मंगलवार, 9 जून 2020

शिल्पा शर्मा का काव्य संग्रह : सतरंगी मन

 तरल भाषा में लिखी गईं सरल कविताएं

विश्व प्रसिद्ध लेखक रसूल हम्जातोव ने लिखा है-" हे ईश्वर मुझे लिखने के लिए विषय मत दे, देखने के लिए आंख दे।" कवयित्री शिल्पा शर्मा ने अपने प्रथम काव्य संग्रह "सतरंगी मन" में विषय वैविध्य की इसी सोच को साकार किया है। 

"न जाने क्यूं मैं अब/ धुआँ हो जाना चाहती हूं/ ताकि समा सकूं/ तुम्हारे पोर पोर में… न जाने क्यूं मैं अब/ हो जाना चाहती हूं पानी/ ताकि महसूस कर सको/ तुम मेरे वजूद को/"

शिल्पा शर्मा की कविताओं में इतनी विविधता है कि देखकर हैरत होती है। ऐसा इसलिए भी संभव हुआ है कि उन्हें पत्रकारिता का भी अच्छा ख़ासा अनुभव है। पत्रकारिता की यही सजगता उन्हें जीवन और जगत के विभिन्न स्रोतों के पास ले जाती है और वे अपनी संवेदना की तरलता से विविध अनुभवों, दृश्यों और घटनाओं को कविता के सांचे में ढाल देती हैं। 

"टीवी पर मेरी पार्टी तेरी पार्टी से/ कम काली की बहस जारी थी/ मेरा नेता को तेरे नेता से ज़्यादा सफ़ेद दिखाने की तैयारी थी/ उन्हीं की डपली थी उन्हीं का राग था/ कुछ मिलीभगत थी कुछ जुगाड़ था/ मीडिया गरज़ रहा था/ एडवर्टाइजमेंट बरस रहा था/ भ्रष्टाचार फल रहा था/ आर्थिक विकास का ग्राफ़ ढल रहा था/

शिल्पा शर्मा की कविताओं में जो सतरंगी दुनिया है उसमें देश, समाज, प्रकृति के साथ ईश्वर भी शामिल है। 'क्यों हमारे घर नहीं होते', 'उन्मुक्त स्त्रियां', 'प्रेम पराकाष्ठा,' 'तलाश अभी जारी है', 'बने रहना साझीदार', 'उफ्फ़ यह स्वतंत्रता', 'टी ब्रेक और खिड़कियां', 'समानता के पैरोकार', 'मुझे वो ऐसी ही पसंद है' आदि शीर्षक की ऐसी कई कविताएं हैं जो पाठकों की चेतना के तार झंकृत करने की सामर्थ्य रखती हैं। 

"नितांत अकेली हूं पर उदास नहीं/ कामों की लंबी सूची को तह करके डाल दिया है/ अलमारी के सबसे ऊपरी ख़ाने में/ और चुरा लिया है कुछ घंटों का समय/ केवल अपने लिए/ बैठूंगी यूं ही पैर पर पैर चढ़ाए/ गर्म चाय का मग लिए हाथों में/" 

सतरंगी मन की कविताएं तरल भाषा में लिखी गई सरल कविताएं हैं मगर इनके अर्थ बहुत गहरे हैं। ये जीवन से संवाद करती हुई ऐसी कविताएं हैं जो हमारे सामने कई ज्वलंत सवाल पेश कर देती हैं और हम इनके जवाब खोजते हुए बेचैनी और विकलता से भर जाते हैं। इस संग्रह की कई कविताओं में कवयित्री स्त्रियों के पक्ष में मज़बूती से खड़ी हुई दिखाई देती है। 

"ऊपर से मुस्कुराती/ अंदर से रोती हुई/ ऐसी ही होती हैं/ बाहर से कटु नज़र आने वाली स्त्रियां/ पर छू पाओ उनका मन/ तो मीठे पानी के सोते-सी नज़र आती हैं/ ये कटु स्त्रियां/" 

इन कविताओं को पढ़ना अपनी सोच, समझ और संवेदना को समृद्ध करना है क्योंकि यह जीवन के गहन अनुभवों से उपजी हुई कविताएं हैं। Krimiga Books द्वारा प्रकाशित सतरंगी मन की पांडुलिपि को मुंबई लिटो फेस्ट द्वारा हिंदी कविता की बेहतरीन पांडुलिपि के रूप में चयन किया गया था। इस रचनात्मक उपलब्धि के लिए कवियत्री शिल्पा शर्मा को बहुत-बहुत बधाई और शुभकामनाएं। 

देवमणि पांडेय :
बी-103, दिव्य स्तुति, कन्या पाडा, गोकुलधाम,
फ़िल्मसिटी रोड, गोरेगांव पूर्व, मुम्बई - 400 063, 9821082126

(मुम्बई 26 जनवरी 2020) 
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