सोमवार, 28 मार्च 2022

जीवन के इंद्रधनुष : कुसुम तिवारी का काव्य संग्रह

 

जीवन के इंद्रधनुष : कुसुम तिवारी का काव्य संग्रह

कविता हृदय की भावनाओं का सहज उद्गार है। इसकी अभिव्यक्ति का दायरा विस्तृत होता है। इसमें इंसान के सुख-दुख, स्वप्न, संघर्ष, समय और समाज भी शामिल होता है। इस लिए भावनाओं की नमी के साथ ही कविता में इंसानी सोच की उष्णता भी महसूस होती है। 


कुसुम तिवारी के प्रकाशित काव्य संग्रह का नाम है 'जीवन के इंद्रधनुष'। नाम के अनुरूप उन्होंने इन कविताओं में जीवन के विविध रंगों को साकार करने का सराहनीय प्रयास किया है। कुछ कविताओं में जीवन दर्शन की अभिव्यक्ति इस तरह हुई है कि वे प्रेरक सूक्तियों की तरह नज़र आती हैं-


मौत का उत्सव मनाना 

ज़िंदगी का धर्म है 

मृत्यु कहते हैं जिसे 

मुक्ति है सत्कर्म है


कुसुम तिवारी के यहां कथ्य के अनुरूप जीवंत भाषा है उनकी कुछ काव्य अभिव्यक्तियां छायावादी साहित्य की समृद्धि परंपरा की याद दिलाती हैं-


मैं मुखर रही तुम मौन हुए 

मैं शब्द बनी तुम भाव हुए 

मैं प्रेम का कल-कल झरना थी 

तुम खड़े तपस्वी भाव लिए 


मैं काया हूँ परछाई तुम 

मैं पगडंडी, हो मंज़िल तुम 

बीते या काल समय गुज़रे 

मैं नश्वर हूं पर शाश्वत तुम


कुसुम की कविताओं के केंद्र में एक स्त्री है। इस स्त्री के अनुभव और सोच उस स्त्री के प्रतिबिंब हैं जो घर की दहलीज़ के अंदर सक्रिय है। इस स्त्री के प्रेम, मिलन, बिछोह, त्याग, संघर्ष, मर्यादा और स्वाभिमान को रेखांकित करने वाली कई कविताएं इस संग्रह में शामिल हैं। बिना किसी लाग लपेट के कवयित्री इस गृहिणी की ख़्वाहिशों और अरमानों को कविता में ढाल देती है-


लिखूंगी एक कविता 

काग़ज़ पर नहीं 

जिस्म पर तुम्हारे 

पलकों को बनाऊंगी लेखनी 

स्याही होगी काजल की 

आंखों के बंद कोटरों में 

छिपा लूंगी तुम्हें 

जिस्म की हर इबारत में 

सिर्फ़ तुम नज़र आओगे 

तब लिखूंगी मैं एक कविता 

काग़ज़ पर नहीं 

जिस्म पर तुम्हारे


इस संग्रह की कविताओं में शिल्पगत ख़ामियां हो सकती हैं मगर ये कविताएं घरेलू स्त्री की मनोकामना का जयघोष हैं। ये कविताएं उस स्त्री की गाथा हैं जो अपने भय और आशंका की चारदीवारी से बाहर आकर निडरता के साथ बात करती है। जो लोग स्त्री के अंतस् में झांकना चाहते हैं, उसके मर्म, चेतना, चिंता और स्वाभिमान को समझना चाहते हैं, उन्हें ये कविताएं पसंद आएंगी।


कुसुम तिवारी मधुर गीतकार हैं। वे मनभावन लोकगीत भी रचती हैं। एक संवेदनशील कवयित्री के तौर पर उन्होंने 'जीवन के इंद्रधनुष' के रूप में काव्य प्रेमियों को एक ख़ूबसूरत तोहफ़ा दिया है। उम्मीद है कि रचनाकार जगत में इस किताब का भरपूर स्वागत होगा। इस रचनात्मक उपलब्धि के लिए कुसुम तिवारी को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं।


आपका-

देवमणि पांडेय

 

सम्पर्क : बी-103, दिव्य स्तुति, कन्या पाडा, गोकुलधाम, फ़िल्मसिटी रोड, गोरेगांव पूर्व, मुम्बई-400063 , 98210 82126

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