शुक्रवार, 20 दिसंबर 2013

देवमणि पांडेय ग़ज़ल : यूँ बज़ाहिर देखिए तो फ़ासला




देवमणि पांडेय ग़ज़ल

यूँ बज़ाहिर देखिए तो फ़ासला कोई नहीं
पर किसी के दिल के अंदर झाँकता कोई नहीं

मुस्कराके तुम तो रुख़सत हो गए हमसे मगर
दिल पे क्या गुज़री हमारे जानता कोई नहीं

सोचता हूँ क्यूँ सभी को अजनबी लगता हूँ मैं
क्यूँ मु्झे मेरे सिवा पहचानता कोई नहीं

चंद वादों में सिमट कर रह गई है आशिक़ी
टूटकर अब क्यूँ किसी को चाहता कोई नहीं

एक ही कमरे में दोनों रह रहे हैं साथ-साथ
फिरभी उनके दिल जुदा हैं राब्ता कोई नहीं

मुस्कराकर उसने पूछा हम-सा देखा है कोई
हमने उससे कह दिया बेसाख़्ता कोई नहीं 

मुम्बई की जहाँगीर आर्ट गैलरी में बिजूका सीरीज़ की पेंटिंग प्रदर्शिनी के उदघाटन समारोह में लेखक-अभिनेता अतुल तिवारी, कवि देवमणि पांडेय, चित्रकार अवधेश मिश्रा, फ़िल्मकार श्याम बेनेगल और एक महिला चित्रकार। 25.05.2011

4 टिप्‍पणियां:

पूर्णिमा वर्मन ने कहा…

बहुत खूब देवमणि जी, मुझे शहरों पर लिखी गई कविताएँ बहुत पसंद हैं आखिर शहर का भी एक नाता होता है कवि से...

सुभाष नीरव ने कहा…

बहुत प्यारे गीत हैं आपके देवमणि जी…पहले दो गीत तो दिल में उतर गये…क्या खूब लिखा है- सपनों के शहर में मुश्किल है
सपनों की हिफ़ाज़त करना
बधाई… बहुत बहुत बधाई इन सुन्दर गीतों के लिए…

Mumtaz Naza ने कहा…

aap ki rachnaaen waastav men qabil e taareef hain, bahot achhi lagin mujhe

Devi Nangrani ने कहा…

अजनबी चेहरों का हर पल एक रेला है यहां
हर जगह हर वक़्त जैसे एक मेला है यहां
हर क़दम पर बेकसी लाचारगी ढोता हुआ
भीड़ में भी आदमी बेहद अकेला है यहां
Devmani ji Aapne ek sahi tasveeer Mere Shahar Mumbai ki jin sunder alfaaz mein pesh ki hai, laga aks ankhon mein tair aaye. Badhayi ke saath...