक बड़े कवि थे और हमारी स्वराज्य की लड़ाई में एक आला
सिपाही थे। सुलतानपुर शहर में केश कुमारी कन्या महाविद्यालय के सामने उनकी याद में
बने सभागार का नाम है पं.रामनरेश त्रिपाठी सभागार। पं.रामनरेश त्रिपाठी अवधी भाषा
में लोक जीवन की अदभुत झाँकी प्रस्तुत करने वाले लोक कवि थे। अवधी के सपूत
पं.रामनरेश त्रिपाठी का बिरला परिवार में बहुत सम्मान था। उद्योगापति बसंत कुमार
बिरला ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि एक दिन वे हमारे घर पधारे तो घनश्याम दास
बिरला ने उनसे निवेदन किया कि त्रिपाठी जी आप कोई ऐसी प्रार्थना लिख दीजिए जिसे
मैं और मेरे बच्चे रोज़ सुबह गाएं । पं.रामनरेश त्रिपाठी ने तत्काल प्रार्थना लिख
दी-
हे प्रभो आनंददाता ज्ञान हमको दीजिए
शीघ्र सारे दुर्गुणों को दूर हमसे कीजिए
यह प्रार्थना इतनी लोकप्रिय हुई कि सारा हिंदुस्तान गाने
लगा । लोक कवि पं.रामनरेश त्रिपाठी ने 1925 और 1930 के बीच अवध के गाँव-गाँव में
घूम करके 15 हज़ार से भी अधिक लोकगीतों का संग्रह किया था । इसी के आधार पर
उन्होंने ‘कविता
कौमुदी’
किताब लिखी । सन् 1928 के अंत में प्रकाशित इस पुस्तक की प्रथम प्रति महात्मा
गाँधी को भेंट की गई थी और उन्होंने मुक्त कंठ से इस प्रयास की सराहना की थी।
कविता कौमुदी पढ़कर विश्वकवि रवींद्रनाथ ठाकुर ने उन्हें पत्र में लिखा था- आपनार
संकलित कविता कौमुदी ग्रंथखानि पाठ करिया परितृप्ति लाभ करियाछि । हिंद कवितार ए
रूप सुंदर एवं धारावाहिक संग्रह आमि आर कोथाओ देखा नाईं। अपनी एई कवितागुलि प्रकाश
करिया भारतीय साहित्यानुरागी व्यक्तिमात्र केइ चिरकृतज्ञता पाशे आबद्ध करियाछेन।
महात्मा गाँधी और पं जवाहर लाल नेहरू का सानिध्य
पं.रामनरेश त्रिपाठी ने अपने
72 वर्ष के जीवन काल में कविता, कहानी, उपन्यास, जीवनी, संस्मरण और बाल साहित्य
की सौ किताबें लिखीं। ग्राम गीतों का संकलन करने वाले वे हिंदी के प्रथम कवि थे जिसे
'कविता कौमुदी' के नाम से जाना जाता है। इसके लिए
उन्होंने इक्के और तांगों से लेकर पैदल लम्बी लम्बी यात्राएं कीं। गांव-गांव जाकर अनपढ़
महिलाओं के साथ बैठकर लोकगीत, संस्कार गीत, सोहर, कजरी, बिरहा एवं विवाह गीतों को
सुना और लिपिबद्ध किया। उनको महात्मा गाँधी और पं जवाहर लाल नेहरू का स्नेह प्राप्त
था। प्रयाग में कांग्रेस के एक सम्मेलन में महात्मा गाँधी ने कविता कौमुदी का लोकार्पण
किया था। महात्मा गांधी के अनुरोध पर वे हिन्दी साहित्य सम्मेलन के प्रचार मंत्री के
रूप में हिन्दी के प्रचार प्रसार के लिए दक्षिण भारत गए थे। वे देशभक्त और राष्ट्र
सेवक थे। उन्होंने स्वाधीनता संग्राम और किसान आन्दोलनों में भागीदारी की और जेल भी
गए।
कई साल ढूंढने के बाद मुझे कविता
कौमुदी मित्र
अरविंद राही के सौजन्य से प्राप्त हुई। वे यह पुस्तक पं.रामनरेश त्रिपाठी जी के परिवार के किसी सदस्य से माँगकर लाए।
इसे पढ़ते हुए मुझे महसूस हुआ कि अवधी लोककाव्य में एक तरफ उमंग और उल्लास की मधुर
छवियाँ हैं तो दूसरी तरफ़ दुख और अभाव के त्रासद चित्र भी हैं-
मन तोरा अदहन, तन तोरा चाउर, नैना मूँग कै दालि
अपने बलम का जेंवना जेंवतिउ, बिनु लकड़ी बिनु आगि
मँहगी के मारे बिरहा बिसरिगा, भूलि गइ कजरी कबीर
देखि क गोरी क मोहिनी सुरति अब, उठै न करेजवा मँ पीर
कविता कौमुदी में लोककाव्य के विविध रूपों- सोहर, कजरी,
बिरहा, होरी, मेला गीत, विवाह गीत, विदाई गीत आदि शामिल हैं। इसमें अहीर,कहार,
तेली, गड़रिया, धोबी और चमारों के गीतों का भी अदभुत संग्रह है। पं.रामनरेश
त्रिपाठी का जुनून देखिए कि लोकगीतों की तलाश में उन्होंने बंगाल, पंजाब, गुजरात,
महाराष्ट्र, दक्षिण भारत और कश्मीर से लेकर नेपाल तक की यात्राएं की थीं ।
प्रांतीय भाषाओं के गीतों की झलक भी इस पुस्तक की अलग उपलब्धि है।
बड़ निक लागै मेहरी क कोरवा
अवध में ज़मींदार और बड़े किसान अहीर के लड़कों को
चरवाहे का काम देते थे। ये नौजवान चरवाहे अँगोछे में बासी रोटी बाँधकर सुबह
गाय-भैसों के साथ जंगल में चले जाते थे और शाम ढलने पर वापस लौटते थे। अपना समय
काटने के लिए मौज-मस्ती में या प्रिय जनों के विरह (याद) में ये लोग जो गीत गाते
थे उसे ‘बिरहा’ कहा
गया । अब तो बिरहा दुर्लभ हो गया है मगर सन् 1970 के पहले शादी-व्याह के अवसर पर
अहीरों के नाच में बड़े मज़ेदार बिरहे सुनने को मिलते थे –
बड़ निक लागै गाय चरवहिया भुइयाँ जो परती होय
बड़ निक लागै मेहरी क कोरवा जबले लरिकवा न होय
दोहे में भी लोकजीवन की अदभुत छटा दिखाई देती है। सुंदर
स्त्री से हर कोई बात करना चाहता है। मगर वह किसको-किसको ख़ुश करे! उसकी व्यथा
देखिए -
जोबन गयो तो भल भयो, तन से गई बलाय
जने जने का रूठना, मोसे सहा न जाय
गाँवों के हृदय में सुख का प्रकाश है। सुख न होता तो
गाँव के लोग अनंत दुखों का भार कैसे उठा लेते। अपने प्राणधन के साथ दुख में भी सुख
का अनुभव करने वाली एक पति-वल्लभा का हृदयोदगार देखिए-
टूटी खाट घर टपकत टटियो टूटि
पिय कै बाँह सिरहनवा सुख कै लूटि
मुम्बई में 22 जनवरी 2010 को अवधी सम्मेलन हुआ। अवधी
सम्मेलन के संयोजक थे पत्रकार राजेश विक्रांत। अवधी अकादमी के अध्यक्ष व बोली बानी
के संपादक जगदीश पीयूष ने बताया कि अवधी भाषा उ.प्र. के 24, बिहार के 2 तथा नेपाल
के 8 जिलों में लगभग 12 करोड़ लोगों की भाषा है। तुलसीदास, अमीर खुसरो, मलिक
मोहम्मद जायसी, मुल्ला दाउद, कबीर, कुतुबन, मंझन और रहीम सरीखे महाकवियों ने अवधी
में काव्य रचना करके इस लोकभाषा को गौरव प्रदान किया। अवधी सम्मेलन में मुम्बई की
धरती पर सर्वप्रथम रामलीला का आयोजन करने वाले स्व. शोभनाथ मिश्र के सुपुत्र
तथा श्री
महाराष्ट्र रामलीला मंडल के महामंत्री द्वारिकानाथ मिश्र का
सम्मान किया गया।
यह भी ग़ौरतलब है कि हिंदी फ़िल्मों में जो पात्र अवधी
बोलते हैं उन्हें भोजपुरी कहकर प्रचारित किआ जाता है। फ़िल्म गंगा
जमुना के
सम्वाद अवधी भाषा में हैं। मुंबई में उत्तर भारतीयों के तौर पर सिर्फ़ पूर्वी उत्तर
प्रदेश और बिहार के लोगों का ही नाम लिया जाता है, जबकि मुंबई में अवधी जानने और
बोलने वालों की बहुत बड़ी आबादी है। अवधी भाषियों को जोड़ने और अवधी को उसकी खोई
पहचान दिलाने के लिए अवधी सम्मेलन ज़रूरी हैं।
पं.रामनरेश त्रिपाठी की प्रार्थना
हे
प्रभु आनंद-दाता ज्ञान हमको दीजिये
शीघ्र सारे दुर्गुणों को दूर हमसे कीजिए
लीजिये हमको शरण में, हम सदाचारी बनें ब्रह्मचारी धर्म रक्षक वीर व्रत धारी बनें
लीजिये हमको शरण में, हम सदाचारी बनें ब्रह्मचारी धर्म रक्षक वीर व्रत धारी बनें
निंदा किसी की हम किसी से भूल कर भी ना करें ईर्ष्या कभी भी हम किसी से भूल कर भी ना करें
सत्य बोलें, झूठ त्यागें, मेल आपस में करें दिव्य जीवन हो हमारा, यश तेरा गाया करें
जाए हमारी आयु हे प्रभु लोक के उपकार में
हाथ डालें हम कभी न भूल कर अपकार में
कीजिए हम पर कृपा ऐसी हे परमात्मा
मोह मद मत्सर रहित होवे हमारी आत्मा
प्रेम से हम गुरु जनों की नित्य ही सेवा करें
प्रेम से हम संस्कृति की नित्य ही सेवा करें
योग विद्या ब्रह्म विद्या हो अधिक प्यारी हमें
ब्रह्म निष्ठा प्राप्त कर के सर्व हितकारी बनें
हे प्रभु आनंद-दाता ज्ञान हमको दीजिये
शीघ्र सारे दुर्गुणों को दूर हमसे कीजिए
अवधी सम्मेलन में संयोजक राजेश विक्रांत, कवि देवमणि पांडेय, प्रमुख अतिथि जगदीश पीयूष, अर्चना मिश्र, एड. विजय सिंह, अध्यक्ष डॉ. रामजी तिवारी, संपादक प्रेम शुक्ल, पं. किरण मिश्र, कवि ओमप्रकाश तिवारी, पत्रकार अनुराग त्रिपाठी (मुम्बई 2010)
आपका-
देवमणिपांडेय
सम्पर्क : बी-103, दिव्य स्तुति,
कन्या पाडा, गोकुलधाम, फिल्मसिटी रोड,
गोरेगांव पूर्व, मुम्बई-400063,
98210-82126
3 टिप्पणियां:
tripathi ji ke bare me jankari evam kuch achchi lok rachna prakashit karne ke liye dhanyvad.
R.K.Paliwal
PT.RAM NARESH TRIPATHI N KEWAL
HINDI BALKI KAEE BHASHAAON KE
GYAATAA THE.SARSHRESHTH KAVI TO
THE HEE.HAR BHASHA SE PREM THAA
UNHEN.HINDI KAVIYON KO SAAVDHAAN
KARTE HUE UNHONNE SHAAYAD KAVYA
KAUMIDEE MEIN LIKHAA THAA KI KYAA
BAAT HAI KI JO KHOOBEE URDU SHAYREE
MEIN HAI VAH HINDI KAVITA MEIN
NAHIN HAI.JO KAAM BHASHA KO MAANJNE
KAA URDU SHAAYRON NE KIYA HAI VAH
KAAM HINDI KAVI NAHIN KAR RAHE HAIN.
AESE NISHPAKSH KAVI KE BAARE MEIN
JAANKAAREE PRAPT KARKE SANTOSH
HUAA.AAPKE KHOJBHARE LEKH KE LIYE
AAPKO BAHUT -BAHUT BADHAAEE.
राम नरेश त्रिपाठी जी की सुंदर रचनाओं के लिये तथा समारोह की जानकारी के लिये आभार/ अवध भाषा के उत्थान के लिये की जा रही कोशिशों के लिये बधाई!
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