गीता बाली की फ़िल्म सुहागरात
किदार शर्मा ने संघर्ष की पीड़ा झेली थी। इसलिए वे
हमेशा संघर्ष करने वालों का साथ देते थे। देश के विभाजन के बाद अभिनेत्री गीता
बाली अपने परिवार के साथ कष्टपूर्ण जीवन व्यतीत कर रही थी। नृत्य निर्देशक पं
ज्ञानशंकर ने किदार शर्मा से अनुरोध किया कि वे गीता बाली को काम दें। एक दिन वे
उनके साथ गीता बाली के घर गए। उस समय गीता बाली का परिवार माहिम की एक चाल में एक
छोटे से कमरे में रहता था। बैठने के लिए कोई कुर्सी नहीं थी। एक टब में पानी भरा था।
उसी पर लकड़ी का पटरा रखकर किदार शर्मा के बैठने का इंतज़ाम किया गया। अचानक एक
लड़की की उन्मुक्त हँसी सुनाई दी। यह गीता बाली थी। उसे लगा कि कहीं यह डायरेक्टर
टब में न गिर पड़े। उसकी यह अदा किदार शर्मा को पसंद आ गई। उन्होंने गीता बाली को
अपनी फ़िल्म 'सुहागरात' की नायिका बना दिया।
गीता बाली का पहला संवाद
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कुल्लू की रंगीन वादियों में 'सुहागरात' की शूटिंग
थी। गीता बाली न लिख सकती थी न पढ़ सकती थी। हालांकि धीरे-धीरे किदार शर्मा ने इस
अनपढ़ लड़की को काम चलाऊ पढ़ना लिखना सिखाया। शूटिंग के पहले दिन पहला संवाद बोलने
के समय गीता बाली ने पूछा शर्मा जी- यह मतबल है कि मलतब है। पूरी यूनिट सन्नाटे
में आ गई। शर्मा जी बोले- तू चाहे जो बोल दे, उससे मेरा मतलब निकल आएगा।
गीता बाली के फीगर भी आकर्षक नहीं थे। चंदूलाल शाह
ने मज़ाक किया- किदार तुमने ऐसी गंवार लड़की को हीरोइन क्यों लिया जिसका न आगा है
पीछा। किदार शर्मा ने कहा- चंदूलाल याद रखो, एक दिन इस लड़की के बिना तुम्हारी
फ़िल्म नहीं बनेगी। तुम ख़ुद इसकी कार का दरवाज़ा खोलोगे। आगे चलकर यही हुआ। फ़िल्म 'ग़रीबी' में चंदूलाल ने उसे
नायिका बनाया। उसकी कार का दरवाज़ा खोला। उस समय गीता बाली पचास हज़ार मेहनताना लेती
थी। उसने चंदूलाल से अस्सी हज़ार वसूल किए। बोली- आपने मेरे गुरु का मज़ाक उड़ाया
था। इसलिए तीस हज़ार ज़ुर्माना ले रही हूँ।
कुल्लू के अस्पताल में गीता बाली
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कुल्लू में 'सुहागरात' की शूटिंग चल रही थी। गीता बाली भेड़ चराने वाली गांव की अल्हड़ लड़की
बनी हुई थी। एक दृश्य में वह भेड़ों को नाला पार करा रही थी। भेड़ें रुक कर नाले
में पानी पीने लगीं। किदार शर्मा ने आवाज़ लगाई- गीता तुम भी भेड़ बन जाओ और पानी
पी लो। उसे पानी पीने का अभिनय करना था। वह समझी निर्देशक उसे पानी पीने का आदेश
दे रहा है। वह नाले में झुकी और चुल्लू से दो-तीन चुल्लू गंदा पानी पी गई। थोड़ी
ही देर में उसकी हालत ख़राब हो गई। उसे अस्पताल ले जाया गया। पेट की सफाई की गई तो
वह अच्छी हुई। अगले दिन दोबारा शूटिंग शुरू हुई।
अब तक पूरी यूनिट गीता बाली से नाराज़ हो चुकी थी।
शाम को शूटिंग के बाद आर्ट डायरेक्टर के नेतृत्व में यूनिट के 13 सदस्यों का दल
किदार शर्मा के कमरे में आया। वे बोले- किदार जी आपने गीता बाली को 18 हज़ार में
साइन किया है। हम लोग एक एक-एक हज़ार देने को तैयार हैं। इस तरह तेरह हज़ार हो जाएंगे।
पांच हज़ार एडवांस दिया गया है। ये रकम देकर उसे वापस भेज दीजिए और कोई अच्छी
हीरोइन बुलाकर फिर से शूटिंग कीजिए। किदार शर्मा ने कहा- ऐसा करो तुम सब लोग फ़िल्म
छोड़ दो और वापस चले जाओ। किसी की हिम्मत नहीं पड़ी कि वापस जाए। इस तरह 'सुहागरात' पूरी हुई। फ़िल्म प्रदर्शित
हुई तो इसे भारी सफलता मिली। साथ ही गीता बाली को एक अच्छी अभिनेत्री का दर्जा मिल
गया। आगे चलकर जाने-माने अभिनेता शम्मी कपूर ने गीता बाली से शादी की।
फ़िल्म गौरी की नायिका मोनिका देसाई
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फ़िल्म जगत में कभी-कभी ऐसा करिश्मा हो जाता है कि
विश्वास करना मुश्किल होता है। रंजीत स्टूडियो की फ़िल्म 'गौरी' में सबके विरोध के बावजूद
किदार शर्मा ने कलकत्ता की एक स्कूल टीचर मोनिका देसाई को हीरोइन बना दिया।
कलकत्ता में अभिनेत्री लीला देसाई के घर पर उनकी बहन मोनिका देसाई से मुलाकात हुई
थी। मोनिका ने कहा- सुना है आप किसी को भी हीरोइन बना देते हैं! किदार शर्मा जी ने
हां कहा तो वो झट से बोली- मुझे भी हीरोइन बना दीजिए। 'गौरी' फ़िल्म के निर्माण के
समय किदार शर्मा जी को मोनिका की याद आई। उन्होंने मोनिका देसाई को मुम्बई बुलाया।
किदार शर्मा ने मोनिका को समझाया था कि रेलवे के
प्रथम श्रेणी में आना। दादर पहुंचकर हाथ मुंह धो लेना। बालों में कंघी कर लेना।
टैक्सी लेकर रंजीत स्टूडियो आना। हिदायत के बावजूद मोनिका थर्ड क्लास में आई।
कपड़े अस्त-व्यस्त। बाल बिखरे हुए। चेहरे पर धूल और कोयले की छाप। एक कुली के सिर
पर बक्सा रखवाकर पैदल रंजीत स्टूडियो पहुंच गई।
मोनिका देसाई थर्ड क्लास में आई
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रंजीत स्टूडियो के गेट पर दरबान ने मोनिका देसाई को
अंदर नहीं घुसने दिया। दरबान से उसका वो झगड़ा हुआ कि तमाशाइयों की भीड़ जुट गई।
चंदूलाल शाह गेट पर आए तो उसका हुलिया देखकर दंग रह गए। उसे किदार शर्मा के पास
भिजवाया। शर्मा जी ने पूछा- थर्ड क्लास में आई ठीक है मगर टैक्सी क्यों नहीं किया?
वह बोली- टैक्सी वाला आठ आने मांग रहा था। चार आने में कुली लेकर आ गई। मैंने चार
आने बचा लिए तो क्या बुरा किया।
मोनिका देसाई से चंदूलाल शाह इतने निराश हुए कि
उन्होंने 'गौरी' फ़िल्म में रुचि लेनी ही बंद कर दी। आख़िर फ़िल्म 'गौरी' पूरी हुई। मोनिका देसाई
के साथ इसमें पृथ्वीराज कपूर की मुख्य भूमिका थी। खेमचंद प्रकाश का मधुर संगीत था।
फ़िल्म का पहला शो चंदूलाल शाह अपने दस-बारह सहायकों के साथ देखते थे। इस बार वे
सिर्फ़ एक सहायक के साथ आए। पूरी फ़िल्म चुपचाप देखी। फिर कोट की जेब से 25 हज़ार
रुपये निकाले। बोले- शर्मा जी ये रूपए तुम्हारे हाथों में रखूं कि क़दमों में।
किदार शर्मा ने देखा- चंदूलाल शाह की आंखों से आंसू बह रहे थे।
'गौरी' एक मास्टर पीस फ़िल्म मानी
गई। यह पारिवारिक, भावनात्मक और साफ-सुथरी फ़िल्म थी। जिसने देखा वह इसे देखकर
रोया। मोनिका देसाई के एक पैर में छ: उंगलियां थी। किदार शर्मा ने कहानी में इसका
अच्छा इस्तेमाल किया। नायक (पृथ्वीराज कपूर) एक कलाकार है। देवी की मूर्तियां
बनाता है। उसकी ज़िंदगी में नायिका (मोनिका देसाई) आती है तो वह देवी की मूर्ति के
एक पैर में छ: उंगलियां बनाने लगता है। अंत में दोनों बिछड़ जाते हैं। अचानक एक
मंदिर में पूजा करते समय नायिका को देवी के एक पैर में छ: उंगलियां नज़र आती हैं तब
पता चलता है कि यह मूर्ति किसने बनाई। नायक और नायिका का दोबारा मिलन होता है।
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किदार शर्मा ने सन् 1952 में अपना वादा निभाया।
फ़िल्म 'जोगन' में दिलीप कुमार के साथ
नरगिस को नायिका बनाया। यह फ़िल्म सिर्फ़ 29 दिन में बन गई थी। इसके बावजूद यह अपने
ज़माने की क्लासिक और बेहद कामयाब फ़िल्म थी। हुआ यूं कि एक दिन चंदूलाल शाह ने
किदार शर्मा से कहा- स्टूडियो में 30 दिन का ही राशन है। हालात ख़राब हैं। अगर इतने
समय में एक फ़िल्म न बनी तो स्टूडियो बंद हो जाएगा। किदार शर्मा ने कहा आज से मेरा
बिस्तर रंजीत स्टूडियो में लगा दीजिए। चाय बनाने के लिए एक नौकर दे दीजिए। मैं दिन
में शूटिंग करूंगा और रात में एडीटिंग। स्टूडियो में मंदिर का एक पक्का सेट बनाया
गया। सब लोग काम में जुट गए। 29 दिन म़े फ़िल्म 'जोगन' बनकर तैयार थी। इस तरह किदार शर्मा ने चंदूलाल शाह की प्रतिष्ठा
बचाई।
अभिनेत्री माला सिन्हा की रंगीन रातें
एक दिन अभिनेत्री गीता बाली ने किदार शर्मा से कहा-
मेरी बेटी को अभिनय सिखा दीजिए। वे बोले- तुम्हारी तो अभी शादी नहीं हुई फिर बेटी
कहां से आ गई। वह बोली- मैंने उसे गोद लिया है। दूसरे दिन उनकी बेटी यानी माला
सिन्हा ऑफिस में मिलने आई। बिल्कुल दुबली पतली। लाल रंग की एक पुरानी साड़ी पहने
हुए। साड़ी में दो-तीन जगह पैबंद लगे हुए जिन्हें वह छुपाने की बार-बार कोशिश कर
रही थी। लंच का समय था। किदार शर्मा ने पूछा- भूख लगी है? उसने हां में सर हिलाया।
पूछा- कितने पराठे खाओगी? उसने दोनों हाथों के पंजे उठा दिए यानी दस। बाद में उसने
बताया- मैं दो ही पराठे खाती हूं। बाक़ी घर ले जाती हूं। घर पर शाम को खाना नहीं बनता।
सब आपको दुआएं देते हैं।
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एक दिन माला सिन्हा ने सकुचाते हुए कहा- आप मुझे
दोपहर के बजाय शाम को बुलाइए। क्योंकि मेरे पास एक ही साड़ी है। दरबान मुझे
पहचानने लगा है। वह मुझे देखते ही घूरने लगता है। सुनकर किदार शर्मा दंग रह गए।
दूसरे कमरे में जाकर घुटनों के बल बैठकर उन्होंने आंखें बंद करके दुआ मांगी। हे
ईश्वर ! अगर ज़िंदगी में मैंने कुछ भी पुण्य किया हो तो इस लड़की को हीरोइन बना दे।
ऐसी प्रार्थना उन्होंने गीता बाली के लिए भी की थी। ईश्वर ने उनकी प्रार्थना सुनी
थी।
कुछ ही दिन में माला सिन्हा ढर्रे पर आ गई। बहुत
मेहनत से सीखने लगी। एक दिन गीता बाली यह जानने के लिए आई कि उसने सीखा क्या है।
किदार शर्मा ने माला सिन्हा से कहा- चलो सीन करके दिखाओ। माला सिन्हा ने फ़िल्म 'रंगीन रातें' का एक सीन बिना घबराए
बहुत प्रभावशाली ढंग से पेश किया। गीता बाली चुपचाप उठकर बगल के कमरे में चली गई।
अंदर से दरवाज़ा बंद कर लिया। किदार शर्मा ने दरवाज़े के कांच से अंदर झांका। वह रो
रही थी। कुछ देर बाद बाहर निकली। किदार शर्मा ने पूछा- आख़िर क्या हुआ ? वह बोली-
मैंने आपको उसे सिखाने के लिए कहा था। लेकिन इतना सिखाने के लिए नहीं कहा था कि कल
आपको मेरी ज़रूरत ही न पड़े। सचमुच माला सिन्हा ने बहुत लगन से सीखा। 'रंगीन रातें' में उसने बहुत जानदार
अभिनय किया। उसे लोगों ने पसंद किया।
हमारे अग्रज फ़िल्म लेखक कमलेश पांडेय ने बताया-
"माला सिन्हा हिंदुस्तान की वो पहली अभिनेत्री थीं जिनके घर पर 1959 में इनकम
टैक्स की रेड पड़ी थी। उनके बाथरूम की छत से 16 लाख रुपये बरामद हुए थे।
हिंदुस्तान की जनता ने तब पहली बार जाना कि उनके चहेते स्टार लाखों में खेलते हैं।
क़िस्सा संगीतकार रोशन का
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एक दिन रंजीत स्टूडियो में जाते समय किदार शर्मा ने
एक व्यक्ति को बाहर फुटपाथ पर बैठे देखा। शाम को अपना काम निपटा कर जब वे वापस आए
तब भी वह व्यक्ति वहीं फुटपाथ पर बैठा हुआ था। किदार शर्मा उसके पास गए। उसने
बताया मेरा नाम रोशन है। संगीत निर्देशक बनना चाहता हूं। कहीं कोई काम नहीं मिलता।
किदार शर्मा बोले- तुम चाहे रोशन हो या चिराग़। यहां बैठे भूखों मर जाओगे। चलो मेरे
साथ। उन्होंने रोशन को एक सप्ताह अपने एक दोस्त के यहां टिकाया। बाद में उसे
वर्सोवा में रहने की जगह दिलाई।
रोशन पहले आकाशवाणी में नौकरी करता था। शादीशुदा और
दो बच्चों का बाप था। उसने एक बंगाली लड़की से शादी कर डाली। आकाशवाणी वालों ने
उसे नौकरी से निकाल दिया। वह सड़क पर आ गया। किदार शर्मा ने रोशन को फ़िल्म 'नेकी बदी' का संगीतकार बना दिया।
फ़िल्म फ्लॉप हो गई। रोशन का संगीत नहीं चला। रोशन ने अपनी मर्ज़ी से फ़िल्म का संगीत
तैयार किया था। उसमें काफ़ी कमियां थीं। इसके बावजूद किदार शर्मा ने रोशन का साथ
नहीं छोड़ा। उसे फ़िल्म 'बावरे नैन' के संगीत निर्देशन का काम सौंप दिया। किदार शर्मा ने साथ बैठकर संगीत
तैयार कराया। फ़िल्म सुपरहिट हुई और संगीत भी सुपरहिट हुआ। रोशन का नाम टाप के
संगीत निर्देशकों में आ गया।
रोशन ने कहा आत्महत्या कर लूंगा
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लाहौर के मशहूर वितरक फ़कीरचंद अॉफिस में पधारे।
उन्होंने किदार शर्मा से कहा- नीचे नीले रंग की एक ब्यूक कार खड़ी है। आपके लिए
तोहफ़ा। मैं मुंह मांगी क़ीमत देने को तैयार हूं। आप फ़िल्म 'रंगीन रातें' से रोशन को हटाकर इसका
संगीत निर्देशन हुस्नलाल भगतराम को दे दीजिए। रोशन वहीं बैठे हुए थे। फ़कीरचंद उनको
पहचानते नहीं थे। रोशन उठकर दूसरे कमरे में चले गए। किदार शर्मा ने फ़कीरचंद से
कहा- आप बैठिए, दो मिनट में आता हूं। वह कमरे में गए। रोशन की आंखों से आंसू बह
रहे थे। रोशन बोले- मैं आत्महत्या कर लूंगा। किदार शर्मा ने पूछा- कैसे करोगे?
रोशन ने कहा- हाज़ी अली के समंदर में कूदकर। किदार शर्मा बोले- वहां समंदर गहरा
नहीं है। भीड़ भी रहती है। लोग तुम्हें बचा लेंगे। मैं तुम्हें वर्सोवा ले चलता हूं।
वहां गहरे समंदर में डूबो। किदार शर्मा बाहर आए। उन्होंने कहा- फ़कीरचंद, मैं मेकर
ऑफ द मैन हूं। रोशन मेरा क्रिएशन है। मुझे ये सौदा मंज़ूर नहीं है। सुनकर रोशन की
आंखें चमक उठीं।
यही रोशन एक दिन किदार शर्मा को छोड़कर चला गया।
फ़िल्म 'रंगीन रातें' के बैकग्राउंड म्यूजिक के
लिए श्रीसाउंड स्टूडियो बुक था। रोशन का इंतज़ार हो रहा था। मालूम हुआ कि बिना बताए
रोशन एक फ़िल्म के प्रदर्शन समारोह में दिल्ली चले गए हैं। किदार शर्मा ने स्नेहल
भाटकर को बुलाकर पार्श्व संगीत की ज़िम्मेदारी सौंप दी। इसके बाद किदार शर्मा ने
फिर कभी रोशन के साथ काम नहीं किया। सन 1954 में किदार शर्मा ने 'शोख़ियां' फ़िल्म
बनाई। उसमें जमाल सेन को संगीत निर्देशक बनाया। इस फ़िल्म का गीत 'आजा रे नैनों में
बस जा' बहुत लोकप्रिय हुआ।
अकेली मत जइयो
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फ़िल्म 'रंगीन रातें' (1956) में शम्मी कपूर माला सिन्हा और गीता बाली की प्रमुख
भूमिकाएं थीं। हालांकि फ़िल्म अच्छी बनी थी लेकिन यह बुरी तरह असफल हुई। इसी के साथ
किदार शर्मा के बुरे दिन शुरू हो गए। उन्होंने सिंगापुर की एक फ़िल्म कंपनी 'शाह
ब्रदर्स' में नौकरी कर ली। वहां भी उन्होंने एक फ़िल्म बनाई। दो साल बाद चंदूलाल
शाह के बुलावे पर वापस मुंबई आ गए। चंदूलाल शाह ने उनके सामने फ़िल्म 'यमुना तीर' का प्रस्ताव रखा। किदार
शर्मा ने कहा- सबसे पहले इसका नाम बदलिए। उन्होंने नाम रखा 'अकेली मत जइयो'। कुछ
वितरकों ने चंदूलाल शाह को बहका दिया कि किदार शर्मा तो बुद्धिजीवियों के लिए
फ़िल्म बनाते हैं। फ़िल्म 'अकेली मत जइयो' चंदूलाल ने एक गुजराती डायरेक्टर को सौंप दी। किदार शर्मा के पैरों
के नीचे से ज़मीन खिसक गई। मुंबई में काम नहीं था। सिंगापुर वापस नहीं लौट सकते
थे।
हमारी याद आएगी
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कुछ साल पहले किदार शर्मा ने चेंबूर में एक प्लाट
खरीदा था। उसे आनन फानन में बेचकर फ़िल्म शुरू कर दी- "हमारी याद आएगी"। पैसा नहीं था इसलिए बेटे
अशोक शर्मा को नायक बना दिया। नायिका थी तनुजा। सन् 1961 में रिलीज़ यह फ़िल्म नए
कलाकारों के बावजूद सुपरहिट हुई। गाने भी लोकप्रिय हुए। इस फ़िल्म का शीर्षक गीत "कभी तन्हाइयों में हमारी याद आएगी" मुबारक बेगम ने गाया था। मुबारक बेगम उस वक़्त गुमनाम और गर्दिश में
थीं। किदार शर्मा के ऑफिस में आईं तो उनके मुंह से यही निकला- मैंने दो दिन से
खाना नहीं खाया है। पहले खाना खिला दीजिए। उनका गाया यह गीत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर
चर्चित हुआ। मुबारक बेगम की क़िस्मत अच्छी नहीं थी। उनके आख़िरी दिन भी तंगहाली में
गुजरे।
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आपका-
देवमणि पांडेय
Devmani Pandey : B-103, Divya Stuti,
Kanya Pada,
Gokuldham, Film City Road,
Goregaon East, Mumbai-400063, M: 98210 82126
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