बुधवार, 24 जून 2020

अरुण शेखर का काव्य संग्रह : मेरा ओर न छोर



 दिल पर दस्तक देतीं कविताएं

अरुण शेखर के प्रथम काव्य संग्रह का नाम है 'मेरा ओर न छोर'। अरुण शेखर एक संवेदनशील कवि होने के साथ ही कुशल अभिनेता और समर्पित रंगकर्मी हैं। उन्होंने हिंदी और संस्कृत के कई नाटकों, टीवी धारावाहिकों और फ़िल्मों में अभिनय किया है। आवाज़ की दुनिया में भी अरुण शेखर की सक्रियता सराहनीय है। इन्हीं कलाओं से उनका कवि व्यक्तित्व निर्मित हुआ है। इन कलाओं का हुनर और असर उनकी काव्यात्मक अभिव्यक्ति में शामिल है। इसलिए ये कविताएं दिल के बहुत क़रीब लगती हैं।

किरदार जिओ 
सब छोड़ जाओ 
उससे ऐसे मुक्त हो जाओ 
जैसे तुम कभी मिले ही नहीं 
उसे जाना ही नहीं

सरल सहज भाषा में लिखी गईं इन कविताओं में आम आदमी के जज़्बात, ख़्वाब, ख़ुशी, ख़्वाहिश और उम्मीदें शामिल हैं। इन साफ़ सुथरी कविताओं में निहित भावनाओं की सुगंध को कोई भी सहृदय पाठक महसूस कर सकता है।

बारिश में भीगे पल 
अंकुवाते हैं 
तुम्हारी याद बनकर 
उसका हरापन ही 
झलकता है 
मेरी आंखों में 
जब तब

कवि में परवाज़ करने का जज़्बा है। संघर्ष में टूटने बिखरने और फिर से खड़ा होने का हौसला है। कभी-कभी सपनों के टूटने की आवाज़ भी सुनाई पड़ती है। कहीं उम्मीद की एक लौ नज़र आती है। कहीं रोशनी की एक लकीर दिखाई पड़ती है। कवि अपना साहस समेट कर फिर से खड़ा हो जाता है।

कविता कम शब्दों में ज़्यादा बात कहने की कला है। अरुण शेखर ने इस कला को साध लिया है। एक छोटी सी कविता में वे एक जीवन गाथा का चित्रण कर जाते हैं। देखिए हमारे समाज में प्रेम करने वाली एक लड़की की दास्तान-

पेड़/ घोंसला/ आसमान/ 
उड़ान/ पंख/ पिंजरा/ 
चलो/ अब मैं लिखता हूं/
 चिड़िया.../ नहीं.../ प्रेयसी!

अरुण शेखर के इस काव्य संग्रह की कविताओं में सहजता, सरलता और प्रवाह है। बोलचाल की आत्मीय शैली में लिखी गईं ये कविताएं दिलों पर दस्तक देने में समर्थ हैं। संग्रह की पहली कविता है 'समय'। समय को शब्दों में ढालने का कवि का यह हुनर क़ाबिले तारीफ़ है-

समय कभी-कभी ऐसे सरकता है  
कि जैसे पांव में बांध लिए हों पत्थर 
और कभी-कभी ऐसे फुर्र हो जाता है 
जैसे अभी पलक झपकी 
जैसे कोई पत्ता हिला 
जैसे किसी ने कहा हो, अरे!

कविता हमारी ज़िंदगी में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। कवि अरुण शेखर ने स्वीकार किया है कि कविताएं, सपने और संघर्ष यह तिकड़ी कहीं न कहीं उन्हें परिभाषित करती है। कविता ने ही उन्हें हिम्मत दी। संघर्ष का सामना करने की ताक़त दी। आगे बढ़ने का हौसला दिया। उनकी कविताएं एक सुविचार की तरह हमारे सामने उतरती हैं। 

कैसे बनती है बड़ी कविता 
प्रेम में पगने से 
आग में तपने से 
या कि ज़िंदगी में जूझने से

कविता के ज़रिए कवि अपने सरोकार, सोच और अनुभवों को साझा करता है। अरुण शेखर की इन कविताओं में गांव से महानगर में आए हुए एक नौजवान के सपने हैं, मुहब्बत है। ज़िंदगी की दास्तान है। ज़िंदगी का दर्शन है। ज़िंदगी की आख़िरी मंज़िल मौत होती है। देखिए अरुण ने 'मृत्यु' कविता में मृत्यु को कैसे परिभाषित किया है-

मृत्यु उसी की हुई है 
जिसने जिया नहीं है 
ज़िंदगी को 
सांस रुकने को 
हम मरना कह नहीं सकते, 
वह तो बस…
चिर निद्रा हुई…

कविता अभिव्यक्ति का एक ऐसा सशक्त माध्यम है जिसके ज़रिए हम अपने समय और समाज के अहम् सवालों को सामने लाते हैं। जिस दौर में हम आज जी रहे हैं उस दौर में भावनाओं से ऊपर उठकर इंसान को व्यावहारिकता का दामन थामना पड़ता है। इस सोच और सचाई को अरुण शेखर को अपनी अभिव्यक्ति में इस तरह साकार करते हैं-

लोगों के दुख से कातर मत होना 
पीछे रह जाओगे 
ऐसे लोग इतिहास में दर्ज नहीं होते 
ऐसा समझाया लोगों ने
कंधा ज़रूरी है मंज़िल तक जाने के लिए
किसी का भी हो

कुछ चरित्र हमारे आसपास होते हैं जिनको हम रोज़ देखते हैं जैसे कोई लड़की। ऐसे चरित्रों को अभिव्यक्ति के दायरे में लाना आसान नहीं है। 'लड़की' कविता में
 देखिए कवि अरुण शेखर ने अपने नज़रिए से इस चरित्र को कैसे परिभाषित किया है-

लड़की पत्थर पर उगी हुई
छुई मुई है
फाहे की रुई है 
लड़की सांझ सुरमई है 
आस है, प्यास है 
लड़की जीवन का मधुमास है

ज़िंदगी के सफ़र में मुहब्बत के धागों से जो रिश्ते बुने जाते हैं उन रिश्तों में आत्मीयता की सुगंध और भावनाओं की गहराई होती है। रिश्तों की यह मौजूदगी अरुण शेखर की 'सुनो' कविता में दिखाई पड़ती है। बिछड़ने के बाद भी कैसे कोई अपनी मौजूदगी का एहसास छोड़ जाता है इस एहसास को आप 'सुनो' कविता में महसूस कर सकते हैं-

सुनो! 
एक दिन मैं घुल जाऊंगा 
मौसम में... 
पर महकता रहूंगा 
तुम्हारी सांसों में 
बतियाता रहूंगा तुम्हारी बातों में 
तुम्हारे होठों पर कभी भी मुस्कुराऊंगा तुम्हारी आंखों में चमकता रहूंगा 
सपना बनकर 
तुम देख लेना

अरुण शेखर की इन कविताओं में कहीं भी कोई जटिलता, उलझन या बाधाएं नहीं हैं। कोई बौद्धिक दबाव नहीं है। इनमें दिल भी है और दिमाग़ भी। अरुण शेखर अपने दिली जज़्बात, सामाजिक सरोकार और वक़्त के सवालों को अपनी इस काव्यात्मक अभिव्यक्ति में शामिल करने में कामयाब हुए हैं। मेरी दुआ है कि वे इसी तरह रचनात्मक उड़ान भरते रहें। कविता के कैनवास पर भावनाओं के रंगों से ज़िंदगी की ख़ूबसूरत तस्वीर बनाते रहें।

प्रकाशक : इंडिया नेट बुक्स नई दिल्ली 
 मूल्य : ₹250 (हार्ड बाइंड), ₹200 (पेपर बैक)

आपका-
देवमणि पांडेय

सम्पर्क : बी-103, दिव्य स्तुति, 
कन्या पाड़ा, गोकुलधाम, फ़िल्म सिटी रोड, 
गोरेगांव पूर्व, मुंबई- 400063, 98210-82126
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