देवमणि पांडेय की ग़ज़ल
महकते ख़्वाब खयालों को रोशनी मिलती
हमें तलाश थी जिसकी वो ज़िंदगी मिलती
जिधर भी देखिए दामन हैं तर ब तर सबके
कभी तो दर्द की शिद्दत में कुछ कमी मिलती
बहार आई मगर ढूँढती रहीं आँखें
कोई तो शाख़ चमन में हरी-भरी मिलती
बढ़ी जो धूप सफ़र में तो ये दुआ मांगी
कहीं तो छाँव दरख़्तों की कुछ घनी मिलती
उगाते हम भी शजर एक दिन मुहब्बत का
तुम्हारे दिल की ज़मीं में अगर नमी मिलती
कभी तो दर्द की शिद्दत में कुछ कमी मिलती
बहार आई मगर ढूँढती रहीं आँखें
कोई तो शाख़ चमन में हरी-भरी मिलती
बढ़ी जो धूप सफ़र में तो ये दुआ मांगी
कहीं तो छाँव दरख़्तों की कुछ घनी मिलती
उगाते हम भी शजर एक दिन मुहब्बत का
तुम्हारे दिल की ज़मीं में अगर नमी मिलती
देवमणि
पाण्डेय
: 98210-82126
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