देवमणि पांडेय ग़ज़ल
हमें पता है क्या सोचेगा
यह बेदर्द ज़माना भी
सबके आगे ठीक नहीं है दिल
का हाल सुनाना भी
वैसे तो अपनी आँखों में हम
दरिया भी रखते हैं
लेकिन है दुश्वार काम ये
दिल की आग बुझाना भी
अगर मुहब्बत होती उसको साथ
छोड़कर क्यूँ जाता
ठीक नहीं अब उसकी ख़ातिर
रो-रो जान गँवाना भी
तनहाई की क़ैद से ख़ुद को
रिहा करो, बाहर निकलो
धीरे-धीरे भर जाएगा दिल का
ज़ख़्म पुराना भी
बच्चे की मानिंद अगर ये
अपनी ज़िद पर आ जाए
फिर आसान नहीं है यारो इस
दिल को बहलाना भी
आज तरक़्क़ी पहुँच गई है,
क़स्बों और देहातों तक
फिर भी सबको कहाँ मयस्सर
एक वक़्त का खाना भी
उज्जैन के महाकाल मंदिर के प्रांगण में संगीत समीक्षक महेश शर्मा, कवि देवमणि पांडेय, पं.द्विवेदी,संगीतकार राजेश रोशन, संयोजक केशव राय, रंगकर्मी प्रकाश बांठिया और ऋषि राय। 1.2.2014
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