समीराना गीत
तुमने कभी सुना है अल्फ़ाज़ बोलते हैं
ख़ामोश रहके भी तो कुछ साज़ बोलते हैं
सिने गीतकार समीर अंजान के काव्य संग्रह का नाम है-
"समीराना गीत"। क़रीब चार दशकों के सिनेमाई सफ़र में समीर अंजान ने अनेक
ऐसे लोकप्रिय गीत दिए जो लोगों की ज़बान पर आज भी हैं। उन्हें अपने इस योगदान के
लिए तीन बार फ़िल्म फेयर अवार्ड से नवाज़ा गया।
जैसे शास्त्रीय संगीत तक पहुंचने के लिए अर्ध
शास्त्रीय संगीत से गुज़रना अच्छा लगता है उसी तरह समीरजी की यह किताब अपनी सादा
बयानी के कारण एक आम पाठक के दिल में साहित्य के प्रति लगाव पैदा करने में एक सेतु
का काम करती है।
जिसे दस्ते-क़ुदरत ने पल-पल संवारा
तुम्हें उस मुहब्बत की मूरत कहूं मैं
माना कि तुम हो बहुत ख़ूबसूरत
तुम्हें और भी ख़ूबसूरत कहूं मैं
जो सहजता और सरलता समीर के सिने गीतों में है वही
इन संग्रह की कविताओं में भी है। वे बेहद आत्मीय शैली में ऐसी विनम्रता से अपनी
सोच का इज़हार करते हैं कि उनकी बात झट से दिलों तक पहुंच जाती है -
सबके दुखते दिल की राम कहानी होना
सबसे मुश्किल है दुनिया में पानी होना
रिश्तों के शुरू फिर से कारोबार हो गए
शोहरत मिली तो सारे मेरे यार हो गए
बेसबब बेवजह मुस्कुराने लगे
तुम भी मुझसे हक़ीक़त छुपाने लगे
संग्रह की इन कविताओं में उन्होंने प्यार, मुहब्बत
और इश्क़ का इज़हार किया है मगर कुछ ऐसे अहम् सवालों के जवाब भी ढूंढ़ने की कोशिश की
है जो हमारे वक़्त के लिए ज़रूरी हैं। 'प्रदूषण' पर उनकी एक कविता है -
यह ज़मीं बिक चुकी आसमां बिक चुका
अब हवा, धूप, पानी खरीदेंगे हम
चांद झुलसेगा, बेनूर होगी सुबह
ना अंधेरे उजाले में होगी सुलह
अब ज़हर में सनी होंगी फसलें नयीं
बद्दुआएं हमें देंगी नस्लें नयीं
इनसे ज़ख्मी कहानी खरीदेंगे हम
अब हवा, धूप, पानी खरीदेंगे हम
दिल की अपनी एक दुनिया है। इस दुनिया में ख़्वाब
हैं, इश्क़ है, मिलन है, जुदाई है, तन्हाई है। सुख-दुख के तराने हैं। मुहब्बत के
अफ़साने हैं। समीर जी इनका बख़ूबी चित्रण करते हैं। साथ-साथ अपने समय से संवाद भी
करते हैं। 'जन्नत' शीर्षक से उनकी एक कविता है जिसमें कश्मीर का अक्स नज़र आता है-
अब चिनारों से भी चीख़ों की सदा आती है
जिस्म तो जिस्म है, अब रूह कांप जाती है
कैसे इंसान ने इंसान को मारा देखो
आओ जन्नत में जहन्नुम का नज़ारा देखो
समीर जिन रास्तों से गुज़रे हैं उसके उतार-चढ़ाव को,
उसकी धूप छांव और मुश्किलों को अपने शब्दों में अभिव्यक्त किया है। समीर के यहां
जीवन है और जीवन का दर्शन भी है-
जहां से बंद होते हैं सारे रास्ते
वहीं से नया रास्ता निकलता है
हम सारी उम्र जिनको समझते हैं अजनबी
उन्हीं से कोई वास्ता निकलता है
एक कवि के रूप में समीर का यह सफ़र लगातार जारी है।
उनकी कविताओं की दूसरी किताब प्रकाशनाधीन है। एक सिने गीतकार, फ़िल्म निर्माता
की फ़रमाइश पर, संगीतकार की बनाई धुन पर गीत लिखता है। मगर इससे आगे उसके सोच की एक
दुनिया होती है। इस दुनिया को सामने लाना भी एक ज़रूरी काम है। समीर ने मुक्त
मन से यह काम किया है। इसके लिए उन्हें बहुत-बहुत बधाई।
प्रकाशक : वाणी प्रकाशन, दरियागंज, नई दिल्ली, मूल्य
₹225 रूपये
देवमणि पांडेय :
बी-103, दिव्य स्तुति, कन्या पाड़ा, गोकुलधाम,
फ़िल्म सिटी रोड,
गोरेगांव पूर्व, मुंबई- 400063, 98210-82126
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