मंगलवार, 31 मई 2011

जब तलक रतजगा नहीं चलता : देवमणि पांडेय की ग़ज़ल



 

देवमणि पांडेय की ग़ज़ल

जब तलक रतजगा नहीं चलता
इश्क़ क्या है पता नहीं चलता

ख़्वाब की रहगुज़र पे जाओ
प्यार में फ़ासला नहीं चलता

उस तरफ़ चल के तुम कभी देखो
जिस तरफ़ रास्ता नहीं चलता

लोग चेहरे बदलते रहते हैं
कौन क्या है पता नहीं चलता

कोई दुनिया है क्या कहीं ऐसी
जिसमें शिकवा-गिला नहीं चलता

दिल अदालत है, इस अदालत में
वक़्त का फ़ैसला नहीं चलता

डलहौज़ी में एक सुबह

हर कली ओस में भीगकर
कैसे चुपचाप सोई हुई है
सब्ज़ पत्तों पे मुस्काए मोती
शाख़ सपनों में खोई हुई है

चाँदनी की फुहारों में जैसे
रूह धरती की धोई हुई है
आसमानों से बरसी है शबनम
या कोई आँख रोई हुई है


मनाली में एक शाम

यहाँ हसरतों से भी ऊँचे हैं पर्वत
उमंगो की रंगीन गहराइयाँ हैं
मस्ती का आलम दिलों में जगाएं
दरख़्तों की कुछ ऐसी अँगड़ाइयाँ हैं

यहां रंग मौसम के कितने निराले
हरियाली ऐसी कि दिल को चुरा ले
शाखों को छूकर हवा झूमती है
कोई ख़ुद को ऐसे में कैसे सँभाले

झरने से जैसे रुई झर रही
वादी में कोई परी हँस रही है
बिखरी हों ज़ुल्फ़ें अचानक किसी की
पहाड़ों पे ये शाम यूँ घिर रही है

यहाँ इतनी सुंदरता आई है कैसे
ख़ुदा ने ये वादी बनाई है जैसे
बिछी है शिखर पे सफेदी की चादर
दुपट्टे में लिपटी हो अँगड़ाई जैसे
  

देवमणि पांडेय : 98210-82126

गुरुवार, 24 मार्च 2011

चाहत,वफ़ा,ख़ुलूस की दौलत : देवमणि पांडेय की ग़ज़ल



           देवमणि पांडेय की ग़ज़ल

चाहत,वफ़ा,ख़ुलूस की दौलत नहीं रही
अपने ही दिल पे अपनी हुकूमत नहीं रही

घेरे में अपने क़ैद है इंसान इस तरह
इक दूसरे से जैसे मुहब्बत नहीं रही

बचपन की पीठ पर है किताबों का एक बोझ
बच्चों को खेलकूद की मोहलत नहीं रही

अब वक़्त ही कहाँ है किसी और के लिए
ख़ुद से ही हमको मिलने की फ़ुर्सत नहीं रही

हम बोलते हैं झूठ भी कितने यक़ीन से
सच से नज़र मिलाने की हिम्मत नहीं रही

रुख़सत हुआ तो आँख किसी की भी नम न थी
             शायद किसी को मेरी ज़रूरत नहीं रही

फ़िल्म ‘कहाँ हो तुम’ का मुहूर्त चित्र

बतौर गीतकार दिसम्बर 1999 में मेरी पहली फ़िल्म ‘कहाँ हो तुम’ का मुहूर्त हुआ था। इसमें समीर सोनी, सोनू सूद, शर्मन जोशी और इशिता अरुण की प्रमुख भूमिकाएं थीं। निर्देशक थे विजय कुमार और संगीत रजत ढोलकिया ने दिया था।


Devmani Pandey : 98210-82126

शुक्रवार, 18 मार्च 2011

कुछ ख़्वाब सजाने से : देवमणि पांडेय की ग़ज़ल


देवमणि पांडेय की ग़ज़ल

कुछ ख़्वाब सजाने से, कुछ ज़ख़्म छुपाने से
रिश्ता तो मुहब्बत का निभता है निभाने से

रस्मों को बदलने की ज़िद मँहगी पड़ी लेकिन
जीने का मज़ा आया टकराके ज़माने से

ये प्यार वो जज़्बा है तासीर अजब जिसकी
मिलता है मज़ा इसमें घर-बार लुटाने से

रुस्वाई से चाहत का रिश्ता ही पुराना है
छुपता ही नहीं दिल का ये दाग़ छुपाने से

गलियों में भटकने की आदत है हमें अबतक
मिलते हैं यहीं अक्सर कुछ दोस्त पुराने से


मधुप शर्मा के ग़ज़ल  संग्रह का लोकार्पण अभिनेता इरफ़ान ख़ान और डॉ चंद्रप्रकाश द्विवेदी ने किया।


देवमणि पांडेय : 98210-82126

सोमवार, 14 मार्च 2011

इश्क़ में दिल का दाम : देवमणि पांडेय की ग़ज़ल


देवमणि पांडेय की ग़ज़ल

इश्क़ में दिल का दाम बहुत है
फिर भी दिल बदनाम बहुत है
           
छोड़ दिया है साथ सभी ने
लेकिन अब आराम बहुत है
           
दूर हूँ मैं ऐसे लोगों से
जो कहते हैं काम बहुत है

दिल के कितने छोटे निकले
जिन लोगों का नाम बहुत है

लब खामोश हैं रहने दीजै
आँखों का पैग़ाम बहुत है
                       
तलब नहीं है मुझे ख़ुशी की
ग़म का ये इनआम बहुत है
           
तुम आने वाले हो शायद 
महकी महकी शाम बहुत है



ग़ज़ल अलबम : दस्तक-एक एहसास

राइटर्स क्लब चंडीगढ़ ने पिछले रविवार 13 मार्च को एक ग़ज़ल अलबम जारी किया- दस्तक-एक एहसास। प्राचीन कलाकेंद्र की निदेशक श्रीमती शोभा कौसर, चण्डीगढ़ दूरदर्शन के निदेशक डॉ.के.रत्तू, पंजाब यूनीवर्सिटी (चण्डीगढ़) के संगीत विभाग के अध्यक्ष प्रो.पंकज माला और मशहूर पंजाबी गायक भाई अमरजीत इस अवसर पर अतिथि के रूप में मौजूद थे। इसमें शामिल गायिका परिणीता गोस्वामी और रूपांजलि हज़ारिका असम की हैं। गायक देव भारद्वाज, आर.डी.कैले और संजीव चौहान चंडीगढ़ के हैं। संगीतकार देव भारद्वाज ने इसमें देवमणि पांडेय की एक ग़ज़ल शामिल की है। आप भी इसका लुत्फ़ उठाएं।

देवमणि पांडेय की ग़ज़ल

खिली धूप में हूँ, उजालों में गुम हूँ
अभी मैं किसी के ख़यालों में गुम हूँ

मेरे दौर में भी हैं चाहत के क़िस्से
मगर मैं पुरानी मिसालों में गुम हूँ

मेरे दोस्तो ! मेहरबानी तुम्हारी
कि मैं जो सियासत की चालों में गुम हूँ

कहाँ जाके ठहरेगी दुनिया हवस की
नए दौर के इन सवालों में गुम हूँ

मेरी फ़िक्र परवाज़ करके रहेगी
अभी मैं किताबों, रिसालों में गुम हूँ

दिखाएँ जो इक दिन सही राह सबको
मैं नेकी के ऐसे हवालों में गुम

Devamani Pandey : 98210-82126

गुरुवार, 10 मार्च 2011

ख़ुशी का अपना रुतबा है : देवमणि पांडेय की ग़ज़ल



देवमणि पांडेय की ग़ज़ल

ख़ुशी का अपना रुतबा है कभी जो कम नहीं होता
मगर दुनिया में ग़म जैसा कोई हमदम नहीं होता

मैं अपनी दास्तां लेकर किसी के पास क्या जाऊँ
कुछ ऐसे ज़ख़्म हैं जिनका कोई मरहम नहीं होता

किसी का मिलना क़िस्मत है बिछड़ जाना मुक़द्दर है
बिछड़ने से कभी चाहत का जज़्बा कम नहीं होता

अगर वो वक़्ते-रुख़सत मुस्कराकर देख लेते तो
हमें उनसे बिछड़ने का ज़रा भी ग़म नहीं होता

कभी इक बूँद आँसू से तड़प उठता है दिल अपना
कभी अश्कों की बारिश से ये काग़ज़ नम नहीं होता

उन्हें मालूम क्या होगा कि लुत्फ़े-ज़िंदगी क्या है
कभी यादों में जिनकी दर्द का मौसम नहीं होता

चित्र : नेशनल कॉलेज बांद्रा, मुम्बई के संगीत समारोह में कवि देवमणि पाण्डेय,
प्रिंसिपल डॉ.मंजुला देसाई और शास्त्रीय गायिका ज्योति गाँधी


आपका
देवमणिपांडेय

सम्पर्क : बी-103, दिव्य स्तुति,
कन्या पाडा, गोकुलधाम, फिल्मसिटी रोड,
गोरेगांव पूर्व, मुम्बई-400063, 98210-82126

सोमवार, 7 मार्च 2011

जब तलक रतजगा नहीं चलता : देवमणि पाण्डेय की ग़ज़ल


देवमणि पाण्डेय की  ग़ज़ल

जब तलक रतजगा नहीं चलता
इश्क़ क्या है पता नहीं चलता

ख़्वाब की रहगुज़र पे आ जाओ
प्यार में फ़ासला नहीं चलता

उस तरफ़ चल के तुम कभी देखो
जिस तरफ़ रास्ता नहीं चलता

कोई दुनिया है क्या कहीं ऐसी
जिसमें शिकवा-गिला नहीं चलता

दिल अदालत है इस अदालत में
वक़्त का फ़ैसला नहीं चलता

लोग चेहरे बदलते रहते हैं
कौन क्या है पता नहीं चलता

चित्र : कवि देवमणि पाण्डेय (माइक पर), शायर अब्दुल अहद साज़,
शायर ज़फ़र गोरखपुरी, शायर हैदर नजमी और शायर सईद राही

आपका-
देवमणिपांडेय 

सम्पर्क : बी-103, दिव्य स्तुति,
कन्या पाडा, गोकुलधाम, फिल्मसिटी रोड,
गोरेगांव पूर्व, मुम्बई-400063, 98210-82126

मंगलवार, 1 मार्च 2011

ख़्वाब सुहाने दिल को घायल : देवमणि पांडेय की ग़ज़ल



देवमणि पांडेय की ग़ज़ल  

ख़्वाब सुहाने दिल को घायल कर जाते हैं कभी-कभी
अश्कों से आँखों के प्याले भर जाते हैं कभी-कभी

पल-पल इनके साथ रहो तुम इनको तनहा मत छोड़ो
अपने साए से भी बच्चे डर जाते हैं कभी कभी

खेतों को चिड़ियाँ चुग जातीं बीते कल की बात हुई
अब तो मौसम भी फ़सलों को चर जाते हैं कभी-कभी

दुनिया जिनके फ़न को अक्सर अनदेखा कर देती है
वो ही इस दुनिया को रौशन कर जाते हैं कभी कभी

अगर किसी पर दिल आ जाए इसमें दिल का दोष नहीं
अच्छा चेहरा देखके हम भी मर जाते हैं कभी-कभी

शहर में मेरे मिल जाते हैं ऐसे भी कुछ दीवाने
रात-रात भर सड़कें नापें घर जाते हैं कभी-कभी
गीतकार समीर के साथ कवि देवमणि पाण्डेय

आपका
देवमणिपांडेय

सम्पर्क : बी-103, दिव्य स्तुति,
कन्या पाडा, गोकुलधाम, फिल्मसिटी रोड,
गोरेगांव पूर्व, मुम्बई-400063, 98210-82126

मंगलवार, 22 फ़रवरी 2011

मुम्बई में अखिल भारतीय अवधी सम्मेलन


मुम्बई में अखिल भारतीय अवधी सम्मेलन 

मुंबई : ठाणे के येऊर हिल्स स्थित स्वानंद बाबा आश्रम में प्रेम शुक्ल के नेतृत्व में आयोजित अखिल भारतीय अवधी सम्मेलन में देश के कोने-कोने से आए अवधी विद्वानों की गंभीर चर्चा, सृजन संवाद व कवियों की लोककाव्य फुहारों ने गत रविवार १३ फरवरी को पूरे दिन तकरीबन 2 हजार भाषाप्रेमियों को अवधीमय कर दिया। इस आयोजन को अंतरर्राष्ट्रीय छठा देने के लिए चाड गणतंत्र के हिंदी व भारतप्रेमी अदुम इदरीस अदुम व अदम महमत येस्केइमी तथा नेपाल में अवधी को प्रचारित करनेवाले लोकनाथ वर्मा राहुल विशेष रूप से उपस्थित रहे। इसमें यूपी भाजपा के पूर्व अध्यक्ष डॉ. रमापति राम त्रिपाठी ने भी सहभागिता की।

मैं आ गया हूं बहुत दूर
लेकिन नहीं हूं मजबूर
महसूस हुआ मुझे 
पूरे हिंदुस्तान में हैं फूल
इसे मैंने हमेशा के लिए कर लिया कुबूल
चाहे दूर रहूं या नज़दीक
मैं हमेशा रहूंगा उनके क़रीब 

यह प्यारी भावना सात समंदर पार के हिंदी-हिंदुस्तान प्रेमी अदम महमत येस्केइमी की है। येस्केइमी भले ही चाड गणतंत्र (दक्षिणा अफ्रीका) के नागरिक हैं, पर उनका दिल हिंदुस्तानी है। उनका यह दिल ठाणे (मुम्बई) के येऊर स्थित स्वानंद बाबा आश्रम में आयोजित अखिल भारतीय अवधी सम्मेलन में एकदम अवधी रंग में रंग गया। गोस्वामी तुलसीदास, अमीर खुसरो, मलिक मोहम्मद जायसी, मुल्ला दाउद, रहीम, कबीर, कुतुबन व मंझन की भाषा अवधी के कुछ शब्दों का उच्चारण कर येस्केइमी ने वहां पर मौजूद लगभग 2000 भाषा प्रेमियों को मोहित कर दिया।

चाड गणतंत्र के एक अन्य हिंदी प्रेमी कवि अदुम इदरीस अदुम की कविता में प्यार, सपने, जानेमन, तमन्ना व दुल्हन की बात थी- जाने मन तुम हमेशा मेरे ख्यालों में आती हो, मेरी यादों में आती हो/ मेरी तमन्ना है कि तुम्हें जीवनसाथी बनाऊं/ तुम्हें अपनी दुल्हन बनाऊं। याराना एसोसिएशन के ज़रिए हिंदुस्तान-चाड गणतंत्र के बीच सांस्कृतिक भाषागत संबंध मजबूत कर रहे इदरीस भी मन से पक्के हिंदुस्तानी हैं तो नेपाल से पधारे लोकनाथ वर्मा राहुल अवधी संस्कृति में रचे बसे नज़र आए। इसी तरह ठाणे (मुम्बई के येऊर हिल्स पर अवधी ने अंतरराष्ट्रीय सीमाओं को लांघते हुए सारे दिलों को एक कर दिया।

दीप प्रज्जवलन के बाद अशोक टाटंबरी (फैजाबाद) की सरस्वती वंदना से सम्मेलन प्रारंभ हुआ। प.पू. स्वानंद बाबा सेवा न्यास के मुख्य न्यासी प्रेम शुक्ल ने अतिथियों का स्वागत करते हुए अवधी के संरक्षण, संवर्द्धन हेतु भरसक प्रयास करने का वचन दिया। अवधी की चुनौतियां पर परिचर्चा के अध्यक्ष के रूप में मुम्बई वि.वि. के पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. रामजी तिवारी ने कहा कि अवधी भाषा की ताक़त पहले ही साबित हो चुकी है। गोस्वामी तुलसीदास ने अवधी को समृद्ध भाषा का दर्जा दिया था। अवधी अकादमी के अध्यक्ष जगदीश पीयूष ने कहा कि 1976 में अमेठी स्थित मलिक मोहम्मद जायसी की मजार से शुरू हुआ अवधी जागरण आंदोलन देश-विदेश भ्रमण करते हुए 36 साल बाद ठाणे (मुम्बई) के स्वानंद आश्रम तक आ पहुचा है। इस प्रकार के आंदोलनों ने काफी शक्ति मुहैया कराई है। उन्होंने यह भी कहा कि मेरे विचार से प्रेम शुक्ल को विश्व अवधी सम्मेलन का नेतृत्व भी करना चाहिए।

अवध ज्योति के संपादक डॉ.राम बहादुर मिश्र ने अवधी गद्य के सूने कोने को चुनौती मानते हुए अपनी थाती को संभालने की बात कही। अवधी विकास संस्थान के अध्यक्ष एड. विनोद ने कहा कि आज कई अवधी सीरियल आ रहे हैं। भाषा संस्कृति नहीं बचेगी तो देश कैसे बचेगा। इसलिए सभी को मिलजुल कर प्रयास करना है। प्रवासी संसार के संपादक राकेश पांडेय ने सवाल उठाया कि अवधी माटी के कलाकार अवधी का खाते हैं पर गाते हैं भोजपुरी की। क्यों वे अपनी बोली व गायन को अवधी कहने में शर्म महसूस करते हैं? सुप्रसिद्ध अवधी विद्वान डॉ. आद्या प्रसाद सिंह प्रदीप ने कहा कि हजारों साल से अवधी देश की साहित्यिक-सांस्कृतिक चेतना की प्रतीक रही है। अवध क्षेत्र के ही महावीर प्रसाद द्विवेदी व निराला सरीखे साहित्यकारों ने ही हिंदी के वर्तमान स्वरूप का निर्माण किया था।

उर्दू रोज़नामा हिंदुस्तान के संपादक सरफराज आरजू ने अवधी को गंगा-जमुनी संस्कृति का प्रतीक बताया तो नई दुनिया के रीजनल एडीटर पंकज शुक्ल ने कहा कि आज का जमाना इंटरनेट का है, इसलिए अवधी के समग्र साहित्य को इंटरनेट पर लाना होगा, तभी यह समाज में अपनी जड़ें तेजी से जमा पाएगी। परिचर्चा में नवनीत के पूर्व संपादक डॉ. गिरिजा शंकर त्रिवेदी, साहित्यकार, डॉ. आशारानी लाल, अभियान के अध्यक्ष अमरजीत मिश्र व दोपहर के संपादक निजामुद्दीन राइन व सिटी चैनल (कानपुर) के प्रमुख संवाददाता सौरभ ओमर ने भी शिरकत की। सम्मेलन में यूपी भाजपा के पूर्व अध्यक्ष डॉ. रमापति राम त्रिपाठी ने भी सहभागिता की। कार्यक्रम का संचालन अवधी सम्मेलन, मुंबई के संयोजक राजेश विक्रांत ने किया।

लोक काव्य संध्या में देवमणि पांडेय के संचालन में द्वारिका प्रसाद त्रिपाठी बृजनाथ, डॉ. अशोक गुलशन (बहराइच), डॉ. रजनीकांत मिश्र, मुरलीधर पांडेय, राम प्यारे सिंह रघुवंशी, कमलेश पांडेय तरूण, उबैद आज़म आज़मी, देवराज मिश्रा, आशीष पांडेय, लक्ष्मी यादव, रास बिहारी पांडेय, जवाहर लाल निर्झर, रुस्तम घायल, शीतल नागपुरी व रवि यादव ने अपनी विविध रचनाएं प्रस्तुत की।

कार्यक्रम में विकलांग की पुकार के अभय मिश्र के अतिथि संपादन में प्रकाशित अवधी गौरव विशेषांक तथा अनिल गलगली संपादित अग्निशिला मासिक पत्रिका के नए अंक का विमोचन प.पू. स्वानंद बाबा सेवा न्यास के प्रमुख पं. दुर्गा प्रसाद पाठक द्वारा किया गया।

इसमें राष्ट्रीय सहारा (लखनऊ) के प्रमुख संवाददाता के.बख्श सिंह, सुवर्णस्पर्श जेम्स एंड ज्वेलरी के पार्टनर विमल पटेल, मुंबई कांग्रेस के महासचिव जाकिर अहमद, अर्थकाम डॉट काम के संपादक अनिल सिंह, मेट्रोकार्ड्स एंड हालिडेज के ऑलिवर स्टेंस, मुंबई मित्र-वृत्त मित्र समाचार पत्र के संपादक अभिजीत राणे, उद्योगपति बबलू पांडेय, लेखिका डॉ. कृष्णा खत्री, पत्रकार रवि कुमार राठौर (दैनिक सवेरा), लाइव इंडिया के रवि तिवारी, लोकप्रिय गायक रवि त्रिपाठी, प्रभाकर कश्यप, पत्रकार शेषनारायण त्रिपाठी, श्रीश उपाध्याय, उदयभान पांडेय, संगीतकार शिवम् पांडेय, एनडी टीवी के वरिष्ठ पत्रकार सुनील सिंह, सिद्धि विनायक मंदिर के पूर्व ट्रस्टी उदय प्रताप सिंह, नवभारत टाइम्स की पत्रकार कंचन श्रीवास्तव व रीना पारीक, वीमेंस वेल्फेयर फाउंडेशन की अध्यक्ष सुश्री अर्चना मिश्र (पुणे), विकलांग की पुकार के संपादक सरताज मेहदी, डॉ. रमाकांत क्षितिज, डॉ. वेद प्रकाश दुबे, पत्रकारिता कोश के संपादक आफताब आलम, लेखिका-उद्घोषिका सलमा सैयद, साहित्यप्रेमी महेश शर्मा, अमरदेव मिश्रा, जगदंबा प्रसाद पाठक समेत साहित्य, पत्रकारिता, समाजसेवा व कला क्षेत्र के अनेक महानुभाव उपस्थित रहे।

ज़माने गुज़र जाते हैं, सदियाँ बीत जाती हैं, पर कहते हैं कि अपनी बोली बानी की खुशबू कभी नहीं बदलती। अपनी संस्कृति की सुगंध हमेशा बढ़ती जाती है। धर्म के साथ जब भाषा, कविता व संस्कृति का संगम होता है तब अखिल भारतीय अवधी सम्मेलन सरीखे ऐसे कार्यक्रम आयोजित होते हैं जो सदा हमको अपनी बोली-बानी की याद दिलाते रहते हैं।

आपका
देवमणिपांडेय

सम्पर्क : बी-103, दिव्य स्तुति,
कन्या पाडा, गोकुलधाम, फिल्मसिटी रोड,
गोरेगांव पूर्व, मुम्बई-400063, 98210-82126

मंगलवार, 25 जनवरी 2011

एक दूजे के लिए : दोना पावला की प्रेम कथा

दोना पावला की प्रेम कथा
गोवा के पणजी (पंजिम) इलाक़े में है दोना पावला बीच।यहाँ एक छोटी सी पहाड़ी है जिसे दोना पावला प्वाइंट कहा जाता है। 22 जनवरी 2011 को इस प्वाइंट पर खड़ा होकर मैं सोच रहा था कि दोना और पावला तो एक ही समुदाय के थे फिर क्यों दुनिया इन दो दिलों के बीच में दीवार बन गई और इन्हें इस पहाड़ी से कूदकर अपनी जान देकर अपनी मुहब्बत का सबूत देना पड़ा। कहा जाता है कि फ़िल्म ‘एक दूजे के लिए’ इसी प्रेम कथा से प्रेरणा लेकर बनाई गई थी।

23 जनवरी 2011 गोवा के कंडोलियम बीच पर हाई टाइड के समय दोस्तों के साथ नहाते हुए ये महसूस किया कि अगर आप सीना तानकर लहरों का सामना करेंगे तो समंदर आपको ज़ोर से पटक देगा।बेहतर है आप अपनी पीठ पर लहरों को सवार होने दीजिए और किनारे की तरफ़ ज़रा सा सिर झुका दीजिए।लहरें आपको थपथपाकर वापस लौट जाएंगी।

21 जनवरी 2011 रात 12 बजे गोवा के बागा बीच पर ओसियानिक शैक (सी फेस रेस्तराँ) पर डिनर करते हुए हमने वेटर से पूछा-तुम्हारी ड्यूटी कितने बजे तक है।उसने बताया-मेरी ड्यूटी सुबह 4.30 बजे तक है।मगर 4.30 बजे ये सामने दिख रहा टीटो पब बंद होता है तो सारे लड़के-लड़कियाँ इधर ही आ जाते हैं।फिर उन्हें खिलाने- पिलाने में एक घंटे और निकल जाते हैं तो मैं सुबह 6.00 बजे ही यहाँ से निकल पाता हूँ।इस तरह गोवा रात भर जागता है और दिन में सोता है।

ओल्ड गोवा में म्यूज़ियम के सामने है गोल्डेन चर्च।इसमें एक ममी है।बताते हैं कि यह 600 साल पुरानी है।इस वक़्त गोवा में कैसिनो की बहार दिखाई देती है।समंदर के अंदर जहाज पर भी कैसिनो की रंगीन दुनिया आबाद रहती है।लोग लाखों रूपये लेकर इनमें प्रवेश करते हैं और प्रायः ख़ाली हाथ वापस आते हैं। गोवा की प्राचीन नदी का नाम है माण्डवी।कभी यह नदी अपनी पवित्रता और लोक संस्कृति के लिए मशहूर थी। अब इसके सीने पर तैरती हुई नौकाओं पर रात-रात भर जुआ खेला जाता है। लोक नृत्यों की जगह वेस्टर्न डांस ने ले ली है।यहाँ के प्रतिष्ठित कवि यूसुफ शेख़ ने अपनी मातृभाषा कोंकणी में माण्डवी नदी पर एक मर्मस्पर्शी कविता लिखी है।इसका हिंदी अनुवाद आपके लिए प्रस्तुत है।

मांडवी के तट पर चलते चलते

मांडवी के तट पर चलते-चलते
नज़रों के आगे आए हैं कुछ चौंकाने वाले चित्र
और साक्षी बना हूँ मैं भी इन विचित्र हालातों का

थम गया दिमाग़ और दिल से ये आवाज़ आई-

जिस युगांत में तुम जन्मे हो, युग है बहुत महान
ऐ भाग्यवान इंसान ! अपने कर्तव्यों को जान..............

यह जीवन तो सुविधाओं से भरा हुआ है
इस युग में बेहतर बनने की आज़ादी है
अपनी सीमित सोच हटाकर
आस-पास को अच्छा रखकर
देना होगा इस पर ध्यान -
ऐ भाग्यवान इंसान ! अपने कर्तव्यों को जान..............

हवा से ज़्यादा तेजी से तुम भाग रहे हो
अधिकारों पर कब्ज़ा करते
और स्वार्थ को गले लगाते
आज सितारों जैसे तुम तो चमक रहे हो
सूरज की रोशनी में दिखते हैं जो
उन लोगों की क्या हालत है ! इसे कभी तुम देख न पाए


दुर्दशा...
चित्र दुर्दशा का तुमने तो उल्टा करके ही देखा है
इसी लिए तो तुम्हें लगा कि यहाँ स्वर्ग-सुख छाया है
मगर तुम्हारी स्वर्गभूमि पर
महँगाई निर्धन जनता को चिढ़ा रही है
पीड़ित लोगों को भी पीड़ा सता रही है
मगर तुम्हारी बात ही क्या है
तुम तो करते हो हर दिन अमृत स्नान
ऐ भाग्यवान इंसान ! अपने कर्तव्यों को जान..............

मांडवी की तुमने ऐसी दशा बदल दी
गोद में उसकी नहीं रहे वो गीत सुरीले
गाँव-गाँव में लोग सभी जिनको गाते थे
जो सदियों से हम सबको बहलाते थे

आम आदमी को तो मांडवी लगी चिढ़ाने
पावन जल में खेल पाप के लगी दिखाने
आज मांडवी सजी हुई है
बन गई है कितनी अमीर यह
मगर कहीं से ख़बर न आती
अपनी कमाई किसे खिलाती

गांव गांव में घूमट ढोल बजाने वाले

खोए-खोए दिखने लगे हैं
आज अस्मिता के रखवाले भी
थके-थके से लगने लगे हैं
पुरखों की ज़मीन हाथों से निकल रही है
कैसे बेघर दिन बीतेंगे
घर की चिंता सता रही है

खोने से पहले ये जवानी सोच-समझ ले
बुरे ख़यालों को अपने तू अभी बदल दे
पता है तुझको इस दुनिया में
हम हैं कुछ दिन के मेहमान
ऐ भाग्यवान इंसान ! अपने कर्तव्यों को जान..............

महान युग के धनी हैं हम सब
रगों में सबकी भरे हुए हैं गुण महानता के ही सारे
छोड़ मोतियों की दौलत को
भटक रहे हैं मारे-मारे

इस युग की इस तेज़ दौड़ में
भाग रहें हैं दिन तेजी से
हमें बदलनी दिशा दौड़ की
थके हुए सब इंसानों को
सुख के झूले में है झुलाना
याद रखो, ये प्राण त्याग कर
इक दिन हम सबको है जाना
ऐ भाग्यवान इंसान ! अपने कर्तव्यों को जान..............



आपका
देवमणिपांडेय

सम्पर्क : बी-103, दिव्य स्तुति,
कन्या पाडा, गोकुलधाम, फिल्मसिटी रोड,
गोरेगांव पूर्व, मुम्बई-400063, 98210-82126

शनिवार, 1 जनवरी 2011

हिंदी पत्रकारिता पर पाँच किताबों का लोकार्पण


(बाएं से दाएं) मरुधरा के उपाध्यक्ष रामस्वरूप अग्रवाल, सकाल टाइम्स के विशेष संवाददाता मृत्युंजय बोस. जनसंपर्ककर्मी संजीव निगम , जी न्यूज के प्रोड्यूसर सुभाष दवे, वरिष्ठ पत्रकार-कवि और नवनीत के संपादक विश्वनाथ सचदेव, आकाशवाणी के सेंट्रल सेल्स डायरेक्टर तथा वरिष्ठ ब्रॉडकास्ट मीडियाकार मुकेश शर्मा, मरुधरा के अध्यक्ष सुरेन्द्र गाडिया, नवभारत टाइम्स, मुम्बई के वरिष्ठ पत्रकार भुवेन्द्र त्यागी, कवि-गीतकार देवमणि पाण्डेय

पत्रकारिता पर आधारित पाँच किताबों का लोकार्पण

मुम्बई की साहित्यिक सांस्कृतिक संस्था मरुधरा और सौम्य प्रकाशन द्वारा मुम्बई के प्रेसक्लब में आयोजित एक कार्यक्रम में पत्रकारिता पर आधारित पाँच किताबों का लोकार्पण आकाशवाणी के सेंट्रल सेल्स डायरेक्टर तथा वरिष्ठ ब्रॉडकास्ट मीडियाकार मुकेश शर्मा ने किया। इन किताबों के नाम हैं- बिजनेस जर्नलिज्म, जनसंपर्क, फील्ड रिपोर्टिंग गाइड, स्पेशल रिपोर्ट और फिल्मी स्कूप। इन किताबों पर अपनी राय का इज़हार करते हुए उन्होंने कहा, 'पत्रकारिता किताबें पढ़कर नहीं सीखी जा सकती। लेकिन मीडिया पर इस तरह की सारगर्भित और व्यावहारिक किताबें नये तथा युवा पत्रकारों का मार्गदर्शन कर सकती हैं। ये उन्हें ऐसे मानकों के अक्स दिखा सकती हैं, जिनसे पत्रकारिता जनता की नज़रों में पवित्र और विश्वसनीय बनती है।

प्रेसक्लब का सभागार युवा पत्रकारों से इस क़दर खचाखच भरा था कि कई वरिष्ठ पत्रकारों को बैठने के लिए सीटें कम पड़ गईं। मुकेश शर्मा ने युवा पीढ़ी की तारीफ़ करते हुए कहा, 'आज के युवा पत्रकार स्मार्ट हैं। उनके पास सूचनाओं के तमाम साधन मौजूद हैं। सूचनाएं प्राप्त करने में उन्हें कोई बाधा नहीं है। बस, जरूरत इस बात की है कि उन्हें इन सूचनाओं का अच्छी तरह से, जनोपयोगी रूप से इस्तेमाल करना आना चाहिए। मीडिया के सामने चाहे जो भी संकट आये, युवा पत्रकारों की अगर तैयारी अच्छी है, तो वे उससे पार पा सकते हैं।

कार्यक्रम का संचालन कवि-गीतकार देवमणि पांडेय ने किया। उन्होंने शुरुआत में इन किताबों के लेखकों का परिचय कराया और एक शेर के ज़रिए इनके लेखन कौशल की तारीफ़ की-

कुछ भी लिखना सरल नहीं है पूछो हम फ़नकारों से
हम सब लोहा काट रहे हैं का़गज़ की तलवरों से !


कार्यक्रम के अध्यक्ष वरिष्ठ पत्रकार-कवि और नवनीत के संपादक विश्वनाथ सचदेव ने आज की पत्रकारिता पर विचार व्यक्त करते हुए कहा- ‘आज फिर मिशनरी पत्रकारिता की जरूरत है। कोई भी अखबारी तंत्र या बाजार पत्रकारों से कुछ खास खबरें लाने या न लाने को कह सकता है, पर जन सरोकारों से जुड़ी सीधी-सच्ची खबरें लाने से कोई मना नहीं करता’। उन्होंने इस मुद्दे को आगे बढ़ाते हुए कहा, 'आज 24 घंटे के ख़बरिया चैनलों पर खबरें कितने घंटे आती हैं? जब भी टीवी खोलो, इन चैनलों पर राजू के चुटकुले, शीला की जवानी और बिग बॉस की कहानी ही दिखती है। क्या ये खबरें हैं? न्यूज चैनल ये सब परोसकर इंटरटेनमेंट चैनलों में बदल गये हैं। ख़बरों के लिए दूरदर्शन लगाना पड़ता है। बेशक उसकी खबरों में सरकारी पुट होता है, पर वे ख़बरें तो होती हैं। मरहूम शायर क़ैसर-उल-जाफ़री के एक शेर के ज़रिए विश्वनाथ जी ने युवा पीढ़ी को पत्रकारिता के धर्म की याद दिलाई-

हम आईने हैं दिखाएंगे दाग़ चेहरों के
जिसे ख़राब लगे सामने से हट जाए!


श्रोता समुदाय में अगली पंक्ति में (बाएं से दाएं)-अमर उजाला के ब्यूरो प्रमुख हरि मृदुल, सौम्य प्रकाशन की निदेशक रीना त्यागी, अमर उजाला के एसोसिएट एडीटर सुमंत मिश्र और नवभारत टाइम्स मुम्बई की उपसम्पादक कंचन श्रीवास्तव।

जी न्यूज के प्रोड्यूसर सुभाष दवे ने अपनी किताब ‘बिजनेस जर्नलिज्म’ का परिचय देते हुए कहा, 'यह एक नीरस और शुष्क विषय माना जाता है। लेकिन मैंने इसे पंचतंत्र की कहानियों की तरह एक कहानी के रूप में पेश करके सरस बनाने की कोशिश की हैं’।

वरिष्ठ जनसंपर्ककर्मी संजीव निगम ने अपनी किताब ‘जनसंपर्क’ का परिचय देते हुए कहा, 'आज जीवन के हर क्षेत्र में जनसंपर्क की जरूरत है। वह जनसंपर्क कैसा हो, किस तरह किया जाये, उसके टूल्स क्या हों, इन सभी का विवरण मैंने दिया। और अनेक केस स्टडी के साथ व्यावहारिक तरीके से दिया है।

सकाल टाइम्स के विशेष संवाददाता मृत्युंजय बोस ने अपनी किताब ‘फील्ड रिपोर्टिंग गाइड’ के बारे में बताया, 'यह युवा पत्रकारों के लिए एक मैन्युअल के रूप में है। रिपोर्टिंग करते समय ध्यान में रखी जाने वाली बातों को तो मैंने बताया ही है, तरह-तरह की खबरों के लिखने की शैली के उदाहरण भी दिये हैं।
नवभारत टाइम्स, मुम्बई के वरिष्ठ पत्रकार भुवेन्द्र त्यागी ने अपनी दो किताबें ‘स्पेशल रिपोर्ट’ और ‘फिल्मी स्कूप’ का परिचय दिया।

‘स्पेशल रिपोर्ट’ में जावेद इकबाल (फ्रीलांसर), जितेंद्र दीक्षित (स्टार न्यूज) मनोज जोशी (ए 2 जेड चैनल), नीता कोल्हाटकर (डीएनए), प्रबल प्रताप सिंह (आईबीएन 7), प्रभात शुंगलू (आईबीएन 7), प्रकाश दुबे (दैनिक भास्कर), स्वर्गीय प्रमोद भागवत (महाराष्ट्र टाइम्स), रामबहादुर राय (प्रथम प्रवक्ता के पूर्व संपादक), रवीश कुमार (एनडीटीवी), रवि शंकर रवि (नई दुनिया), शेखर देशमुख (फ्रीलांसर) और उमाशंकर सिंह (एनडीटीवी) के करियर की बेहतरीन रिपोर्ट हैं।

‘फिल्मी स्कूप’ में चंद्रकांत शिंदे (नई दुनिया), इम्तियाज अजीम (राष्ट्रीय सहारा), रूपेश कुमार गुप्ता (जी न्यूज), संदीप सिंह (महुआ), शिवानी त्रिवेदी (स्टार न्यूज), सुमंत मिश्र (अमर उजाला), विद्योत्तमा शर्मा, (बॉम्बे टाइम्स की पूर्व असिस्टेंट एडिटर) और विनोद तिवारी (फिल्मफेयर के पूर्व संपादक) के कैरियर की अनोखी एक्सक्लूसिव स्टोरीज हैं।

मरुधरा के अध्यक्ष सुरेन्द्र गाडिया ने मुख्य अतिथियों को पुष्पगुच्छ भेंट किया। संस्था के उपाध्यक्ष रामस्वरूप अग्रवाल व महामंत्री राकेश मोरारका ने लेखकों का स्वागत किया। सौम्य प्रकाशन की निदेशक रीना त्यागी ने पुष्पगुच्छ देकर इन पाँच पुस्तकों के कवर डिज़ाइनर संजय खडपे और शिव पाण्डेय का सम्मान किया तथा सबके प्रति आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम में मुम्बई के कई गणमान्य पत्रकार व लेखक मौजूद थे। मुम्बई में यह आयोजन शुक्रवार 24 दिसम्बर 2010 की शाम को सम्पन्न हुआ।



आपका
देवमणिपांडेय

सम्पर्क : बी-103, दिव्य स्तुति,
कन्या पाडा, गोकुलधाम, फिल्मसिटी रोड,
गोरेगांव पूर्व, मुम्बई-400063, 98210-82126