संगीतकार ख़्य्याम बीवी जगजीत कौर और बेटे प्रदीप के साथ |
मुम्बई के बॉलीवुड में संगीतकार ख़य्याम
सागर सरहदी ने कहा- ख़य्याम साहब संगीत के जादूगर हैं। मैं इस जादूगर से मिलने चला गया। दिसंबर 1991 में हमारी मुलाक़ात हुई। ख़य्याम साहब बोले- फ़िल्म 'बाज़ार' में सागर सरहदी ने पांच क्लासिक रचनाओं को मेरे सामने रखकर एक बहुत बड़ा ख़तरा मोल लिया था। आमतौर पर लोगों की यह धारणा बन गई है कि उच्च स्तर की कविता आम आदमी की समझ में नहीं आती। हमने इस धारणा को तोड़ने की कोशिश की और कामयाब हुए।
फ़िल्म 'बाज़ार' का हर गीत सुपरहिट हुआ
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"दिखाई दिए यूं कि बेख़ुद किया" मीर तकी मीर की, "फिर छिड़ी बात रात फूलों की" मख़दूम की, "करोगे याद तो हर बात याद आएगी" बशर नवाज़ की और "देख लो आज हमको जी भर के" मिर्ज़ा शौक़ की रचना थी। एक पारंपरिक गीत था- "चले आओ सैया रंगीले मैं वारी रे।" फ़िल्म 'बाज़ार' का हर गीत सुपरहिट हुआ। हमने यह साबित कर दिया कि इस देश के आम आदमी की रुचि निम्न स्तरीय नहीं है। अगर उनको अच्छी चीज़ें सलीक़े से दी जाएं तो वे पसंद करते हैं। यही 'बाज़ार' के साथ हुआ और 'उमराव जान' के साथ भी। 'उमराव जान' में शहरयार की पांच ग़ज़लों के अलावा साथ सात सौ साल पहले के शायर अमीर ख़ुसरो की रचना थी- "काहे को ब्याही विदेस"। इसको भी आम जनता ने पसंद किया। जनता की रुचि की क़द्र करना बहुत जरूरी है।
शोहरत की बुलंदी पर संगीतकार ख़य्याम
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आहिस्ता आहिस्ता, बाज़ार, उमराव जान, ख़ानदान, थोड़ी सी बेवफ़ाई, चंबल की क़सम, नूरी त्रिशूल, कभी कभी जैसी सुपरहिट फ़िल्मों में लाजवाब संगीत देकर ख़य्याम ने साबित किया कि वे सचमुच संगीत के जादूगर हैं। 'कभी-कभी' के संगीत की कामयाबी ने ख़य्याम साहब को शोहरत की बुलंदी पर पहुंचा दिया। यश चोपड़ा, साहिर लुधियानवी की नज़्म 'कभी-कभी' के घोर प्रशंसक थे। उसी नज़्म को केंद्र में रखकर उन्होंने पटकथा लिखवाई। एक तरफ़ इसमें संजीदा शायर के रूप में अमिताभ बच्चन थे तो दूसरी ओर तेज़ रफ़्तार युवा पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करने वाले ऋषि कपूर और नीतू सिंह थे। इस चुनौती को स्वीकार करते हुए ख़य्याम साहब ने "कभी-कभी मेरे दिल में ख़याल आता है" और "मैं पल दो पल का शायर हूं" की संजीदा धुनें बनाईं। दूसरी ओर "तेरे चेहरे से नज़र नहीं हटती" और "तेरा फूलों जैसा अंग" गीतों के लिए लोक संगीत पर आधारित फास्ट धुनें बनाईं। फ़िल्म 'त्रिशूल' में तीन पीढियां थीं। संगीत देते समय ख़य्याम साहब ने तीनों का ख़याल रखा। उन्होंने नए दौर के मिज़ाज के अनुसार "गापुची गापुची गम गम" गीत एक अत्याधुनिक जोड़े सचिन और पूनम ढिल्लों के लिए संंगीतबद्ध किया। "मुहब्बत बड़े काम की चीज़ है" और "जानेमन तुम कमाल करती हो" जैसे गीतों के ज़रिए ख़य्याम साहब ने साबित किया कि किरदार के अनुसार ही गीत के बोल और धुनें होती हैं।
सिने संगीत में कामयाबी का कीर्तिमान
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ख़य्याम साहब ने बताया- अपने 40 वर्ष के कैरियर में मैंने सिर्फ़ 50 फ़िल्मों में संगीत दिया। इनमें 98% गीत लोकप्रिय हुए। मैं एक वर्ष में दो ही फ़िल्मों में संगीत देना उचित समझता हूँ क्योंकि धुन तैयार करने में बहुत लगन और परिश्रम की आवश्यकता होती है। बीच में जो समय मिलता है उसमें मैं ग़ैर फ़िल्मी रचनाओं की धुनें तैयार करता हूं। मैंने बेगम अख़्तर, मुकेश, रफ़ी और मीना कुमारी के लिए कई ग़ैर फ़िल्मी रचनाओं को संगीतबद्ध किया। रफ़ी की आवाज़ में मधुकर राजस्थानी के भजन "श्याम से नेहा लगाए" और "तेरे भरोसे नंदलाला" बेहद लोकप्रिय हुए। रफ़ी की आवाज़ में ग़ालिब की ग़ज़ल- "ये न थी हमारी क़िस्मत" और दर्द मिन्नत कशे दवा न हुआ" तथा दाग़ देहलवी की ग़ज़ल "ग़ज़ब किया तेरे वादे पर ऐतबार किया" बहुत लोकप्रिय हुई। "ग़ज़ब किया.." दाग़ की इस ग़ज़ल को एक चुनौती के तौर पर मैंने टीवी सीरियल 'सुनहरे वरक़' के लिए दोबारा नई धुन में बांधा।
संगीतकार ख़य्याम और बेगम अख़्तर
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ख़य्याम साहब ने पुरानी यादों की खिड़की खोल दी। बोले- बेगम अख़्तर महान गायिका थीं। एक दिन उन्होंने एचएमवी के ऑफिस से मुझे फ़ोन किया- ख़य्याम साहब, मैं आपके साथ गाना चाहती हूं। मेरे संगीत निर्देशन में उनका पहला रिकॉर्ड बना- 'कलाम ए असातजा' (उस्तादों का कलाम)। रिकॉर्डिंग के बाद जब उन्होंने ख़ुद को सुना तो बोलीं- ख़य्याम साहब आपके संगीत के साथ अपनी आवाज़ को सुनकर लग रहा है जैसे मैं बीस साल छोटी हो गई हूं। इसके बाद उन्होंने मेरे साथ अपना एक और संगीत अल्बम 'बेगम अख़्तर' नाम से रिकॉर्ड कराया। एचएमवी ने मिर्ज़ा ग़ालिब की याद में एक रिकॉर्ड जारी किया था- 'पोट्रेट आफ ए जीनियस'। इसमें ग़ालिब की नौ ग़ज़लें शामिल थीं। सात मुहम्मद रफ़ी ने और दो बेगम अख़्तर ने गाई थीं। यह रिकार्ड भी काफ़ी पसंद किया गया। मैं अब तक डेढ़ सौ से अधिक ग़ैर फ़िल्मी रचनाओं को संगीतबद्ध कर चुका हूं।
रज़िया सुल्तान के गायक कब्बन मिर्ज़ा
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संगीतकार ख़य्याम ने नए शायरों और गीतकारों के साथ भी बेहद ईमानदारी के साथ काम किया। उन्होंने मधुकर राजस्थानी, चंद्रशेखर पांडेय, मीना कुमारी, नक़्श लायलपुरी, निदा फ़ाज़ली और बशर नवाज़ की रचनाओं को संगीतबद्ध करके यादगार बना दिया। सभी को कामयाबी दिलाई। उन्होंने कई नए गायकों पर भरोसा किया। उन्हें गाने का मौक़ा दिया। ख़य्याम साहब के अनुसार हर शख़्स पहले नया होता है। उसे कभी निराश नहीं करना चाहिए। नई आवाज़ में भी एक ख़ूबसूरती होती है। लोग उसे पसंद करते हैं।
विविधभारती में मेरे एक उदघोषक दोस्त थे कब्बन मिर्ज़ा। सिगरेट पीने की लत के कारण उनके गले में कैंसर हो गया। एक दिन अचानक उनकी आवाज़ चली गई। इस हादसे से पहले फ़िल्म 'रज़िया सुल्तान' में ख़य्याम साहब ने कब्बन मिर्ज़ा को गायक बनने का मौक़ा दिया था। उनकी आवाज़ म़े दो ग़ज़लें रिकॉर्ड की थीं- "आई ज़ंजीर की झन्कार ख़ुदा ख़ैर करे" और "तेरा हिज्र मेरा नसीब है"। इन दोनों ग़ज़लों को संगीत प्रेमियों ने पसंद किया। आप समझ सकते हैं कि इस ख़ूबसूरत कारनामे से ख़य्याम साहब ने कब्बन मिर्ज़ा के परिवार को और उनके दोस्तों को कितना बड़ा तोहफ़ा दे दिया है।
मुज़फ्फ़र अली की फ़िल्म 'अंजुमन' में ख़य्याम साहब के संगीत निर्देशन में शबाना आज़मी ने दो ग़ज़लें गाईं- "ऐसा नहीं कि इसको नहीं जानते हो तुम" और "मैं राह कब से नई ज़िंदगी की तकती हूँ"। 'एक नया रिश्ता' में अभिनेत्री रेखा ने भी एक गीत गाया- "एहसास का सौदा है।" 'उमराव जान' में नए गायक तलत अज़ीज़ ने गाया- "ज़िंदगी जब भी तेरी बज़्म में लाती है हमें।" इन सभी को पसंद किया गया।
बालक ख़य्याम का हीरो बनने का ख़्वाब
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बचपन में ही मुहम्मद ज़हूर हाशमी उर्फ़ ख़य्याम हीरो बनने का ख़्वाब लिए जालंधर से भागकर चाचा के यहां दिल्ली पहुंच गए थे। चाचा ने उन्हें संगीत सीखने के लिए हुस्नलाल भगत राम के बड़े भाई पं अमरनाथ के पास रख दिया। उस समय फ़िल्मों में संवाद कम और गाने ज़्यादा होते थे। अपनी बात गा गा कर समझानी पड़ती थी। इसलिए संगीत की जानकारी बहुत ज़रूरी थी। ख़य्याम ने पांच साल तक संगीत सीखा।
कुछ साल बाद दोबारा हीरो बनने का ख़्वाब लिए ख़य्याम जालंधर पहुंच गए। काम नहीं मिला। मायूस होकर घर लौटे और फ़ौज में भर्ती हो गए। सन 1943 से 1945 तक ख़य्यामब ने दो साल फ़ौज की नौकरी की। विश्व युद्ध समाप्त हुआ। सैनिकों की ज़रूरत कम हो गई। सरकार ने कहा- अगर कोई अपनी मर्ज़ी से नौकरी छोड़ना चाहे तो छोड़ सकता है। ख़य्याम ने फ़ौज की नौकरी छोड़ दी। जालंधर आकर उस समय के एक बहुत बड़े संगीतकार चिश्ती साहब के सहायक बन गए।
बॉलीवुड में संगीतकार शर्माजी वर्माजी
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बीआर चोपड़ा की फ़िल्म 'चांदनी चौक' के संगीतकार चिश्ती साहब ने कहा- आठ महीने तक तुम्हें कोई वेतन नहीं मिलेगा। मगर ख़य्याम के परिश्रम और अच्छे काम को देखते हुए चोपड़ा साहब ने ₹125 माहवार वेतन दिया। उस समय यह काफ़ी बड़ी रकम थी। सन 1947 में एचएस रवेल की फ़िल्म 'झूठी क़समें' के संगीत के लिए कोलकाता जाना हुआ। वहां काम ख़त्म करके ख़य्याम सीधे मुंबई पहुंच गए। यहां हुस्नलाल भगतराम के सहयोग से फ़िल्म निर्माता वली साहब से मुलाक़ात हुई। उस समय की मशहूर अदाकारा मुमताज़ शांति वली साहब की बीवी थीं।
ख़य्याम ने वली साहब की फ़िल्म 'हीर रांझा' का संगीत तैयार किया। ख़य्याम के संगीत पार्टनर थे रहमान। दोनों ने 'शर्माजी वर्माजी' नाम से पांच फ़िल्मों में संगीत दिया। फ़िल्म 'रोमियो जूलियट में' फ़ैज़ साहब का कलाम ख़य्याम साहब ने गाया- "दोनों जहान तेरी मुहब्बत में हार के।" इसमें ज़ोहराबाई अंबाले वाली ख़य्याम साहब की सहगायिका थीं। सन 1950 में वली साहब की फ़िल्म 'बीवी' में ख़य्याम का संगीतबद्ध किया गया गीत "अकेले में वो घबराते तो होंगे" काफ़ी लोकप्रिय हुआ।
शर्मा जी बन गए संगीतकार ख़य्याम
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एक दिन वली साहब ने ख़य्याम को अली सरदार जाफ़री का एक कलाम दिया- "शामे ग़म की क़सम आज ग़मगीं हैं हम।" वली साहब ने कहा- मैं तुम्हें ग़ुलाम हैदर और नौशाद की दो-तीन धुनें बताता हूं। उसे ही थोड़ा हेरफेर के साथ प्रस्तुत कर दो। ख़य्याम को यह काम अपनी प्रतिभा और स्वाभिमान के विपरीत लगा। उन्होंने वली साहब का साथ छोड़ दिया। ख़य्याम ने अपनी नई धुन बनाई। फ़िल्म 'फुटपाथ' (1953) में तलत महमूद ने "शामे ग़म की क़सम" गाया। इसे ख़ूब लोकप्रियता मिली। इसी फ़िल्म के साथ शर्माजी ने वर्माजी का साथ छोड़कर अपना नाम 'ख़य्याम' रख लिया।
ख़य्याम साहब बोले- यह क्रेडिट में ईश्वर को देता हूँ। एक ग़लत समझौते को ठुकराने की हिम्मत उसने मुझे दी। अपने बीवी बच्चों के सहयोग के बिना मैं कभी भी इस मुकाम पर नहीं पहुंच सकता था। उन्होंने कभी मुझसे कोई डिमांड नहीं की। हर हाल में मेरे साथ रहे। अगर वे सहयोग न करते तो मैं कोई ग़लत समझौता भी कर सकता था।
ख़य्याम साहब की बीवी जगजीत कौर मशहूर पंजाबी गायिका हैं। पूरे कैरियर के दौरान बीवी से ख़य्याम ने अब तक सिर्फ़ तीन ही गाने गवाए हैं- "तुम अपना रंजो ग़म" (शगुन), "काहे को ब्याही विदेस" (उमराव जान) तथा "देख लो आज हमको जी भर के" (बाज़ार)। निर्माताओं के आग्रह पर ही ख़य्याम साहब अपनी बीवी से गवाते हैं। फ़िल्म 'उमराव जान' की गायिका के रूप में पहला नाम लता मंगेशकर का था। बीवी जगजीत कौर के सुझाव पर ख़य्याम साहब ने आशा जी का सुर नीचे करवाकर भरपूर रिहर्सल करवाई। पहली ग़ज़ल रिकॉर्ड हुई। आशा भोसले अपनी आवाज़ सुनकर आश्चर्यचकित रह गईं। उमराव जान के गीतों की लोकप्रियता से आप वाक़िफ़ हैं।
सिने संगीतकार ख़य्याम को सलाम
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संगीत के प्रति समर्पित ख़य्याम को सन् 2011 में भारत सरकार ने पद्मभूषण से सम्मानित किया। उनकी फ़िल्म 'उमराव जान' को फ़िल्म फेयर अवार्ड और नेशनल अवार्ड मिला। फ़िल्म ‘कभी-कभी’ को भी फ़िल्म फेयर अवार्ड मिला था। मध्य प्रदेश सरकार ने उन्हें लता मंगेशकर पुरस्कार से सम्मानित किया। संगीत के इस सुरीले सफ़र में संगीतकार ख़य्याम ने सिने संगीत के इतिहास में ऐसे कारनामों को अंजाम दिया जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता। उनका सुरीला संगीत, संगीत प्रेमियों के दिलों में धड़कन बनकर हमेशा धड़कता रहेगा।
18 फ़रवरी 1927 को पंजाब में जन्मे संगीतकार ख़य्याम का इंतक़ाल 92 साल की उम्र में 19 अगस्त 2019 को मुम्बई में हुआ। बॉलीवुड के ज़रूरतमंद कलाकारों के लिए उन्होंने अपने 90वें जन्मदिन पर एक ट्रस्ट बनाया। ख़य्याम साहब ने अपने जीवन भर की कुल जमा पूंजी लगभग 12 करोड़ रुपए की धनराशि ट्रस्ट को सौंप दी। गायक तलत अज़ीज़ और उनकी पत्नी वीना को उन्होंने मुख्य ट्रस्टी बनाया। इस नेक काम के लिए संगीतकार ख़य्याम को सलाम।
पेश है फ़िल्म 'कभी.कभी' से संगीतकार ख़य्याम द्वारा संगीतबद्ध साहिर लुधियानवी का यह गीत।
मैं पल दो पल का शायर हूँ
पल दो पल मेरी कहानी है
पल दो पल मेरी हस्ती है
पल दो पल मेरी जवानी है
मैं पल दो पल का शायर हूँ ….
मुझसे पहले कितने शायर
आए और आकर चले गए
कुछ आहें भर कर लौट गए
कुछ नग़मे गाकर चले गए
वो भी एक पल का क़िस्सा थे
मैं भी एक पल का क़िस्सा हूँ
कल तुमसे जुदा हो जाऊँगा
गो आज तुम्हारा हिस्सा हूँ
मैं पल दो पल का शायर हूँ …..
कल और आएंगे नग़मों की
खिलती कलियाँ चुनने वाले
मुझसे बेहतर कहने वाले
तुमसे बेहतर सुनने वाले
कल कोई मुझको याद करे
क्यूँ कोई मुझको याद करे
मसरूफ़ ज़माना मेरे लिये
क्यूँ वक़्त अपना बरबाद करे
मैं पल दो पल का शायर हूँ
🔺🔺🔺
आपका-
देवमणि पांडेय
Devmani
Pandey : B-103, Divya Stuti,
Kanya Pada, Gokuldham, Film City Road,
Goregaon
East, Mumbai-400063, M :
98210-82126
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