सोमवार, 22 फ़रवरी 2010

कोशिश करने वालों की हार नहीं होती : सोहनलाल द्विवेदी

सोहनलाल द्विवेदी की कविता

लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती 
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती


यह कविता सोहनलाल द्विवेदी की है। इंटरनेट पर दी गई जानकारी के आधार पर इसे डॉ.हरिवंशराय बच्चन की रचना के रूप में प्रचारित किया गया। स्वयं अमिताभ बच्चन ने इसे अपने 'बाबूजी' की रचना बताकर इसका पाठ भी किया। इस लिए काफ़ी लोग मानते हैं कि यह उन्हीं की रचना है। मगर किसी को ये मालूम नहीं है कि ये कविता डॉ.हरिवंशराय बच्चन के किस काव्य संकलन में शामिल है। जहाँ तक मेरी जानकारी है यह कविता बच्चन साहब के किसी भी संकलन में शामिल नहीं और इसकी शैली भी उनसे मेल नहीं खाती।

फ़िलहाल वर्ष 2007-2008 से यह रचना महाराष्ट्र के छठी कक्षा के पाठ्यक्रम में बिना रचनाकार के नाम के प्रकाशित है। अगर ये कविता डॉ.हरिवंशराय बच्चन की है तो आदरणीय अमिताभ बच्चन महाराष्ट्र सरकार से यह माँग क्यों नहीं करते कि इसके साथ डॉ.हरिवंशराय बच्चन का नाम जोड़ दिया जाए। विश्वस्त सूत्रों के अनुसार इसके वास्तविक रचनाकार का नाम सोहनलाल द्विवेदी है। 

मैंने मुम्बई वि.वि.के सेवानिवृत्त हिंदी विभागाध्यक्ष एवं महाराष्ट्र पाठ्य पुस्तक समिति के अध्यक्ष डॉ.रामजी तिवारी से सम्पर्क किया। उन्होंने बताया कि लगभग 25 साल पहले श्री अशोक कुमार शुक्ल नामक सदस्य ने सोहनलाल द्विवेदी की यह कविता वर्धा पाठ्यपुस्तक समिति को लाकर दी थी। ये शायद किसी पत्रिका में प्रकाशित थी। तब यह कविता छ्ठी या सातवीं के पाठ्यक्रम में शामिल की गई थी। समिति के रिकार्ड में रचनाकार के रूप में सोहनलाल द्विवेदी का नाम तो दर्ज है मगर एक रिमार्क लगा है कि 'पता अनुपलब्ध है।' इसके कारण कभी इसकी रॉयल्टी नहीं भेजी गई। कहीं यह चर्चा भी हुई थी कि सोहनलाल द्विवेदी इसे काव्य-मंचों पर पढ़ते थे। हैरत की बात यह है कि अब इसके रचनाकार का नाम क्यों हटा दिया गया।

कानपुर के पास बिंदकी (ज़िला फ़तेहपुर) के मूल निवासी सोहनलाल द्विवेदी का नाम ऐसे कवियों में शुमार किया जाता है जिन्होंने एक तरफ़ तो आज़ादी के आंदोलन में सक्रिय भागीदरी की और दूसरी तरफ देश और समाज को दिशा देने वाली प्रेरक कविताएं भी लिखीं। मुम्बई में चाटे क्लासेस ने अपने विज्ञापनों में अनेक बार इस कविता को प्रकाशित किया मगर कभी भी उन्होंने कवि का नाम नहीं दिया। मैंने गाँधी को नहीं मारा फ़िल्म में भी इस कविता का सार्थक फ़िल्मांकन किया गया। अगर हम इस कविता के साथ सोहनलाल द्विवेदी का नाम जोड़ सकें तो यही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी। 


सोहनलाल द्विवेदी की कविता : लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती

प्रिय दोस्तो!
ख़ुशी की बात है कि मेरी 4 दिसम्बर 2015 की FB POST के सिलसिले में स्वयं अमिताभ बच्चनजी ने मान लिया कि ''लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती...'' कविता उनके बाबूजी की नहीं बल्कि सोहनलाल द्विवेदी की है। उन्हें बहुत बहुत धन्यवाद।

FB 1169 -एक बात आज स्पष्ट हो गयी
ये जो कविता है
'कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती '
ये कविता बाबूजी की लिखित नहीं है
इस के रचयिता हैं
सोहन लाल द्विवेदी ....
कृपया इस कविता को बाबूजी, डॉ हरिवंश राय बच्चन के नाम पे न दें ... ये उन्होंने नहीं लिखी है




पेश है सोहनलाल द्विवेदी की पूरी कविता

लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती

नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है
चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है
मन का विश्वास रगों में साहस भरता है
चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है
आख़िर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती

डुबकियां सिंधु में गोताखोर लगाता है
जा जा कर खाली हाथ लौटकर आता है
मिलते नहीं सहज ही मोती गहरे पानी में
बढ़ता दुगना उत्साह इसी हैरानी में
मुट्ठी उसकी खाली हर बार नहीं होती
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती

असफलता एक चुनौती है, स्वीकार करो
क्या कमी रह गई, देखो और सुधार करो
जब तक न सफल हो, नींद चैन को त्यागो तुम
संघर्ष का मैदान छोड़ मत भागो तुम
कुछ किये बिना ही जय जय कार नहीं होती
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती
…….


आपका
देवमणिपांडेय

सम्पर्क : बी-103, दिव्य स्तुति,
कन्या पाडा, गोकुलधाम, फिल्मसिटी रोड,
गोरेगांव पूर्व, मुम्बई-400063, 98210-82126

रविवार, 21 फ़रवरी 2010

कोरी आँखों की फागुन ने मीठी नींद चुराई : होली गीत

पंचम के होली समारोह में कवयित्री माया गोविंद, संस्थाध्यक्ष रानी पोद्दार और कवि देवमणि पाण्डेय 

देवमणि पांडेय के होली गीत

(1)

दिल से दिल के तार मिले तो
टेसू खिले हज़ार
आया फिर से राग रंग का
मस्ती का त्योहार
आया मस्ती का त्यौहार.......

रंग, अबीर, गुलाल लगाओ
झूमो, नाचो, गाओ
होंठों से तो हँसी छलकती
आँख से छलके प्यार
आया मस्ती का त्यौहार.......

मौसम ने जादू कर डाला
हर चेहरा रंग डाला
भीग गया तन-मन होली में
उड़ गया चैन – क़रार
आया मस्ती का त्यौहार.......

धूप ख़ुशी की ऐसे आई
गली-गली मुसकाई
खेतों ने पक्की फसलों का
पाया है उपहार
आया मस्ती का त्यौहार.......

(2)

उड़ता रंग , अबीर, गुलाल
छूटी पिचकारी से धार
ख़ुशियां हर चेहरे पर छाईं
आई होली आई रे.......

घरवाला, घरवाली नाचे
जीजा के संग साली नाचे
नाच रही बच्चों की टोली
जैसे कृष्ण कन्हाई
आई होली आई रे.......

ढोल-मृदंग-चंग जब बजते
स्वप्न सलोने नयन में सजते
कोरी आँखों की फागुन ने
मीठी नींद चुराई
आई होली आई रे.......

छेड़छाड़-तकरार का मौसम

होली तो है प्यार का मौसम
क़हर ढा गई दिल पर कितने
इक मादक अँगड़ाई
आई होली आई रे.......

(3)


हर ज़ुबां पर है दिलकश तराना
हर नज़र में है मंज़र सुहाना
सबके चेहरे पे उल्लास छाया
आया होली का मौसम आया.......

भंग के रंग में मस्त होकर
आ गई नाचती एक टोली
हुई बरसात रंगों की जिस पल
भीगा तन, भीगा मन, भीगी चोली
जादू रग रग में फागुन का छाया
आया होली का मौसम आया.......

गोरे गालों का छूना किसी का
वो हया वो शरम बालियों की
इक क़सक बनके दिल में उतरती
लब पे बौछार वो गालियों की
कौन कजरारे नयनों को भाया
आया होली का मौसम आया.......

फाग के राग में तरबतर हो
थाप ढोलक पे कुछ ऐसी पड़ती
इक नशा सा लिपटता बदन से
प्यार की इक कली दिल में खिलती
ख़्वाब पलकों ने दिल में सजाया
आया होली का मौसम आया.......

आपका-
देवमणिपांडेय

सम्पर्क : बी-103, दिव्य स्तुति,
कन्या पाडा, गोकुलधाम, फिल्मसिटी रोड, 
गोरेगांव पूर्व, मुम्बई-400063, 98210-82126

devmanipandey@gmail.com

सोमवार, 15 फ़रवरी 2010

हे प्रभो आनंददाता : लोक कवि पं.रामनरेश त्रिपाठी


सुलतानपुर के लोक कवि पं.रामनरेश त्रिपाठी 

 अवध के गौरव पं.रामनरेश त्रिपाठी का जन्म मेरे ज़िले सुलतानपुर उ.प्र. के कोइरीपुर गांव में 4 मार्च 1890 को हुआ था। स्वर्गवास 16 जनवरी 1962 को हुआ। पं.रामनरेश त्रिपाठी के निधन पर देश के प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरु ने कहा- वे एक बड़े कवि थे और हमारी स्वराज्य की लड़ाई में एक आला सिपाही थे। सुलतानपुर शहर में केश कुमारी कन्या महाविद्यालय के सामने उनकी याद में बने सभागार का नाम है पं.रामनरेश त्रिपाठी सभागार। पं.रामनरेश त्रिपाठी अवधी भाषा में लोक जीवन की अदभुत झाँकी प्रस्तुत करने वाले लोक कवि थे। अवधी के सपूत पं.रामनरेश त्रिपाठी का बिरला परिवार में बहुत सम्मान था। उद्योगापति बसंत कुमार बिरला ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि एक दिन वे हमारे घर पधारे तो घनश्याम दास बिरला ने उनसे निवेदन किया कि त्रिपाठी जी आप कोई ऐसी प्रार्थना लिख दीजिए जिसे मैं और मेरे बच्चे रोज़ सुबह गाएं । पं.रामनरेश त्रिपाठी ने तत्काल प्रार्थना लिख दी- 

हे प्रभो आनंददाता ज्ञान हमको दीजिए 
शीघ्र सारे दुर्गुणों को दूर हमसे कीजिए 

यह प्रार्थना इतनी लोकप्रिय हुई कि सारा हिंदुस्तान गाने लगा । लोक कवि पं.रामनरेश त्रिपाठी ने 1925 और 1930 के बीच अवध के गाँव-गाँव में घूम करके 15 हज़ार से भी अधिक लोकगीतों का संग्रह किया था । इसी के आधार पर उन्होंने ‘कविता कौमुदी’ किताब लिखी । सन् 1928 के अंत में प्रकाशित इस पुस्तक की प्रथम प्रति महात्मा गाँधी को भेंट की गई थी और उन्होंने मुक्त कंठ से इस प्रयास की सराहना की थी। कविता कौमुदी पढ़कर विश्वकवि रवींद्रनाथ ठाकुर ने उन्हें पत्र में लिखा था- आपनार संकलित कविता कौमुदी ग्रंथखानि पाठ करिया परितृप्ति लाभ करियाछि । हिंद कवितार ए रूप सुंदर एवं धारावाहिक संग्रह आमि आर कोथाओ देखा नाईं। अपनी एई कवितागुलि प्रकाश करिया भारतीय साहित्यानुरागी व्यक्तिमात्र केइ चिरकृतज्ञता पाशे आबद्ध करियाछेन। 

महात्मा गाँधी और पं जवाहर लाल नेहरू का सानिध्य


पं.रामनरेश त्रिपाठी ने अपने 72 वर्ष के जीवन काल में कविता, कहानी, उपन्यास, जीवनी, संस्मरण और बाल साहित्य की सौ किताबें लिखीं। ग्राम गीतों का संकलन करने वाले वे हिंदी के प्रथम कवि थे जिसे 'कविता कौमुदी' के नाम से जाना जाता है। इसके लिए उन्होंने इक्के और तांगों से लेकर पैदल लम्बी लम्बी यात्राएं कीं। गांव-गांव जाकर अनपढ़ महिलाओं के साथ बैठकर लोकगीत, संस्कार गीत, सोहर, कजरी, बिरहा एवं विवाह गीतों को सुना और लिपिबद्ध किया। उनको महात्मा गाँधी और पं जवाहर लाल नेहरू का स्नेह प्राप्त था। प्रयाग में कांग्रेस के एक सम्मेलन में महात्मा गाँधी ने कविता कौमुदी का लोकार्पण किया था। महात्मा गांधी के अनुरोध पर वे हिन्दी साहित्य सम्मेलन के प्रचार मंत्री के रूप में हिन्दी के प्रचार प्रसार के लिए दक्षिण भारत गए थे। वे देशभक्त और राष्ट्र सेवक थे। उन्होंने स्वाधीनता संग्राम और किसान आन्दोलनों में भागीदारी की और जेल भी गए।

कई साल ढूंढने के बाद मुझे कविता कौमुदी मित्र अरविंद राही के सौजन्य से प्राप्त हुई। वे यह पुस्तक पं.रामनरेश त्रिपाठी जी के परिवार के किसी सदस्य से माँगकर लाए। इसे पढ़ते हुए मुझे महसूस हुआ कि अवधी लोककाव्य में एक तरफ उमंग और उल्लास की मधुर छवियाँ हैं तो दूसरी तरफ़ दुख और अभाव के त्रासद चित्र भी हैं-

मन तोरा अदहन, तन तोरा चाउर, नैना मूँग कै दालि 
अपने बलम का जेंवना जेंवतिउ, बिनु लकड़ी बिनु आगि 

मँहगी के मारे बिरहा बिसरिगा, भूलि गइ कजरी कबीर 
देखि क गोरी क मोहिनी सुरति अब, उठै न करेजवा मँ पीर

कविता कौमुदी में लोककाव्य के विविध रूपों- सोहर, कजरी, बिरहा, होरी, मेला गीत, विवाह गीत, विदाई गीत आदि शामिल हैं। इसमें अहीर,कहार, तेली, गड़रिया, धोबी और चमारों के गीतों का भी अदभुत संग्रह है। पं.रामनरेश त्रिपाठी का जुनून देखिए कि लोकगीतों की तलाश में उन्होंने बंगाल, पंजाब, गुजरात, महाराष्ट्र, दक्षिण भारत और कश्मीर से लेकर नेपाल तक की यात्राएं की थीं । प्रांतीय भाषाओं के गीतों की झलक भी इस पुस्तक की अलग उपलब्धि है।

बड़ निक लागै मेहरी क कोरवा


अवध में ज़मींदार और बड़े किसान अहीर के लड़कों को चरवाहे का काम देते थे। ये नौजवान चरवाहे अँगोछे में बासी रोटी बाँधकर सुबह गाय-भैसों के साथ जंगल में चले जाते थे और शाम ढलने पर वापस लौटते थे। अपना समय काटने के लिए मौज-मस्ती में या प्रिय जनों के विरह (याद) में ये लोग जो गीत गाते थे उसे ‘बिरहा’ कहा गया । अब तो बिरहा दुर्लभ हो गया है मगर सन् 1970 के पहले शादी-व्याह के अवसर पर अहीरों के नाच में बड़े मज़ेदार बिरहे सुनने को मिलते थे –

बड़ निक लागै गाय चरवहिया भुइयाँ जो परती होय 
बड़ निक लागै मेहरी क कोरवा जबले लरिकवा न होय 

दोहे में भी लोकजीवन की अदभुत छटा दिखाई देती है। सुंदर स्त्री से हर कोई बात करना चाहता है। मगर वह किसको-किसको ख़ुश करे! उसकी व्यथा देखिए -

जोबन गयो तो भल भयो, तन से गई बलाय 
जने जने का रूठना, मोसे सहा न जाय 

गाँवों के हृदय में सुख का प्रकाश है। सुख न होता तो गाँव के लोग अनंत दुखों का भार कैसे उठा लेते। अपने प्राणधन के साथ दुख में भी सुख का अनुभव करने वाली एक पति-वल्लभा का हृदयोदगार देखिए-

टूटी खाट घर टपकत टटियो टूटि
पिय कै बाँह सिरहनवा सुख कै लूटि

मुम्बई में 22 जनवरी 2010 को अवधी सम्मेलन हुआ। अवधी सम्मेलन के संयोजक थे पत्रकार राजेश विक्रांत। अवधी अकादमी के अध्यक्ष व बोली बानी के संपादक जगदीश पीयूष ने बताया कि अवधी भाषा उ.प्र. के 24, बिहार के 2 तथा नेपाल के 8 जिलों में लगभग 12 करोड़ लोगों की भाषा है। तुलसीदास, अमीर खुसरो, मलिक मोहम्मद जायसी, मुल्ला दाउद, कबीर, कुतुबन, मंझन और रहीम सरीखे महाकवियों ने अवधी में काव्य रचना करके इस लोकभाषा को गौरव प्रदान किया। अवधी सम्मेलन में मुम्बई की धरती पर सर्वप्रथम रामलीला का आयोजन करने वाले स्व. शोभनाथ मिश्र के सुपुत्र तथा श्री महाराष्ट्र रामलीला मंडल के महामंत्री द्वारिकानाथ मिश्र का सम्मान किया गया।

यह भी ग़ौरतलब है कि हिंदी फ़िल्मों में जो पात्र अवधी बोलते हैं उन्हें भोजपुरी कहकर प्रचारित किआ जाता है। फ़िल्म गंगा जमुना के सम्वाद अवधी भाषा में हैं। मुंबई में उत्तर भारतीयों के तौर पर सिर्फ़ पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार के लोगों का ही नाम लिया जाता है, जबकि मुंबई में अवधी जानने और बोलने वालों की बहुत बड़ी आबादी है। अवधी भाषियों को जोड़ने और अवधी को उसकी खोई पहचान दिलाने के लिए अवधी सम्मेलन ज़रूरी हैं।  

पं.रामनरेश त्रिपाठी की प्रार्थना


हे प्रभु आनंद-दाता ज्ञान हमको दीजिये
शीघ्र सारे दुर्गुणों को दूर हमसे कीजिए

लीजिये हमको शरण में, हम सदाचारी बनें ब्रह्मचारी धर्म रक्षक वीर व्रत धारी बनें

निंदा किसी की हम किसी से भूल कर भी ना करें ईर्ष्या कभी भी हम किसी से भूल कर भी ना करें

सत्य बोलें, झूठ त्यागें, मेल आपस में करें दिव्य जीवन हो हमारा, यश तेरा गाया करें 

जाए हमारी आयु हे प्रभु लोक के उपकार में
हाथ डालें हम कभी न भूल कर अपकार में

कीजिए हम पर कृपा ऐसी हे परमात्मा
मोह मद मत्सर रहित होवे हमारी आत्मा

प्रेम से हम गुरु जनों की नित्य ही सेवा करें
प्रेम से हम संस्कृति की नित्य ही सेवा करें 

योग विद्या ब्रह्म विद्या हो अधिक प्यारी हमें
ब्रह्म निष्ठा प्राप्त कर के सर्व हितकारी बनें 

हे प्रभु आनंद-दाता ज्ञान हमको दीजिये
शीघ्र सारे दुर्गुणों को दूर हमसे कीजिए


अवधी सम्मेलन में संयोजक राजेश विक्रांत, कवि देवमणि पांडेय, प्रमुख अतिथि जगदीश पीयूष, अर्चना मिश्र, एड. विजय सिंह, अध्यक्ष डॉ. रामजी तिवारी, संपादक प्रेम शुक्ल, पं. किरण मिश्र, कवि ओमप्रकाश तिवारी, पत्रकार अनुराग त्रिपाठी (मुम्बई 2010)

आपका-
देवमणिपांडेय

सम्पर्क : बी-103, दिव्य स्तुति,
कन्या पाडा, गोकुलधाम, फिल्मसिटी रोड, 
गोरेगांव पूर्व, मुम्बई-400063, 98210-82126


सोमवार, 8 फ़रवरी 2010

कहाँ मंज़िलें हैं, ठिकाना किधर है : देवमणि पांडेय के मुक्तक

देवमणि पांडेय के मुक्तक

(1)
सफ़र में सभी हैं ख़बर है ये किसको
कहाँ मंज़िलें हैं, ठिकाना किधर है
उन्हीं को फ़क़त राह देती है दुनिया
जिन्हें ये पता है कि जाना किधर है 

(2)
बड़ी ज़ालिम है दुनिया दिल से दिल मिलने नहीं देगी
ख़ुशी का एक क़तरा भी कभी पीने नहीं देगी
अगर टकराके इससे इक क़दम भी हट गए पीछे
तो सारी उम्र फिर ये चैन से जीने नहीं देगी

(3)
कश्ती अगर हो इश्क़ की लहरों के दरमियां
ये कौन चाहता है किनारा नहीं मिले
किसने तुम्हारे हाथ से पतवार छीन ली
क्यूँ तुम बिछड़के हमसे दुबारा नहीं मिले 

(4)
बिछड़े हुए तो हमको ज़माना हुआ मगर
तुम दिल में कसक बनके सताते हो आज भी
तुमने तो ये कहा था मिलेंगे न अब कभी
फिर क्यूँ हमारे ख़्वाब में आते हो आज भी 

(5)
लाज़िम है चाहतों में कुछ तो नया भी हो
थोड़ी सी बेरुख़ी हो कुछ फ़ासला भी हो
मेरे तुम्हारे इश्क़ को कई साल हो गए
दिल चाहता है कोई तुम्हारे सिवा भी हो

(6)
आँखों में अपनी प्यार का काजल लगा के देखे
मेंहदी का रंग हाथ में अपने सजा के देखे
दिल की हसीन दुनिया लिख दूँ मैं नाम तेरे
ये शर्त है कि मुझको तू मुस्कराके देखे

(7)
मज़दा आँखों का पानी एक है
और ज़ख़्मों की निशानी एक है
हम दिलों की दास्ताँ किससे कहें
आपकी मेरी कहानी एक है।

(8)
मुश्किल सफ़र हो फिर भी मंज़िल तुम्हें मिले
मझधार में हो नाव तो साहिल तुम्हें मिले
हमने ख़ुदा से रात दिन माँगी है ये दुआ
हर हाल में जो ख़ुश रहे वो दिल तुम्हें मिले 

(9)
जिसे तुम दिल से अपना मान लोगे
वही रिश्ता तुम्हें सच्चा लगेगा
किसी दिन पास तो आओ हमारे
मिलोगे हमसे तो अच्छा लगेगा 

(10)
इक संगदिल के सामने फ़रियाद क्यों करें 
करता नहीं है वो तो उसे याद क्यों करें 
उसको नहीं है प्यार तो हम अपनी ज़िंदगी 
इक बेवफ़ा के वास्ते बरबाद क्यों करें


आई लव यू मुंबई

शहर हमारा जो भी देखे सपनों में खो जाता है
यहाँ समंदर जादू बनकर हर दिल पर छा जाता है 

देख के होटल ताज की रौनक़ मदहोशी छा जाए 
चर्चगेट का रोशन चेहरा दिन में चाँद दिखाए

चौपाटी की चाट चटपटी मन में प्यार जगाती है
भेलपुरी खाते ही दिल की हर खिड़की खुल जाती है

कमला नेहरु पार्क पहुँचकर खो जाता जो फूलों में
प्यार के नग़मे वो गाता है एस्सेल वर्ल्ड के झूलों में

जुहू बीच पर रोज़ शाम जो पानी-पूरी खाए
वही इश्क़ की बाज़ी जीते दुल्हन घर ले आए

नई नवेली दुल्हन जैसी हर पल लगती नई
प्यार से इसको सब कहते हैं आई लव यू मुंबई

आपका-
देवमणिपांडेय

सम्पर्क : बी-103, दिव्य स्तुति,
कन्या पाडा, गोकुलधाम, फिल्मसिटी रोड, 
गोरेगांव पूर्व, मुम्बई-400063, 98210-82126