II पुस्तक समीक्षा : कवयित्री डॉ सुमन जैन II
कवयित्री डॉ सुमन जैन के हाल ही में प्रकाशित ग़ज़ल
संग्रह का नाम है- "सुना है अब उजाला हो
गया है"। सम्प्रति अरुणाचल प्रदेश के एक निजी
विश्वविद्यालय में कुलाधिपति (चांसलर) के पद पर कार्यरत डॉ सुमन जैन का इससे पहले
एक कहानी संग्रह और एक काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुका है। वे मुंबई में हिंदी काव्य
मंच की एक लोकप्रिय और गरिमा पूर्ण कवयित्री रही हैं।
हिंदी ग़ज़ल अपनी कामयाबी का सफ़र तय करते हुए आज उस
मुकाम पर पहुंच गई है जहां उस पर अनेक समालोचना और शोध ग्रंथ प्रकाशित हो चुके
हैं। इसे सहज संयोग ही कहा जाएगा कि हिंदी में संत कबीर की भी एक ग़ज़ल लोकप्रिय
है-
हमन हैं इश्क मस्ताना हमन को होशियारी क्या
रहें आज़ाद या जग में हमन दुनिया से यारी क्या
हिंदी में भारतेंदु हरिश्चंद और जयशंकर प्रसाद की
भी छिटपुट ग़ज़लें मिलती हैं मगर सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
और शमशेर बहादुर सिंह ने इस विधा आगे बढ़ाया और कई ग़ज़लें कहीं। अगर महाकवि निराला
से हिंदी ग़ज़ल की शुरूआत मानी जाए तो अब हिंदी गजल सौ साल की हो चुकी है।
महाकवि निराला अपनी हिंदी ग़ज़ल में उर्दू ग़ज़ल की
शब्दावली, भंगिमा, बिंब और प्रतीक से बिल्कुल अलग खड़े दिखाई पड़ते हैं। यानी उनके
यहां हिंदी ग़ज़ल समकालीन हिंदी कविता का अंग है। उनका एक मशहूर शेर है -
खुला भेद विजयी कहाए हुए जो
लहू दूसरों का पिए जा रहे हैं
छायावादी कविता में प्रकृति के प्रति जो अनुराग था
वह निराला की ग़ज़लों में भी दिखाई पड़ता है। निराला जी की एक ग़ज़ल का मतला और एक
शेर देखिए-
पड़े थे नींद में उनको प्रभाकर ने जगाया है
किरण ने खोल दी आंखें, गले फिर फिर लगाया है
हवा ने हलके झोंकों से प्रसूनों में महक भर दी
विहंगों ने द्रुमों पर स्वर मिलाकर राग गाया है
डॉ सुमन जैन ने अपनी ग़ज़ल में महाकवि निराला वाला
रास्ता अपनाया है। यानी उनकी ग़ज़ल हिंदी कविता का अंग बनकर आगे बढ़ती है-
स्नेह-दान तुमसे पाया है इससे जीवनदान मिलेगा
मुझको मिली तुम्हारी छाया दुर्गम पथ आसान मिलेगा
इस संग्रह की ग़ज़लों में प्रेम, देश प्रेम, प्रकृति,
पर्यावरण, राजनीति और जीवन दर्शन की झांकी दिखाई पड़ती है-
सुखों का भोग दुख देता है जी को
तरावट अश्क देते हैं हंसी को
ये दुनिया है यहां कोई तो हारे
तभी तो जीत मिलती है किसी को
किसी एक शीर्षक के तहत जैसे कविता अपना कथ्य लेकर
सामने आती है उसी तरह डॉ सुमन जैन कभी-कभी किसी एक विषय पर ही पूरी ग़ज़ल कह जाती हैं।
'नारी' पर लिखी हुई उनकी एक ग़ज़ल के दो शेर देखिए-
पद दलित किया तुमने तुमसे उद्धार मांगती है
नारी
सदियों से घायल मन का अब उपचार मांगती है नारी
मंदिर में जाकर देवी की पूजा करने वालों तुमसे
घर में घर-वाली होने का अधिकार मांगती है नारी
डॉ सुमन जैन के यहां बोलचाल की एक आत्मीय शैली है।
अपनी ग़ज़लों में वे इस शैली का बख़ूबी इस्तेमाल करती हैं।
उनकी नज़रों ने फिर पुकारा है
ज़िंदगी मिल रही दुबारा है
प्यार में प्रश्न ही नहीं उठता
कौन जीता है कौन हारा है
जीवन को देखने का, समझने का और उसे अपनी रचनात्मकता
में शामिल करने का डॉ सुमन जैन का अपना ख़ास नज़रिया है। वे कहीं ना कहीं से कुछ नया
तलाश कर लेती हैं-
कहां नहीं जीवन के दर्शन
मरघट पर भी फूल खिला है
ठंडी हवा जहां मिल जाए
अपने लिए वही शिमला है
यह भी एक सराहनीय बात है कि डॉ सुमन जैन परंपरा से
मिले प्रेम में भी अपनी शब्दावली और अपनी निजी अभिव्यक्ति के बल पर कुछ नया जोड़ने
की कोशिश करती हैं-
जब हुए दर्शन तुम्हारे मन तुम्हारा हो गया
मैं नहीं अपनी रही, जीवन तुम्हारा हो गया
अब किसी के वास्ते कोई जगह ख़ाली नहीं
मन के बीचो-बीच सिंघासन तुम्हारा हो गया
दुष्यंत कुमार के बाद से अब तक हिंदी ग़ज़ल में
बहुत कुछ कहा जा चुका है। नया कथ्य लाना, कुछ नया कहना बहुत बड़ी चुनौती है। इस
चुनौती को स्वीकार करते हुए डॉ सुमन जैन ने अपनी ग़ज़लों से जो इंद्रधनुषी तस्वीर
बनाई है उसमें उनका अपना अनुभव, अध्ययन और निरीक्षण शामिल है। सरल-सहज शब्दावली
में, बिना किसी जटिलता के वे बड़ी सहजता से अपनी बात पाठकों के दिलों तक पहुंचा
देती हैं और उनसे अपना एक आत्मीय रिश्ता कायम कर लेती हैं।
मेरी दुआ है कि डॉ सुमन जैन इसी तरह सृजनात्मकता के
पथ पर कामयाबी का नया अध्याय रचती रहें। बहुत-बहुत शुभकामनाएं।
प्रकाशक-
बोधी प्रकाशन, सी-46, सुदर्शनपुरा इंडस्ट्रियल
एरिया एक्सटेंशन,
नाला रोड, 22 गोदाम, जयपुर- 302006, दूरभाष 98290
18087
ईमेल : bodhiprakashan@gmail.com
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देवमणि पांडेय :
बी-103, दिव्य स्तुति, कन्या पाडा, गोकुलधाम,
फिल्मसिटी रोड, गोरेगांव पूर्व, मुम्बई-400063, M :
98210 82126
(14 फरवरी 2020)
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