सोमवार, 25 जनवरी 2010

जनतंत्र में आम आदमी : देवमणि पाण्डेय के गीत

जनतंत्र में आम आदमी : तीन गीत

गणतंत्र दिवस के बारे में सोचते हुए कवि सुदामा पाण्डेय ‘धूमिल’ की पंक्तियाँ याद आती हैं। उन्होंने लिखा था-क्या आज़ादी तीन थके हुए रंगों का नाम है /जिन्हें एक पहिया ढोता है /  या इसका कोई ख़ास मतलब होता है।दुष्यंत कुमार भी कह गए हैं- कहाँ तो तय था चरागाँ हर एक घर के लिए / कहाँ चराग मयस्सर नहीं शहर के लिए। इसी बात को आगे बढ़ाते हुए किसान शायर रामनाथ सिंह उर्फ़ अदम गोण्डवी ने लिखा- सौ में सत्तर आदमी फिलहाल जब नाशाद है / दिल पे रखकर हाथ कहिए देश क्या आज़ाद है। सवाल यह है कि हम आज़ादी का जश्न कैसे मनाएं ! मैंने जैसा महसूस किया उसे ही तीन गीतों के माध्यम से आप तक पहुँचा रहा हूँ ।

(1)

हर दिन सूरज उम्मीदों का नया सवेरा लाता है
हर आँगन में दीप ख़ुशी का मगर कहाँ जल पाता है

बरसों बीते फिर भी बस्ती अँधकार में डूबी है
कभी-कभी लगता है जैसे यह आज़ादी झूठी है

आँखों का हर ख़्वाब अचानक अश्कों में ढल जाता है
हर आँगन में दीप ख़ुशी का मगर कहाँ जल पाता है

हाथ बँधे है अब नेकी के सच के मुँह पर ताला है
मक्कारों का डंका बजता चारों तरफ़ घोटाला है

खरा दुखी है खोटा लेकिन हर सिक्का चल जाता है
हर आँगन में दीप ख़ुशी का मगर कहाँ जल पाता है

देश की ख़ुशहाली में शामिल आख़िर ख़ून सभी का है
मगर है लाठी हाथ में जिसके हर क़ानून उसी का है

वही करें मंजूर सभी जो ताक़तवर फरमाता है
हर आँगन में दीप ख़ुशी का मगर कहाँ जल पाता है

(2)

रोज़ सुबह उगता है सूरज शाम ढले छुप जाता है
हर इक घर में चूल्हा लेकिन रोज़ कहाँ जल पाता है

दर-दर ठोकर खाए जवानी कोई काम नहीं मिलता
आज भी मेहनत-मज़दूरी का पूरा दाम नहीं मिलता

कौन हवस का मारा है जो हक़ सबका खा जाता है
हर इक घर में चूल्हा लेकिन रोज़ कहाँ जल पाता है

क्या बतलाएं स्वप्न सुहाने जैसे कोई लूट गया
मँहगाई के बोझ से दबकर हर इक इन्सां टूट गया

रोज़ ग़रीबी-बदहाली का साया बढ़ता जाता है
हर इक घर में चूल्हा लेकिन रोज़ कहाँ जल पाता है

किसे पता कब देश में अपने ऐसा भी दिन आएगा
काम मिलेगा जब हाथों को हर चेहरा मुस्काएगा

आज तो ये आलम है बचपन भूखा ही सो जाता है
हर इक घर में चूल्हा लेकिन रोज़ कहाँ जल पाता है

(3)

दुनिया बदली मगर अभी तक बैठे हैं अँधियारों में
जाने कब सूरज आएगा बस्ती के गलियारों में

हर ऊँची दहलीज़ के भीतर छुपा हुआ है धन काला
घूम रहे बेख़ौफ़ सभी वो करते हैं जो घोटाला

कर्णधार समझे हम जिनको शामिल हैं बटमारों में
जाने कब सूरज आएगा बस्ती के गलियारों में

जो सच्चे हैं वो चुनाव में टिकट तलक न पाते हैं
मगर इलेक्शन जीत के झूठे मंत्री तक बन जाते हैं

जिन पर हमको नाज़ था वो भी खड़े हुए लाचारों में
जाने कब सूरज आएगा बस्ती के गलियारों में

जिनके मन काले हैं उनके तन पर है उजली खादी
भ्रष्टाचार में डूब गए जो बोल रहे हैं जय गाँधी

ऐसे ही चेहरे दिखते हैं रोज सुबह अख़बारों में
जाने कब सूरज आएगा बस्ती के गलियारों में

आपका-
देवमणिपांडेय

सम्पर्क : बी-103, दिव्य स्तुति,
कन्या पाडा, गोकुलधाम, फिल्मसिटी रोड, 
गोरेगांव पूर्व, मुम्बई-400063, 98210-82126

रविवार, 24 जनवरी 2010

मुम्बई में परिवार पुरस्कार समारोह और काव्य उत्सव

परिवार पुरस्कार समरोह और काव्य उत्सव

मुम्बई में ‘परिवार’ नाम की संस्था ने पिछले बीस सालों से हिंदी के प्रमुख रचनाकारों को पुरस्कृत करने के साथ-साथ हिंदी काव्य मंच की गरिमा को बरकरार रखने का भी सराहनीय काम किया है । मुझे इस बात पर गर्व है कि मैं ख़ुद भी  इस संस्था से जुड़ा हूँ । अब तक परिवार पुरस्कार से बाबा नागार्जुन, कवि प्रदीप, शरद जोशी, गोपालदास नीरज, भारत भूषण, हरीश भदानी, नईम, सोम ठाकुर, माहेश्वर तिवारी, कन्हैयालाल नंदन, सूर्यभानु गुप्त, कैलाश गौतम, कुँअर बेचैन और बुद्धिनाथ मिश्र जैसे कई प्रतिष्ठित रचनाकारों को सम्मानित किया जा चुका है । पूर्व प्रधानमंत्री वी.पी.सिंह, शायर मजरूह सुलतानपुरी, गुलज़ार और जावेद अख़्तर जैसी हस्तियाँ अपने काव्यपाठ से परिवार के मंच को गरिमा प्रदान कर चुकी हैं । परिवार के संस्थापक अध्यक्ष रामस्वरूप गाड़िया और महामंत्री सुरेशचन्द शर्मा हैं।


परिवार काव्य उत्सव में हस्तीमल हस्ती, आसकरण अटल, निदा फ़ाज़ली, शचीन्द्र त्रिपाठी, विश्वनाथ सचदेव, नंदकिशोर नौटियाल, सारंगीवादक पद्मश्री पं राम नारायण, प्रो.नंदलाल पाठ, रामस्वरूप गाड़िया और कवयित्री महक भारती


जनवरी 2010 में मुम्बई के बिरला मातुश्री सभागार में आयोजित एक भव्य समारोह में वरिष्ठ साहित्यकार प्रो.नंदलाल पाठक को परिवार पुरस्कार से सम्मानित किया गया। विश्वविख्यात सारंगीवादक पद्मश्री पं. रामनारायण ने परिवार पुरस्कार उन्हें प्रदान किया। परिवार के आयोजन में श्रोता भी बहुत अच्छे-अच्छे आते हैं । इस बार भी मुम्बई के दो प्रमुख घरानों का नेतृत्व करने करने वाली दो प्रमुख हस्तियाँ श्रीमती राजश्री बिरला और श्रीमती किरण बजाज श्रोताओं में मौजूद थीं। काव्य उत्सव में महक भारती (पटियाला) और रमेश शर्मा (चित्तौड़गढ़) ने गीतों की छटा बिखेरी । शायर निदा फ़ाज़ली, देवमणि पाण्डेय और हस्तीमल हस्ती ने ग़ज़लों, दोहों और नज़्मों से अदभुत समां बांधा । हास्य कवि आसकरण अटल की हास्य कविताओं ने श्रोताओं को लोटपोट कर दिया ।

 
परिवार पुरस्कार समरोह में सुरेशचंद्र शर्मा, शचीन्द्र त्रिपाठी, विश्वनाथ सचदेव, 
पं राम नारायण, प्रो.नंदलाल पाठक और रामस्वरूप गाड़िया 

दूसरे दौर में रमेश शर्मा ने शहर के विरोध और गाँव की प्रशंसा में एक ऐसा गीत सुनाया जिसे सुनकर हाल में सन्नाटा छा गया । सन्नाटे को तोड़ते हुए संचालक देवमणि पाण्डेय ने कहा- राजस्थान के गाँव इतने सुँदर हो सकते हैं मगर हमारे उ.प्र. के गाँव बहुत बदल गए हैं। परिवार के इसी मंच पर कवि कैलाश गौतम ने कहा था- अब उ.प्र. के गाँवों में किराना स्टोर्स में पाउच (पन्नी) में शराब बिकती है । उन्होंने एक दोहा सुनाया था-

पन्नी में दारू बँटी पंच हुए सब टंच 
सबसे ज़्यादा टंच जो वही हुआ सरपंच 

भगवान कृष्ण के वंशज भी कितने बदल गए हैं, इस पर भी कैलाश गौतम ने एक दोहा सुनाया था-

दूध दुहे , बल्टा भरे गए शहर की ओर
शाम हुई दारू पिए लौटे नंदकिशोर 

जब संचालक पाण्डेय जी ने यह दोहा उद्धरित किया तब श्रोताओं ने ज़ोरदार ठहाका लगाया शायद इस लिए कि पहली पंक्ति में नंदकिशोर जी यानी वरिष्ठ पत्रकार नंदकिशोर नौटियाल मौजूद थे। कुल मिलाकर हर साल की तरह परिवार का काव्य उत्सव इस बार भी श्रोताओं के दिलो-दिमाग़ पर अपनी छाप छोड़ गया।

आपका-
देवमणिपांडेय

सम्पर्क : बी-103, दिव्य स्तुति,
कन्या पाडा, गोकुलधाम, फिल्मसिटी रोड, 
गोरेगांव पूर्व, मुम्बई-400063, 98210-82126

शनिवार, 16 जनवरी 2010

शायरी ख़ुदकशी का धंधा है : प्रो.नंदलाल पाठक


हिंदी ग़ज़ल के प्रमुख हस्ताक्षर प्रो.नंदलाल पाठक अपनी ग़ज़लों में अपने समय को बख़ूबी अभिव्यक्त करते हैं –


वे जो सूरज के साथ तपते हैं 
उनको इक शाम तो सुहानी दो
खेत की ओर ले चलो दिल्ली 

गाँव वालों को राजधानी दो

उनका सेंस ऑफ ह्यूमर भी कमाल का है-

मुझको मंज़ूर है बुढ़ापा भी 
लेखनी को मेरी जवानी दो

बनारसी कवि नंदलाल पाठक की रचनाओं में इतनी ताज़गी इसलिए है क्योंकि उन्होंने आज तक बचपन को ख़ुद से जुदा नहीं होने दिया । वे लिखते हैं –

कल तितलियाँ दिखीं तो मेरे हाथ बढ़ गए
मुझको गुमान था कि मेरा बचपन गुज़र गया

अपने दौर के प्रमुख शायरों की तरह पाठकजी भी ने हिंदी ग़ज़ल को एक नई परिभाषा दी है –

ज़िंदगी कर दी निछावर तब कहीं पाई ग़ज़ल
कुछ मिलन की देन है तो कुछ है तनहाई

उन्होंने अपनी हिंदी ग़ज़लों को हिंदुस्तानी बिम्बों, प्रतीकों और उपमानों से समृद्ध किया है । मसलन –


ज़हर पीता हुआ हर आदमी शंकर नहीं होता
जब तक आदमी इंसान हो शायर नहीं होता
ज़रूरत आपको कुछ भी नहीं सजने सँवरने की
किसी हिरनी की आँखों में कभी काजल नहीं होता

पाठकजी की ग़ज़लों में एक फ़कीराना अदा है। उन्होंने दुष्यंत कुमार की ग़ज़ल परम्परा को आगे बढ़ाने की शानदार कोशिश की है-

उतारें क़ाग़जों पर पुल तो इतना देख लेना था
जहाँ पुल बन रहा है उस जगह कोई नदी तो हो

एक अच्छा कवि हमेशा अपने समय से बहुत आगे होता है। पाठकजी ने भी ऐसे शेर कहे हैं जो इस सदी के आने वाले सालों का प्रतिनिधित्व करते हैं-


क़दम क़दम पर है फूलमाला, जगह जगह है प्रचार पहले मरेगा फ़ुर्सत से मरने वाला, बना दिया है मज़ार पहले

पाठकजी के अनुसार ग़ज़ल लेखन एक ज़िम्मेदारी और मुश्किलों भरा काम है । उनकी बात का समर्थन उनका एक मुक्तक भी करता है-

शायरी ख़ुदकशी का धंधा है 
लाश अपनी है अपना कंधा है
आईना बेचता फिरा शायर 

उस शहर में जो शहर अंधा है

कभी कभी पाठकजी ऐसे शब्दों का भी ख़ूबसूरत इस्ते माल करते हैं जो रोज़मर्रा के व्यवहार से ग़ायब हो गए हैं, मसलन ‘व्योम’ –

वे अपने क़द की ऊँचाई से अनजाने रहे होंगे
जो धरती की पताका व्योम में ताने रहे होंगे
अकेले किसके बस में था कि गोबर्धन उठा लेता
कन्हैया के सहायक और दीवाने रहे होंगे


पाठकजी का कहना है कि अगर उर्दू वाले ‘गगन’ जैसे संस्कृत शब्द का धड़ल्ले से इस्तेमाल कर सकते हैं तो हमें ‘व्योम’ जैसे म्यूज़िकल शब्दों के इस्तेमाल में कंजूसी नहीं करनी चाहिए । अंत में पाठक जी का एक मुक्तक आप सबकी नज़र कर रहा हूं-

ज़िंदगी मौत को हरा देगी 
यह मेरी आस मिट नहीं सकती
रोशनी घट चली है आँखों की 

रूप की प्यास मिट नहीं

काव्य संकलन ‘फिर हरी होगी धरा’ स्टर्लिंग पब्लिशर्स, ए-59, ओखला इंड., फेज-2, नई दिल्ली-110020 से प्रकाशित हुआ है। क़ीमत है 200/- रूपए।


आपका-
देवमणिपांडेय

सम्पर्क : बी-103, दिव्य स्तुति,
कन्या पाडा, गोकुलधाम, फिल्मसिटी रोड, 
गोरेगांव पूर्व, मुम्बई-400063, 98210-82126

शुक्रवार, 15 जनवरी 2010

उदासी में न डूबे दिल : देवमणि पांडेय की ग़ज़ल




देवमणि पांडेय की ग़ज़ल

उदासी में न डूबे दिल किसी का 
छुपा है अश्क में चेहरा ख़ुशी का
   
तुम्हारा साथ जब छूटा तो जाना 
यहाँ होता नहीं कोई किसी का

न जाने कब छुड़ा ले हाथ अपना 
भरोसा क्या करें इस ज़िंदगी का
  
अभी तक ये भरम टूटा नहीं है 
समंदर साथ देगा तिश्नगी का

भला किस आस पर ज़िंदा रहेगा 
अगर हर ख़्वाब टूटे आदमी का

लबों से मुस्कराहट छिन गई है 
ये है अंजाम अपनी सादगी का 

आपका-
देवमणिपांडेय

सम्पर्क : बी-103, दिव्य स्तुति,
कन्या पाडा, गोकुलधाम, फिल्मसिटी रोड, 
गोरेगांव पूर्व, मुम्बई-400063, 98210-82126

गुरुवार, 14 जनवरी 2010

संगीत के जवाहरात : उस्ताद मो. सईद ख़ाँ भुवेन्द्र त्यागी

'संगीत के जवाहरात' के लोकार्पण समारोह में पत्रकार भुवेन्द्र त्यागी, कवि-संचालक देवमणि पाण्डेय, वरिष्ठ सितारवादक अरविंद पारेख , विश्वविख्यात संतूरवादक पं।शिवकुमार शर्मा और उस्ताद मो. सईद ख़ाँ


संगीत के जवाहरात का लोकार्पण समारोह


हरियाणा के झज्जर घराने के सुप्रसिद्ध सारंगी वादक उस्ताद अब्दुल मजीद ख़ाँ और उनके जोड़ीदार तबला वादक मास्टर सिद्दीक़ को एक गायिका के साथ संगत करने के लिए भोपाल के नवाब के यहां से न्यौता आया। कार्यक्रम शाही हरम में था। आज़ादी से पहले के उस दौर में मर्दों को बेग़मों के सामने जाने की मनाही थी। इस लिए दोनों साजिन्दों की आँख पर पट्टी बांध दी गई। इस हाल में भी उस्ताद मजीद ख़ाँ ने सारंगी पर ऐसा रंग जमाया कि बेग़मों ने भाव विभोर होकर कहा - इनकी पट्टी खोल दो। यह रोचक क़िस्सा जिस किताब में दर्ज है उस किताब का नाम है 'संगीत के जवाहरात'। 

इस किताब के लेखक हैं हालैंड में रहने वाले भारतीय संगीतज्ञ उस्ताद मोहम्मद सईद ख़ाँ। सहलेखक हैं नवभारत टाइम्स, मुंबई के मुख्यउपसंपादक भुवेन्द्र त्यागी। इस पुस्तक में 115 रागों की 238 बंदिशों के बोल, अर्थ और स्क्रीनप्ले यानी सप्रसंग भावार्थ दिए गए गए हैं। पुस्तक के साथ में एक सीडी भी है जिसमें मो.सईद ख़ाँ के ओजस्वी स्वर में साढ़े सात घंटे का गायन है। तीन दशकों से पश्चिमी देशों में हिन्दुस्तानी शास्त्रीय गायन के क्षेत्र में सक्रिय मो. सईद ख़ाँ झज्जर घराने के वारिस होने के साथ ही जयपुर घराने की गायिकी परम्परा के वरिष्ठतम सदस्यों में से एक हैं। उन्होंने संगीत को विज्ञान, कला और मनोरंजन का संगम मानने का सिंद्धांत प्रपादित किया। उनके वालिद उस्ताद अब्दुल मजीद ख़ाँ महान सारंगी वादक बुंदू ख़ाँ के शागिर्द थे। सन् 1921 में वे मुम्बई आए और यहां महान गायिका केसरबाई केरकर के साथ आजीवन संगत करके बहुत नाम कमाया। केसरबाई की गायिकी से वे इतने प्रभावित थे कि 1938 में उनके गुरु अल्लादिया ख़ाँ से गायन सीखा और अपने दोनों बेटों- सईद ख़ाँ और रशीद ख़ाँ को गायन का यह हुनर सिखाया। संगीत के इस विशाल ज्ञान और अपने विशद अनुभवों के निचोड़ को मो. सईद ख़ाँ ने एक ख़ूबसूरत पुस्तक का रूप दिया। इस महत्त्वपूर्ण कार्य में उनकी सहायता लेखक-पत्रकार भुवेन्द्र त्यागी ने की। कुल मिलाकर उन्होंने पयाम सईदी के इस शेर को सार्थकता प्रदान की-

असासा माल और दौलत से बढ़कर छोड़ जाऊंगा
मैं मालूमात का गहरा समंदर छोड़ जाऊंगा

अंत में इस किताब से गुज़रे दौर का एक रोचक क़िस्सा और सुनिए। मुरादाबाद के संगीतज्ञ अशरफ़ ख़ाँ एक अलग तरह की अस्थायी बजाते थे। उस्ताद बुंदू ख़ाँ ने कहा-''मुझे वह अस्थायी सिखा दो।'' वे बोले- ''पहले आप मेरे बेटे की शादी करवा दो। उसकी शादी कहीं नहीं हो रही है।'' यह सुनकर उस्ताद बुंदू ख़ाँ आग बबूला हो गए। घर जाकर उन्हें याद आया कि उनके किसी मामा की लड़की बेवा या तलाकशुदा है। उन्होंने मामा से बात की और अशरफ़ ख़ाँ के बेटे के साथ उनकी लड़की की शादी करवा दी। इस तरह उन्होंने अस्थायी सीखकर ही दम लिया। 'संगीत के जवाहरात' पुस्तक वाणी प्रकाशन नई दिल्ली से पिछले साल प्रकाशित हुई । इसका मूल्य 495/- रूपए है।


सम्पर्क : भुवेन्द्र त्यागी 098691-76433 
bhuvtyagi@gmail.com


आपका-

देवमणि पांडेय

सम्पर्क : बी-103, दिव्य स्तुति, 
कन्या पाडा, गोकुलधाम, फ़िल्म सिटी रोड, 
गोरेगांव पूर्व, मुम्बई-400063, 98210 82126 

सोमवार, 4 जनवरी 2010

मेरा यकी़न हौसला किरदार : देवमणि पांडेय की ग़ज़ल




देवमणि पांडेय की ग़ज़ल


मेरा यकी़न,हौसला,किरदार देखकर
मंज़िल क़रीब आ गई,रफ़्तार देखकर

जब फ़ासले हुए हैं तो रोई है माँ बहुत
बेटों के दिल के दरमियां दीवार देखकर

हर इक ख़बर का जिस्म लहू में है तरबतर
मैं डर गया हूँ आज का अख़बार देखकर

बरसों के बाद ख़त्म हुआ बेघरी का दर्द
दिल खु़श हुआ है दोस्तो! घरबार देखकर                           

दरिया तो चाहता था कि सबकी बुझादे प्यास
घबरा गया वो इतने तलबगार देखकर

वो कौन था जो शाम को रस्ते में मिल गया
वो दे गया है रतजगा इक बार देखकर

चेहरे से आपके भी झलकने लगा है इश्क़
जी ख़ुश हुआ है आपको बीमार देखकर


आपका-

देवमणि पांडेय

सम्पर्क : बी-103, दिव्य स्तुति,
कन्या पाडा, गोकुलधाम, फ़िल्म सिटी रोड,
गोरेगांव पूर्व, मुम्बई-400063, 98210 82126