शुक्रवार, 22 मई 2020

गीतकार नक्श़ लायलपुरी : हर मोड़ पर, तुझको दूँगा सदा


बॉलीवुड में गीतकार नक्श़ लायलपुरी  


मैं तो हर मोड़ पर, तुझको दूँगा सदा,
मेरी आवाज़ को, दर्द के साज़ को, 
तू सुने ना सुने ! 
मैं तो हर मोड़ पर …..

फ़िल्म ‘चेतना’ का यह गीत मुझे बेहद प्रिय है। नक़्श साहब से मुलाक़ात हुई तो उन्होंने बताया- "पाँच टुकड़े में बंटी हुई इस धुन पर यह गीत लिखने में उन्हें सिर्फ़ दस मिनट लगे थे। एक दिन नक़्श लायलपुरी बांद्रा के एक स्टूडियो में संगीतकार जयदेव से मिलने गए। यूं ही गपशप करते हुए जयदेव ने एक धुन बनाई। नक़्श साहब ने धुन सुनी और फ़ौरन गीत लिख दिया।

तुम्हें हो न हो, मुझको तो, इतना यक़ीं है 
मुझे प्यार तुमसे, नहीं है, नहीं है …..

मगर मैंने ये राज़ अब तक न जाना
कि क्यों प्यारी लगती हैं बातें तुम्हारी
मैं क्यों तुमसे मिलने का ढूँढूं बहाना
कभी मैंने चाहा तुम्हें छू के देखूँ 
कभी मैंने चाहा तुम्हे पास लाना

मगर फिर भी इस बात का तो यकीं है
मुझे प्यार तुमसे नहीं है, नहीं है …..

उसी समय संगीतकार जयदेव से मिलने गायिका रूना लैला आ गईं। जयदेव ने उन्हें यह गीत सुनाया। उन्होंने इसरार किया- जयदेव जी, यह गीत मैं ही गाऊंगी। अगले दिन यह गीत रूना लैला की आवाज़ में रिकॉर्ड हुआ। फ़िल्म 'घरौंदा' (1977) में शामिल हुआ। संगीत रसिकों ने इसे बहुत पसंद किया। बतौर गीतकार नक़्श लायलपुरी की पहली फ़िल्म ‘जुग्गू’ (1952) थी। इसमें उन्होंने ‘अगर तेरी आंखों से आंखें मिला दूं’ गीत लिखा था। चेतना, आहिस्ता आहिस्ता, तुम्हारे लिए, घरौंदा, ख़ानदान, दिल की राहें, दिले-नादां, हिना आदि कई लोकप्रिय फ़िल्मों में नक़्श साहब के गीत शामिल हैं। कई टीवी धारावाहिकों में भी नक़्श साहब के गीत काफ़ी लोकप्रिय हुए। 

होंठ जलते हैं मुस्कुराने से 
कोई शिकवा नहीं ज़माने से 

अनकही बात के अफ़साने बने जाते हैं 
दिल की आवाज़ कहां लोग समझ पाते हैं

मुंबई के समंदर का संगीत
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देश के विभाजन के समय सन् 1947 में लायलपुर से पैदल चलकर नक़्श लायलपुरी हिंदुस्तान आए। उनके वालिद ने लखनऊ में घर बनाया। पान खाने और मुस्कराने की आदत उनको यहीं से मिली। उनकी शख़्सियत में वही नफ़ासत और तहज़ीब शामिल हो गई जो लखनऊ वालों में होती है। लखनऊ का सलीक़ा और तहज़ीब उनकी इल्मी और फ़िल्मी शायरी में मौजूद है। 

नक़्श लायलपुरी सन् 1951 में रोज़गार की तलाश में मुम्बई आए और यहीं के होकर रह गए। शुरुआत में उन्होंने नाटक लिखा। नाटक में गीत लिखे। उनके गीतों को पसंद किया गया। सिने जगत के दरवाज़े खुल गए। सिने जगत ने नक़्श साहब को दौलत, शोहरत और इज़्ज़त दी। बॉलीवुड की चमक-दमक और रंगीनियों का असर उनकी शख़्सियत पर नहीं पड़ा। उनका मन बच्चे की तरह निर्मल और शख़्सियत आईने की तरह साफ़ थी। 

नक़्श लायलपुरी के गीतों में ज़बान की मिठास, एहसास की शिद्दत और मुहब्बत की ख़ुशबू है। गीतों के इस समंदर में एक तरफ़ जज़्बात की लहरें हैं तो दूसरी तरफ़ फ़िक्र की गहराई है। इन गीतों में पंजाब की मिट्टी की महक, लखनऊ की नफ़ासत और मुंबई के समंदर का धीमा-धीमा संगीत है। ज़िंदगी के तजुरबात ने उनके लफ़्ज़ों को निखारा, संवारा और एहसास के धागे में सलीक़े से पिरो दिया। फ़िल्मी गीतों में उनके नर्म ओ नाज़ुक अल्फ़ाज़ बोलते और रस घोलते दिखाई दिए।

(1)
ये मुलाक़ात इक बहाना है
प्यार का सिलसिला पुराना है
फ़िल्म : ख़ानदान, संगीत : ख़य्याम, स्वर : लता मंगेशकर

(2)
माना तेरी नज़र में तेरा प्यार हम नहीं
कैसे कहें कि तेरे तलबगार हम नहीं
फ़िल्म : आहिस्ता-आहिस्ता, संगीत : ख़य्याम, स्वर : सुलक्षणा पंडित

(3)
रस्मे उल्फ़त को निभाएं तो निभाएं कैसे
हर तरफ़ आग है दामन को बचाएं कैसे
फ़िल्म : दिल की राहें, संगीत : मदन मोहन, स्वर : लता मंगेशकर

(4)
आपकी बातें करें या अपना अफ़साना कहें
होश में दोनों नहीं हैं किसको दीवाना कहें
फ़िल्म : दिल की राहें, संगीत : मदन मोहन, स्वर : लता मंगेशकर

(5)
भरोसा कर लिया जिस पर उसी ने हमको लूटा है
कहाँ तक नाम गिनवाएं सभी ने हमको लूटा है
फ़िल्म : प्रभात, संगीत : मदन मोहन, स्वर : लता मंगेशकर

(6)
चाँदनी रात में, इक बार तुझे देखा है
ख़ुद पे इतराते हुए, ख़ुद से शर्माते हुए
फ़िल्म : दिल-ए-नादां, संगीतकार : ख़य्याम
गायक : किशोर कुमार, लता मंगेशकर

हाल ये हो गया सोचते सोचते 
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नक़्श साहब अपने घर में कुर्सी पर बैठकर घंटों सोच में डूबे रहते थे। यह उनकी आदत थी और सोचते सोचते उन्होंने ये ग़ज़ल भी कही।

एक आंसू गिरा सोचते सोचते 
याद क्या आ गया सोचते सोचते 
जैसे तस्वीर लटकी हो दीवार पे
हाल ये हो गया सोचते सोचते

कोई नज़्म, ग़ज़ल या गीत लिखना होता तो नक़्श साहब पहले उसे घंटों सोचते। फिर दिमाग़ की स्लेट पर लिख लेते। जो भी काट छांट करनी होती कर लेते। पूरी रचना मन ही मन याद कर लेते। अंत में जब वे इसे काग़ज़ पर उतारते तो उसमें एक शब्द भी बदलने की ज़रूरत नहीं रह जाती। चाहे ग़ज़ल हो, फ़िल्म गीत हो या सीरियल के गीत उनको अपनी सभी रचनाएं ज़बानी याद थीं। सब की रचना प्रक्रिया यही थी। नक़्श लायलपुरी के फ़िल्मी गीतों का एक संकलन उर्दू में प्रकाशित हुआ - 'आँगन-आँगन बरसे गीत'। इसको मैंने हिंदी में रूपांतरित करके नक़्श साहब को सौंप दिया। यह किताब हिंदी में अभी तक प्रकाशित नहीं हुई।


 नक़्श लायलपुरी के कुछ गीत
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1.प्यार का दर्द है मीठा मीठा प्यारा प्यारा. 
2. मैं तो हर मोड़ पर तुझको दूँगा सदा.
3. ये मुलाक़ात इक बहाना है.
4. चिट्ठिए ले जा संदेसा मेरे यार दा.
5. माना तेरी नज़र में तेरा प्यार हम नहीं.
6. तुम्हें देखती हूँ तो लगता है ऐसे.
7. तुम्हें हो न हो पर मुझे तो यकीं है.
8. कई सदियों से, कई जनमों से.
9. न जाने क्या हुआ,जो तूने छू लिया.
10. चाँदनी रात में इक बार तुझे देखा है.
11. धानी चुनर मोरी हाए रे.
12. क़दर तूने ना जानी.
13. रस्मे-उल्फ़त को निभाएं तो निभाएं कैसे.
14. उल्फ़त में ज़माने की हर रस्म को ठुकराओ.


मुम्बई की एक काव्य संध्या में सन् 1998 में नक़्श लायलपुरी से मुलाकात हुई। वे मुझे फ़िल्म राइटर्स एसोसिएशन में लाए। एसोसिएशन की सालाना बैठक में आयोजित मुशायरे के संचालन की ज़िम्मेदारी मुझे सौंपी। मेरे एक दोस्त के माध्यम से  उन्होंने मेगा मॉल अंधेरी के सामने वैभव अपार्टमेंट में घर खरीदा। मुझे घर बुलाया। कहा- आप जब भी अंधेरी आएं तो सबसे पहले मेरे घर आएं। उसके बाद आगे जाएं। जब तक वे ज़िंदा रहे मैंने यह वादा निभाया। जसवंत राय उर्फ़ नक़्श लायलपुरी का जन्म 24 फरवरी 1928 को लायलपुर (अब पाकिस्तान का फ़ैसलबाद) में हुआ। 22 जनवरी 2017 को मुम्बई में उनका इंतकाल हुआ।

पेश है नक़्श लायलपुरी का एक गीत। फ़िल्म 'चेतना' (1970) के इस गीत के
संगीतकार हैं सपन जगमोहन और गायक हैं मुकेश।

मैं तो हर मोड़ पर तुझको दूँगा सदा,
मेरी आवाज़ को, दर्द के साज़ को, 
तू सुने ना सुने!

मुझे देखकर कह रहे हैं सभी
मुहब्बत का हासिल है दीवानगी
प्यार की राह में, फूल भी थे मगर
मैंने कांटे चुने
मैं तो हर मोड़ पर...

जहाँ दिल झुका था वहीं सर झुका
मुझे कोई सजदों से रोकेगा क्या
काश टूटे ना वो, आरज़ू ने मेरी
ख्वाब हैं जो बुने
मैं तो हर मोड़ पर...

मेरी ज़िन्दगी में वो ही ग़म रहा
तेरा साथ भी तो बहुत कम रहा
दिल ने, साथी मेरे, तेरी चाहत में थे
ख़्वाब क्या क्या बुने
मैं तो हर मोड़ पर...

तेरे गेसूओं का वो साया कहाँ
वो बाहों का तेरी सहारा कहाँ
अब वो आँचल कहाँ, मेरी पलकों से जो 
भीगे मोती चुने
मैं तो हर मोड़ पर…

◆◆◆
आपका
देवमणि पांडेय 

Devmani Pandey : B-103, Divya Stuti, 
Kanya Pada, Gokuldham, Film City Road, 
Goregaon East, Mumbai-400063, 98210 82126
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