गीतकार गोपालदास नीरज |
स्वप्न झरे फूल से, मीत
चुभे शूल से
लुट गए सिंगार सभी बाग़ के
बबूल से
और हम खड़े-खड़े बहार देखते
रहे
कारवाँ गुज़र गया, ग़ुबार
देखते रहे…
नीरज की आवाज़ में जादू था।
अंदाज़ में जादू था। गीतों में कशिश थी। व्यक्तित्व सुदर्शन था। मंच पर छा जाते।
उनकी लोकप्रियता की ख़ुशबू बॉलीवुड तक पहुंच गई। बतौर फ़िल्म गीतकार हुनर दिखाने का
आमंत्रण मिला। नीरज यहां भी छा गए। 'नई उमर की नई फ़सल' (1966) में गीतकार नीरज के
गीत "कारवाँ गुज़र गया" ने धूम मचा दी। इस फ़िल्म में उनका एक और गीत भी
पसंद किया गया-
देखती ही रहो आज दर्पण न
तुम
प्यार का ये मुहूरत निकल
जाएगा
फ़िल्म 'चंदा और बिजली'
(1970) के गीत "काल का पहिया घूमे भैया" के लिए गीतकार गोपालदास नीरज को
फ़िल्म फेयर अवार्ड
से विभूषित किया गया।
काल का पहिया घूमे भैया
लाख तरह इन्सान चले
ले के चले बारात कभी तो
कभी बिना सामान चले
राम कृष्ण हरि ...
जनक की बेटी अवध की रानी
सीता भटके बन बन में
राह अकेली रात अन्धेरी
मगर रतन हैं दामन में
साथ न जिस के चलता कोई
उसके साथ भगवान चले
राम कृष्ण हरि ...
फ़िल्म 'पहचान' (1971) में
नीरज के गीत "बस यही अपराध मैं हर बार करता हूं" को दुबारा फ़िल्म फेयर
अवार्ड के लिए नामांकित किया गया।
मैं बसाना चाहता हूँ स्वर्ग
धरती पर
आदमी जिस में रहे बस आदमी
बनकर
उस नगर की हर गली तैयार
करता हूँ
आदमी हूँ आदमी से प्यार
करता हूँ ...
हूँ बहुत नादान करता हूँ ये
नादानी
बेच कर खुशियाँ खरीदूँ आँख
का पानी
हाथ खाली हैं मगर व्यापार
करता हूँ
आदमी हूँ आदमी से प्यार करता
हूँ …
ए भाई, ज़रा देख के चलो
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फ़िल्म 'मेरा नाम जोकर'
(1972) के गीत "ए भाई ज़रा देखकर चलो" के लिए तीसरी बार नीरज को फ़िल्म
फेयर अवार्ड के लिए नामांकित किया गया।
ए भाई, ज़रा देख के चलो
आगे ही नहीं, पीछे भी
दायें ही नहीं, बायें भी
ऊपर ही नहीं, नीचे भी, ए
भाई...
गिरने से डरता है क्यों
मरने से डरता है क्यों
ठोकर तू जब तक न खाएगा
पास किसी ग़म को न जब तक
बुलाएगा
ज़िन्दगी है चीज़ क्या नहीं
जान पायेगा
रोता हुआ आया है
रोता चला जाएगा
ए भाई… ए भाई, ज़रा देख के
चलो
"ए भाई, ज़रा देख के
चलो" यह गीत सिने संगीत का एक अद्भुत और यादगार गीत है। नीरज जी के शब्दों
में जादू है। शंकर जयकिशन की धुन अद्भुत है। मन्ना डे साहब की गायिकी अद्भुत है।
इस गीत पर राज कपूर ने एक जोकर का जो अभिनय किया वह अद्भुत है। इस गीत में बताया
गया कि आदमी और जानवर की वफ़ादारी में क्या फ़र्क होता है! सर्कस के 3 घंटे में कैसे
बचपन, जवानी और बुढ़ापा बीत जाता है। अंत में सिर्फ़ ख़ाली कुर्सियां रह जाती हैं।
नीरज ने मुंबई को और मुंबई
ने नीरज को अपना लिया। बॉलीवुड में रहकर नीरज ने प्रेम पुजारी, शर्मीली, तेरे मेरे
सपने, गैम्बलर, छुपा रुस्तम आदि फ़िल्मों के लिए एक से बढ़कर एक दिलकश गीत लिखे।
साँसों की सरगम धड़कन की वीणा सपनों की गीतांजली तू, फूलों के रंग से दिल की
कलम से, शोख़ियों में घोला जाए फूलों का शबाब... आदि अभिव्यक्तियों के ज़रिए नीरज ने
मुहब्बत की रिवायती तस्वीर में नए रंग भर दिए।
गोपालदास नीरज की घर वापसी
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एक दिन नीरज मुम्बई
छोड़कर वापस लौट गए। सन् 1996 में मुंबई में गोपालदास नीरज को 'परिवार पुरस्कार' से
सम्मानित किया गया। उनसे मेरी लंबी बातचीत हुई। मैंने घर वापसी के बारे में पूछा।
नीरज बोले- "मुंबई की ज़िंदगी में जो भागदौड़ है वह मुझे पसंद नहीं आई। मुझे
अधिक पैसा कमाने की चाह भी नहीं है। मेरा मन यायावर प्रवृत्ति का है। मैं किसी एक
जगह पर अधिक दिन तक टिक नहीं सकता। मुझे चाहने वाले अभी भी बुला लेते हैं। महेश
भट्ट की फ़िल्म 'फ़रेब' में मेरे दो गीत हैं- 'आंखों से दिल में उतरके' और 'मेरे
प्यार का पहला सावन तेरे नाम तेरे नाम'।"
नीरज ने स्वीकार
किया-"अपनी कविता द्वारा मनुष्य बनकर मनुष्य तक पहुँचना चाहता हूँ। रास्ते पर
कहीं मेरी कविता भटक न जाए, इसलिए उसके हाथ में मैंने प्रेम का दीपक दे दिया है।
प्रेम एक ऐसी हृदय-साधना है जो निरंतर हमारी विकृतियों का शमन करती हुई हमें
मनुष्यता के निकट ले जाती है।"
नीरज से बढ़के और धनी कौन
है यहाँ
उसके हृदय में पीर है सारे
जहान की
सोलह वर्ष की उम्र में
मधुर गायिकी के लिए एटा के एक विद्यालय में नीरज को ‘सहगल’ की उपाधि मिली थी। उसी
समय उन्होंने एक कवि सम्मेलन में बलवीर सिंह ‘रंग’ को सुना। उन्हें अपने
अंदर की आवाज़ सुनाई पड़ी- अगर कोशिश करूँ तो मैं भी रंग की तरह लिख सकता हूँ।
उन्हीं की तरह मंच लूट सकता हूँ। बच्चन के ‘एकांत संगीत’ और ‘निशा निमंत्रण’ को
पढ़कर सन् 1941 में यानी सोलह वर्ष की उम्र में नीरज के कंठ से पहला गीत फूटा-
मुझको जीवन का आधार नहीं
मिलता है
आशाओं का संसार नहीं मिलता
है
अपने गीतों के ज़रिए आम
आदमी के जज़्बात को ज़ुबान देनेवाले लोकप्रिय कवि नीरज की रचनाओं में ज़माने का
दुख-दर्द साँस लेता है। नीरज ने हमेशा अपने दिल की आवाज़ सुनी। इस आवाज़ की
अभिव्यक्ति से कविता का जो अक्स बना उसमें उनके दिल की धड़कनों के साथ दुनिया के
दिल भी धड़कते हैं। इस एहसास में मुहब्बत की ख़ुशबू भी शामिल है-
आज भले कुछ भी कह लो तुम
पर कल विश्व कहेगा सारा
नीरज से पहले गीतों
में
सब कुछ था, पर प्यार नहीं
था
दर्द जब तेरा पास होता है
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नीरज को यूँ तो प्रेम का
गायक कहा जाता है मगर उनके गीतों और ग़ज़लों में ज़माने की तल्ख़ियों के काले साए
भी मौजूद हैं। उन्हें सुनते हुए लगता है जैसे उनकी आवाज़ में हमारे दिल की व्याकुल
पुकार भी शामिल है। उनका हर सपना एक नए रंग-रूप में हमारे सामने आता है। उसमें
कहीं तन-मन को पुलक से भर देने वाली सुबह की लालिमा है तो कहीं गहन अवसाद में भिगो
देने वाली साँझ की उदासी है।
नीरज के यहाँ मिलन के मधुर
क्षण कम हैं, विरह की टीस और जुदाई की तड़प ज्य़ादा है। दुख और उदासी की ऐसी
मार्मिक स्थितियों की अभिव्यक्ति के लिए वह जो प्रतीक चुनते हैं वे हमेशा लौकिक
जगत के ख़ूबसूरत एहसास से ताल्लुक़ रहते हैं। दो दृश्य देखिए -
सर्द सूनी उदास रातों
में
तेरी यादों के गीत यूँ
आए
जैसे आंचल किसी सुनयना
का
रास्ते पर बदन से छू जाए
दर्द जब तेरा पास होता है
अश्क पलकों पे यूँ मचलते
हैं
जैसे बरखा से भीगे जंगल में
क़ाफ़िले जुगनुओं के चलते
हैं
काव्य मंचों के नायक नीरज
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बच्चन की परंपरा में नीरज
एकमात्र ऐसे कवि हैं जिसमें साहित्यिक परिपक्वता और मंचीय कौशल एक साथ मौजूद हैं।
लगातार सात दशकों तक हिंदी काव्य मंच पर कामयाब पारी खेलने का कीर्तिमान सिर्फ़
नीरज के पास है। नीरज ने कहा था- नासमझ आदमी की ताली कविता को बरबाद कर देती है। हिंदी
काव्य मंच के साथ भी यही हुआ। कवि सम्मेलन घटियापन के शिकार हो गए। नीरज कई बार
हूट हुए, कई बार रोए। अपने चाहने वालों के लिए नीरज को घटिया मंचों पर जाना पड़ा।
मगर कभी उन्होंने घटियापन का साथ नहीं दिया। उन्होंने हमेशा अपना स्तर बनाए
रखा।
यह सच है कि कवि सम्मेलनों
का कवि प्रसाद और निराला नहीं बन सकता। यह भी सच है कि कवि सम्मेलनों में
‘कामायनी’ नहीं 'मधुशाला' पढ़ी जाती है। फिर भी, जिस तरह साहिर और शैलेंद्र के
योगदान को महज़ फ़िल्मी गीत कहकर नकारा नहीं जा सकता, ठीक उसी तरह नीरज की मंचीय
प्रस्तुति के बावजूद उनके साहित्यिक पक्ष को अनदेखा नहीं किया जा सकता। नीरज के
साहित्य में मीरा का दर्द है, सूर की प्यास है, तुलसी की विन्रमता है और इसी के
साथ कबीर का फक्कड़न भी है। नीरज ने बौद्धिकता का मायाजाल रचने के बजाय भावनाओं की
ऐसी उदात्त धारा प्रवाहित की जिसने हमारे मन-प्राणों को पवित्रता, शीतलता और
ताज़गी से भर दिया।
मेरी उमर ज़माने को लग जाए
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गोपालदास नीरज का जन्म 4
जनवरी 1925 को इटावा ज़िले के पुरावली ग्राम में हुआ। 19 जुलाई 2018 को दिल्ली में
उनका स्वर्गवास हुआ। नीरज जब छ: वर्ष के थे तब उनके पिता गुज़र गए। माँ नाना के
पास इटावा चली गई। उनके पास इतने पैसे नहीं थे कि वे नीरज को स्कूल भेजतीं। मजबूरन
नीरज को एटा में बुआ के पास रहना पड़ा। इस तरह बचपन में ही वे माता-पिता के प्यार
से वंचित हो गए। उनके कोई बहन भी नहीं थी। इन स्थितियों ने नीरज को अंतर्मुखी बना
दिया। एक यायावर की तरह नीरज के पैर सारी दुनिया नापते रहे और उनके दिल से हमेशा
यही आवाज़ आती रही-
मैंने चाहा नहीं कि कोई आकर
मेरा दर्द बँटाए
बस ये ख्व़ाहिश रही कि मेरी
उमर ज़माने को लग जाए
नीरज के लोकप्रिय फ़िल्म
गीत
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1. कारवां गुज़र गया ग़ुबार
देखते रहे।
2. आज की रात बड़ी शोख़
बड़ी चंचल है।
3. शोख़ियों में घोला जाए
थोड़ा सा शबाब।
4. फूलों के रंग से दिल की
कलम से।
5. रंगीला रे तेरे रंग में
जो रंगा है मेरा मन।
6. खिलते हैं गुल यहां खिल
के बिखरने को।
7. मैंने ओढ़ी चुनरिया
तेरे नाम की।
8. जीवन की बगिया
महकेगी।
9. चूड़ी नहीं ये मेरा दिल
है।
10. दिल आज शायर है गम आज
नग़मा है।
11. ए भाई, ज़रा देख के
चलो।
12. छुपे रुस्तम हैं क़यामत
की नज़र रखते हैं।
फ़िल्म प्रेम पुजारी (1970)
का गीत
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फूलों के रंग से, दिल की क़लम
से
तुझको लिखी रोज़ पाती
कैसे बताऊँ, किस किस तरह
से
पल पल मुझे तू सताती
तेरे ही सपने, लेकर के
सोया
तेरी ही यादों में जागा
तेरे ख़यालों में उलझा रहा
यूँ
जैसे कि माला में धागा
हाँ, बादल बिजली चंदन
पानी
जैसा अपना प्यार
लेना होगा जनम हमें, कई कई
बार
हाँ, इतना मदिर, इतना मधुर
तेरा मेरा प्यार
लेना होगा जनम हमें, कई कई
बार
साँसों की सरगम, धड़कन की
वीणा,
सपनों की गीतांजली तू
मन की गली में, महके जो
हरदम,
ऐसी जुही की कली तू
छोटा सफ़र हो, लम्बा सफ़र
हो,
सूनी डगर हो या मेला
याद तू आए, मन हो जाए, भीड़
के बीच अकेला
हाँ, बादल बिजली, चंदन
पानी जैसा अपना प्यार
लेना होगा जनम हमें, कई कई
बार
पूरब हो पच्छिम, उत्तर हो
दक्खिन,
तू हर जगह मुस्कुराए
जितना भी जाऊँ, मैं दूर
तुझसे,
उतनी ही तू पास आए
आँधी ने रोका, पानी ने
टोका,
दुनिया ने हँस कर पुकारा
तस्वीर तेरी, लेकिन लिये
मैं,
कर आया सबसे किनारा
हाँ, बादल बिजली, चंदन
पानी जैसा अपना प्यार
लेना होगा जनम हमें, कई कई
बार
हाँ, इतना मदिर, इतना मधुर
तेरा मेरा प्यार
लेना होगा जनम हमें, कई कई
बार
कई, कई बार... कई, कई बार
...
*****
आपका-
देवमणि पांडेय
Devmani
Pandey : B-103, Divya Stuti,
Kanya Pada, Gokuldham, Film City Road,
Goregaon East, Mumbai-400063, M : 98210-82126
Kanya Pada, Gokuldham, Film City Road,
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