सोमवार, 7 मार्च 2022

सुधीर त्रिपाठी 'असर' का ग़ज़ल संग्रह बस यूं ही


 उदासियों के शहर में मुस्कुराती ग़ज़लें

शायर का नाम है सुधीर त्रिपाठी 'असर'। नाम के अनुरूप उनका ग़ज़ल संग्रह असरदार है। आकर्षक साज-सज्जा है। बेहतरीन छपाई है। दिल के दरवाज़े पर दस्तक देने वाली ख़ूबसूरत ग़ज़लें हैं। सीमाब अकबराबादी का शेर है- 


कहानी मेरी रूदाद ए जहां मालूम होती है 

जो सुनता है उसी की दास्तां मालूम होती है


असर की ग़ज़लें इसी नर्म ओ नाज़ुक एहसास के साथ मंज़र ए आम पर आई हैं। उन्होंने अपनी आपबीती को इस तरह बयान किया है कि वह सबको अपनी दास्तान लगती है। दूसरों की दास्तान को अपनी दास्तान बनाकर पेश करने का हुनर भी असर में है। इसलिए असर की ग़ज़लें सबके सुख दुख की साथी बन जाती हैं। 


सफ़र है ज़िन्दगी गर तो सफ़र होना ज़रूरी है

सफ़र सांसों का लेकिन मुख्त़सर होना ज़रूरी है

बहुत रिश्तों का जीवन में ज़रूरी है नहीं होना

मगर रिश्तों में जीवन का 'असर' होना ज़रूरी है


सुधीर त्रिपाठी असर के ग़ज़ल संग्रह का नाम है 'बस यूं ही'। उन्होंने बड़े सलीक़े से अपनी ग़ज़ल में यूं ही को पिरोया है-


उम्र भर ठोकरें मिलीं हमको 

हम उठे यूं ही और गिरे यूं ही 

इनमें यादों के फूल आएंगे 

ज़ख़्म रखना हरे भरे यूं ही


गेयता ग़ज़ल की ताक़त है। असर की हर ग़ज़ल गुनगुनाई जा सकती है। उनकी ग़ज़लों में दिल की विस्तृत दुनिया है। ख़्वाब और उम्मीदें हैं। मिलन और बिछोह है। रंजो ग़म और ख़ुशी है। दर्द का दरिया पार करके साहिल तक पहुंचने का हौसला भी है। 


याद मुझको वो इस क़दर आया 

हर तरफ़ वो ही वो नज़र आया 

मैं हूं सूरज मुझे लगा तब ये 

शाम को लौट के जो घर आया


असर उस परंपरा के शायर हैं जहां हिज्र भी   है और विसाल भी। क़त्ल भी है और क़ातिल भी। जाम, मीना और साक़ी है। ग़ज़ल की यह परंपरा बहुत दिलकश और दिलचस्प है। 


पते की बात कहता हूं कि तू क़ातिल नहीं होता 

तेरे रुख़सार पर गर क़ातिलाना तिल नहीं होता


हज़ारों लोग आए थे विदा करने वहां मुझको

हरज़ क्या था जो चलते वक़्त हरजाई भी आ जाती


असर के पास अंदाज़े बयां का असरदार फ़न है जो उनके अशआर को लोकप्रिय बनाने की क्षमता रखता है।


दैर झूठे, हरम भी झूठे हैं 

पत्थरों के सनम भी झूठे हैं 

जाम झूठा है, झूठी मीना भी 

साक़ियों के करम भी झूठे हैं


दरअसल ग़ज़ल ज़िंदगी से गुफ्त़गू का एक रचनात्मक सलीक़ा है। असर जहां जहां भी ज़िंदगी से गुफ्त़गू करते हैं वहां वहां उनका फ़न बोलता और रस घोलता दिखाई देता है।


इक तरफ़ है नदी एक तरफ़ प्यास है 

ज़िंदगी!  तू भी क्या ख़ूब एहसास है 


है अजब ज़िंदगी का सफ़र भी 

साथ देती नहीं रहगुज़र भी


असर के पास अनुभव और एहसास की समृद्ध पूंजी है। उनकी ग़ज़लों में ज़िन्दगी की मुस्कराती तस्वीर है। ज़िन्दगी का दर्शन है। ज़िन्दगी के सुख-दुख हैं। ज़िन्दगी की अदाएं हैं और ज़िन्दगी की दुआएं हैं। बचपन है, जवानी है और बुढ़ापा है। उनकी मंज़िल का रास्ता कठिन है मगर वे दूसरों के लिए कांटे हटाते हुए चलते हैं। वे एक ऐसा रास्ता बनाते हैं जिस पर उनके पीछे आने वाले लोग सुकून के साथ अपना सफ़र तय कर सकें। बस यही वजह है कि उनकी ग़ज़लें दिल के बहुत क़रीब लगती हैं। उनमें ऐसी कशिश है कि जो भी इन्हें पढ़ेगा इनमें उसको अपना अक्स दिखाई देगा। मैं असर को शुभकामनाएं देता हूं कि वे इसी तरह ग़ज़ल के फूल खिलाते रहें और कामयाबी का परचम लहराते रहें।


प्रकाशक: अमृत प्रकाशन शाहदरा दिल्ली-32 

मूल्य 300 रूपये। संपर्क - 99680-60733 सुधीर त्रिपाठी असर : 73553-79801

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आपका-

देवमणि पांडेय

सम्पर्क : बी-103, दिव्य स्तुति, कन्या पाडा, गोकुलधाम, फ़िल्मसिटी रोड, गोरेगांव पूर्व, मुम्बई-400063 , 98210 82126


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