सोमवार, 15 जून 2020

भूमिका जैन का ग़ज़ल संग्रह उन्वान तुम्हीं दे देना


कहो कैसे छुपायें हम तुम्हारे प्यार की हसरत

सीमाब अकबराबादी का एक शेर है -

कहानी मेरी रूदादे-जहां मालूम होती है
जो सुनता है उसी की दास्तां मालूम होती है 

भूमिका जैन की ग़ज़लों से गुज़रते हुए आपको बिल्कुल यही एहसास होगा। अमृत प्रकाशन नई दिल्ली से प्रकाशित उनके ग़ज़ल संग्रह का नाम है ''उन्वान तुम्हीं दे देना''। इस ग़ज़ल संग्रह में ज़िन्दगी के इतने जाने-पहचाने अक्स हैं कि ऐसा लगता है कि हमारे रूबरू कोई आईना है जिसमें हम ख़ुद अपनी तस्वीर देख रहे हैं। वो जब मुहब्बत की दुनिया को अपने एहसास से सजाती हैं तब भी कमाल करती हैं और जब आत्मविश्वास से लबालब औरत की शक्ल में दुनिया से सवाल करती हैं तब भी कमाल करती हैं-

आपकी मेज़ का गुलदान नहीं हूँ, समझे ?
एक औरत हूँ मैं, सामान नहीं हूँ, समझे ?

मेरी चुप्पी को मेरी हार मत समझ लेना,
बोल सकती हूँ, बेज़ुबान नही हूँ, समझे ?

भूमिका जैन की रचनात्मक अभिव्यक्ति यथार्थ के धरातल पर इस तरह से सामने आती हैं कि वह बिल्कुल मौलिक, सजीव और जीवंत लगती है। उन्होंने अपने एहसास और जज़्बात से अपनी ग़ज़लों को सजाया है-

कहो कैसे छुपायें हम तुम्हारे प्यार की हसरत,
ज़ुबाँ ख़ामोश,आँखों में है बस इज़हार की हसरत, 

सुकूँ महसूस होता है,उसे अक्सर मुहब्बत में,
जिसे होती नहीं,महबूब के,इकरार की हसरत
                                   
भूमिका जैन ने मौजूदा वक़्त के तमाम सवालों को रचनात्मकता के केंद्र में रखकर अपनी ग़ज़लों से समाज को आईना दिखाया है। उनके यहां जो औरत है वह आत्मविश्वास से लबालब है। उसमें ज़माने से टकराने की हिम्मत और हौसला है।

ये ग़ज़लें उस सोच और फ़िक्र का प्रतिनिधित्व करती हैं जो आज के ग़ज़लकार में होना ज़रूरी है। दुष्यंत कुमार के बाद हिंदी ग़ज़ल लोकप्रियता का सफ़र तय करते हुए  आज पांच दशक आगे पहुंच गई है। भूमिका जैन ने ग़ज़लों के कैनवास पर अपनी सोच और अपने अनुभव से जो नई तस्वीरें बनाई हैं वह क़ाबिले-तारीफ़ हैं-


दिले-ख़ामोश में हलचल हुई है, तुम चले आओ!
मिरी सांसों की लौ कम हो रही है तुम चले आओ

हिना का रंग बाक़ी है, अभी मेरी हथेली पर!
मगर सुर्खी़ मुहब्बत की नहीं है, तुम चले आओ!  

भूमिका जैन की ग़ज़लों में ज़िंदगी की दौड़ में पीछे छूट गए वंचितों की आवाज़ भी है और व्यवस्था के प्रति प्रतिरोध का स्वर भी है। उनके पास अपनी ज़बान है, अपना तजुर्बा है और अपनी सोच को अभिव्यक्त करने के लिए अपना एक ख़ास अंदाज़ ए बयां भी है। बयान की यही ख़ूबसूरती उन्हें एक अलग पहचान मुहैया कराती है। 

भूमिका जैन ने जिस फ़न और हुनर के साथ ज़िंदगी, समाज और वक़्त की तस्वीरों में रंग भरे हैं वह बेहद सराहनीय है। उनके ग़ज़ल संग्रह की कामयाबी के लिए मेरी शुभकामनाएं। मेरी यही दुआ है कि उन्हें अपनी रचनात्मकता के लिए वह सम्मान मिले जिसकी वह हक़दार हैं।

देवमणि पांडेय :
बी-103, दिव्य स्तुति, कन्या पाड़ा, गोकुलधाम,
फ़िल्म सिटी रोड, गोरेगांव पूर्व, मुंबई- 400063, 98210-82126

(19 फरवरी 2020)
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