भीमसेन की फ़िल्म घरौंदा
लॉक डाउन के दौरान मैंने
निर्माता-निर्देशक भीमसेन की फ़िल्म 'घरौंदा' देखी। उनका हालचाल जानने के लिए मैंने
उनके प्रिय मित्र कथाकार-चित्रकार आबिद सुरती को फ़ोन किया। आबिद जी बोले- अरे वे
तो साल भर पहले गुज़र गए। मैंने भीमसेन जी के बेटे किरीट खुराना से बात की। किरीट
ने बताया- 17 अप्रैल 2018 को पापा गुज़र गए।
सन् 1975 में निर्माता
निर्देशक के रूप में भीमसेन ने 'घरौंदा' फ़िल्म बनाई। डॉ शंकर शेष की कहानी पर
आधारित इस फ़िल्म की पटकथा गुलज़ार ने लिखी। संवाद गुलज़ार और भूषण वनमाली ने लिखे
थे। 'घरौंदा' में संगीतकार जयदेव के संगीत ने कमाल किया। गुलज़ार के गीत 'दो दीवाने शहर में' और 'एक अकेला इस शहर में' काफ़ी लोकप्रिय हुए। फ़िल्म
'घरौंदा' में रूना लैला की आवाज़ में एक गीत नक़्श लायलपुरी ने का भी है-
तुम्हें हो ना हो, मुझको तो
यकीं है
मुझे प्यार तुमसे,
नहीं है, नहीं है
फ़िल्म “घरौंदा” मुम्बई
महानगर में घर का सपना देखने और इसे साकार करने का प्रयास करते मिडिल क्लास प्रेमी
युगल सुदीप (अमोल पालेकर) और छाया (ज़रीना वहाब) के नैतिक पतन की और उनके द्वारा
किये गए अप्रत्याशित समझौतों की दास्तान है। फ़िल्म 'घरौंदा' में मुम्बई शहर एक निर्दयी किरदार है। वह आम आदमी के सपनों का क़ातिल
है। वह अनैतिक समझौते करने पर विवश करता है। इस फ़िल्म का एक सम्वाद है- "इस
शहर के लोग रोने पर कंधा नहीं देते। मरने का इंतज़ार करते हैं कंधा देने के
लिए।"
फ़िल्म 'घरौंदा' को
फ़िल्म फेयर अवार्ड
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लीक से हटकर बनी फ़िल्म 'घरौंदा' की कामयाबी पर फ़िल्म
आलोचकों ने आशंका जताई। साल भर इंतज़ार के बाद अपना सब कुछ दांव पर लगा कर भीमसेन
ने सन् 1977 में इस फ़िल्म को रिलीज़ किया। 'घरौंदा' फ़िल्म ने ज़बरदस्त लोकप्रियता हासिल की। सन् 1977 में कई बड़ी फ़िल्में
रिलीज़ हुई़। इनके नाम हैं- अमर अकबर एंथोनी, परवरिश, हम किसी से कम नहीं, चाचा
भतीजा, आदमी सड़क का, दूसरा आदमी, शतरंज के खिलाड़ी, भूमिका और दुल्हन वही जो पिया
मन भाए। इन बड़े बैनर की फ़िल्मों के सामने फ़िल्म 'घरौंदा' बॉक्स ऑफिस पर टिकी रही और इसने सिनेमा हाल में सौंवा दिन मनाया।
'घरौंदा' फ़िल्म में बेस्ट सपोर्टिंग ऐक्टर के लिए डॉ श्रीराम लागू को और बेस्ट
लिरिक के लिए गुलज़ार को फ़िल्म फेयर अवार्ड मिला। फ़िल्म फेयर अवार्ड की चार और
श्रेणियों में 'घरौंदा' का नामांकन हुआ था- बेस्ट स्टोरी, बेस्ट एक्ट्रेस, बेस्ट फिल्म और
बेस्ट डायरेक्टर। इसके अलावा राष्ट्रीय स्तर पर फ़िल्म 'घरौंदा' को 30 पुरस्कार मिले।
निर्देशन के लिए भीमसेन को बेस्ट क्रिटिक अवार्ड प्राप्त हुआ। इस फ़िल्म में अमोल पालेकर,
ज़रीना वहाब और डॉ श्रीराम लागू की प्रमुख भूमिकाएं थी।
सन् 1979 में
निर्माता-निर्देशक भीमसेन ने फ़िल्म 'दूरियां' बनाई। बेस्ट स्टोरी के लिए इसे भी फ़िल्मफेयर अवार्ड मिला। इस फ़िल्म
की कहानी, पटकथा और संवाद डॉ शंकर शेष ने लिखे थे। जयदेव के संगीत ने फिर कमाल
किया। इस फ़िल्म में सुदर्शन फ़ाकिर के लिखे तीनों गीत लोकप्रिय हुए-
ज़िंदगी! मेरे घर आना ज़िंदगी
...
ज़िंदगी में जब तुम्हारे हम
नहीं थे ...
खोटा पैसा नहीं चलेगा
…..
फ़िल्म 'दूरियां' में उत्तम कुमार और
शर्मिला टैगोर की प्रमुख भूमिकाएं थीं। इस फ़िल्म में बाल कलाकार मोजू के रूप
में भीमसेन के बेटे किरीट खुराना ने सराहनीय अभिनय किया है। अपने विषय
के नएपन के कारण यह फ़िल्म काफ़ी सराही गई। अगले साल 1980 में फ़िल्म अभिनेता उत्तम
कुमार का निधन हो गया।
लखनऊ से मुंबई का सफ़र
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भीमसेन का जन्म 24 नवंबर
1936 में मुल्तान में हुआ था। पिता कलाकार थे। पेंटिंग के फ्रेम बनाते थे। ग्यारह
साल की उम्र में भीमसेन को विभाजन की त्रासदी से गुज़रना पड़ा। उनका परिवार अपनी
ज़मीन और जड़ों से बिछड़कर लखनऊ में बस गया। लखनऊ विश्वविद्यालय से भीमसेन ने
शास्त्रीय संगीत और फाइन आर्ट की तालीम हासिल की।
अपने सपनों को साकार करने
के लिए भीमसेन सन् 1961 में मुंबई आए। फ़िल्म डिवीजन में बैकग्राउंड आर्टिस्ट का
काम मिल गया। मशहूर एनिमेटर राम मोहन से भीमसेन ने एनीमेशन की कला सीखी। सन् 1970
में एक मिनट की एनीमेशन शॉर्ट फ़िल्म 'दि क्लाइंब' बनाई। शिकागो इंटरनेशनल फ़िल्म फेस्टिवल में इस शार्ट फ़िल्म को
'सिल्वर हुगो' अवार्ड मिला। वापसी में इस पुरस्कार के लिए भीमसेन को ₹14000 कस्टम
ड्यूटी चुकानी पड़ी।
क्लाइंब फ़िल्म्स की शुरुआत
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सन् 1971 में भीमसेन ने
अपनी कम्पनी 'क्लाइंब फ़िल्म्स' की शुरुआत की। दिन में विज्ञापन और रात में शॉर्ट
फिल्में बनाई। सन् 1974 में 'एक अनेक और एकता' एनीमेशन फ़िल्म को नेशनल अवार्ड
मिला। एनीमेशन और शार्ट फ़िल्मों के लिए भीमसेन ने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय
स्तर पर बहुत नाम कमाया। उन्हें 16 नेशनल अवॉर्ड और 8 इंटरनेशनल अवार्ड प्राप्त
हुए।
सन् 1977 में फ़िल्म 'घरौंदा' और सन् 1979 में फ़िल्म 'दूरियां' के बाद भीमसेन की तीसरी
फ़िल्म आई- 'तुम लौट आओ'। इन फ़िल्मों ने उन्हें एक
संवेदनशील फ़िल्मकार के रूप में स्थापित कर दिया। 'लोकगाथा' और 'वर्तमान' नामक
एनिमेशन धारावाहिक बनाने का श्रेय उन्हें मिला। भीमसेन ने अंधविश्वास पर 'छोटी
बड़ी बातें' धारावाहिक बनाया। सन् 1992 में कार एक्सीडेंट में छोटा बेटा जतिन गुज़र
गया। इस दुख से बाहर निकलने के लिए उन्होंने एनीमेशन सीरीज़ शुरू की जो हिंदुस्तान
की सबसे बड़ी सीरीज़ मानी जाती है। जहां से उन्होंने अपने कैरियर की शुरुआत की थी
उसी फ़िल्म डिवीजन ने भीमसेन की एनीमेशन फ़िल्मों का विशेष शो आयोजित किया।
बेटों को सिखाया घर बसाना
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लोगों को यह शिकायत रहती
है कि मां-बाप जब बूढ़े होते हैं तो बेटे उनका साथ छोड़ देते हैं। तीन मंज़िला मकान
में रहने वाले फ़िल्मकार भीमसेन का नज़रिया अलग था। बेटे जवान हुए तो उन्होंने बेटों
से कहा- जिस दिन तुम शादी करोगे उसी दिन तुम्हें मेरा घर छोड़ना होगा। उन्होंने
बेटों को समझाया- घर बसाने से पहले घर बनाना ज़रूरी है। उनके दोनों बेटों ने उनकी
सीख मानी। बांद्रा के उसी मुहल्ले में बेटों ने पहले घर बनाया, फिर घर बसाया यानी
शादी की। भीमसेन के बड़े बेटे हिमांशु खुराना की एडवरटाइजिंग कंपनी है। छोटा बेटा
किरीट खुराना एनिमेशन फ़िल्मों में व्यस्त है।
नेशनल कॉलेज बांद्रा के
सामने भीमसेन का तीन मंज़िला मकान है। ग्राउंड फ्लोर में उनका स्टूडियो है। पहली और
दूसरी मंज़िल पर वे बीवी के साथ रहते थे। उन्होंने बताया था- दोनों बेटे अपने
बच्चों के साथ प्रतिदिन शाम को उनसे मिलने के लिए आते हैं। मुंबई महानगर में ऐसी
मुहब्बत दुर्लभ है। घर के नज़दीक एक हरे-भरे पार्क में रोज़ शाम को एक घंटे भीमसेन
जी सैर करते थे। दो बार उनके साथ मैं भी शाम की सैर के लिए उनके साथ गया।
जवान बेटे से बिछड़ने का ग़म
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सन् 2003 में बांद्रा में
भीमसेन जी के घर पर पहली मुलाक़ात हुई। श्वेत बाल, श्वेत दाढ़ी और श्वेत कुर्ते
पाज़ामे में उनका व्यक्तित्व बहुत दिव्य लग रहा था। उन्होंने अपनी कविता पुस्तक 'एक
जमा एक' मुझे भेंट की। उसमें आध्यात्मिक रंग वाली कविताएं हैं। उनकी बातचीत में भी
आध्यात्मिकता झलक रही थी। मैंने उनसे इसका कारण पूछा। उन्होंने बताया कि छोटे बेटे
को ईश्वर ने अपने पास बुला लिया। तब से उनका झुकाव आध्यात्मिकता की तरफ़ हो
गया।
सन् 1992 में दीवाली की
रात भीमसेन का छोटा बेटा जतिन एक दोस्त के यहां पूजा में भाग लेने जा रहा था।
सिद्धिविनायक मंदिर के सामने एक कार दुर्घटना में उसकी मौत हो गई। जतिन 22 साल का
था। नादिरा बब्बर और दिनेश ठाकुर के साथ नाटक कर रहा था। एफडीआई की फ़िल्में की
थीं। भीमसेन के धारावाहिक 'छोटी बड़ी बातें' में काम किया था। मुम्बई की लाइफ पर
उसने एक कहानी लिखी थी 'दुविधा'। जतिन इस पर फ़िल्म डायरेक्ट करना चाहता था। बेटे
की मौत के बाद भीमसेन ने ख़ुद को ईश्वर के हाथों में सौंप दिया।
टेलीफ़िल्म गुलकी बन्नो
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सन 2003 में नौजवानों की
एक नई टीम के साथ भीमसेन राष्ट्रीय दूरदर्शन के लिए डॉ धर्मवीर भारती की कहानी पर
टेलीफ़िल्म 'गुलकी बन्नो' के निर्माण में व्यस्त
थे। गुलकी की भूमिका में अनन्या खरे और बुआ के किरदार में सुरेखा सीकरी थीं।
वीरेंद्र सक्सेना गुलकी के पति बने थे। भीमसेन के अनुसार गुलकी बन्नो हमारे भारतीय
समाज की असली दास्तान है। इस लघु कहानी में घर-परिवार, समाज और जीवन की अद्भुत
तस्वीर है। जीवन दर्शन है। यह कहानी मानवीय भावनाओं का जीवंत दस्तावेज है।
फ़िल्मकार भीमसेन को बचपन
से ही संगीत से लगाव था। उन्हें गाने का बेहद शौक़ था। उन्होंने अपने स्टूडियो में
अपने रिकॉर्ड किए हुए कई गीत मुझे सुनाए थे और कहा था- "दरअसल इसी संगीत ने
मुझे ज़िंदा रखा है। मेरे पास दस अल्बम की सामग्री है। पांच अल्बम एक साथ जारी करने
की योजना बना रहा हूं।" गाते गाते भीमसेन ने लिखना शुरू कर दिया। उनकी
सात पुस्तकें प्रकाशित हुईं।
भीमसेन ने अपनी फ़िल्मों से
साबित किया कि वे ऋषिकेश मुखर्जी और बासु चटर्जी की परंपरा के संवेदनशील फ़िल्मकार
हैं। उनकी फ़िल्मों में ज़िंदगी उसी तरह हंसती मुस्कराती है जिस तरह हम उसे देखते
हैं। अपनी फ़िल्मों के कैनवास पर उन्होंने ज़िंदगी और समाज की सच्चाइयों को साकार
किया। उनकी फ़िल्मों में मध्यवर्गीय इंसान के सपने हैं। उन्हें सच करने का संघर्ष
है। सपनों के टूटने की आवाज़ भी है। गिरकर फिर से खड़े होने और मंज़िल की तरफ़ चल
देने का हौसला भी है। इसलिए उनकी फ़िल्में अपने बहुत क़रीब लगती हैं। उनके किरदार
अपने आसपास के, अपने घर के सदस्य लगते हैं। अपनी इसी कलात्मक अभिव्यक्ति के दम पर
भीमसेन हमेशा हमारी स्मृतियों में हमारे साथ रहेंगे।
आपका-
देवमणि पांडेय
Devmani Pandey :
B-103, Divya Stuti, Kanya
Pada, Gokuldham,
Film City Road, Goregaon East,
Mumbai-40006
M : 98210-82126
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