रविवार, 7 फ़रवरी 2021

नौजवान दोस्तो! तानसेन नहीं कानसेन बनिए

अपना भी कोई सानी रख

हिंदी के कई नौजवान कवि किसी गोष्ठी में जाते हैं तो सिर्फ़ सुनाने की फ़िराक़ में रहते हैं। दूसरा कवि क्या सुना रहा है, उस पर ध्यान नहीं देते। इनमें कई ऐसे भी होते हैं जो अपनी कविता सुना कर धीरे से खिसक भी जाते हैं। ऐसी ही एक काव्यगोष्ठी में कवयित्री-अभिनेत्री हेमा चंदानी अंजुलि ने एक ग़ज़ल पढ़ी, जिसमें एक शेर यह भी था -

अपने को तन्हा ना कर ,
अपना भी कोई सानी रख.

गोष्ठी की समाप्ति पर इस शेर के लिए मैंने हेमा चंदानी को बधाई दी। मेरी नज़र में काव्य गोष्ठी कविता की एक कार्यशाला होती है जिसमें एक सजग रचनाकार कुछ न कुछ ज़रूर सीखता है। वह अपने बड़े से भी सीख सकता है और अपने छोटे से भी सीख सकता है। हेमा चंदानी से मैं सीनियर हूं, लेकिन मैंने उनसे यह सीखा कि शायरी में 'सानी' शब्द का कितना ख़ूबसूरत इस्तेमाल किया जा सकता है। अब आइए इस शेर के बारे में थोड़ी सी गुफ़्तगू की जाए।

यह एक सीधा सादा शेर है जिसमें मशविरा दिया गया है कि अकेले रहना ठीक नहीं, किसी को अपना साथी बनाओ। कुछ ऐसा ही कभी मैंने भी अपने एक शेर में कहा था-

रहोगे कब तलक तन्हा किसी के अब तो हो जाओ
बशर की ज़िंदगानी तो फ़क़त दो-चार दिन की है

हेमा जी के शेर का हुस्न बस एक लफ़्ज़ 'सानी' में समाया हुआ है। यानी आपका सानी या साथी कैसा होना चाहिए।

(1) सानी का अर्थ है जोड़ीदार। एक मुहावरा है- "अमुक का कोई सानी नहीं है"। यानी अमुक जी बेजोड़ हैं। तो आपको एक ऐसा दोस्त बनाना है जो बेजोड़ हो।

(2) ग़ज़ल के ऊपर वाले मिसरे को ऊला कहते हैं और नीचे वाले मिसरे को सानी कहते हैं । यानी आप ऊला हैं और आपको एक सानी यानी जोड़ीदार चाहिए। ऊला और सानी मिसरे में रब्त यानी गहरा रिश्ता होना ज़रूरी है तभी शेर मुकम्मल होता है। जैसे दोनों हाथ की हथेलियों को आप मिलाते हैं तो नमस्कार की मुद्रा बन जाती है। या दोनों हाथ टकराते हैं तो ताली की आवाज़ सुनाई पड़ती है। यानी दोनों हाथ एक दूसरे के जोड़ीदार हैं और उनमें रब्त भी है।

(3) शायरी की रिवायत के अनुसार सानी मिसरा हमेशा ऊला से बेहतर होना चाहिए। यानी आप जिससे दोस्ती करना चाहते हैं वह आप से बेहतर हो। आपसे ज़्यादा समझदार हो कि आप उससे कुछ सीख सकें। तो अगर आप अब तक ऊला की तरह अकेले हैं तो आप अपना कोई सानी तलाश कीजिए। अगर आपको अपना सानी मिल गया तो आप एक ग़ज़ल के शेर की तरह मुकम्मल हो जाएंगे।

(4) यही ज़िन्दगी का दर्शन है जो हेमा चंदानी के शेर से ध्वनित हो रहा है। यानी इस शेर में सपाट बयानी नहीं है। इस शेर में जो व्यंजना है अगर आप उसको समझ पाते हैं तो यह शेर आपको बहुत अच्छा लगेगा।


किसी काव्यगोष्ठी में जाने का शऊर और सलीक़ा यही है कि आप वहां से कम से कम दो लाइन तो अपने साथ लेकर आएं। आप हमेशा तानसेन यानी सुनाने वाला मत बनिए। आप अच्छे कानसेन यानी श्रोता भी बनिए तभी आप कुछ सीख सकेंगे। अंत में मैं फिर से कवयित्री हेमा चंदानी को बधाई और शुभकामनाएं देता हूं कि वे इसी तरह बेहतरीन शेर कहती रहें।

आपका-
देवमणि पांडेय

सम्पर्क : बी-103, दिव्य स्तुति,
कन्या पाड़ा, गोकुलधाम, फ़िलसिटी रोड, 
गोरेगांव पूर्व, मुम्बई-400063, 
मो : 98210-82126

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