रविवार, 7 फ़रवरी 2021

पुस्तक भेंट करने की परंपरा : रोचक क़िस्से


 पुस्तक भेंट करने की परंपरा

आयोजन शुरू होने से पहले लेखक महोदय अपनी कार की डिक्की में सौ डेढ़ सौ किताबें लेकर पहुंच गए। उन्होंने नाम पूछ पूछ कर लोगों को किताबें भेंट करनी शुरू कर दीं। एक किताब कथाकार सूरज प्रकाश को भी प्राप्त हुई जिस पर लिखा था- 'सूरज प्रकाश को सप्रेम भेंट'। थोड़ी देर बाद कुछ लोग और आ गए तो लेखक महोदय यह भूल गए कि किसको किताब दी थी और किसको नहीं। उन्होंने सूरज प्रकाश से दोबारा पूछा- आपका नाम ? सूरज प्रकाश ने मुस्कुराकर जवाब दिया- रशीद ख़ान। उन्होंने एक किताब पर लिखा- 'रशीद खान को सप्रेम भेंट' और सूरज प्रकाश को दोबारा किताब पकड़ा दी। 


कल शाम हम लोग फ़िल्म सिटी रोड, गोरेगांव पूर्व के फिएस्टा रेस्टोरेंट में कथाकार सूरज प्रकाश की अगुवाई में अड्डेबाज़ी के लिए बैठे थे। हमारे साथ शायर राजेश राज़ और कवि राजू मिश्रा भी मौजूद थे। हम लोगों के बीच पुस्तक भेंट करने की संस्कृति पर मज़ेदार चर्चा हुई।


क़िस्सा शायर बाक़र मेहंदी का


उर्दू के जाने-माने शायर और नक़्काद बाक़र मेहंदी के घर जाकर एक नौजवान ने उनको अपना नया काव्य संग्रह भेंट किया। बाक़र मेहंदी ने उलट पुलट कर दो तीन पन्ने देखे। फिर उस किताब को खिड़की से बाहर फेंक दिया। नौजवान हैरत से बोला- यह आपने क्या किया ? बाक़र मेहंदी बोले- जब तुम अपना काम कर रहे थे तो मैंने तुम्हारे काम में कोई दख़ल नहीं दिया। अब मैं अपना काम कर रहा हूं तो तुम क्यों एतराज़ कर रहे हो। 

 

क़िस्सा शायर सरदार जाफ़री का


भारतीय ज्ञानपीठ अवार्ड से सम्मानित शायर सरदार जाफ़री एक मुशायरे में दिल्ली गए थे। एक शायर ने उन्हें अपना शेरी मज्मूआ भेंट किया। दूसरे दिन वह शायर किसी काम से चांदनी चौक गया तो फुटपाथ पर रद्दी की दुकान पर अपनी वही किताब देखी। उठाकर देखा तो उसमें वह पन्ना भी सही सलामत था जिस पर उसने सरदार जाफ़री का नाम मुहब्बत के साथ लिखा था।


शायर ने फ़ोन किया और शिकायत की। सरदार जाफ़री ने जवाब दिया- मेरे घर में चार ही किताबें रखने की जगह है। मीर और ग़ालिब का दीवान है। कबीर और मीरा का काव्य संग्रह है। अब आप ही बताइए कि इनमें से मैं कौन सी किताब को बाहर निकाल दूं और आप का काव्य संग्रह घर में रखूं। शायर खामोश हो गया। 


इस मामले में हिंदी के समालोचक रामविलास शर्मा का नज़रिया ग़ौरतलब है। जब कोई रचनाकार उन्हें किताब भेंट करता तो वे तुरंत उसे वापस कर देते। वे कहते थे- "मुझे किताब ख़रीद कर पढ़ने की आदत है मैं आपकी किताब ख़रीद कर पढ़ लूंगा।"


अब आप ख़ुद ही यह तय कीजिए कि आपको अपनी नई नवेली किताब किसे भेंट करनी है और किसे नहीं।


आपका-

देवमणि पांडेय


सम्पर्क: बी-103, दिव्य स्तुति, 

कन्या पाडा, गोकुलधाम, 

फ़िल्मसिटी रोड, गोरेगांव पूर्व, 

मुम्बई-400063, M : 98210 82126


1 टिप्पणी:

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ ने कहा…

हहाहाहाहा आपका आलेख पढ़कर इस बाबत सोचना पड़ेगा