सपनों की वादी में रंग नया भरता है
आंखों से दिल में मेरे कोई यूं उतरता है
जोश है, जवानी है, शाम ये सुहानी है
आज अपनी आंखों में, एक नई कहानी है
साथ साथ रहते हैं, धूप छांव सहते हैं
तेरे बिना यार कहां, अपनी ज़िंदगानी है
इतना बड़ा मुखड़ा क्या ट्यून पर लिखना संभव है? दोस्तो! ये सच है। दिसम्बर 1999 में मैंने इसे पहले से बनाई गई धुन पर लिखा था। संगीतकार रजत ढोलकिया ने फ़िल्म "कहां हो तुम" के लिए इस गीत को शंकर महादेवन, केके और शान की आवाज़ में रिकॉर्ड किया।
संगीतकार रजत ढोलकिया की इस ट्यून पर जब कई गीतकार नहीं लिख पाए तो फ़िल्म के संवाद लेखक हृदय लानी ने लेखक-निर्देशक विजय कुमार को मेरे बारे में बताया। हृदय लानी ने नाना पाटेकर की 'यशवंत', 'प्रहार' आदि फ़िल्मों के संवाद लिखे हैं। फ़िल्म 'सरफ़रोश' के संवाद लेखन के लिए उन्हें फ़िल्म फेयर पुरस्कार भी मिला।
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निर्देशक विजय कुमार ने
फ़ोन पर बताया- फ़िल्म में इला अरुण की बेटी इशिता अरुण, समीर सोनी, सोनू सूद और
शर्मन जोशी प्रमुख भूमिका में हैं। तीनों नौजवान पहाड़ की ख़ूबसूरत वादियों में
घूमने जाते हैं। वहां एक गीत गाते हैं। आपको यही गीत लिखना है। गीत शुरू होने से
पहले ये लोग कोई शायरी बोलते हैं। आप सोचिए वह शायरी क्या हो सकती है।
सन् 1999 के मई महीने में
दस दिन के टूर पर मैं कुल्लू-मनाली गया था।
मैंने आंखें बंद कर लीं। सोचना शुरू किया। बंद आंखों से
मैंने मनाली का एक मंज़र देखा-
इक धनक सी सजी है ये
वादी,
एक ख़ूशबू-सी है हवाओं
में.
धूप पर्वत पे यूं उतरती
है,
जैसे घुंघरू बंधे हों पावों
में.
दूसरा दृश्य डलहौज़ी में
दिखाई पड़ा-
उजले बादल का काफ़िला अक्सर,
नीले अंबर से यूं गुज़रता
है
जैसे नींदों की गहरी वादी
में,
ख़्वाब पलकों पे कोई बुनता
है
मैंने खजियार का वह हरा
भरा लोकेशन देखा जहां एक लोक गायक ने हमें लोकगीत सुनाया था- "कुल्लू न जाना,
कसौली न जाना, चम्बे ते जाना ज़रूर।" इस दृश्य को याद करके मैंने लिखा-
रंग बिखरे हुए हैं मस्ती
के,
दिल भी ऐसे में गुनगुनाए
तो.
काश इन वादियों में आंखों
को,
ख़्वाब क़ुदरत नया दिखाए
तो
निर्देशक विजय कुमार ने
कहा- तीनों पीस अच्छे हैं। हम इनका इस्तेमाल करेंगे। अभिनेता राज जुत्शी की आवाज़
में यह तीनों पीस रिकॉर्ड किए गए।
सपनों की वादी में रंग नया
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वर्ली के सेंचुरी स्टूडियो
में संगीतकार रजत ढोलकिया उर्फ़ झुक्कू से मुलाक़ात हुई। हम स्टूडियो में कॉफी पी
रहे थे। मैंने रजत ढोलकिया से कहा- क्या आप अपनी ट्यून अभी गुनगुना सकते हैं।
झुक्कू ने एक आलाप लिया और गाना शुरू कर दिया-
नान नान नाना ना …नान नान
नाना ना …जब तक उनकी सांस चलती रही वे "नान नान नाना ना" गाते रहे। मुझे
ये समझ में आ गया कि मुखड़ा ज़रूरत से ज़्यादा लंबा है। इसीलिए गीतकार उसे पकड़ नहीं
पा रहे हैं। मैंने उनसे अनुरोध किया कि जहां पहली लाइन पूरी होती है आप बस वहीं
रुक जाइए। जैसे ही वे
गाकर रुके मैंने झट से कहा- ‘सपनों की वादी में
रंग नया भरता है’
उन्होंने गुनगुना कर देखा।
बोले- बिल्कुल ठीक। एक लाइन और बताइए। मैंने कहा-
सपनों की वादी में रंग नया
भरता है
आंखों से दिल में मेरे कोई
यूं उतरता है
वे ख़ुश हो गए। मेरे सामने
काग़ज़ रखकर बोले- ऐसी ही चार लाइनें और चाहिए। मुखड़ा छ: लाइन का है। मैंने फ़िल्म
की सिचुएशन के हिसाब से सोचा और लिख दिया। काफ़ी पीते-पीते मुखड़ा फाइनल हो
गया।
किसे ये पता कब बदलता है
मौसम
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इस गीत के अंतरे मैंने
दूसरे दिन लिखे।
यहां हसरतों जैसे ऊंचे हैं
पर्वत
उमंगों-सी रंगीन गहराइयां
है
मस्ती का आलम दिलों में
जगाएं
दरख़्तों की कुछ ऐसी
अंगड़ाइयां है
यहां रंग मौसम के कितने
निराले
हरियाली ऐसी कि दिल को चुरा
ले
पेड़ों को छूकर हवा झूमती
है
कोई खुद को ऐसे में कैसे
संभाले
अनुपमा रिकॉर्डिंग स्टूडियो
में शंकर महादेवन, केके और शान के साथ गीत की रिहर्सल शुरू हुई। तभी म्यूज़िक
अरेंजर बॉबी बेदी ने निर्देशक विजय कुमार से कहा- गीत के दूसरे अंतरे में हरियाली
बहुत ज़्यादा हो रही है। निर्देशक विजय कुमार का माथा घूम गया। पैड लेकर मेरे पास
आए और बोले- पांडेय जी, सिर्फ़ पांच मिनट का समय है। आप दूसरा अंतरा बदल दीजिए।
मैंने दो मिनट सोचा और लिख दिया-
किसे ये पता कब बदलता है
मौसम
कि आओ अभी मिलके कुछ ऐसा कर
लें
यहां रंग मस्ती के बिखरे
पड़े हैं
कि आओ इन्हें आज आंखों में
भर लें
निर्देशक विजय कुमार को यह
अंतरा पसंद आ गया और यही रिकॉर्ड हुआ। अब आप ही सोचिए कि फ़िल्मों में गीत लिखना
क्या आसान काम है।
सुनिधि चौहान और मौसम का
जादू
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कुछ दिन बाद निर्देशक विजय
कुमार ने कहा- हमारी नायिका इशिता अरुण रात में एयरपोर्ट पर उतरती है। वहां से घर
आते समय उसे अपना शहर बहुत अच्छा लगता है। उसे किसी की याद आने लगती है। इस पर एक
गीत लिखकर आप सुबह ऑफिस आ जाइए। संगीतकार रजत ढोलकिया भी आ रहे हैं। जुहू
शॉपिंग सेंटर के ऑफिस में मैंने गीत उन्हें थमा दिया। ‘सच है या कोई सपना, प्यारा शहर
अपना’… विजय कुमार जी सोच में पड़ गए। बोले- आपने डायरेक्ट लिख दिया है। मैंने
कहा- मैं अभी दूसरा गीत लिख देता हूं। दूसरा गीत उन्हें पसंद आ गया-
छलका है मौसम का जादू
दिल पर नशा छा रहा है
रोशनी हो गई है
मुलायम
कोई याद यूं आ रहा है
संगीतकार रजत ढोलकिया ने
सुनिधि चौहान को फ़ोन किया। सुनिधि ने बताया- कल सुबह मैं यूएस जा रही हूं। अगर आप
आज शाम को ही यह गीत रिकॉर्ड कर लें तो बेहतर होगा। रजत ढोलकिया ने तुरंत म्यूज़िक
अरेंजर सलीम सुलेमान को फ़ोन किया और काग़ज़ हाथ में लेकर गाना शुरू कर दिया। सलीम
सुलेमान ने तत्काल संगीत संयोजन किया और उनके स्टूडियो में शाम पांच बजे सुनिधि
चौहान की आवाज़ में यह गीत रिकॉर्ड हो गया।
छोटे बजट की इस फ़िल्म को
व्यावसायिक सफलता नहीं मिली मगर इतना समझ में आ गया कि फ़िल्मों में गीत लिखना कितना
चुनौतीपूर्ण काम है। बतौर सिने गीतकार यह मेरी पहली फ़िल्म थी। इस फ़िल्म से मैंने
जो कुछ सीखा वो आगे चलकर मेरे बहुत काम आया।
आपका-
देवमणि पांडेय
Devmani Pandey : B-103,
Divya Stuti,
Kanya Pada, Gokuldham, Film City Road,
Goregaon East, Mumbai-400063, M : 98210-82126
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