राज कपूर के गाल पर किदार शर्मा का थप्पड़
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राज कपूर ने कॉलेज की पढ़ाई छोड़ दी । पृथ्वीराज
कपूर ने अपने बेटे से कहा- कम से कम ग्रेजुएशन तो कर लो। राज ने जवाब दिया-
निर्माता निर्देशक बनने के लिए ग्रेजुएशन की डिग्री ज़रूरी नहीं होती। पृथ्वीराज
कपूर अपने दोस्त किदार शर्मा के पास गए। उदास लहजे में बोले- राजू बिगड़ रहा है।
पढ़ाई लिखाई से उसने मुंह मोड़ लिया है। किदार शर्मा ने कहा- उसे मेरे पास भेज दो।
मैं उसे सुधार दूंगा। लेकिन तुम बीच में दख़ल मत देना। मैं चाहे उसे मारूं चाहे
पीटूं।
किदार शर्मा ने राज कपूर को अपना तीसरा सहायक
बनाया। राज का काम था क्लैप देना। किदार शर्मा ने नोट किया कि क्लैप देने से पहले
राज हमेशा जेब से कंघी निकालकर बालों पर फिराता था। उन्होंने सोचा किशोर लड़का है।
उत्साही है। चलने दो। इससे मेरा क्या नुक़सान होता है। कभी-कभी क्लैप देने से पहले
राज कपूर कैमरे में झांक कर अपना चेहरा देखने की कोशिश करता।
विषकन्या' की आउटडोर शूटिंग
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सन् 1940 में किदार शर्मा फ़िल्म 'विषकन्या' की आउटडोर शूटिंग कर रहे
थे। पूरी यूनिट शाम ढलने की प्रतीक्षा कर रही थी। शॉट सूर्यास्त का था। अचानक
उन्हें राज का ख़याल आया। किदार शर्मा ने उसे समझाया। बेटा राज! आज के दिन तुम कंघी
मत करना। अगर कहीं समय निकल गया तो कल पूरी यूनिट लेकर वापस आना पड़ेगा। कल अगर
मौसम ख़राब हुआ तो दो-चार दिन बर्बाद हो सकते हैं। सिर्फ़ एक शॉट का सवाल है। राज
मान गया।
थोड़ी सी प्रतीक्षा के बाद वह पल आ गया। सब कुछ
तैयार था। किदार शर्मा ने इशारा किया। राज क्लैप लेकर आगे बढ़ा। लेकिन कैमरे के
सामने आते ही वह किदार शर्मा की हिदायत भूल गया। राज ने हमेशा की तरह जेब से कंघी
निकाली। बालों में कंघी फिराई। किदार शर्मा चुपचाप देखते रहे। एक कलाकार दाढ़ी
मूंछ लगाकर राजा बना हुआ था। राज ने उसके चेहरे के सामने क्लैप लगाया और खट से दबा
दिया। पता नहीं कैसे दाढ़ी के बाल क्लैप के अंदर आ गए। अगले ही पल कलाकार की दाढ़ी
उखड़कर क्लैप के साथ राज के हाथों में झूल रही थी।
राजकपूर के गाल पर
ज़ोरदार थप्पड़
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किदार शर्मा को ग़ुस्सा आ गया। उन्होंने कहा- राज
इधर आओ। वह डरता डरता किदार शर्मा के पास आया। अचानक किदार शर्मा के दाएं हाथ का
एक ज़ोरदार थप्पड़ राज के बाएं गाल पर पड़ा। पूरी यूनिट सन्न रह गई। थप्पड़ इतना
ज़ोरदार था कि राज के गाल पर उंगलियों के निशान पड़ गए। राज कपूर न रोया, न उसने
प्रतिरोध किया। चुपचाप जाकर एक किनारे बैठ गया। किदार शर्मा को रात में नींद नहीं
आई। उन्होंने सोचा- इसमें राज की क्या ग़लती है। हवा से उड़ कर भी तो दाढ़ी क्लैप
में फंस सकती थी। उनके मन में यह ख़याल आया कि राज हमेशा क्लैप के समय यूं ही तो
कंघी नहीं करता। उसके मन में कहीं न कहीं अभिनेता बनने की चाहत है।
उस समय किदार शर्मा 'नील कमल' फ़िल्म के निर्माण की
योजना बना रहे थे। सुबह ऑफिस पहुंचकर उन्होंने राज कपूर के नाम से एक कांट्रैक्ट
बनाया। साथ में पांच हज़ार का चेक संलग्न किया। उस समय यह बहुत बड़ी रकम थी। उन
दिनों स्टूडियो में नियमित हाज़िरी ज़रूरी थी। राज आया तो किदार शर्मा ने उसे पास
बुलाया। राज ने अपना दायां गाल दिखाते हुए कहा- नहीं, आप इस पर भी मारेंगे। किदार
शर्मा के विश्वास दिलाने पर वह नज़दीक आया। उन्होंने राज को कांट्रैक्ट लेटर और
साइनिंग अमाउंट का चेक पकड़ा दिया।
फ़िल्म नीलकमल का हीरो
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कांट्रैक्ट पढ़ते ही राज रोने लगा। रोते-रोते बोला-
अंकल आप मुझे बहुत प्यार करते हैं। मुझ जैसे सिरफ़िरे आदमी को हीरो बनाने से आपकी
फ़िल्म डूब जाएगी। किदार शर्मा बोले- नहीं डूबेगी। फ़िल्म बनाना मुझे अच्छी तरह आता
है। इस पर वह बोला- अंकल! आप मुझे हीरोइन तो सुंदर देंगे ना! किदार शर्मा ने कहा-
तेरी जो भी पसंद हो बोल दे। इस पर शरमाते हुए राज ने बताया कि अपने स्टूडियो में
जो छोटी सी, सुंदर सी लड़की आती है। हमेशा हंसती रहती है। उसका इशारा मधुबाला की
ओर था। तब तक रंजीत स्टूडियो की फ़िल्मों में मधुबाला को छोटी-मोटी भूमिकाएं ही दी
जाती थीं। किदार शर्मा ने फ़िल्म 'नीलकमल' में उसे राज कपूर की नायिका बना दिया।
किदार शर्मा से सन् 1993 में मेरी मुलाक़ात हुई।
माहिम में हिंदुजा अस्पताल के पास वाली बिल्डिंग में उनका ऑफिस था। बातचीत के बड़े
रसिक थे। इसलिए उनके कार्यालय में कई बार मेरा जाना हुआ। उन्होंने बताया-
"राज खुद में एक परफेक्ट इंसान था। 'बरसात' फ़िल्म बन जाने पर वह मेरे पास आया। उसका आग्रह था कि फ़िल्म का पहला
शो मैं उसके साथ देखूं।" समयानुसार किदार शर्मा लिबर्टी टॉकीज़ पहुंचे। गेट पर
राज प्रतीक्षा कर रहा था। वे अंदर गए तो पूरे हाल में एक भी आदमी नहीं था। राज ने
मुस्कुराते हुए कहा- यह पहला शो मेरे गुरु किदार शर्मा के लिए है। दोनों ने एक साथ
फ़िल्म देखी। ज़्यादातर समय राज अपने गुरु की बगल में खड़ा रहा। किदार शर्मा ने उसे
आशीर्वाद दिया। किदार शर्मा के अनुसार पूरे जीवन में उन्हें राज जैसा शिष्य और
पृथ्वीराज जैसा मित्र दूसरा कोई नहीं मिला।
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आपका-
देवमणि पांडेय
सम्पर्क : बी-103, दिव्य स्तुति,
कन्या पाडा, गोकुलधाम, फिल्मसिटी रोड,
गोरेगांव पूर्व, मुम्बई-400063 , 98210 82126
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