बुधवार, 1 दिसंबर 2021

आहटों के अर्थ : सीमा अग्रवाल का नवगीत संग्रह

 



फूलों की चौपालों में खुशबू जब नृत्य करेगी

"नई कविता के तेवर को छंद में जीने का यत्न ही नवगीत है।" यह परिभाषा सन् 1982 में प्रकाशित नवगीत दशक-1 की भूमिका में सम्पादक गीतकार उमाकांत मालवीय ने दी थी। नवगीत दशक का लोकार्पण श्रीमती इंदिरा गांधी ने अपने आवास पर किया था। निराला की सरस्वती वंदना में आए नवगति शब्द को नवगीत की पीठिका मानने वाले गीतकार यश मालवीय नवगीत को कविता की समानांतर काव्य विधा मानते हैं।


सन् 1958 में प्रकाशित समवेत गीत संकलन गीतांगिनी की भूमिका में सम्पादक राजेंद्र प्रसाद सिंह ने पहली बार नवगीत शब्द का उल्लेख किया। उन्होंने लिखा था- "नवगीत बदले स्वर के नए गीत हैं।" सन् 1960 में नवगीत चर्चा में आ चुके थे। इसलिए सन् 2020 में जब नवगीत 60 वर्ष का हुआ तो कई पत्रिकाओं ने विशेषांक निकाले और लखनऊ, बनारस आदि शहरों में उत्सव भी मनाया गया। 


पारंपरिक गीत व्यक्तिगत सुख दुख का अनुगायन था, नवगीत समकालीन संदर्भों का शिलालेख है। नवगीत ने पारम्परिक गीत विधा में नई चेतना का संचार किया। सीमित दायरे से बाहर निकलकर गीत के इस नए तेवर ने नए बिम्ब, नए प्रतीक और नए कथ्य को अपना सहयात्री बनाया। कवयित्री सीमा अग्रवाल इसी नवगीत विधा की एक सुपरिचित हस्ताक्षर हैं। उनके नवगीत संग्रह का नाम है 'आहटों के अर्थ।'


मैं तुम्हारी याद में हूं/ या हवा में उड़ रही हूं/ सोच तो लूं


नर्म घेरे हैं तुम्हारी/ बाजुओं के

या कि मैं लिपटी हुई हूं/ बादलों में 

पक्षियों के झुंड में मैं/ खो गई हूं 

गुम हुई हूं या कि खुद की/ हलचलों में 


दूर होती जा रही हूं/ या कि खुद से जुड़ रही हूं

सोच तो लूं


सीमा अग्रवाल के पास हिंदी की समृद्ध शब्द संपदा, कथ्य की विविधता और अभिव्यक्ति का कौशल है। वे जब किसी चिरपरिचित विषय पर भी लिखती हैं तो उसमें नयापन और जीवंतता घोल देती हैं। बसंत ऋतु पर उनके गीत 'घर है राह जोहता' की पंक्तियां देखिए-


झाड़ बुहारी कर शुभ को न्यौतूं/ अगरू महकाऊं 

चलूं सूर्य की अगवानी को/ वंदनवार सजाऊं 

चुप-चुप सी है खड़ी रसोई/ जरा इसे सहला दूं

तनिक नेह की आंच अगोरूं/ चूल्हे को सुलगा दूं


अपने समय पर सीमा जी की अच्छी पकड़ है। वे समय के सवाल को जब रचनात्मकता के कटघरे में प्रस्तुत करती हैं तो हमारे सामने एक जानी पहचानी दुनिया खुल जाती है- 


साथ एक के चार मुफ़्त हैं/ उपदेशों की पैंठ लगी है/ गली गली 


रंग बिरंगी कहीं झंडियां/ कहीं सजी है चमचम पन्नी 

हद से मीठी कहीं बुलाहट/ ग्राहक काट न जाए कन्नी

 

पर फैशन के महादौर में/ नहीं परखना क्या असली है/ क्या नकली 


उनकी क़लम के दायरे में घर आंगन की घरेलू दुनिया है। मौसम और उत्सव हैं, साथ ही रिश्ते नाते भी सांस लेते हैं। नानी और नतनी को साथ-साथ देखना सुखद लगता है-


अहा चल पड़ीं/ नानी नतनी/ सुंदर-सुंदर बनकर 

टिकुली लाली/ काजल माला/ मधु मुस्कान पहनकर 


कल ने कल की उंगली थामी/ कहा नहीं घबराना 

कोई भी मुश्किल हो तुम हमको/ आवाज लगाना 


हम दोनों मिल जुल कर/ डांटेंगे मुश्किल को तन कर


सीमा अग्रवाल के नवगीतों में समय के ज्वलंत सवाल, समाज और राजनीति के स्याह पक्ष और माहौल की विसंगतियां नज़र आती हैं। प्रेम और प्रकृति का चित्रण भी सीमा जी बड़ी निष्ठा और समर्पण के साथ करती हैं। ज़िन्दगी के क्षितिज पर भावनाओं के इंद्रधनुष को वे इस तरह साकार करती हैं-


तुम अबीर हो बस जाओ/ मेरी सांसों में 

मैं फागुन हो जाऊं 


फूलों की चौपालों में/ खुशबू जब नृत्य करेगी

पूरनमासी ओढ़ निशा तब /महुए सा महकेगी


मैं पलाश भर आंचल में तब/ अगर कहो तो 

मिलने तुमसे आऊं


नवगीत की प्रचलित परंपरा के अनुसार उन्होंने एक लाइन और डेढ़ लाइन के मुखड़ों का काफ़ी उपयोग किया है। संप्रेषणीयता में असर के लिए और लोक स्मृति में बस जाने के लिए दो लाइन के मुखड़े ज़्यादा असरदार होते हैं। जहां-जहां उन्होंने दो लाइन के मुखड़ों का उपयोग किया है वहां वहां यह असर दिखाई देता है- 


बर्तन बोले बर्तन से/ हम देख देख हैरान 

हमसे ज्यादा खड़क रहे हैं/ अक्लमंद इंसान


नई कविता से होड़ लेने की कोशिश में नवगीत विधा का नुकसान भी हुआ। नवगीतों की भाषा और शिल्प में जटिलता, शुष्कता और कृत्रिमता का आगमन होने से जनमानस में उनकी लोकप्रियता का ह्रास हुआ। यह ख़ुशी की बात है कि सीमा अग्रवाल ने ख़ुद को इन सीमाओं से बचाया है। अपने नवगीतों को उन्होंने संवेदना, सरसता और तरलता से सजाया है।


गीत और नवगीत एक ऐसी नाज़ुक गेय काव्य विधा है जिसमें समाज के खुरदरे और जटिल यथार्थ की भी कोमल अभिव्यक्ति होती है। सीमा जी ने अपने शब्द चयन, वाक्य विन्यास और सृजनात्मक प्रस्तुति में हर जगह इस रचनात्मक कौशल का निर्वाह किया है। वस्तुतः यह उनकी उपलब्धि है। मैं उनको इस नवगीत संग्रह के लिए बधाई देता हूं और उम्मीद करता हूं कि उनके इस रचनात्मक कौशल का सर्वत्र स्वागत किया जाएगा।


शारदेय प्रकाशन, 5/234, विपुल खंड, गोमती नगर, लखनऊ से प्रकाशित इस नवगीत संग्रह का मूल्य है 250 रूपये।

आपका-

देवमणि पांडेय 

सम्पर्क : बी-103, दिव्य स्तुति, कन्या पाडा, गोकुलधाम, फिल्मसिटी रोड, गोरेगांव पूर्व, मुम्बई-400063 मो : 98210 82126

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