अपराजिता गार्गी: निरूपमा श्रीवास्तव का महाकाव्य
वैदिक काल में हमारे देश में ऐसी प्रतिभासम्पन्न विदुषी नारियां हुई हैं जिनके ज्ञान के आलोक से आज भी हमारे समाज और संस्कृति का अंतर्मन आलोकित हो रहा है। ऐ्सी ही एक परम विदुषी और अध्यात्मवेत्ता नारी का नाम है गार्गी। महर्षि वच्कनु की सुपुत्री वाच्कन्वी का जन्म गर्ग गोत्र में हुआ था। इसलिए वे गार्गी के नाम से प्रसिद्ध हुईं। गार्गी वाच्कन्वी का जन्मकाल ईसा से लगभग 700 वर्ष पूर्व माना जाता है। गार्गी वैदिक साहित्य में निष्णात एक महान दार्शनिक और वेदों की व्याख्याता थीं। ब्रह्मविद्या की ज्ञाता होने के नाते उन्हें ब्रह्मवादिनी के नाम से भी जाना जाता है। युवावस्था से ही गार्गी को वैदिक ग्रंथों और दर्शन में गहरी रूचि थी।
बृहदारण्यक में यह जानकारी मिलती है कि गार्गी ने मिथिला के महाराज आदि जनक द्वारा आयोजित एक उच्च कोटि के शास्त्रार्थ में भाग लिया था। सैकड़ों विद्वानों की उपस्थिति में उन्होंने आत्मा और ब्रह्म के विषय पर ऋषि याज्ञवल्क्य से कई अदभुत प्रश्न पूछे थे। इस शास्त्रार्थ से गार्गी के विद्वता की चारों दिशाओं में चर्चा हुई। गार्गी के पिता के अनुरोध पर ऋषि याज्ञवल्क्य ने तीसरी पत्नी के रूप में उनका वरण किया। ऋषि की पहली पत्नी कात्यायनी और दूसरी पत्नी विदुषी मैत्रेयी थीं। कहा जाता है कि गार्गी आजन्म ब्रह्मचारिणी रहीं। उन्होंने ऐसे गुरुकुलों की स्थापना की जिसमें कन्याओं को शिक्षा दी जाती थी। एक प्रकार से वे भारतीय समाज में कन्या शिक्षा की प्रणेता हैं।
विद्वता से परिपूर्ण गार्गी के विराट व्यक्तित्व पर प्रतिष्ठित कवयित्री निरूपमा श्रीवास्तव ने महाकाव्य का सृजन किया है। इस महाकाव्य को उन्होंने दस अध्याय में प्रस्तुत करके गार्गी के प्रखर व्यक्तित्व को रोचक तरीके से सामने रखा है। महाकाव्य की शुरुआत में ही वे नारी शक्ति का जयघोष कर देती हैं-
युग युगांतरों से नारी ने जग का अप्रतिम रूप सँवारा
जननी,भार्या,बेटी,बहना, बनकर करती है उजियारा
सृष्टि न होती सत्य सुन्दरम् अमृत सम नारी न होती
पीड़ा सह कर सृजनशिल्प कर तन मन धन वारी न होती
गर्ग वंश के ऋषि वच्कनु ने बचपन से ही सुपुत्री गार्गी को ललित कला, संगीत, वेद और उपनिषद की शिक्षा देनी शुरू कर दी थी। इन सभी के योग से गार्गी का उज्जवल दैदीप्यमान व्यक्तित्व निर्मित हुआ। निरूपमा ने इस व्यक्तित्व का बड़ा सुंदर वर्णन किया है-
तन्वंगी गार्गी अति कोमल लतिका सी थी तरुणाई
चंद्ररश्मि सी शीतल पावन ज्योतिर्मय काया पाई
कटिचुम्बित थे केश मेघ से रवि प्रकाश सी दीप्त अजा
श्वेत कमल से नयन निष्कलुष वाणी ज्यों संगीत बजा
ऋषि और दार्शनिक याज्ञवल्क्य वैदिक साहित्य में शुक्ल यजुर्वेद की वाजसेनीय शाखा के दृष्टा थे। आचार्य उद्दालक आरुणि के शिष्य याज्ञवल्क्य शतपथ ब्राह्मण की रचना के लिए जाने जाते हैं। ब्रह्मतत्व सर्वोपरि है, यह उनकी स्थापना है। वे अपने समय के सर्वोच्च वैदिक ज्ञानी थे। यही कारण है कि आदि जनक के आमंत्रण पर ऋषि याज्ञवल्क्य जब शास्त्रार्थ के लिए पधारे तो उनका सामना करने का किसी को साहस नहीं हुआ।
ज्ञान की आभा से दीप्त याज्ञवल्क्य से जब कोई शास्त्रार्थ के लिए तैयार नहीं हुआ तब अंत में गार्गी ने उनसे ब्रह्म और आत्मा के बारे में लगातार कई सवाल पूछे। कहा जाता है कि गार्गी के सवालों से परेशान याज्ञवल्क्य ने यहां तक कह दिया था कि गार्गी अगर तुमने अगला सवाल पूछा तो तुम्हारा मस्तक फट जाएगा। इस शास्त्रार्थ का कवयित्री निरूपमा ने अपने इस महाकाव्य में बड़ा जीवंत वर्णन किया है-
गार्गी ने पूछा- स्वर्ग लोक से भी परे कुछ और है
पृथ्वी के तल में कुछ तो है और मध्य में क्या छोर है
और जो हुआ जो होना है वह ओतप्रोत हुआ कहाँ
ब्रह्मलोक किसके है अधीन यह प्रश्न बतलाए जहाँ
ऋषि बोले -
उसका ही अनुशासन प्रशासन कर रहा जग प्राप्त है
सम्पूर्ण जग में है सकल उसके ही अंदर व्याप्त है
गार्गी हुई संतुष्ट सुन ब्रह्मांड है जिसके अधीन
ऋषिवर ने था उत्तर दिया हर प्रश्न का ही समाचीन
अंत में ऋषि याज्ञवल्क्य ने उन्हें वेदांत तत्व का ज्ञान दिया तो गार्गी संतुष्ट हुई। उपस्थित जनसमूह गार्गी के विशद ज्ञान से अभिभूत हो गया। चारों ओर उनकी जयजयकार होने लगी।
इस महाकाव्य में निरूपमा ने ऋषि याज्ञवल्क्य की पत्नियों कात्यायनी और मैत्रेयी के आदर्श चरित्र का भी कुशलता से निरूपण किया है। यह महाकाव्य प्राचीन भारत में नारियों की विद्वता और अस्मिता की गौरवपूर्ण झांकी प्रस्तुत करता है। अपने उदात्त विषय, सरल छंद, सहज प्रवाह और सरस भाषा के साथ पाठकों को एक आत्मीय धागे में बांध लेता है। यह महाकाव्य धर्म और संस्कृति की निर्मल ज्योति से आज के समाज को प्रकाशित करने की सामर्थ्य रखता है।
कवयित्री निरूपमा श्रीवास्तव के अध्ययन, चिंतन और शोध पर आधारित यह महाकाव्य अपनी सृजनात्मक आभा से हमारे अंतर्मन को समृद्ध करता है। आशा है कि गार्गी के तेजस्वी व्यक्तित्व पर केंद्रित यह महाकाव्य जन जन तक पहुंचेगा और घर घर को प्रकाशित करेगा। सांस्कृतिक बिखराव के इस युग में हमारे समाज को धर्म, अध्यात्म और संस्कृति से जुड़े ऐसे महाकाव्यों की बहुत आवश्यकता है। निरूपमा जी ने इस दिशा में बहुत सराहनीय कार्य किया है। इस नेक और समाजोपयोगी कार्य के लिए मैं निरूपमा को बधाई देता हूं। निरंतर प्रगति की शुभकामनाएं।
आपका-
देवमणि पांडेय
सम्पर्क : बी-103, दिव्य स्तुति, कन्या पाडा, गोकुलधाम, फिल्मसिटी रोड, गोरेगांव पूर्व, मुम्बई-400063 , 98210 82126
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