मंगलवार, 28 मार्च 2023

सिने गीतकार पुस्तक समीक्षा: यश मालवीय


फ़िल्मी गीतकारों के सुरीले सफ़र का रेखांकन

बहुमुखी प्रतिभा के धनी रचनाकार होने का मुहावरा संभवतः देवमणि पांडेय जैसे सर्जकों के लिये ही पहले-पहल बना रहा होगा। उन्होंने साहित्य और सिनेमा के रिश्तों को न केवल बहुत क़रीब से देखा है वरन जिया भी है। यह अनायास ही नहीं था जब उनके वर्ष 2003 के 'पिंजर' के लिये लिखे गीत 'चरखा चलाती माँ' को 'बेस्ट लिरिक ऑफ़ दि इयर' के अवॉर्ड से विभूषित किया गया था बल्कि इसके पीछे उनकी एक सुदीर्घ ईमानदार रचना-यात्रा की जययात्रा की अप्रतिम और अनुपम गूँज-अनुगूँज की भी अपनी भूमिका थी। इस गीत की मार्मिकता आज भी मन-प्राण को  छू जाती है। वह यह बात बख़ूबी जानते हैं कि कैसे आमजन का ख़्याल रखते हुए अदब की रूह को ज़िन्दा रखा जाए, तभी तो वह 'सिने गीतकार' जैसी बेहद आत्मीय और नायाब क़िताब लिख सके।

हिन्दी के पाठकों के लिये यह एक अलग क़िस्म की अनूठी और अनोखी सर्जना है, विलक्षण पठनीयता से ओतप्रोत, जिसमें पढ़ने वाले का भी एक लगाव भरा रिश्ता उन प्रतिभासंपन्न सिने गीतकारों से बनता है, जिन्होंने सिने माध्यम की तमाम सीमाओं के होते हुए भी साहित्य की आत्मा के साथ न्याय किया है। श्रेष्ठता बोध से भरे तमाम साहित्यिकों को भी यह क़िताब आइना दिखाती है। सिनेमा एक बड़ा माध्यम है इस तथ्य की अनदेखी नहीं की जा सकती  और अगर इसके माध्यम से साहित्य व्यापक जनसमुदाय तक पहुँचता है तो यह एक बड़ी बात है। क़िताब में वह सारे सिने गीतकार शामिल हैं, जिनका साहित्य से भी गहरा नाता रहा है, इसीलिए उनके लिखे गीत न केवल ज़बान पर चढ़े वरन आम आदमी का मुहावरा भी बन गए।

इन गीतकारों को इतने भीतर तक वही गीत-कवि समझ भी सकता था, जिसने रचनात्मक स्तर पर भी  जुड़कर सिनेमा को बहुत प्यारे-प्यारे और स्तरीय गीत दिए हों। केवल सिनेमा के लिखे होने के कारण इन सिनेमाई गीतों को ख़ारिज नहीं किया जा सकता बल्कि कई बार तो साहित्यिक गीत भी इनके आगे पानी भरते नज़र आते हैं। क़िताब में सारे गीतकार ऐसे हैं, जिनकी साहित्य और सिनेमा में समान हैसियत है, जिन्होंने साहित्य और सिनेमा के बीच की खाई को पाटने का अभूतपूर्व कार्य किया है और वह विभाजक रेखा ही मेट दी है, जो साहित्य और सिनेमा को अलग-अलग आँखों से देखती है। हालांकि अपवाद इस बात का भी है जहाँ सिनेमा में शब्द की गरिमा गिरी भी है।

आनन्द बख्शी, इंदीवर, कैफ़ी आज़मी, गोपाल सिंह नेपाली,गोपालदास नीरज,ज़फ़र गोरखपुरी, जां निसार अख़्तर, नक्श लायलपुरी, निदा फ़ाज़ली, पं. प्रदीप, मज़रूह सुल्तानपुरी, योगेश, शैलेंद्र, साहिर लुधियानवी, सुदर्शन फ़ाकिर, हसरत जयपुरी, अभिलाष, क़तील शिफ़ाई, राहत इंदौरी, जावेद अख़्तर और मायागोविंद यह सारे गीतकार क़िताब पढ़ने के बाद बहुत अपने से लगने लगते हैं। गीतकारों पर लिखे हर वृत्तांत का शीर्षक भी उन गीतकारों की किसी बहुत छू लेने वाली पंक्ति से दिया गया है।

गीतकारों पर लिखने के अलावा देवमणि जी ने कुछ सिने आलेख भी क़िताब में दिये हैं, 'गीत-लेखन की चुनौतियाँ: फ़िल्म हासिल,'चरखा चलाती माँ: फ़िल्म पिंजर का गीत', 'धुन पर गीत लेखन: फ़िल्म कहाँ हो तुम',' सिने गीतों में देशभक्ति की भावना, ''ऐ मेरे वतन के लोगों": गीत का इतिहास, साहित्य और सिनेमा, यह सारे आलेख भी मनोहारी अंदाज़ में लिखे गए हैं। इन्हें लिखना आसान नहीं था, इन्हें लिखने में पांडेय जी ने बहुत पसीना बहाया है।उनके सहज श्रम को भी लक्षित किया जा सकता है। पढ़ने के लिये एक ज़रूरी यह क़िताब अद्विक पब्लिकेशन, नई दिल्ली ने बेहतरीन साज-सज्जा के साथ प्रकाशित की है। दो सौ पेज़ की इस किताब का #मूल्य ₹300 है।

आपका -
यश मालवीय

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