बॉलीवुड में गीतकार आनंद बख़्शी
कोई हसीना जब रूठ जाती है
और भी हसीन हो जाती है
टेशन से गाड़ी जब छूट जाती
है एक दो तीन हो जाती है
यह मुखड़ा निर्देशक राज
सिप्पी को गीतकार आनंद बख़्शी ने अपने संघर्ष के दिनों में सुनाया था। राज सिप्पी
ने मुखड़ा रिजेक्ट कर दिया। कहा- ये एक दो तीन क्या है? ये नहीं चलेगा। कई साल बाद
राज सिप्पी ने फ़िल्म 'शोले' के गीत लिखने के लिए आनंद बख़्शी से अनुरोध किया। आनंद बख़्शी ने यही
मुखड़ा सामने रख दिया। बोले- इसे रिकॉर्ड कीजिए। राज सिप्पी को ये मुखड़ा रिकॉर्ड
करना पड़ा।
कार्टर रोड, बांद्रा के
आवास 'कोस्टा बेले' में आनंद बख़्शी से 20 मार्च सन् 2001 में मुलाक़ात हुई। फ़िल्म
जगत में प्रचलित यह क़िस्सा मैंने उन्हें सुनाया। वे हंसने लगे। बोले- हमारे फ़िल्म
जगत में ऐसे मज़ेदार क़िस्से लोग गढ़ लेते हैं। मुझे फ़िल्म 'शोले' में सिचुएशन बताई
गई कि वीरू (धर्मेंद्र) मज़ाकिया इंसान है। गीत उसी अंदाज़ में होना चाहिए। चरित्र
के हिसाब से मैंने फोक स्टाइल में यह गीत लिख दिया।
दुनिया में कितना ग़म है
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लाल रंग की टीशर्ट और ख़ाकी
हाफ पैंट में ऊंचे क़द के आनंद बख़्शी काफ़ी स्मार्ट दिख रहे थे। बोले- एक महीने से
बीमार था। अब जाकर ठीक हुआ हूं। आपसे गपशप करना अच्छा लग रहा है। मैंने कहा- अपने
गीतों की कामयाबी का श्रेय आप किसे देना चाहेंगे। वे झट से बोले- मैं नॉन मैट्रिक
यानी कम पढ़ा लिखा इंसान हूं। आसान ज़बान में लिखता हूं। मेरे गीत लोगों की समझ में
आ जाते हैं। इसलिए लोग पसंद करते हैं।
दुनिया में कितना ग़म है,
मेरा ग़म कितना कम है
लोगों का ग़म देखा तो, मैं
अपना ग़म भूल गया
बख़्शी साहब ने बताया- मैं
जब यहां आया तो मेरे सामने मजरूह सुल्तानपुरी, कैफ़ी आज़मी, साहिर लुधियानवी और
शकील बदायूंनी जैसे बहुत बड़े बड़े शायर थे। मैं तो तुकबंदी करने वाला एक साधारण
गीतकार था। मेरा अंदाज़ लोगों को पसंद आ गया।
दुनिया में सबका कहां है
ऐसा नसीब है
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आनंद बख़्शी का जन्म
रावलपिंडी में हुआ था। विभाजन के बाद एक घर की तलाश में उनके परिवार को काफ़ी भटकना
पड़ा। उन्हें बचपन से ही गाने का शौक़ था। त्योहारों और घरेलू उत्सवों में गाते
गाते गीत भी रचने लगे। बड़े हुए तो फ़ौज की नौकरी कर ली। नौकरी के दौरान वे
अक्सर सोचते- क्यों न फ़िल्मों में गीत लिखे जाएं! एक दिन वे नौकरी छोड़ कर मुंबई आ
गए। क़िस्मत ने साथ नहीं दिया तो वापस लौट गए। फिर से फ़ौज में भर्ती हो गए। शादी
की और जब दो बच्चों के बाप बन गए तो क़िस्मत आज़माने सन 1956 में फिर से मुंबई पहुंच
गए। आनंद बख़्शी ने बताया- अगर मुझे रेलकर्मी छतरमल जी न मिलते तो मैं फिर वापस चला
जाता।
आनंद बख़्शी बोरीवली लोकल
में यात्रा कर रहे थे। सामने एक सीधे-साधे इंसान थे। उन्होंने पूछा- आप क्या करते
हैं? इन्होंने बताया- गीत लिखता हूं। वे बोले- कुछ सुनाइए।। बख़्शी साहब ने सुनाया।
छतरमल जी बहुत प्रभावित हुए। बोरीवली के अपने रेलवे क्वार्टर में ले गए। बोले- मैं
यहां अकेला रहता हूं। आप जब तक चाहें मेरे साथ रह सकते हैं। छतरमल जी अच्छे आदमी
थे। चुपके से आनंद बख़्शी के पर्स की तलाशी लेते। अगर उसमें पैसा न हुआ तो तो
दस-बीस रूपए डाल देते।
परदेसियों से ना अखियां
मिलाना
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सन 1956 में आनंद बक्शी ने
भगवान दादा की फ़िल्म 'भला आदमी के गीत' लिखे। फ़िल्म फ्लॉप हो गई। किसी ने ताना
दिया- तुम्हारी ज़रूरत सेना को है, फिल्म इंडस्ट्री को नहीं। कुछ साल भटकने के बाद
सन् 1962 में निर्माता हिरेन खेड़ा ने 'मेहंदी लगे मेरे हाथ' फ़िल्म में अवसर दिया।
फ़िल्म चल गई। उसी साल दूसरी फ़िल्म मिली 'जब जब फूल खिले'। इस फ़िल्म में आनंद बख़्शी
के गीतों ने पूरे हिंदुस्तान में धूम मचा दी-
परदेसियों से ना अखियां
मिलाना
परदेसियों को है इक दिन
जाना
आराधना, अमर प्रेम, दो
रास्ते, दुश्मन, कटी पतंग, सच्चा झूठा, हाथी मेरे साथी, प्रेम नगर, महबूबा, आप की
क़सम आदि फ़िल्मों में आनंद बख़्शी ने राजेश खन्ना को एक से बढ़कर एक सुपरहिट गीत दिए
गीत दिए। "ऐसा कहा जाता है आनंद बख़्शी के गीतों ने राजेश खन्ना को सुपरस्टार
बना दिया।" मेरे इस सवाल पर वे मुस्कुराए- "मेरे गीत सुपरस्टार राजेश
खन्ना पर फ़िल्माए गए इसलिए वे सुपरहिट हो गए"।
वो बादल राजा कहां से आए
तुम
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आनंद बख़्शी को अगर धुन
पसंद नहीं आती थी तो वे लिखने से मना कर देते थे। एक बार उन्होंने महेश भट्ट को
मना कर दिया था। उसी धुन पर भट्ट साहब ने इंदीवर से गीत लिखाया और वह गीत पसंद भी
किया गया।
संगीतकार उत्तम सिंह ने
मुझे बताया - "दिल तो पागल है" फ़िल्म में आनंद बख़्शी ने एक धुन पर लिखने
से मना कर दिया। नौजवान उदय चोपड़ा को वह धुन बहुत पसंद थी। वह आनंद बख़्शी के घर
गया। उसने आग्रह किया- अंकल जी, मुझे यह धुन बहुत पसंद है। आप इस पर हाथी घोड़ा
कुछ भी लिख दीजिए। आनंद बख़्शी ने उस नौजवान की बात मान ली। ऐसा गीत लिख दिया जिस
पर युवा पीढ़ी ने झूम झूम कर डांस किया।
घोड़े जैसी चाल हाथी जैसी
दुम
वो बादल राजा कहां से आए
तुम
टूटें ज़माने तेरे हाथ
निगोड़े
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आनंद बख़्शी के यहां
तुकबंदी का बड़ा मज़ेदार खेल दिखाई पड़ता है। वन टू का फोर, फोर टू का वन, माय नेम
इज लखन। मेरा नाम है चमेली, मैं हूं मालन अलबेली, चली आई मैं अकेली। अमवा की डाली
पे, गाए मतवाली, कोयलिया काली निराली... एक ही लाइन में इतने सारे तुकों का
इस्तेमाल करना उन्हीं के बस की बात थी। इस तुकबंदी में वे कोई ऐसी बात भी कर जाते
हैं कि दिलों के तार बज उठते हैं। फ़िल्म 'हीरो' के गीत 'बड़ी लंबी जुदाई' में
'तोड़े निगोड़े' की तुकबंदी में शामिल बद्दुआ देखिए-
टूटें ज़माने तेरे हाथ
निगोड़े
जिनसे दिलों के तूने शीशे
तोड़े
हिज्र की ऊंची दीवार बनाई
...बड़ी लंबी जुदाई
हाथ के साथ 'निगोड़े'
विशेषण का इस्तेमाल अद्भुत है। इसी तरह "चिट्ठी आई है" गीत में जो सीधी
साधी तुकबंदी है वह दिल को झकझोर देती है।
सात समंदर पार गया तू,
हमको ज़िंदा मार गया तू
तूने पैसा बहुत कमाया, इस
पैसे ने देश छुड़ाया
देश पराया छोड़ के आजा,
पंछी पिंजरा तोड़ के आजा
आ जा उम्र बहुत है छोटी,
अपने घर में भी है रोटी
चिट्ठी आई है आई है चिट्ठी
आई है ….
आ जा संवरिया आ आ आ आ
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संगीतकार ए आर रहमान रात
12 बजे काम शुरू करते हैं। गीतकार को रात भर जगाते हैं। मैंने जानना चाहा कि फ़िल्म
'ताल' के संगीतकार के साथ उनका अनुभव कैसा रहा ? आनंद बख़्शी ने बताया- मुझे हवाई
जहाज़ की यात्रा में बहुत डर लगता है। इसलिए मैंने चेन्नई जाने से मना कर दिया।
रहमान की बनाई धुन लेकर सुभाष घई आते। मैं यहीं घर में लिख कर दे देता था।
आनंद बख़्शी ने ख़ुद को कम
पढ़ा लिखा बताया लेकिन जो काम किया वह बहुत पढ़े-लिखे लोग भी नहीं कर पाते। फ़िल्म
'ताल' का गीत है-
दिल ये बेचैन वे, रस्ते पे
नैन वे
जिंदड़ी बेहाल है, सुर है न
ताल है
आ जा संवरिया आ आ आ आ
ताल से ताल मिला ……..
सवाल यह है कि आनंद बख़्शी
ने चार बार 'आआआआ' क्यों कहा? इसमें एक रहस्य छुपा हुआ है। अंतरे में उन्होंने
'चाल' और 'हाल' तुकों का इस्तेमाल किया है। अगर ये शब्द वे मुखड़े में रखते तो
मुखड़ा अच्छा नहीं लगता। क़ाफ़िया तंग है। यानी दूसरे तुकों को लाना मुश्किल काम था।
इसलिए बख़्शी साहब ने शब्द के बजाय शब्द की ध्वनि से काम लिया। 'मिला' शब्द के अंत
में जो 'आ' शामिल है उसका चार बार इस्तेमाल करके उन्होंने गीत के मुखड़े को
ख़ूबसूरत बना दिया।
"सोलह बरस की बाली
उमर को सलाम" गीत के अंतरे में आनंद बख़्शी ने लिखा-
मिलते रहे यहां हम, ये है
यहां लिखा
इस लिखावट की ज़ेर-ओ-ज़बर को
सलाम
फ़िल्म के गीत में
ज़ेर-ओ-ज़बर क़ाफ़िया लाना बहुत बड़े समर्थ गीतकार का काम है।
तुम्हारी ज़ुल्फ़ है या सड़क
का मोड़़ है यह
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फ़िल्म का गीत चरित्रों के
स्वभाव और बोलने के अंदाज़ पर आधारित होता है। चरित्रों के अनुकूल भाषा का इस्तेमाल
करना पड़ता है। फ़िल्म 'दुश्मन' (1971) में आनंद बख़्शी ने ट्रक ड्राइवर के लिए लिए
लिखा था-
तुम्हारी ज़ुल्फ़ है या सड़क
का मोड़़ है यह
तुम्हारी आंख है या नशे का
तोड़ है यह
फ़़िल्म ग़दर : एक प्रेम
कथा (2001) में जब उन्हें फिर से ट्रक ड्राइवर पर लिखना पड़ा तो उन्होंने लिखा-
मैं निकला, ओ गड्डी लेकर,
वो रस्ते पर
ओ सड़क में, इक मोड़
आया
मैं उथ्थे दिल छोड़
आया
रब जाने कब गुज़रा
अमृतसर
ओ कब जाने लाहौर आया
मैं उथ्थे दिल छोड़ आया
चाहे भीगे तेरी चुनरिया
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फ़िल्म 'कटी पतंग' (1970)
में मूड के हिसाब से नायक नायिका दो विपरीत चरित्र है। जोशीले नायक के लिए
उन्होंने लिखा-
आज न छोड़ेंगे बस हमजोली
खेलेंगे हम होली
चाहे भीगे तेरी चुनरिया
चाहे भीगे रे चोली
श्वेत वसना, उदासी में
भीगी हुई नायिका की भावनाओं को आनंद बख़्शी ने यूं साकार किया-
ऐसे नाता तोड़ गए हैं मुझसे
ये सुख सारे
जैसे जलती आग किसी वन में
छोड़ गए बंजारे
एक ही गीत में इस तरह का
अंतर्विरोध अभिव्यक्त कर पाना आसान नहीं होता। धुन की समझ, गायकी का हुनर और लोक
संगीत की जानकारी ने आनंद बख़्शी को कामयाब गीतकार बनाया। फ़िल्म 'खलनायक' में
उन्होंने एक गीत लिखा-"चोली के पीछे क्या है।" इसके लिए उन्हें बदनाम
किया गया। अपनी सफ़ाई में उन्होंने बस इतना ही कहा- "जो मुझे बदनाम कर रहे हैं
उनकी नज़र मेरे गीत पर नहीं चोली पर है।" यह उस साल का सबसे ज़्यादा सुना
जाने वाला और सबसे ज़्यादा बिकने वाला गीत साबित हुआ।
21 जुलाई 1930 को
रावलपिंडी में जन्मे आनंद बख़्शी ने 30 मार्च 2002 की शाम को मुंबई में अंतिम सांस
ली। उनकी याद में फ़िल्म राइटर्स एसोसिएशन में एक स्मृति सभा का आयोजन किया गया।
संचालन की ज़िम्मेदारी मुझे सौंपी गई। मंच पर शायर नक़्श लायलपुरी, फ़िल्मकार सुभाष
घई और आनंद बख़्शी के बेटे राजेश बख़्शी मौजूद थे। एसोसिएशन के अध्यक्ष जगमोहन कपूर
ने मुझसे कहा- शुरुआत में आप दस मिनट आनंद बख़्शी के गीतों के बारे में बोलिए।
"ज़ुल्फों में छइंया, मुखड़े पे धूप है. बड़ा मज़ेदार गोरी ये, तेरा रंग रूप
है. ऐसे बिम्बों के ज़रिए मैंने उनके गीतों के बारे में अपनी बात रखी। जाते समय
सुभाष घई मेरे पास आए। हाथ मिलाया और बोले पांडेय जी, आप बहुत अच्छा बोलते हैं।
ख़त लिख दे संवरिया के नाम
बाबू
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हमारे बचपन में गांव के
रेडियो पर आनंद बख़्शी के गीत सुनाई देने लगे थे। "सावन का महीना पवन करे
सोर" छोटे-छोटे बच्चे गाते थे। शादी ब्याह में नृत्य करने वाली बाइयां गाती
थीं-
ख़त लिख दे संवरिया के नाम
बाबू
कोरे काग़ज़ पे लिख दे सलाम
बाबू
आनंद बख़्शी के गीतों की
कामयाबी में उनकी बोलचाल की आत्मीय और रोचक शैली का काफ़ी योगदान है। उनके कुछ
गीतों पर नज़र डालिए-
*खिलौना जानकर तुम तो मेरा
दिल तोड़ जाते हो
*दुनिया से जाने वाले जाने
चले जाते हैं कहां
*मेरे नसीब में ऐ दोस्त
तेरा प्यार नहीं
*मेरे सपनों की रानी कब
आएगी तू
*दिल ने दिल को पुकारा
मुलाक़ात हो गई
*दुनिया में रहना है तो
काम करो प्यारे
*हम तुम एक कमरे में बंद
हो और चाबी खो जाए
*अंखियों को रहने दे
अंखियों के आस पास
*सुहानी चांदनी रातें हमें
सोने नहीं देती
*आदमी मुसाफ़िर है आता है
जाता है
*हम तो चले परदेस हम
परदेसी हो गए
*दो दिल मिल रहे हैं मगर
चुपके चुपके
*गली में आज चांद निकला
*ज़िंदगी के सफ़र में गुज़र
जाते हैं जो मुकाम वो फिर नहीं आते
आनंद बख़्शी के गीतों में
मौसम के सभी रंग, फूल और ख़ुशबुएं शामिल हैं। बख़्शी साहब दिल जोड़ने के लिए भी
लिखते थे और दिल तोड़ने के लिए भी। वे हंसाते थे और रुलाते भी थे। उनके गीतों में
ज़िंदगी की जीती जागती दास्तान है। भावनाओं और सम्वेदनाओं का ऐसा समंदर है जो हर
उम्र के लोगों से अपना नाता जोड़ लेता है। मां बाप, भाई बहन, प्रेमी प्रेमिका,
दुश्मन दोस्त, होली दीवाली... उन्होंने सबके लिए गीत लिखे। आनंद बख़्शी अपने साथ
गांव की मिट्टी की ख़ुशबू, लोक जीवन की ज़िंदादिली और लोक संगीत की मिठास लेकर आए थे।
अपने गीतों में उन्होंने इस पूंजी का बख़ूबी इस्तेमाल किया। हर फिल्म उनके लिए एक
इम्तहान थी। हर फ़िल्म में उन्होंने साबित किया कि वे एक अच्छे गीतकार हैं।
आनंद बख़्शी साहब जब मुझे
विदा करने दरवाजे पर आए तो बोले- "यह एक मुसलसल सफ़र है। मंज़िलें आती जाती
रहती हैं। लोकप्रियता मिलते ही अधिक मेहनत की दरकार होती है। जो सोच लेते हैं कि
हम तो कामयाब हो गए अब मेहनत की ज़रूरत नहीं है, वे आउट हो जाते हैं। संघर्ष, अपमान
और उपेक्षा से घबराना नहीं चाहिए। "
******
आपका- देवमणि पांडेय
Kanya Pada,
Gokuldham, Film City Road,
Goregaon East, Mumbai-400063, M : 98210-82126
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