मुंबई के बॉलीवुड में गोपालसिंह नेपाली
'धर्मयुग' के सम्पादक डॉ धर्मवीर भारती इलाहाबाद की
वार्षिक प्रदर्शनी में घूम रहे थे। एक पांडाल में कवि सम्मेलन था। प्रवेश के लिए
टिकट था। पांडाल हाउसफुल था। अचानक पांडाल में ख़ामोशी छा गई। बेहद दिलकश तरन्नुम
में एक गीत के शब्द सुनाई पड़े- "दीपक जलता रहा रात भर"। गीत में ऐसी
कशिश थी कि उनके क़दम अपने आप रुक गए। डॉ भारती ने वहीं यानी पंडाल के बाहर खड़े
होकर पूरा गीत सुना। बाद में डॉ धर्मवीर भारती को मालूम हुआ कि उस नौजवान गीतकार
का नाम गोपाल सिंह नेपाली है। इस अदेखे, अनजाने नौजवान पर डॉ भारती ने आगे चलकर एक
लेख लिखा और गीतकार नेपाली की मुक्त कंठ से तारीफ़ की। 'धर्मयुग' सन् 1956 ने उनका
यह गीत प्रकाशित किया था-
तू पढ़ती है मेरी पुस्तक, मैं तेरा मुखड़ा पढ़ता
हूँ
तू चलती है पन्ने-पन्ने, मैं लोचन-लोचन बढ़ता हूँ
मै खुली क़लम का जादूगर,
तू बंद क़िताब कहानी की
मैं हँसी-ख़ुशी का सौदागर,
तू रात हसीन जवानी की
तू श्याम नयन से देखे तो,
मैं नील गगन में उड़ता हूँ
तू पढ़ती है मेरी पुस्तक, मैं तेरा मुखड़ा पढ़ता
हूँ
गीतों के राजकुमार गोपालसिंह नेपाली
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हिन्दी एवं नेपाली के सुप्रसिद्ध कवि गोपालसिंह
नेपाली की आज 17 अप्रैल को पुण्यतिथि है। उनका जन्म चम्पारन जिले के बेतिया
नामक स्थान पर 11 अगस्त 1911 को हुआ था। उनका मूल नाम गोपाल बहादुर सिंह था|
नेपाली उपनाम उन्हें महाकवि निराला ने दिया। "गीतों
के राजकुमार" कहे जाने वाले गोपाल सिंह नेपाली आज़ादी के पहले और आजादी के बाद
हिंदी काव्य मंच के सबसे लोकप्रिय और सबसे लाडले कवि थे। महाकवि निराला,
राष्ट्रकवि दिनकर, हरिवंश राय बच्चन...सभी उनके प्रति बहुत स्नेह रखते थे।
प्रेम, प्रकृति, देशभक्ति और मानवीय मूल्यों से
परिपूर्ण गीतों से हिंदी काव्य साहित्य को समृद्ध करने वाले गोपाल सिंह नेपाली के
सात काव्य संग्रह प्रकाशित हुए। उन्होंने कई पत्र-पत्रिकाओं का संपादन भी किया।
सन् 1962 के चीनी आक्रमण के समय गोपाल सिंह नेपाली ने अपने देशभक्ति के गीतों से
भारतीय जनमानस में नवीन चेतना का संचार किया। उनका एक गीत बेहद मशहूर हुआ- 'कल्पना
करो, नवीन कल्पना करो'। इस गीत पर देश के कई कवियों ने पैरोडियां लिखी थीं।
मुंबई के बॉलीवुड में गोपाल सिंह नेपाली
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गोपाल सिंह नेपाली ने बॉलीवुड की कई फ़िल्मों में
गीत लिखे। अधिकतर फ़िल्में धार्मिक थीं। इसलिए उनको उतना नाम और दाम नहीं मिला
जिसके वो हक़दार थे। संगीतकार चित्रगुप्त उन्हें बहुत पसंद करते थे। नेपाली जी की
प्रमुख फिल्मों के नाम हैं - ‘नाग पंचमी’, ‘नवरात्रि’, ‘नई राहें’, ‘जय भवानी’,
‘गजरे’, ‘नरसी भगत’ आदि। 'नरसी भगत' फ़िल्म में ही नेपाली जी ने "दर्शन दो
घनश्याम नाथ मोरी अँखियाँ प्यासी" जैसा बेहतरीन भक्ति गीत लिखा था। फ़िल्म
'स्लमडॉग मिलेनियर' में इसे सूरदास की रचना बताकर पेश कर दिया गया था। नेपाली जी
का एक और सिने गीत है-
रोटियाँ ग़रीब की प्रार्थना बनी रहीं
चूम कर जिन्हें सदा क्राँतियाँ गुज़र गईं
गोद में लिये जिन्हें आँधियाँ बिखर गईं
पूछता ग़रीब वह रोटियाँ किधर गईं
देश भी तो बँट गया वेदना बँटी नहीं
रोटियाँ ग़रीब की प्रार्थना बनी रहीं
बतौर निर्माता नेपाली जी ने तीन फ़ीचर फिल्मों का
निर्माण भी किया था। - नज़राना, सनसनी और ख़ुशबू। नेपाली जी की सुपुत्री कमला जी
आकाशवाणी मुंबई की विविध भारतीय सेवा में कार्यरत थीं। चर्चगेट में मेरे पड़ोस में
प्रतिष्ठा भवन में उनका कार्यालय था। जब भी मिलतीं नेपाली जी को बहुत याद करतीं।
मलाड में रहती थीं। सेवा निवृत्त हुईं तो उनसे संपर्क टूट गया। वे बताती थीं कि
नेपाली जी फ़िल्म जगत की लम्बी बैठकें, कृत्रिम व्यवहार और अनावश्यक दिखावे से
परेशान हो जाते थे। अंततः चीनी युद्ध के समय 1962 में वे मुंबई छोड़कर चले गए।
मायूसी के आलम में उन्होंने यह गीत लिखा था-
बदनाम रहे बटमार मगर, घर तो रखवालों ने लूटा
मेरी चाँद सी दुल्हन रातों को, नौलाख सितारों ने लूटा
दो दिन के रैन-बसेरे में, हर चीज़ चुराई जाती है
दीपक तो जलता रहता है, पर रात पराई होती है
गलियों से नैन चुरा लाई, तस्वीर किसी के मुखड़े की
रह गये खुले भर रात नयन, दिल तो दिलदारों ने लूटा
गोपाल सिंह नेपाली ने 'बेटी' को केंद्र में रखकर एक
गीत लिखा था। इसमें स्त्री के जन्म से लेकर उसकी मृत्यु तक की दास्तान थी। यह गीत
इतना लंबा था कि इसे सुनाने में नेपाली जी को एक घंटा लग जाता था। फिर भी लोग
सुनते थे और माता-पिता इसे सुनकर रोते थे। उस गीत की कुछ लाइनें देखिए-
बाबुल तुम बगिया के तरुवर, हम तरुवर की चिड़ियाँ रे
दाना चुगते उड़ जाएँ हम, पिया मिलन की घड़ियाँ रे
उड़ जाएँ तो लौट न आयें, ज्यों मोती की लडियां
रे...बाबुल तुम बगिया के तरुवर …….
हमको सुध न जनम के पहले, अपनी कहाँ अटारी थी
आँख खुली तो नभ के नीचे, हम थे गोद तुम्हारी थी
ऐसा था वह रैन-बसेरा
जहाँ सांझ भी लगे सवेरा
बाबुल तुम गिरिराज हिमालय, हम झरनों की कड़ियाँ रे
उड़ जाएँ तो लौट न आयें, ज्यों मोती की लडियां
रे...
गोपाल सिंह नेपाली का आकस्मिक निधन
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गोपाल सिंह नेपाली काव्य मंचों के सर्वाधिक
लोकप्रिय कवि थे इसलिए कविता पाठ में उनका नंबर सबसे बाद में आता था। इसलिए उन्हें
रात-रात भर जागना पड़ता। काव्य रसिक उन्हें सुनने के लिए कई किलोमीटर पैदल चलकर
आते और रात भर बैठे रहते। अनियमित दिनचर्या और अनियमित खानपान उनके स्वास्थ्य के
लिए घातक सिद्ध हुआ। 16 अप्रैल 1963 की रात को एक कवि सम्मेलन में कविता पाठ करने
के बाद सुबह वे ट्रेन में बैठ गए। रास्ते में उनकी तबीयत ख़राब हो गई। 17 अप्रैल
1963 को मात्र 52 वर्ष की उम्र में भागलपुर रेलवे स्टेशन पर नेपाली जी का आकस्मिक
निधन हो गया। श्रद्धांजलि स्वरूप उन्हीं की पंक्तियां उनको समर्पित हैं-
अफ़सोस नहीं इसका हमको, जीवन में हम कुछ कर न सके,
झोलियाँ किसी की भर न सके, सन्ताप किसी का हर न
सके,
अपने प्रति सच्चा रहने का, जीवन भर हमने काम किया,
देखा-देखी हम जी न सके, देखा-देखी हम मर न
सके।
यह लघु सरिता का बहता जल : नेपाली
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अपनी प्राथमिक पाठशाला में हम सब बच्चे मिलजुल कर
नेपाली जी की यह रचना गाते थे-
यह लघु सरिता का बहता जल
कितना शीतल, कितना निर्मल
हिमगिरि के हिम से निकल-निकल,
यह निर्मल दूध-सा हिम का जल,
कर-कर निनाद कल-कल छल-छल,
तन का चंचल मन का विह्वल
यह लघु सरिता का बहता जल
ऊँचे शिखरों से उतर-उतर,
गिर-गिर, गिरि की चट्टानों पर,
कंकड़-कंकड़ पैदल चलकर,
दिन भर, रजनी भर, जीवन भर,
धोता वसुधा का अन्तस्तल
यह लघु सरिता का बहता जल
हिम के पत्थर वो पिघल पिघल,
बन गए धरा का वारि विमल,
सुख पाता जिससे पथिक विकल
पी-पी कर अंजलि भर मृदुजल,
नित जलकर भी कितना शीतल
यह लघु सरिता का बहता जल
कितना कोमल, कितना वत्सल,
रे जननी का वह अन्तस्तल,
जिसका यह शीतल करुणा जल,
बहता रहता युग-युग अविरल,
गंगा, यमुना, सरयू निर्मल
यह लघु सरिता का बहता जल
◆◆◆
आपका-
देवमणि पांडेय
Devmani Pandey : B-103, Divya Stuti, Kanya Pada,
Gokuldham, Film City Road,Goregaon East,
Mumbai-400063,
M : 98210-82126
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