मुकेश जयंती पर मुम्बई में संगीत समारोह
मेरे मित्र गीतकार हरिश्चंद्र के दिल में गायक मुकेश के प्रति दीवानगी है। पिछले कई सालों से वे मुंबई में 22 जुलाई को मुकेश जयंती समारोह का आयोजन करते हैं। गायक मुकेश के साथ देश-विदेश में स्टेज प्रोग्राम कर चुकीं गायिका उषा तिमूथी अपनी मौजूदगी से कार्यक्रम की गरिमा बढ़ाती हैं। संचालन की ज़िम्मेदारी पूरे अधिकार के साथ हरिश्चंद्र जी मुझे सौंप देते हैं।
दक्षिण मुंबई में जहां नेपियन सी रोड और भूलाभाई देसाई रोड का मिलन होता है उसका नाम है मुकेश चौक। इसी मोहल्ले की सरकारी कॉलोनी हैदराबाद इस्टेट में मैं तेरह साल तक रहा। थोड़ी ही दूर पर कमला नेहरू पार्क यानी हैंगिंग गार्डन है। फ़िल्म पत्रिका माधुरी के संपादक अरविंद कुमार जी ने बताया था कि इस पार्क में रोज़ सुबह मॉर्निंग वॉक के लिए गायक मुकेश आते थे। वे सुबह 6 से 8 बजे तक इस पार्क में मौजूद रहते थे। कोई भी उनसे मुलाक़ात कर सकता था। बात कर सकता था।
मगर अब समय बदल गया है। हैदराबाद इस्टेट के सामने प्रियदर्शनी पार्क है। एक दिन शाम को इसी पार्क में घूमते हुए मुकेश जी के पौत्र नील नितिन मुकेश से सामना हो गया। उनके दाएं बाएं दो बॉडीगार्ड थे। एक नौकर तौलिया लेकर पीछे पीछे चल रहा था। यानी उनसे संवाद का कोई रास्ता नहीं था।
दिल्ली के मुकेशचंद्र माथुर का जन्म 22 जुलाई 1923 को हुआ। उन्होंने दसवीं तक पढ़ाई करके पीडब्लूडी में नौकरी शुरू की लेकिन क़िस्मत ने उन्हें दिल्ली से मुंबई पहुंचा दिया।इसका श्रेय अभिनेता मोतीलाल को दिया जाता है।
फ़िल्म 'निर्दोष' (1941) में मुकेश को गाने और अभिनय का काम मिला। बतौर पार्श्व गायक सन् 1945 में फ़िल्म 'पहली नज़र' से पहचान मिली। गीत था - "दिल जलता है तो जलने दे "। मुकेश के आदर्श गायक कुंदनलाल सहगल का प्रभाव इस पर स्पष्ट दिखाई देता है। संगीतकार नौशाद के साथ मुकेश ने अपनी पार्श्व गायन शैली विकसित की।
चालीस के दशक में दिलीप कुमार के लिए सबसे ज़्यादा गीत गाने वाले मुकेश को पचास के दशक में एक नयी पहचान मिली। उन्हें राज कपूर की आवाज़ कहा जाने लगा। ख़ुद राज कपूर ने स्वीकार किया - "मैं तो बस शरीर हूँ मेरी आत्मा तो मुकेश है।"
बतौर पार्श्व गायक लोकप्रियता हासिल करने के बाद एक दिन मुकेश फ़िल्म निर्माता बन गये। सन् 1951 में फ़िल्म ‘मल्हार’ और 1956 में ‘अनुराग’ निर्मित की। दोनों फ़िल्में फ्लॉप रहीं। कहा जाता है कि मुकेश को बचपन से ही अभिनय का शौक था। फ़िल्म ‘अनुराग’ और ‘माशूक़ा’ में वे हीरो बनकर आये। लेकिन जनता ने उन्हें पसंद नहीं किया। वे फिर से गायिकी की दुनिया में लौट आये। यहूदी, मधुमती, अनाड़ी और जिस देश में गंगा बहती है जैसी फ़िल्मों ने उनकी गायकी को एक नयी पहचान दी।
गायक मुकेश को अपनी बेमिसाल गायिकी के लिए चार बार फ़िल्म फेयर अवार्ड मिला।
(1) सन् 1959 में अनाड़ी फ़िल्म के गीत ‘सब कुछ सीखा हमने न सीखी होशियारी’ के लिए। ऋषिकेश मुखर्जी की फ़िल्म 'अनाड़ी' में मुकेश के जिगरी दोस्त राज कपूर को भी पहला फ़िल्म फेयर अवॉर्ड मिला।
(2) सन् 1970 में मनोज कुमार की फ़िल्म 'पहचान' के गीत "सबसे बड़ा नादान" के लिए।
(3) सन् 1972 में मनोज कुमार की ही फ़िल्म 'बेईमान' के गीत "जय बोलो बेईमान की" के लिए।
(उपरोक्त तीनों फ़िल्मों के संगीतकार शंकर जयकिशन थे)
(4) सन् 1976 में यश चोपड़ा की फ़िल्म ''कभी कभी के शीर्षक गीत के लिए मुकेश को चौथा फ़िल्म फेयर अवॉर्ड मिला। (संगीतकार ख़य्याम)
साल 1974 में फ़िल्म ''रजनीगंधा'' के गाने "कई बार यूं भी देखा है" के लिए मुकेश को राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
सत्तर के दशक में धरम करम, आनन्द, अमर अकबर अॅन्थनी आदि फिल्मों में मुकेश ने सुपरहिट गाने दिये। मुकेश ने अपने कैरियर का आखिरी गाना अपने दोस्त राज कपूर की फ़िल्म सत्यम शिवम् सुंदरम के लिए गाया- “चंचल शीतल निर्मल कोमल”। लेकिन 1978 में इस फ़िल्म के रिलीज होने से दो साल पहले ही 27 अगस्त 1976 को मुकेश ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया।
बेमिसाल गायक मुकेश ने वक़्त के कैनवास पर अपनी आवाज़ के रंगों से कामयाबी की एक ऐसी इबारत लिखी जिसकी चमक आज भी बरकरार है। वे लफ़्ज़ों की रोशनाई में अपने दिल की सम्वेदना घोल देते थे। इसलिए उनके गीतों ने श्रोताओं की धड़कनों के साथ आत्मीय रिश्ता क़ायम करने की एक मिसाल कायम की।
सिने संगीत के सुनहरे दौर में मुकेश की रूहानी आवाज़ उदासियों के अंधेरों में रोशनी की लकीर खींच देती थी। हालांकि उन्होंने उमंग और उल्लास के भी गीत गाए, लेकिन उनकी इमोशनल आवाज़ दर्द की जागीर बन गई। उनके ऐसे गीतों ने प्यार करने वालों की कई-कई बेचैन पीढ़ियों को सुकून अता किया है।
फ़िल्मी पंडितों के अनुसार मुकेश ने अपने 35 साल के कैरियर में 525 हिन्दी फ़िल्मों में 900 गीत ही गाये मगर मुकेश के गीतों की लोकप्रियता बेमिसाल रही। उनके गीत आज भी हमारी तनहाइयों के साथी हैं।
मुकेश का परिवार :
घर वालों की मर्ज़ी के ख़िलाफ़ अपने जन्मदिन 22 जुलाई 1946 को गुजराती लड़की सरल त्रिवेदी से मुकेश ने प्रेम विवाह किया था। वे तीन बच्चों के पिता बने। बेटे का नाम नितिन मुकेश और बेटियों का रीटा और नलिनी है।
मुकेश के बेटे गायक नितिन मुकेश ने भी कई फ़िल्मों में अपनी आवाज़ दी है। नितिन मुकेश के बेटे यानी मुकेश के पौत्र नील नितिन मुकेश बॉलीवुड के चर्चित अभिनेता हैं।
हिंदी सिनेमा के महान गायक मुकेश की जयंती पर उनकी स्मृतियों को सादर नमन ! आइए हम भी मुकेश की आवाज में गुनगुनाएं ....
किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार
किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार
किसी के वास्ते हो तेरे दिल में प्यार
जीना इसी का नाम है ...
रिश्ता दिल से दिल के ऐतबार का
ज़िन्दा है हमीं से नाम प्यार का
कि मर के भी किसी को याद आयेंगे
किसी के आँसुओं में मुस्कुरायेंगे
कहेगा फूल हर कली से बार बार
जीना इसी का नाम है...
* * *
आपका-
देवमणि पांडेय : 98210 82126
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