शेर के साथ सेल्फ़ी : आबिद सुरती की किताब
कथाकार पत्रकार सुदीप जब सांध्य दैनिक महानगर के संपादक थे तब मैंने उनके लिए साहित्य पर आधारित साप्ताहिक स्तंभ 'शाब्दिकी' लिखा था। हर सप्ताह उनसे मिलकर मैं उनके हाथ में मैटर देता था। यह सिलसिला साल भर तक चला। सुदीप उसूलों के इतने पक्के थे कि उन्होंने कभी मेरे कॉलम के एक शब्द में भी फेरबदल नहीं किया। मुझे असंपादित रूप में छापा। ग़ुस्सा उनकी नाक पर सवार रहता था। झूठ वे बर्दाश्त नहीं कर सकते थे। स्वाभिमानी इतने थे कि एक फ़िल्म पाक्षिक के संपादक पद से उन्होंने सिर्फ़ नौ दिन में इस्तीफ़ा दे दिया था।
ऐसे विलक्षण इंसान से आबिद सुरती की अंतरंग दोस्ती लंबे समय तक कैसे टिकी रही यह एक दिलचस्प दास्तान है। सुदीप के इंतक़ाल के बाद आबिद सुरती ने उन पर एक संस्मरण लिखा- 'शेर के साथ सेल्फ़ी'। रचनात्मकता के इस अप्रतिम आलेख को आप ख़ाका या रेखाचित्र भी कह सकते हैं। इस संस्मरण में सुदीप के बार-बार टूटने, बिखरने और जुड़ने की मर्मस्पर्शी दास्तान है। उनके शातिर दोस्तों ने किस तरह उनका इस्तेमाल किया उसके क़िस्से हैं। सुदीप के व्यक्तित्व, व्यवहार, सोच और सरोकार को आबिद जी ने जिस तरह साकार किया है वह बेमिसाल है।
आबिद जी के लेखन में कहानी जैसे सरसता और प्रवाह है। विवरण और संवादों में व्यंग्य की धार है। अंदाज़ ए बयां में ढब्बू जी वाली रोचकता है। वे किसी भी घटना को लंबा नहीं करते। छोटे-छोटे दृश्यों के माध्यम से तत्कालीन समय और समाज को जीवंत कर देते हैं। कुल मिलाकर यही चीज़ें उनके लेखन को अविस्मरणीय बना देती हैं।
अद्विक पब्लिकेशन दिल्ली से प्रकाशित आबिद सुरती की इस किताब का नाम भी यही है, यानी- 'शेर के साथ सेल्फ़ी'। इसमें कालखंड के अनुसार पांच रचनाएं शामिल की गई हैं- कैनाल (1968), हरि के नाम का व्यापारी (1992), रामदास : एक जननायक की हत्या (1994), कोटा रेड (1995) और शेर के साथ सेल्फ़ी (2020)
कैनाल एक प्रयोगात्मक कहानी है। 'सारिका' में प्रकाशित इस कहानी को हिंदी की श्रेष्ठ कहानियों में शामिल किया गया। आबिद सुरती की इन रचनाओं में मुंबई का समय, समाज और इतिहास दस्तावेज़ की तरह दर्ज किया गया है। मसलन 'हरि के नाम का व्यापारी' रचना को पढ़ेंगे तो आपके सामने वह कालखंड साकार हो जाएगा जब बाबरी ढांचा ध्वस्त हुआ था। उसके बाद मुंबई में भयावह दंगे कैसे हुए, आम आदमी की यंत्रणा, आगज़नी और क़त्ल से लेकर सियासी पार्टियों के दांव पेंच … सभी को आबिद जी ने विश्वसनीय आंकड़ों के साथ इतिहास की तरह दर्ज किया है। दूसरों के दुख दर्द के साथ आबिद जी ने बहुत सलीक़े से अपने निजी दुख, तनाव और यातना को भी शामिल किया है।
कुल मिलाकर यह किताब रचनात्मकता का एक जीवंत दस्तावेज़ है। मुंबई महानगर यहां एक चरित्र की तरह मौजूद है। समय और समाज की पिछले पचास साल की उथल पुथल को कथा सूत्र की रोचकता में समेटकर आबिद जी ने जिस हुनर के साथ पेश किया है वह बेजोड़ और बेमिसाल है। अगर आप मुंबई के इतिहास में समय का चेहरा देखना चाहते हैं तो आपको यह किताब पढ़नी चाहिए।
आपका-
देवमणि पांडेय
सम्पर्क : बी-103, दिव्य स्तुति, कन्या पाडा, गोकुलधाम, फ़िल्मसिटी रोड, गोरेगांव पूर्व, मुम्बई-400063 , 98210 82126
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प्रकाशक का पता:
अद्विक पब्लिकेशन, 41 हसनपुर, आईपी एक्सटेंशन, पटपड़गंज, दिल्ली- 110092,
फ़ोन: 011-4351 0732/ 95603 97075
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