हम हैं सूरजमुखी रात के : ग़ज़ल संग्रह
रत्नदीप खरे के ग़ज़ल संग्रह का नाम है- हम हैं सूरजमुखी रात के। रत्नदीप की ग़ज़लों में गांव का मौसम है, गांव की मिट्टी, पानी, हवा है। ऐसे देशज माहौल में उनके एहसास फूलों की तरह खिलते हैं और महकते हैं। रत्नदीप के पास हिंदी के तत्सम शब्दों की समृद्ध संपदा है। वे इस पूंजी से ग़ज़लों का गुलदस्ता सजाते हैं। इन ग़ज़लों में एक तरफ़ वक़्त की परवाज़ है और दूसरी तरफ़ रिश्तो के टूटने, बिखरने और जुड़ने की आवाज़ है-
अभी भी माँ हिचकती ही नहीं है काम करने से
भले ही हाथ से गिरकर कटोरा टूट जाता है
मेरी मां हो गई बूढ़ी, बना पाती न ख़ुद खाना
मगर कितना कहां लगता मसाला याद रहता है
जिस दिन से जायदाद में हिस्सा नहीं रहा
बेटा भी अपने बाप का बेटा नहीं रहा
घर के बर्तन चुका रहे हैं कर्ज़ महाजन का कुछ ऐसे
पहले लोटा निकला घर से, पीछे पीछे थाली निकली
रत्नदीप का अपने माहौल से गहरा रिश्ता है। आसपास जो कुछ घटित हो रहा है उस पर उनकी निगाह है। ऐसे दृश्य, ऐसी घटनाएं बड़ी सहजता से उनकी रचनात्मकता के दायरे में आ जाती हैं-
कोई जब पेड़ मरता है अकेले ही नहीं मरता
बहुत सारे परिंदों का बसेरा टूट जाता है
रियासत और मज़हब वो किराने की दुकानें हैं
जहां का माल भी महंगा, वज़न भी कम निकलता है
नहीं फ़ितरत बदलती है सियासत हो कि जंगल हो
जो आदमख़ोर होता है वो आदमख़ोर होता है
रत्नदीप के यहां बाहर की दुनिया ज़्यादा है और दिल की दुनिया कम है। मगर जब भी वे दिल की गलियों में नज़र आते हैं और मुहब्बत पर कुछ कहने की पहल करते हैं तो वहां भी नया अंदाज़, नया तेवर दिखाई देता है-
महज इस बात पर दुनिया ने मुझको छोड़ रक्खा है
कि मैंने छोड़ दी दुनिया तुम्हारे प्यार के आगे
दिशा निश्चित नहीं होती कभी फूलों की ख़ुशबू की
ये चर्चा है मुहब्बत का ये चारों ओर होता है
रत्नदीप खरे की रचनात्मकता का कैनवास व्यापक है। उनकी ग़ज़लों में मज़हब और सियासत है तो देश और समाज के सवालात भी हैं। घर-परिवार, रिश्ते-नाते हैं तो खेत, खलिहान, प्रकृति और परिंदे भी हैं। अपनी जीवंत भाषा के दम पर वे अपनी सोच को नया लिबास पहनाने में कामयाब होते हैं। नए रंग-रूप में ढली उनकी ग़ज़लें नयापन और ताज़गी के साथ सामने आती हैं। वस्तुतः यही उनकी उपलब्धि है। इस नए ग़ज़ल संग्रह के लिए मैं रत्नदीप खरे को बधाई देता हूं। मुझे उम्मीद है कि रत्नदीप की ये किताब ग़ज़ल प्रेमियों तक पहुंचेगी और पसंद की जाएगी।
बोधि प्रकाशन जयपुर से प्रकाशित इस ग़ज़ल संग्रह का मूल्य ₹250 है। बोधि प्रकाशन का सम्पर्क नंबर 98290 18087 है। इंदौर के मूल निवासी रत्नदीप खरे से आप 98260 43425 नम्बर पर संपर्क कर सकते हैं।
आपका-
देवमणि पांडेय
सम्पर्क : बी-103, दिव्य स्तुति, कन्या पाडा, गोकुलधाम, फिल्मसिटी रोड, गोरेगांव पूर्व, मुम्बई-400063 , 98210 82126
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