अमिताभ बच्चन |
हिंदी सिनेमा : किस हाल में है हिंदी
अमिताभ बच्चन ने सुबह 9:30 बजे मिलने का समय दिया था। अमित जी समय के बहुत पाबंद हैं। इसलिए हम सुबह 9:00 बजे फ़िल्मसिटी स्टूडियो पहुंच गए। स्टूडियो के हेलीपैड पर एक बंगला बना हुआ था। इस बंगले में फ़िल्म ‘आंखें’ की शूटिंग थी। ठीक 9:15 बजे अमित जी की मिनी बस यानी वैन बंगले के गेट पर पहुंच गई। वैन के आगे सहारा के सुरक्षा रक्षक थे। वैन के पीछे वाली जीप में सरकारी सुरक्षा मुस्तैद थी। अमित जी सफ़ेद रंग का पठानी सूट पहने हुए थे। उन्हें हमारे आने की सूचना दी गई।
अमित जी ने मुस्कुराकर हाथ मिलाया। उनकी आंखों की चमक अदभुत है। पत्रकार दोस्त उपेंद्र राय और मैं सामने वाले सोफ़े पर बैठ गए। अमित जी ने चाय मंगाई। हमने चाय पी। उन्होंने घर से लाया हुआ पानी पिया। राइटिंग पैड पर बाएं हाथ से सुंदर हस्तलिपि में अमित जी ने हिंदी में लिखा- "मेरी हार्दिक कामना है कि माननीय अटल बिहारी वाजपेई और मुशर्रफ़ साहब की वार्ता सफल हो।" अमित जी का यह हस्तलिखित संदेश दिल्ली के एक दैनिक अख़बार में परवेज़ मुशर्रफ़ के भारत आगमन पर 14 जुलाई 2001 को प्रकाशित होना था।
श्याम बेनेगल : हिंदी लिखना पढ़ना नहीं आता !
फ़िल्मसिटी स्टूडियो से निकलकर हम श्याम बेनेगल से मिलने उनके ताड़देव स्थित ऑफिस में गए। सीधे सादे विनम्र बेनेगल जी ने बड़ी मुहब्बत से बातचीत की। उपेंद्र राय ने उनके सामने राइटिंग पैड रखा तो वे बोले- मैं हिंदी बोल लेता हूं, समझ लेता हूं, मगर मैं हिंदी लिख नहीं सकता, पढ़ नहीं सकता। मैंने कहा- मैं हिंदी में एक लाइन लिख देता हूं। आप उसे देख कर लिख दीजिए। वे बोले- मैं देख कर भी नहीं लिख पाऊंगा। फिर उन्होंने मुझसे कहा- पांडेय जी, मेरी तरफ़ से आप लिख दीजिए। मैंने उनकी तरफ़ से हिंदी में शुभकामना संदेश लिख दिया।
श्याम बेनेगल को हिंदी नहीं आती मगर हिंदी सिने जगत में उनका योगदान बेमिसाल है। उनकी फ़िल्मों के बिना हिंदी सिनेमा का इतिहास नहीं लिखा जा सकता। मुझे लगता है कि इंसान को भाषा की तराजू पर तोलने के बजाय उसकी रचनात्मकता का आकलन होना चाहिए। यह देखना चाहिए कि किसी ख़ास कला माध्यम में उसकी भूमिका कितनी महत्वपूर्ण है।
श्याम बेनेगल की मातृभाषा तेलगू है। अशोक मिश्र उनके प्रिय लेखक हैं। अशोक मिश्र अपनी सभी स्क्रिप्ट हिंदी में लिखते हैं। फाइनल स्क्रिप्ट अंग्रेज़ी में यानी रोमन में टाइप करा कर बेनेगल जी को देते हैं। यह एक तकनीकी ज़रूरत है। अशोक मिश्र ने श्याम बेनेगल के लिए फ़िल्म ‘समर’ की पटकथा बुंदेलखंडी में और ‘वेलकम टू सज्जनपुर’ की पटकथा बघेलखंडी में लिखी। अशोक मिश्र का कहना है कि श्याम बेनेगल को हिंदी भाषा से काफ़ी लगाव है। वे पूरी स्क्रिप्ट हिंदी में सुनते हैं। देशज शब्दों पर चर्चा करके उसे समझते हैं। श्याम बेनेगल की ‘ज़ुबेदा’ और ‘मम्मो’ फ़िल्में उर्दू में लिखी गईं थी। इस बात की तारीफ़ की जानी चाहिए कि हिंदी न जानने वाले श्याम बेनेगल ने हिंदी सिनेमा में बेमिसाल योगदान किया है।
फ़िल्म लेखक अशोक मिश्र |
विश्व सिनेमा में भारतीय सिनेमा का उल्लेखनीय प्रतिनिधित्व सत्यजीत_रे ने किया। सत्यजीत रे को हिंदी नहीं आती थी मगर उन्होंने हिंदी में ‘शतरंज के खिलाड़ी’ और ‘सदगति’ फ़िल्में बनाईं। मेरे दोस्त जावेद सिद्दीक़ी को उन्होंने संवाद लेखन के लिए कोलकाता बुलाया। जावेद जी ने बताया कि सत्यजीत रे ने 'शतरंज के खिलाड़ी' की पटकथा अंग्रेजी में लिखी थी। वे सिर्फ़ अंग्रेज़ी और बांग्ला में ही सारा काम करते थे। यहां तक कि वे हिंदी का एक वाक्य भी नहीं बोल पाते थे। उन्हें हिंदी का बस एक ही शब्द याद था- बढ़िया। सत्यजीत रे ने साबित किया कि बिना हिंदी जाने भी हिंदी सिनेमा में बढ़िया योगदान किया जा सकता है।
सिने जगत में हिंदी का हाल
फ़िल्म जगत के कई कलाकार हिंदी लिख पढ़ नहीं पाते। फिर भी हिंदी सिनेमा में उन्होंने अतुलनीय लोकप्रियता अर्जित की। अभिनेत्री रेखा ने ताउम्र अंग्रेज़ी में लिखे हुए हिंदी संवाद बोलकर अच्छी अभिनेत्री होने का सबूत दिया। अभिनेत्री श्रीदेवी को हिंदी सीखने में तीन साल लग गए। तब तक हिंदी की सुपरहिट फ़िल्मों में हमें उनके जो मोहक संवाद सुनाई पड़े वे सलमा नाम की लड़की की आवाज़ में डब किए गए थे।
सवाल यह है कि अगर हिंदी को देवनागरी के साथ अंग्रेज़ी की रोमन लिपि में भी लिखा जाए तो क्या ग़लत है। फ़िल्म लेखक कमलेश पांडेय का कहना है कि हर भाषा अपनी लिपि के साथ ही अच्छी लगती है। हिंदी को रोमन में और देवनागरी लिपि में लिखकर आप सामने रखिए। फ़र्क़ नज़र आएगा। हमारे दिमाग़ में देवनागरी लिपि में लिखे गए शब्दों की एक छवि होती है। इस छवि में जीवन के विविध रंग और भावनाएं शामिल होती हैं। उन्हीं शब्दों को रोमन लिपि में देखकर दिल में वैसी भावना जागृत नहीं होती।
पहले कई फ़िल्म लेखक और निर्देशक बांग्ला भाषी थे। वे अंग्रेज़ी में स्क्रीनप्ले लिखते थे मगर संवाद के लिए उर्दू शायर की तलाश करते थे। शायर अख्त़रुल ईमान और अबरार अल्वी से लेकर सलीम जावेद तक हिंदी सिनेमा की बहुत सारी स्क्रिप्ट उर्दू लिपि में लिखी गई। अधिकांश गीतकार भी उर्दू स्क्रिप्ट में गीत लिखते थे। उर्दू स्क्रिप्ट से कभी किसी को तकलीफ़ नहीं हुई क्योंकि फ़िल्मों के कई निर्माता निर्देशक भी उर्दू स्क्रिप्ट पढ़ लेते थे।
अंग्रेज़ी किताबें पढ़ने वाले गोविंद निहलानी
हमारे पुस्तक विक्रेता मित्र ने बताया कि गोविंद निहलानी ने उनकी दुकान से एक साल में हिंदी की अस्सी किताबें ख़रीद़ी। वह सन् 2004 का समय था। निहलानी जी अमिताभ बच्चन को लेकर फ़िल्म #देव बना रहे थे। मैं राजकमल स्टूडियो में उनसे मिलने गया। मैंने पूछा कि आप एक साल में हिंदी की कितनी किताबें पढ़ लेते हैं। गोविंद निहलानी ने बड़ी ईमानदारी से जवाब दिया- "मैं हिंदी की किताबें नहीं पढ़ता। मैं सिर्फ़ अंग्रेज़ी किताबें पढ़ता हूँ। मेरे पास आठ लोगों की एक टीम है। मैं हिंदी की किताबें ख़रीद कर उनको बांट देता हूँ। वे पढ़कर मुझे उसका सारांश बता देते हैं। अगर कोई सीन पावरफुल हुआ तो उसे पढ़कर मुझे सुना देते हैं।"
मैंने सतीश कौशिक की स्क्रिप्ट देखी है। वे अपने हाथ से हिंदी में लिखते हैं। मिर्ज़ा ग़ालिब धारावाहिक के समय मैंने गुलज़ार की स्क्रिप्ट देखी। वह उर्दू में टाइप थी। शूटिंग के संकेत अंग्रेज़ी में लिखे हुए थे। फ़िल्म लेखक कमलेश पांडेय कंप्यूटर पर हिंदी में अपनी स्क्रिप्ट टाइप करते हैं। इसके लिए वे फाइनल ड्राफ्ट नामक एक ऐप का इस्तेमाल करते हैं। उसमें देवनागरी लिपि और रोमन लिपि दोनों में लिखने की सुविधा है। दृश्य का वर्णन कमलेश जी रोमन लिपि में लिखते हैं मगर सारे संवाद देवनागरी लिपि में लिखते हैं।
फ़िल्म लेखक कमलेश पांडेय |
हिंदी सिनेमा के हिंदी प्रेमी सितारे
फ़िल्म लेखक कमलेश पांडेय ने बताया कि पहले लम्बे क़द के अधिकांश हीरो पंजाब से आते थे। पृथ्वीराज कपूर से लेकर अभिनेता धर्मेंद्र तक की पढ़ाई उर्दू में हुई है। धर्मेंद्र हिंदी में डायलॉग सुनकर अपनी हस्तलिपि में उसे उर्दू में लिख कर याद कर लेते हैं। फ़िल्म सौदागर का ज़िक्र करने पर कमलेश जी ने बताया कि अभिनेता राजकुमार और दिलीप कुमार दोनों को उर्दू लिपि आती है। दिलीप कुमार अपने संवाद सुनकर ख़ुद उसे उर्दू लिपि में काग़ज़ पर लिख लेते थे। अभिनेता राजकुमार की याददाश्त बहुत अच्छी थी। एक बार सुनते ही उन्हें सम्वाद याद हो जाते थे। आवश्यकतानुसार वे भी काग़ज़ पर उर्दू लिपि में अपने संवाद लिख लेते थे।
हिंदी सिनेमा का एक गोल्डन पीरियड रहा है। इस पीरियड के सितारे थे राज कपूर, दिलीप कुमार, राजेंद्र कुमार, राजकुमार, मनोज कुमार, सुनील दत्त, धर्मेंद्र, विनोद खन्ना आदि। सितारों की इस पीढ़ी को हिंदी से गहरा लगाव था। इस पीढ़ी ने हिंदी के प्रचार प्रसार और लोकप्रियता के लिए सराहनीय योगदान दिया। इन्हीं सितारों की हिंदी फ़िल्में देखकर अहिंदी भाषी दर्शकों ने हिंदी सीखी।
साठ के दशक में राज कपूर ऊटी में ‘मेरा नाम जोकर’ फ़िल्म की शूटिंग कर रहे थे। उस समय दक्षिण में हिंदी विरोधी आंदोलन चल रहा था। एक दिन चार पांच सौ लोगों की भीड़ ने राज कपूर की यूनिट को घेर लिया। वे नारे लगा रहे थे- "वी डोंट वांट हिंदी, वी डोंट वांट हिंदी फ़िल्म"। एक ऊंची जगह पर खड़े होकर राज कपूर ने इस भीड़ को संबोधित किया। उन्होंने पूछा- क्या आप सब को अंग्रेज़ी आती है? लोग ख़ामोश हो गए क्योंकि साउथ में सब को अंग्रेजी नहीं आती। राज कपूर ने कहा- एक विदेशी भाषा में हिंदी का विरोध करना अच्छी बात नहीं है। आप अपनी मातृभाषा में यह मांग कीजिए कि साउथ की किसी भाषा को राष्ट्रभाषा बनाया जाए तो मैं आपके साथ हूं। आप अपनी मातृभाषा का सम्मान करते हैं तो दूसरों की मातृभाषा का भी सम्मान कीजिए। धीरे धीरे भीड़ खिसक गई। उसके बाद किसी ने राज कपूर का विरोध नहीं किया।
सिने जगत में नई पीढ़ी और हिंदी
हिंदी फ़िल्म इंडस्ट्री में अमिताभ बच्चन ऐसे कलाकार हैं जिनके सामने हमेशा हिंदी में ही पटकथा पेश की जाती है। नई पीढ़ी की पसंद अंग्रेज़ी है। आज के नौजवान फ़िल्म लेखक लैपटॉप पर अंग्रेजी में हिंदी फ़िल्म की पटकथाएं लिख रहे हैं। बाहुबली-2 के संवाद लेखक मनोज मुंतशिर कॉन्वेंट स्कूल में पढ़े लिखे हैं। उन्हें अंग्रेजी अच्छी आती है। इसका उन्हें कैरियर में भरपूर फ़ायदा मिला।
मनोज मुंतशिर को संघर्ष के दिनों में सन् 2002 में स्टार प्लस के धारावाहिक ‘यात्रा’ के लेखन का कार्य मिल गया। उन्होंने लैपटॉप ख़रीदा। हिंदी को अंग्रेज़ी लिपि में लिखकर सीडी बनाकर वे स्टार चैनल के ऑफिस में दे देते थे। सीडी को कंप्यूटर में अपलोड करके आवश्यक तब्दीलियां कर ली जाती थीं। उस समय हिंदी यूनिकोड प्रचलन में नहीं था। आगे चलकर घर बैठे अंग्रेज़ी में ईमेल से सारा काम होने लगा।
कविता बड़जात्या |
सन् 2016 में सोनी चैनल पर कविता बड़जात्या का धारावाहिक प्रसारित हुआ- ‘एक रिश्ता साझेदारी का’। इस सीरियल में मैंने छोटे-बड़े बीस गीत लिखे। उन्होंने पहले गीत का ट्रैक मुझे ईमेल से भेजा। मैंने इसे सुनकर हिंदी में गीत लिखा और कविता जी को व्हाट्सएप कर दिया। यह मेहंदी की रस्म का गीत था। इसकी शुरुआत एक दोहे से थी-
पुरवाई में प्रेम की, ऐसे निखरा रूप
मुखड़ा लाडो का लगे, ज्यों सर्दी की धूप
तुरंत कविता जी का फ़ोन आया। उनकी आवाज़ जोश और उमंग से लबालब थी। वे बोलीं- पांडेय जी, मेरे चारों तरफ़ अंग्रेजी ही अंग्रेजी है। बहुत दिनों बाद मैंने आज हिंदी स्क्रिप्ट देखी है। मैं आपको बता नहीं सकती कि हिंदी देखकर आज मेरी आंखों को और दिल को कितना सुकून मिल रहा है। आप कल ऑफिस आइए। चाय पीते हैं। ज़ाहिर है कि कविता बड़जात्या के सीरियल की पटकथा भी लैपटॉप पर अंग्रेज़ी में लिखी जा रही थी।
आज हिन्दी पटकथा लेखन की कार्यशालाओं में कई लोग अंग्रेज़ी में लेक्चर देते हैं। सिने जगत में जो नए फ़िल्म मेकर आ रहे हैं वे सब अंग्रेज़ी मीडियम में पढ़े लिखे हैं। आगे वह समय भी आने वाला है जब अंग्रेज़ी ज्ञान के बिना काम मिलना मुश्किल होगा।
हिंदी सिनेमा में हिंदी का भविष्य
आज़ादी के बाद हिंदी सिनेमा में कई ऐसे फ़िल्म लेखक आए जिन्होंने साहित्यिक भाषा में संवाद लिखे। उन फ़िल्मों ने हिंदी भाषा की तरक़्क़ी में उल्लेखनीय योगदान किया। आज हिंदी की मौलिकता ग़ायब हो रही है। हिंदी वर्ण संकर भाषा बन गई है। ऐसी भाषा में कुछ फ़िल्में सफल भी हो सकती हैं लेकिन ऐसी भाषा के साथ हिंदी सिनेमा का कारवां दूर तक नहीं जा सकता। हर भाषा का अपना ज़ायका होता है, अंडर करंट होता है। हिंदी में यह स्वाद तभी मिलता है जब हिंदी देवनागरी लिपि में लिखी जाए।
फ़िल्म लेखक कमलेश पांडेय के अनुसार सिने जगत में भाषा लगातार बिगड़ रही है। हिंदी फ़िल्म देखने वाली नई पीढ़ी इससे क्या सीखेगी यह ख़ुद में एक प्रश्न चिन्ह है। सिनेमा के ज़रिए भाषा समाज में उतरती है। फ़िल्म ख़ुद में एक साहित्य है। भाषा के मामले में हम बहुत ग़रीब हैं और लगातार ग़रीब होते जा रहे हैं। आने वाले समय में भाषा के लिए बड़े ख़तरे हैं। कुल मिलाकर हिंदी सिनेमा में हिंदी का भविष्य अंधकारमय है।
हिंदी के बारे में कहा जाता है कि यह सबकी है और किसी की नहीं है। मगर कुछ लोग ऐसे हैं जो हिंदी से बड़ा इमोशनल रिश्ता रखते हैं। जब उन्हें पता चलता है कि हिंदी से दौलत और शोहरत हासिल करने वाले लोग अंग्रेज़ी में सारा काम करते हैं तो उन्हें बड़ी तकलीफ़ होती है। मगर यह सिलसिला आगे भी कभी ख़त्म नहीं होने वाला है।
जुहू के एक होटल में ज़ी म्यूज़िक अवार्ड का आयोजन किया गया था। अभिनेत्री अचिंत्य कौर उसकी उद्घोषक थीं। उन्होंने पहला वाक्य बोला- इस "काला संध्या" में आपका स्वागत है। दरअसल उनको जो कुछ बोलना था उसकी स्क्रिप्ट कंप्यूटर से एक स्क्रीन पर डिस्प्ले की जा रही थी। कला की स्पेलिंग kala लिखी गई थी। इसलिए उन्होंने कला संध्या के बजाय काला संध्या बोल दिया। रोमन में हिंदी लिखने के ऐसे ख़तरे भी हैं।
एक फ़िल्म बनी थी- 'ख़तरा'। उसका अंग्रेज़ी में पोस्टर KHATRA जारी किया गया। उसे लोग 'खट्रा' पढ़ने लगे। निर्माता ने स्पेलिंग दुरुस्त करके फिर से पोस्टर KHATARA जारी किया। लोग उसे 'खटारा' पढ़ने लगे। अंततः तीसरी बार पोस्टर जारी किया गया और अंग्रेज़ी के ऊपर हिंदी में लिखा गया 'ख़तरा'। सिने जगत में हिंदी के साथ ये ख़तरा बरकरार है।
आपका-
देवमणि पांडेय
सम्पर्क : बी-103, दिव्य स्तुति, कन्या पाडा,
गोकुलधाम, फिल्मसिटी रोड, गोरेगांव पूर्व,
मुम्बई-400063, M : 98210 82126
devmanipandey.blogspot.com
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