बॉलीवुड में गीतकार हसरत जयपुरी
नौजवान शायर हसरत जयपुरी ने अपने दिल के कैनवास पर
ख़्वाबों में बसी एक तस्वीर बनाई। अपनी मुहब्बत का इज़हार करने के लिए उन्होंने एक
कविता लिखी- "ये मेरा प्रेमपत्र पढ़कर, के तुम नाराज़ ना होना।...पड़ोस की उस
लड़की का नाम था 'राधा'। वे इस पत्र को कभी उसको नहीं दे पाए जिसके लिए उन्होंने
लिखा था। नौकरी की तलाश में सन् 1940 में हसरत मुंबई आए। बेस्ट में बस कंडक्टर बन
गए। आठ साल की नौकरी के बाद मुशायरों में उनकी लोकप्रियता ने राज कपूर के दरवाज़े
पर दस्तक दी। हसरत ने अपना प्रेम पत्र राज कपूर को सौंप दिया।
मेहरबां लिखूं, हसीना लिखूं या दिलरुबा लिखूं
हैरान हूं के आप को इस ख़त में क्या लिखूं ?
ये मेरा प्रेम पत्र पढ़कर, के तुम नाराज़ ना होना
के तुम मेरी ज़िंदगी हो, के तुम मेरी बंदगी
हो
राज कपूर ने फ़िल्म 'संगम' (1964) में हसरत जयपुरी
के प्रेम पत्र को शामिल किया। अपनी नायिका का नाम रख दिया- 'राधा'। फ़िल्म 'संगम'
की कहानी सुनने के बाद राधा (वैजयंती माला) चेन्नई चली गई। एक सप्ताह तक उसका जवाब
नहीं आया। राज कपूर ने टेलीग्राम भेजा- "बोल राधा बोल, संगम होगा कि
नहीं"। वैजयंती माला ने जवाबी टेलीग्राम भेजा- "होगा होगा होगा।"
ये शब्द एक ख़ूबसूरत गीत के एहसास का हिस्सा बन गए।
जिया बेकरार है छाई बहार है
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फ़िल्म बरसात (1949) संगीतकार शंकर जयकिशन, गीतकार
हसरत जयपुरी और गीतकार शैलेंद्र की पहली फ़िल्म थी। गायक मुकेश भी इस टीम का हिस्सा
बन गए। इस टीम के ज़रिए राज कपूर ने हिंदी सिनेमा के इतिहास में कामयाबी का एक नया
अध्याय लिखा। शुरू में शैलेंद्र ने यह कह कर राज कपूर को मना कर दिया था कि मैं
पैसों के लिए गीत नहीं लिखता। बीवी मां बनने वाली थी उसे झांसी (मायके) भेजने के
लिए शैलेंद्र के पास पैसे नहीं थे। राज कपूर ने मदद की। शैलेंद्र ने फ़िल्म 'बरसात'
का शीर्षक गीत लिख दिया- "बरसात में, हमसे मिले तुम सजन"। उनका दूसरा
गीत था- तिरछी नज़र है, पतली कमर है।
गीतकार हसरत जयपुरी के लिए संगीतकार शंकर जयकिशन ने
जो धुन बनाई उसके डमी शब्द थे-
अमवा का पेड़ है ऊंची मुंडेर है
आजा मेरे बालमा काहे की देर है
इस धुन पर हसरत जयपुरी ने लिखा-
जिया बेकरार है छाई बहार है
आजा मेरे बालमा तेरा इंतज़ार है
फ़िल्म 'बरसात' के साथ पैसों की ऐसी बारिश हुई कि
शैलेंद्र और हसरत ने मुंबई में अपना घर ख़रीद लिया।
दुनिया बनाने वाले क्या तेरे मन में समाई
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सन् 1966 में शैलेंद्र, 1971 में जयकिशन, 1976 में
मुकेश और 1988 में राज कपूर का स्वर्गवास हो गया। 15 फरवरी 1989 में हसरत जयपुरी
से मेरी मुलाक़ात हुई। एसवी रोड खार में कनारा बैंक के ऊपर अपने घर में इन साथियों
को याद करके उनकी आंखें नम हो गईं। हसरत साहब बोले- "बिना टीम के फ़िल्म जगत
में टिकना मुश्किल है। घर परिवार बच्चे यही हैं, नहीं तो मैं मुंबई छोड़कर चला
जाता। नौशाद साहब को देखिए आज कितने अकेले हैं।"
बहारों फूल बरसाओ (1967) और ज़िंदगी इक सफ़र है
सुहाना (1972) गीतों के लिए हसरत जयपुरी को दो बार फ़िल्मफेयर अवार्ड से नवाज़ा गया।
सुनहरे दिनों में झांकते हुए हसरत बोले- आदमी में जब प्यार की भावना जागती है तभी
वह कवि बनता है, किताबें पढ़कर नहीं। प्रेम ही प्रेरणा है। प्रेम की कोई ज़ात नहीं।
प्रेम किसी से भी हो सकता है। राज कपूर तो पूरी दुनिया से प्रेम करते थे। वे
फुटपाथ पर बैठे उस मोची से भी प्यार करते थे जिससे जूता पालिश कराते थे। अपनी
फ़िल्मों के ज़रिए उन्होंने न जाने कितने लोगों की ज़िंदगी संवार दी। शैलेंद्र मुझे
इतना प्यार करता था कि उसने अपनी फ़िल्म 'तीसरी कसम' में मुझसे दो गीत लिखवाए-
"मारे गए गुलफ़ाम" और "दुनिया बनाने वाले क्या तेरे मन में
समाई।"
शैलेंद्र को याद करते हुए हसरत जयपुरी यादों में खो
गए। शैलेंद्र ने सोचा था चार-पांच लाख ख़र्च होंगे और सात-आठ महीने में
'तीसरी क़सम' बन जाएगी। काम जल्दी हो इसलिए उन्होंने फणीश्वर नाथ रेणु को भी मुंबई
बुला लिया था। 'तीसरी कसम' को बनने में पांच साल लग गए। बजट पांच गुना ज़्यादा बढ़
गया। क़र्ज़ के बोझ ने शैलेंद्र की नींद उड़ा दी। राज कपूर 'मेरा नाम जोकर' बनाने में
उलझे हुए थे। शैलेंद्र की कौन मदद करता! अंततः अपनी जान देकर उन्हें अपनी इस ख़्वाब
की क़ीमत चुकानी पड़ी।
सुन साहिबा सुन प्यार की धुन
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जय किशन की मौत के बाद राज कपूर की फ़िल्मों के
संगीतकार बदले। गीतकार भी बदल गए। राज कपूर अपने साले प्रेमनाथ को प्यार से साहिबा
कहकर बुलाते थे। फ़िल्म 'बॉबी' के समय एक दिन जैसे ही जाने के लिए प्रेमनाथ अपनी
कार में बैठे उसी समय राज कपूर को कोई काम याद आ गया। उन्होंने ज़ोर से आवाज़ लगाई-
"सुन साहिबा सुन" उनके जाने के बाद राज कपूर ने "सुन साहिबा
सुन" को गुनगुना कर देखा। अच्छा लगा। फ़िल्म 'राम तेरी गंगा मैली' में
उन्होंने इसी को मुखड़ा बनाया। हसरत जयपुरी से गीत लिखवाया-
सुन साहिबा सुन, प्यार की धुन
मैंने तुझे चुन लिया, तू भी मुझे चुन
बदलते दौर के संगीत पर अफ़सोस ज़ाहिर करते हुए हसरत
जयपुरी ने कहा- अब कला और प्रतिभा की अवहेलना हो रही है। दुनिया संवारने वाले
साहिर, शकील और शैलेंद्र नहीं रहे। सिनेमा में गंदगी बढ़ेगी तो साहित्य ख़त्म हो
जाएगा। पहले के गीतकार अदब और साहित्य से जुड़े थे। आज संगीतकार को गीतकार नहीं ऐसे
चमचों की तलाश रहती है जो फूहड़ गीत लिख सकें। गीत, संगीत और प्रेम कहानी हिंदुस्तानी सिनेमा के
नायक हैं। अगर ये हैं तो नए कलाकारों के साथ भी फ़िल्म चल सकती है। बिना कहानी के
कविता कैसे लिखी जाएगी। अब फ़िल्म की कहानी में बदलाव आ गया है। सेक्स, हिंसा और तस्करी
वाली फ़िल्मों में गीत की सिचुएशन ही नहीं बनती।
नए संगीतकारों से नाराज़ थे हसरत
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हसरत जयपुरी नए संगीतकारों से काफ़ी नाराज़ लगे।
बोले- अनु मलिक मेरा भांजा है। मुझे यह बताते हुए शर्म आती है कि वह संगीत की चोरी
करता है। आज संगीतकार ख़ुद गाने लिख रहे हैं। धुन की चोरी कर रहे हैं। जिन्हें
संगीत की तमीज़ नहीं है ऐसे नए संगीतकार बीच बाज़ार में निर्माता की कार के बोनट पर
ताल बजा कर, मुखड़ा सुनाकर संगीतकार बनने की भीख मांगते हैं। हम भूखों मर जाएंगे
मगर इस तरह अपनी इज्ज़त नहीं बेचेंगे। गीत, संगीत और सिनेमा में भारतीयता होना बहुत
ज़रूरी है। तभी यह टिकेंगे। राज कपूर को इसकी अच्छी समझ थी। वह गीतों की भाव भूमि
के बारे में बता कर गीतकार का काम आसान कर देते थे। उनकी फ़िल्मों में बहुत अच्छे
अच्छे गीत लिखे गए।
तेरी प्यारी प्यारी सूरत को
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हसरत जयपुरी के फ़िल्म गीतों की एक किताब प्रकाशित
हो चुकी है - 'चश्मे बद्दूर'। गायक अहमद हुसैन मुहम्मद हुसैन के संगीत अल्बम में
उनकी कई ग़ज़लें शामिल हैं। उन्होंने बताया कि ग़ैर फ़िल्मी रचनाओं की दो पांडुलिपि
तैयार हैं- 'रूबरू' और 'आफ़सारे-ग़ज़ल'। कोशिश कर रहा हूं कि ये दोनों किताबें जल्दी
प्रकाशित हो जाएं।
गीतकार शैलेंद्र 'इप्टा' से जुड़े हुए थे। जीवन
दर्शन और वामपंथी नज़रिए के गीत की सिचुएशन बनती तो राज साहब उन्हें गीत सौंप देते।
प्यार-मुहब्बत के जज़्बात होते तो वे गीत हसरत के हिस्से में आते। हसरत जयपुरी ने
अपने गीतों में आम बोलचाल की भाषा का इस्तेमाल किया। उनके गीत अवाम में लोकप्रिय
हुए। उनके कुछ लोकप्रिय गीतों की झलक देखिए-
दिल के झरोखे में तुझको बिठाकर।
रात और दिन दिया जले।
बदन पे सितारे लपेटे हुए।
पंख होते तो उड़ आती रे।
तेरी प्यारी प्यारी सूरत को।
अजीब दास्तां है यह।
छोड़ गए बालम।
फूलों की रानी बहारों की मलिका।
तेरे घर के सामने एक घर बनाऊंगा।
तुम मुझे यूं भुला न पाओगे
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हसरत जयपुरी के गीतों में छेड़खानी है, शरारत है।
जुदाई की कसक है। मिलन की ख़ुशी है। ख़्वाबों की ख़ुशबू है। तमन्नाओं के गुलशन हैं।
गीतों में फूल मुस्कुराते हैं इसलिए उनके गीत इज़हार ए मुहब्बत के काम आते हैं। आज
भी उनके गीत सुनकर लोगों के क़दम रुक जाते हैं। दिलों की धड़कन बढ़ जाती है। फ़िल्मी
गीत के लफ़्ज़ों में उन्होंने शायरी की सुगंध घोल दी। उनके गीत सुनने वालों को एक
ख़ूबसूरत एहसास से तरबतर कर जाते हैं।
15 अप्रैल 1922 को जयपुर में जन्मे हसरत जयपुरी का
इंतक़ाल 17 सितंबर 1999 को मुंबई में हुआ। उन्होंने कई ऐसे गीत लिखे हैं जो आज भी
फ़िज़ाओं में गूंज रहे हैं और उनकी मौजूदगी का एहसास करा रहे हैं। आइए हम भी उनका एक
गीत गुन गुनाएं-
तेरी प्यारी प्यारी सूरत को किसी की नज़र ना लगे
चश्मे बद्दूर...
मुखड़े को छुपा लो आँचल में कहीं मेरी नज़र ना लगे
चश्मे बद्दूर…
यूँ ना अकेले फिरा करो सबकी नज़र से डरा करो
फूल से ज़्यादा नाज़ुक हो तुम चाल संभलकर चला करो
ज़ुल्फ़ों को गिरा लो गालों पर मौसम की नज़र ना लगे
चश्मे बद्दूर…
एक झलक जो पाता है राही वहीं रुक जाता है
देख के तेरा रूप सलोना चाँद भी सर को झुकाता है
देखा ना करो तुम आईना कहीं ख़ुद की नज़र ना लगे
चश्मे बद्दूर...
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आपका-
देवमणि पांडेय
Devmani Pandey : B-103, Divya Stuti,
Kanya Pada,
Gokuldham, Film City Road,
Goregaon East, Mumbai-400063,
M : 98210-82126
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