दर्द का अहसास : विवेक का ग़ज़ल संग्रह
ग़ज़ल एक ऐसा राजमार्ग है जिस पर लाखों मुसाफ़िर सफ़र तय कर रहे हैं। इस कारवां में दूसरों से अलग नज़र आना लाज़िमी है। इसके लिए अपना कथ्य, अपनी ज़बान और अपना अंदाज़ ए बयां चाहिए। यह अच्छी बात है कि ग़ज़लकार ओंकार सिंह 'विवेक' के पास रचनात्मकता की यह पूंजी है।
मेरा अंदाज़ ए बयां मेरा मिज़ाज
ख़ुद समझ लीजे मेरे अशआर से
अपने प्रथम ग़ज़ल संग्रह 'दर्द का अहसास' में ओंकार सिंह 'विवेक' ने यह साबित करने कि सराहनीय कोशिश की है कि क्या कहना है और कैसे कहना है।
जब घिरा छल फ़रेबों के तूफ़ान में
मैंने रक्खा यकीं अपने ईमान में
दूसरों को नसीहत से पहले ज़रा
झांकिए आप अपने गरीबान में
ग़ज़ल एक लंबा फासला तय कर चुकी है। आज की ग़ज़ल वक़्त के बदलते हुए मिज़ाज की साक्षी है। आज का युग जज़्बात का नहीं व्यावहारिकता का युग है। इस तल्ख़ हक़ीक़त को विवेक अपनी ग़ज़लों में रेखांकित करते हैं।
जिस किसी को देखिए है तल्ख़ उसका ही मिज़ाज
अब कहां है नम्रता और सादगी व्यवहार में
तुझको मैं आगाह कर दूं अक़्ल का यह दौर है
काम लेने की ज़रूरत अब नहीं जज़्बात से
किसी को फ़र्ज़ की अपने यहां कोई नहीं चिंता
मगर हक़ मांगने को हर कोई तैयार बैठा है
अपने अहसास को अल्फ़ाज़ में पिरोकर विवेक ने ग़ज़ल का दामन सजाया है। उन्होंने आसान ज़बान, बोलचाल की शैली और छोटी बहर में कई ऐसी ग़ज़लें कही हैं जो पाठकों को पसंद आएंगी-
कर रहे हैं मंज़िलों की जुस्तजू
लोग अपना हौसला खोते हुए
ख़्वाब से कैसे हो आंखें आशना
जागते रहते हैं हम सोते हुए
विवेक को उर्दू लफ़्ज़ों से कुछ ज़्यादा ही मुहब्बत है। उन्होंने कई ऐसे उर्दू शब्दों का इस्तेमाल अपनी ग़ज़लों में किया है जो आम प्रचलन में नहीं हैं। उन्हें इस बंदिश से आज़ाद होने की ज़रूरत है। जब वे आम बोलचाल की ज़बान में अपनी बात कहते हैं तो उसका असर ज़्यादा दिखाई देता है।
किसी के ग़म को हमें अपना ग़म बनाने में
बड़ा सुकून मिला नेकियाँ कमाने में
ओंकार सिंह 'विवेक' ने अपने प्रथम ग़ज़ल संग्रह में बेहतर संभावनाओं का संकेत दिया है। अपने आसपास की दुनिया, अपने समाज की हक़ीक़त और अपने वक़्त के सवालों को उन्होंने अपनी अभिव्यक्ति कौशल से ग़ज़लों में ढालने की कोशिश की है। मुझे उम्मीद है कि अपनी सीमाओं को पहचान कर वे निरंतर प्रगति के पथ पर अग्रसर रहेंगे। 'दर्द का अहसास' ग़ज़ल संग्रह के लिए मैं उन्हें हार्दिक बधाई देता हूं और अंत में उन्हीं का एक शेर उनको भेंट करता हूं।
मश्क करना बहुत ज़रूरी है
शायरी में निखार लाने को
आपका-
देवमणि पांडेय
सम्पर्क : बी-103, दिव्य स्तुति, कन्या पाड़ा,
गोकुलधाम, फ़िल्म सिटी रोड, गोरेगांव पूर्व,
मुंबई- 400063, 98210-82126
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