मंगलवार, 2 जून 2020

फ़िल्म पिंजर का गीत चरखा चलाती मां


फ़िल्म पिंजर का गीत चरखा चलाती मां


अमृता प्रीतम के उपन्यास 'पिंजर' में एक दृश्य इस तरह है। नायिका 'पूरो' (उर्मिला मातोंडकर) का विवाह होने वाला है। वह ससुराल चली जाएगी तो घर सूना हो जाएगा। यह सोचकर उसकी मां (लिलेट दुबे) की आंखों में आंसू आ गए। वह दुखी मन से एक लोकगीत गुनगुगाने लगी। अमृता जी ने अपने उपन्यास 'पिंजर' में इसके लिए एक पंजाबी लोकगीत की चंद लाइनें कोट की हैं। 

पंजाबी लोकगीत की इन लाइनों को फ़िल्म 'पिंजर' के संगीतकार उत्तम सिंह ने संंगीतबद्ध किया और म्यूज़िक ट्रैक बना दिया। फ़िल्म के निर्देशक डॉ चंद्रप्रकाश ने यह तय किया कि पंजाबी लोकगीत की लाइनों को हिंदी में रूपांतरित करके रिकॉर्ड किया जाए। इस फ़िल्म में गीतकार गुलज़ार के पांच गीत रिकॉर्ड हो चुके थे। इस लोकगीत के लिए मुझे आमंत्रित किया गया।

पंजाबी लोकगीत के छंद में हिंदी गीत
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जनवरी 2002 के पहले सप्ताह में लकी स्टार एंटरटेनमेंट के कार्यालय में चंद्रप्रकाश जी के साथ मेरी मुलाक़ात हुई। सहनिर्देशक मंदिरा जी और कला निर्देशक मुनीष सपल भी वहां मौजूद थे। चंद्रप्रकाश जी ने बताया कि पंजाबी पंक्तियों का म्यूज़िक ट्रैक बन गया है। अगर आप उसी छंद में हिंदी में लिखेगें तो नई धुन और नया ट्रैक नहीं बनाना पड़ेगा। घर आकर जब मैंने इस गीत के बारे में सोचने लगा तो महसूस हुआ कि हर भाषा की अपनी ख़ूबसूरती होती है। उसके शब्दों का एक नाद सौंदर्य होता है। इन प्रभाव को दूसरी भाषा के शब्दों के ज़रिए पैदा करना बहुत मुश्किल काम होता है। पंजाबी लोकगीत की शुरुआत इस तरह होती है-

चरखा जू डाहनीयां, छोपे जो पानीयां
पिड़ियां ते वाले मेरे खेस नी

इन पंक्तियों का सीधा मतलब यही होता है- "चरखा चलाती हूं, धागा बनाती हूं, मेरे खेस (ओढ़ने की चादर) बेलबूटों वाले हैं। यानी हिंदी में सीधा अनुवाद करने से मां-बेटी का रिश्ता नहीं जुड़  पाता। ये गीत मां अपनी बेटी के लिए गा रही थी। हो सकता है कि उसने यह गीत अपनी मां से सुना हो। इस तरह इसमें तीन पीढ़ियां शामिल हो जाती हैं। मुझे लगा कि पंजाबी का यह छंद लोरी की तरह है। इसकी धुन सीधे दिलों को स्पर्श करेगी। इसलिए इस छंद को छोड़ना ठीक नहीं रहेगा।

मैंने उपरोक्त पंक्तियों का भावानुवाद इस तरह कर दिया- "चरखा चलाती मां, धागा बनाती मां, बुनती है सपनों की ख़ेस री। सपनों की चादर में बच्चों से बूटे हैं, जीवन का उजला संदेस री"।

भावानुवाद में कुछ नई पंक्तियां लिखनी पड़ी और इस गीत की लम्बाई बढ़ गई। अगले दिन संगीतकार उत्तम सिंह ने मेरे लिखे गीत को अपनी धुन पर गाकर देखा तो ख़ुश हो गए। वे बोले- पंजाबी और हिंदी गीत दोनों का मीटर एक है। इसलिए नई धुन बनाने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी।

म्यूज़िक ट्रैक पर डेढ़ मिनट का हिंदी गीत
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उत्तम सिंह का बनाया हुआ म्यूज़िक ट्रैक डेढ़ मिनट का था। चर्चा के बाद तय हुआ कि चूंकि यह गीत फ़िल्म में तीन बार बजेगा इसलिए इसकी लंबाई डेढ़ मिनट ही रखी जाए। मां के प्रति बेटी के और बेटी के प्रति मां के इमोशन को ध्यान में रखते हुए उत्तम सिंह ने मेरे गीत को संपादित किया। चार पंक्तियाँ हटाने के बाद गीत का स्वरूप इस तरह हो गया-

चरखा चलाती मां, धागा बनाती मां,
बुनती है सपनों की खेस री.
समझ न पाऊं मैं, किसको बताऊं मैं
मैया छुडाती क्यूँ देस री.

बेटों को देती है महल-अटरिया
बेटी को देती परदेस री.
जग में जनम क्यों लेती है बेटी
आये क्यूँ विदाई वाली रात री.

शनिवार 12 जनवरी 2002 को डॉ चंद्रप्रकाश का फ़ोन आया कि कल रिकॉर्डिंग है। आप सुबह दस बजे इम्पायर स्टूडियो अंधेरी आ जाइए। उन्होंने यह भी कहा कि गीत डेढ़ मिनट का है। आधे घंटे में रिकॉर्ड हो जाएगा। रविवार 13 जनवरी की सुबह दस बजे जब मैं स्टूडियो पहुंचा तो डॉ चंद्रप्रकाश जी, मंदिरा जी और उनकी यूनिट के कई लोग मौजूद थे। रिकॉर्डिंग की प्रक्रिया तो तुरंत शुरू हो गई मगर पैकअप शाम को छ: बजे के बाद ही हो पाया। यानी एक डेढ़ मिनट के एक गीत ने पूरे दिन के साथ अपना रिश्ता जोड़ लिया था। 

गीत की रिकार्डिंग में रो पड़ी गायिका
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संगीतकार उत्तम सिंह की सुपुत्री गायिका प्रीति उत्तम ने माइक संभाला। रिकार्डिंग का यह सिलसिला काफ़ी लम्बा चला। प्रीति जी बहुत इमोशनल हो गईं थी। उनकी बेहतर अदायगी से सारे लोग भाव विह्वल थे। मां की कसक और पीड़ा के साथ गीत की शुरुआत होती है। आख़िर तक पहुंचते-पहुंचते मां का चेहरा आंसुओं में भीग जाता जाता है और आवाज़ हिचकी में डूब जाती है। प्रीती उत्तम ने मां की भावनाओं को साकार करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। कई बार यह गीत गाते हुए वे सचमुच रो पड़ीं।

शाम को छ: बजे के बाद एक दूसरे से विदा लेते हुए हम लोग अवसाद में भीगे हुए मगर ख़ुश थे। एक सपने को साकार करने की दिशा में यह पहला पायदान था। यानी इस गीत की रिकॉर्डिंग के साथ निर्माणाधीन 'पिंजर' ने अपनी मंज़िल की तरफ़ क़दम बढ़ा दिया था। पंजाब और राजस्थान में 'पिंजर' की आउटडोर शूटिंग हुई। उसके बाद मुंबई के फ़िल्मसिटी स्टूडियो में अमृतसर का सेट लगाकर बाक़ी दृश्य फिल्माए गए। चंद्रप्रकाश जी के आमंत्रण पर एक दिन मैं सेट पर भी गया। वहां फ़िल्म के कलाकार उर्मिला मातोंडकर, प्रियांशु, संदली आदि से भी मुलाक़ात हुई।

रिकॉर्डिंग स्टूडियो में उद्योगपति ओसवाल
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मेरे गीत की रिकॉर्डिंग के एक साल बाद 5 जनवरी 2003 को चंद्रप्रकाश जी का फ़ोन आया। वे बोले कल दोपहर बारह बजे इस्पेक्टरल हारमोनी स्टूडियो पहुंच जाइए। निर्माता को आपका गीत बहुत पसंद आ गया है। वे इस गीत की लम्बाई बढ़ाना चाहते हैं। आप एक और अंतरा लिख लीजिए। इस अंतरे के साथ कैसेट और सीडी जारी किए जाएंगे।

अब मुझे दोबारा मां-बेटी की भावनाओं से रिश्ता जोड़ना था। मन में मां-बेटी की छवि को साकार करने में थोड़ा वक्त़ ज़रूर लगा मगर भावनाओं ने बहुत जल्दी शब्दों के साथ रिश्ता जोड़ लिया। दूसरे दिन 6 जनवरी 2003 को मैंने प्रीति उत्तम को गाते हुए सुना-

साँसों की डोरी से, आँखों की गलियों से,
क्यों देती सपनों का देस री.
ममता की बाहों में, लम्हों के धागों में
मन को लगे काहे ठेस री …

इस गीत में प्रीति जी का साथ देने के लिए यानी कोरस गान के लिए चार और गायिएं आमंत्रित की गई़ं थी। इनमें मेरे दोस्त गायक घनश्याम वासवानी की बीवी मीनाक्षी वासवानी भी थीं। उन्होंने इस सुंदर गीत के लिए मुझे बधाई दी। उस दिन स्टूडियो में फ़िल्म 'पिंजर' के निर्माता उद्योगपति ओसवाल सपरिवार मौजूद थे। उनके सामने "चरखा चलाती मां" गीत बजाया गया। उन्होंने बड़ी आत्मीयता से मुझे बधाई दी और कहा- उत्तम सिंह का संगीत और आपका यह गीत पचास साल बाद भी पुराना नहीं होगा।

बेस्ट लिरिक आफ दि इयर अवार्ड
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प्रदर्शित होने पर संवेदनशील दर्शकों ने फ़िल्म 'पिंजर' को काफ़ी सराहा मगर इसे व्यवसायिक सफलता नहीं मिली। ज़ी म्यूज़िक की ओर से "चरखा चलाती मां" गीत को वर्ष 2003 के लिए "बेस्ट लिरिक आफ दि इयर" पुरस्कार प्रदान किया गया। मगर बतौर गीतकार इसके लिए अमृता प्रीतम का नाम घोषित किया गया। चंद्रप्रकाश जी के एक मित्र ने मुझे बताया कि अमृता जी के घर से चंद्रप्रकाश जी को फ़ोन आया था और इस बात पर एतराज़ किया गया कि जब अमृता जी ने गीत नहीं लिखा तो उनके नाम की घोषणा कैसे की गई। अमृता जी उस समय काफ़ी बीमार चल रहीं थीं। शायद इसलिए उनकी तरफ से कोई स्पष्टीकरण नहीं आया। पुरस्कार की वह ट्राफी चंद्रप्रकाश जी के घर की शोभा बढ़ा रही है। उन्होंने मुझे दिया नहीं और मैंने भी उनसे मांगा नहीं।

चंद्रप्रकाश जी ने पहली बैठक में मुझसे हाथ मिलाते हुए कहा था- देवमणि जी, यह गीत आपको लिखना है। इसके लिए हम आपको नाम और दाम दोनों देंगे। उन्होंने दाम तो दिया मगर नाम देने में कोई मजबूरी सामने आ गई। उन्होंने फ़िल्म की रोलिंग टाइटल में मेरा नाम बतौर अनुवादक डाल दिया। कैसेट, सीडी या किसी भी प्रचार सामग्री में मेरा नाम नहीं दिया गया। 

अमृता प्रीतम हिंदी में गीत नहीं लिखतीं
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जब "चरखा चलाती मां" गीत को सर्वोत्तम पुरस्कार घोषित किया गया तो मैंने अपने गीत की स्क्रिप्ट फिल्म राइटर्स एसोसिएशन के महासचिव राजेंद्र सिंह आतिश को दिखाई। उन्होंने मेरे सामने ही चंद्रप्रकाश जी को फोन किया है और कहा- "चंद्रप्रकाश जी, यह गीत अमृता प्रीतम का नहीं है। वास्तव में ये एक लोकगीत की कुछ पंक्तियां हैं। मेरे पास पंजाबी लोकगीतों की किताब है। मैं उसे आपको दिखा सकता हूं। दूसरी बात यह है कि पंजाबी लोकगीत की चंद लाइनों के आधार पर पांडेय जी ने सोलह पंक्तियों का स्वतंत्र गीत लिखा है। इसलिए बतौर गीतकार इनका नाम जाना चाहिए। पांडेय जी ने अनुवाद नहीं किया है क्योंकि उन्हें पंजाबी नहीं आती। और अमृता प्रीतम हिंदी में गीत नहीं लिखतीं।" आतिश जी ने कहा "पांडेय जी मैं अमृता प्रीतम से बात करता हूं क्योंकि इस पुरस्कार के असली हक़दार आप हैं"। मैंने उन्हें मना कर दिया क्योंकि उस समय अमृता प्रीतम जी गम्भीर रूप से बीमार थीं।

फ़िलहाल चंद्रप्रकाश जी पृथ्वीराज चौहान पर एक बड़ी फिल्म निर्देशित कर रहे हैं। मेरी शुभकामना है कि वे अपने इस मिशन में कामयाब हों।

फ़िल्म पिंजर का गीत
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चरखा चलाती मां
धागा बनाती मां
बुनती है सपनों की खेस री

समझ न पाऊं मैं
किसको बताऊं मैं
मैया छुडाती क्यूँ देस री

बेटों को देती है महल अटरिया
बेटी को देती परदेस री
बेटों को देती है महल अटरिया
बेटी को देती परदेस री

जग में जनम क्यों लेती है बेटी
जग में जनम क्यों लेती है बेटी
आये क्यूँ विदाई वाली रात री
आये क्यूँ विदाई वाली रात री
आये क्यूँ विदाई वाली रात री

साँसों की डोरी से
आँखों की गलियों से
क्यों देती सपनों का देस री

साँसों की डोरी से
आँखों की गलियों से
क्यों देती सपनो का देस री

ममता की बाहों में
लम्हों के धागों में
मन को लगे काहे ठेस री

बेटों को देती है महल अटरिया
बेटी को देती परदेस री
बेटों को देती है महल अटरिया
बेटी को देती परदेस री

जग में जनम क्यों लेती है बेटी
जग में जनम क्यों लेती है बेटी
आये क्यूँ विदाई वाली रात री
आये क्यूँ विदाई वाली रात री
आये क्यूँ विदाई वाली रात री

आपका-
देवमणि पांडेय

Devmani Pandey : B-103, Divya Stuti, Kanya Pada, Gokuldham,
Film City Road,Goregaon East, Mumbai-400063, M : 98210-82126
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